लोकैषणा से दूर

लोकैषणा से दूर

कीर्ति की चाहना कोई बुरी बात नहीं, परन्तु यश की चाहना और बात है और मान-प्रतिष्ठा की भूख दूसरी बात है। जब नेता लोग प्रतिष्ठा पाने के लिए व्याकुल हो जाते हैं तो सभा-संस्थाएँ पतनोन्मुख हो जाती हैं। नेताओं का व्यवहार कैसा होना चाहिए यह निम्न घटना से सीखना चाहिए।

पण्डित श्री गङ्गाप्रसादजी उपाध्याय वैदिक धर्म प्रचार के लिए केरल गये। चैंगन्नूर नगर में उनके जलूस के लिए लोग हाथी लाये।

पूज्य उपाध्यायजी ने हाथी पर बैठने से यह कहकर इन्कार कर दिया कि यहाँ तो लोग निर्धनता के कारण ईसाई बन रहे हैं और आप मुझे हाथी पर बिठकार यह दिखाना चाहते हैं कि मैं बड़ा

धनीमानी व्यक्ति हूँ या मेरा समाज बड़ा साधन-सज़्पन्न है। लोकैषणा से दूर उपाध्यायजी पैदल चलकर ही नगर में प्रविष्ट हुए।

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