हैदराबाद पुस्तक मेले में इस्लामिक बुकस्थल पर धर्म चर्चा
मैं (रणवीर) और राहुल जी (अकोला) पुस्तक मेले में संदर्शनार्थ गये थे। हम प्रवेश पत्र लेकर जैसे ही अन्दर गये, वहाँ पर एक अच्छा-सा मंच लगाया हुआ था, उस मंच पर प्रतिदिन नये-नये पुस्तकों का उद्घाटन होता रहता था और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते रहते थे। उस मंच के चारों तरफ भव्य सुन्दर पुस्तक बिक्री की दुकानें लगी हुई थीं। हम एक-एक बिक्री विभाग देखते हुए आगे बढ़ रहे थे। एक पुस्तक बिक्री विभाग पर हमारे सहिष्णु मित्रों द्वारा खुल्लम-खुल्ला धर्म प्रचार हो रहा था, उस बिक्री विभाग में भेड़ जैसे मूर्ख, बुद्धू हिन्दुओं को भेड़ की खाल में भेड़िये दीन की ओर आकर्षित कर रहे थे। वहाँ पर जाकर हमने भी धर्म चर्चा में भाग लिया। एक मौलवी एक धर्म निरपेक्ष (सेक्यूलर) हिन्दू बाप-बेटी को कुरान हाथ में थमा कर कुरान में विज्ञान है, कुरान में विज्ञान है, कुरान में भाईचारा है, कुरान में सृष्टि विद्या है, कुरान ईश्वरीय ज्ञान है….. ऐसी-ऐसी बातें बता रहे थे। तो हमने झट से प्रश्न किया- आपके कहे अनुसार कुरान मनुष्य मात्र के लिए है, भाईचारा है, तो कुरान में काफिरों के लिए भाईचारा क्यों नहीं? उन्होंने इसका कोई उत्तर नहीं दिया, फिर हमने दूसरा प्रश्न किया- हजरत मोहमद कहाँ तक पढ़े-लिखे थे? तो उन्होंने कहा- कुछ भी पढ़े-लिखे नहीं थे, हमने कहाँ- जो स्वयं पढ़े-लिखे नहीं, वो दुनिया को क्या पढ़ा सकता है? बीच में बुजुर्ग हिन्दू कूद पड़े और कहने लगे- यह समभव है कि एक अनपढ़ भी पढ़ा सकता है। तो हमने कहा- आप तो पढ़े-लिखे लग रहे हैं श्रीमान् जी! क्या आपने अपनी पुत्री को किसी बिना पढ़े के पास पढ़ने के लिए भेजा था क्या? तो वे निरुत्तर हो गये। हमने उदाहरण के रूप में समझाया- वनवासी जो नग्न होके घूमते रहते हैं, बिना पढ़ाये हुए, वो शिक्षित हो रहे हैं क्या? आप तो पैगमबर बनने की बात कर रहे हैं। फिर हमने तीसरा प्रश्न किया कि आप तो पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को मानते ही नहीं। तो मौलवी ने प्रश्न किया- आप यह मानते हैं कि जो इस जन्म में अच्छे कर्म करते हैं, उनको परमात्मा अगला जन्म प्रमोशन के तौर पर और अच्छा जन्म देता है? तो हमने कहा- हाँ स्वाभाविक है। फिर मौलवी ने प्रश्न किया- उनका अगला जन्म झोपड़पट्टी में क्यों होता है? तो हमने जवाब दिया- उनके कर्मों के अनुसार। मौलवी ने प्रश्न किया- पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को सिद्ध करो। तो हमने कहा- आप हमारे सामने सात-आठ मौलवी खड़े हैं, आप सारे के सारे एक जैसे क्यों नहीं है? कोई काला, कोई मोटा, कोई पतला, कोई टेड़ा…..? इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हर एक का शरीर एक जैसा नहीं है और मन, बुद्धि, इन्द्रियों की शक्ति सामर्थ्य भी अलग-अलग है। तो इससे यदि आपको मालूम पड़ता है कि यह भेदभाव अल्लाताला ने जानबूझ कर अपनी मर्जी से किया है, तो अल्लाताला अन्यायकारी सिद्ध होगा, लेकिन यह पूर्वजन्म के अपने-अपने कर्मानुसार हमें मिले हैं। एक मौलवी ने प्रश्न किया- जो पिछले जन्म में अच्छे कर्म किये हैं, उनको ज्वर आदि की पीड़ा बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए। तो हमने