अध्यापनं अध्ययनं यजनं याजनं तथा । दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राह्मणानां अकल्पयत् ।

ब्राह्मणानाम् ब्राह्मणों के अध्ययनम् अध्यापनम् पढ़ना – पढ़ाना तथा तथा यजनं याजनम् यज्ञ करना – कराना, दानं, च प्रतिग्रहम् एव दान देना और लेना, ये छः कर्म अकल्पयत् हैं ।

(स० प्र० चतुर्थ समु०)

‘‘एक निष्कपट होके प्रीति से पुरूष पुरूषों को और स्त्री स्त्रियों को पढ़ावे – दो – पूर्ण विद्या पढें, तीन – अग्निहोत्रादि यज्ञ करें, चार – यज्ञ करावें, पांच – विद्या अथव सुवर्ण आदि का सुपात्रों को दान देवें, छठा – न्याय से धनोपार्जन करने वाले गृहस्थों से दान लेवें भी ।’’

(सं० वि० गृहाश्रम प्रकरण)

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