एष सर्वाणि भूतानि पञ्चभिर्व्याप्य मूर्तिभिः । जन्मवृद्धिक्षयैर्नित्यं संसारयति चक्रवत् ।

यह परमात्मा पञ्च-महाभूतों से सब प्राणियों को युक्त करके अर्थात् उनकी उत्पत्ति करके उत्पत्ति, वृद्धि और विनाश करते हुए सदा चक्र की तरह संसार को चलाता रहता है ।

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