शरीरजैः कर्मदोषैर्याति स्थावरतां नरः । वाचिकैः पक्षिमृगतां मानसैरन्त्यजातिताम् । ।

जो नर शरीर से चोरी, परस्त्रीगमन, श्रेष्ठों को मारने आदि दुष्ट कर्म करता है, उसको वृक्ष आदि स्थावर का जन्म वाणी से किये पापकर्मों से पक्षी और मृग आदि, तथा मन से किये दुष्टकर्मों से चंडाल आदि का शरीर मिलता है । (स. प्र. नवम समुल्लास)

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