सर्वं आत्मनि संपश्येत्सच्चासच्च समाहितः । सर्वं ह्यात्मनि संपश्यन्नाधर्मे कुरुते मनः

जो सावधान पुरुष असत्कारण और सत्कार्यरूप जगत् को आत्मा अर्थात् सर्वव्यापक परमेश्वर में देखे, वह कभी अपने मन को अधर्मयुक्त नहीं कर सकता, क्योंकि वह परमेश्वर को सर्वज्ञ जानता है ।

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