Adhyay : 11 Mantra : 202 Back to listings विनाद्भिरप्सु वाप्यार्तः शारीरं संनिषेव्य च । सचैलो बहिराप्लुत्य गां आलभ्य विशुध्यति Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related