उत्तर दिया- जनाब, ज्वर की बात छोड़िये, यदि जीवात्मा ने पिछले जन्म में कुछ बुरे कर्म किये होंगे तो परमात्मा उनके शुभ कर्मानुसार उनको अच्छा शरीर देकर फिर उनके बुरे कर्म फलस्वरूप उनके शरीर के अंगों को छीन लेते हैं, जैसे दुर्घटना में हाथ या पाँव कट जाना आदि। और एक उदाहरण- बच्चे बहुत मासूम होते हैं, वे तो मन से भी पाप नहीं करते हैं, तो उनका भी अपने पिछले जन्मों के कर्मानुसार किसी दुर्घटना में हाथ या पाँव आदि टूटना आदि होता रहता है, और तो और मासूम बच्चों की बात छोड़िये, जब एक माँ गर्भवती होती है तो आप उस गर्भवती माँ से पूछिये कि क्या अपने पेट के अन्दर अपने बच्चे का हाथ, पाँव, मुख, हृदय आदि इन्द्रियाँ वह स्वयं तैयार कर रही हैं क्या? तो आप जवाब पाओगे कि नहीं, दुनिया कि कोई भी माँ अपने पेट के अन्दर के बच्चे के शरीर का निर्माण स्वयं नहीं कर सकती, वह परमात्मा का कार्य है। यदि उस माँ को वह कार्य सौंप दिया होता तो कोई भी अपंग बच्चा पैदा नहीं होता। इससे साबित हो रहा है कि उन बच्चों ने माँ के गर्भ में कोई कर्म ही नहीं किये, फिर भी उनके पिछले जन्मों के अशुभ कर्मों के दण्ड के तौर पर वे बच्चे अपंग पैदा हो रहे हैं और माँ के गर्भ में बच्चे के दिल के अन्दर छेद कौन कर रहा है? स्वयं माँ तो नहीं कर सकती है न? उस बच्चे ने अभी जन्म भी नहीं लिया, कोई कर्म भी नहीं किया, नौ महीने भी पूरे नहीं हुए, फिर भी उसके दिल में छेद क्यों हो गया है? ये उनका पूर्व जन्मों का अशुभ कर्मों का फल है, वह परमात्मा दे रहा है, वह न्यायकारी है। इस विषय पर वे चुप हो गये। दूसरे मौलवी ने हम दोनों से कहाँ- भैया, आप यहाँ से चले जाइए। वे सोच रहे थे कि भीड़ ज्यादा इकट्ठा हो रही है, बात नहीं जम रही है। तो और एक मौलवी ने हम से प्रश्न किया- आप मूर्ति में भगवान को मानते हैं क्या? आप अवतार आदि को भी मानते हैं और आप वराह अवतार को भी मानते हैं कि नहीं? तो हम ने कहाँ- मूर्ति जड़ है, प्रकृति है, परमात्मा नहीं, हम अवतार आदि को भी नहीं मानते, परमात्मा जीवात्मा नहीं हो सकता, जीवात्मा परमात्मा नहीं हो सकता, तो वे चुप हो गये। हमने मौलवियों से प्रश्न किया- कुरान में भाईचारा है, शान्ति का सन्देश है, तो क्यों अल्लाताला ने गाय को काट के खाने को कहा है, सूअर को नहीं? तो उन्होंने हमसे कहा- आपके सामने एक तरफ अमृत है, एक तरफ जहर है, तो आप किसे स्वीकार करेंगे? हमने कहा- अमृत को, तो उन्होंने कहा- सूअर जहर है, इसीलिए कुरान में उसको खाने के लिए मना किया गया है और सूअर किसी दूसरे काम के लिए बनाया गया है, तो हमने कहा- गाय के गोबर से खेत पुष्ट होते हैं, उस अन्न को खाने से हम मनुष्य पुष्ट होते हैं, गौ मूत्र से कैंसर आदि रोग ठीक हो रहे हैं, दवाइयों में उपयोग होता है, दूध से घी बनता है, उसे खाने से बुद्धि पवित्र होती है, यदि अल्लाताला न्यायकारी है, गाय और सूअर दोनों को खाने के लिए कहता या दोनों को नहीं खाने के लिए कहता। एक के साथ न्याय, एक के साथ अन्याय? इससे सिद्ध हो रहा है कि यह कुरान अल्लाताला का नहीं, किसी अल्पज्ञ के द्वारा लिखी हुई पुस्तक है। सूअर को किसने बनाया? अल्लाताला ने या किसी और ने? पूछने से वे निरुत्तर हो गये। हमने मौलवियों से प्रश्न किया- आपका अल्लाताला सातवें आसमान