Adhyay : 10 Mantra : 122 Back to listings स्वर्गार्थं उभयार्थं वा विप्रानाराधयेत्तु सः । जातब्राह्मणशब्दस्य सा ह्यस्य कृतकृत्यता Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related