पर कहाँ है? आसमान कितने होते हैं? अल्लाताला का सिंहासन कहाँ है? उनके आठ चेले बकरे के जैसे मुँह वाले सिंहासन को उठाने वाले कहाँ हैं? तो हमारे प्रश्नों की झड़ी सुनकर वे कहने लगे- भैया, आप दोनों यहाँ से चले जाइये। तो हमने कहा- आपके अल्लाताला का सिंहासन यहाँ लाओ, हम बैठना चाहते हैं। दो-तीन मौलवी हमारे पास आकर हमारी कमर पकड़ कर बोले- भैया, कृपया आप यहाँ से चले जाइये। एक ओर मौलवी ने कहा- तुहारे वेदों में पैगमबर मोहमद का नाम सामवेद के अध्याय के एक श्लोक में आता है। हम पूज्य जिज्ञासु जी द्वारा लिखित ‘कुरान सत्यार्थ प्रकाश के आलोक में’ पढ़ चुके थे, झट से बोले- कुरान में हर सूरत से पहले ऋषि दयानन्द जी का नाम आता है, तो वे मौलवी आग-बबूला होते हुए कुरान हमारे हाथ में थमा कर ‘दिखाओ’ कहने लगे, तो हमने कहाँ- अभी दिखाते हैं, यह कहकर हमने रहमान-उल-रहीम का तो सीधा-सा अर्थ दयालु दयानन्द या दयावान दयानन्द है, यह कहा। हमसे यह उत्तर सुनकर उनके पैरों तले धरती खिसक गई। फिर हमने कहा- चारों वेदों में मन्त्र होते हैं, श्लोक नहीं, सामवेद में अध्याय नहीं होते हैं, पूर्वार्चिक उत्तरार्चिक होते हैं। फिर हमने एक ओर प्रश्न किया- कुरान में लिखा हुआ है कि चाँद के दो टुकड़े हुए हैं, तो मौलवी ने कहा- जाओ जाके देखो, दिखेगा….। वहाँ जितने भी लोग खड़े थे, वे हँसने लगे और हम भी खूब हँसे एवं हँसते हुए बोले- आप महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का सत्यार्थ प्रकाश पढ़िये, हम आर्यसमाजी हैं और कुल्लियाते आर्य मुसाफिर पढ़िये, अमर शहीद पं. लेखराम जी की है। उसमें तो पं. लेखराम जी ने कुरान की धज्जियाँ उड़ा रखी हैं। कहते हुए हम खूब हँसते रहे। दो-तीन मौलवी हमारे कमर पर हाथ रखकर- जाओ भाई, यहाँ से जाओ, कहने लगे तो हमने उनसे यह अन्तिम वाक्य कहते हुए विदा ली- आपसे धर्मचर्चा करके हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है, इस तरह की धर्मचर्चा हर गली में, हर मौहल्ले में, हर मस्जिद में होनी चाहिए। ये शबद कहते हुए, न चाहते हुए भी वहाँ से हमें घर लौटना पड़ा। अस्तु। धन्यवाद।
– रणवीर
Namaste,
It is kind of you to provide this excellent service to know the realities. The articles are very educational.
From time to time I attempted to copy some of them for later printing and distribution and to keep as file in my computer so these can be reproduced time to time for Children Camps, Exhibitions etc.
I have serious problems if I copy then on pasting all what is pasted has the purple color and no one can read any letter because of deep purple color.
My request is please do some thing so whenever, who so ever want to copy any article then the copy comes completely clean without any purple back ground.
I will send separate email as attachment to show what I see and your technical person help resolve this problem.
Thank you very much,
Sincerely,
Deenbandhu Chandora,
565 Lake Front Dr.
Lilburn- Atlanta, GA 30047, USA
Namste ji
Thanks for informing about this issue we will resolve this issue on priority and will let you know
Regards