डॉ0 धर्मवीर आचार्य का योगशास्त्रीय परमपरा के संवर्द्धन में योगदान

डॉ0 धर्मवीर आचार्य का योगशास्त्रीय परमपरा के संवर्द्धन में योगदान

राजवीर सिंह

महर्षि दयानन्द के अनन्य भक्त, वैदिक विद्वान्, गमभीर अनुसन्धाता, ओजस्वी वक्ता, उपदेशक, लेखक, बहुमुखी प्रतिभा के धनी तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती की स्थानापन्न परोपकारिणी सभा (अजमेर) के यशस्वी प्रधान तथा मन्त्री पदों के निर्वहन कर्त्ता पं0 धर्मवीर का जन्म महाराष्ट्र प्रदेश के उद्गीर क्षेत्र में आर्य परिवार से समबद्ध पिता श्री भीमसेन आर्य और माता श्रीमती ‘श्री’ के गृह में दिनाङ्क 20 अगस्त 1946 ईसवी को हुआ। आपने प्रारमभिक शिक्षा अपने जन्म क्षेत्र में प्राप्त की। तत्पश्चात् आर्यसमाज के तपोनिष्ठ एवं कर्मठ संन्यासी स्वामी ओमानन्द सरस्वती (पूर्वनाम आचार्य भगवान देव) के श्रीचरणों में अध्ययनार्थ गुरुकुल महाविद्यालय झज्जर में ईसवी सन् 1956 में प्रविष्ट हुए। आप एक मेधावी कुशाग्र बुद्धि छात्र होने के कारण अध्ययन में अग्रणी रहे। आपने गुरुकुल झज्जर, गुरुकुल काँगड़ी (हरिद्वार) आदि से आचार्य, एम.ए. तथा आयुर्वेदाचार्य की उपाधि प्राप्त की। आपने पंजाब विश्वविद्यालय की दयानन्द शोधपीठ से ‘ऋषि दयानन्द के जीवनपरक महाकाव्यों का समीक्षात्मक अध्ययन’ विषय पर शोध करते हुए पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपने ईसवी सन् 1974 में दयानन्द कॉलेज अजमेर के संस्कृत विभाग में प्राध्यापक और अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। आप प्रभावशाली वक्ता, प्रचारक, चिन्तक, दार्शनिक तथा तार्किक हैं। आपकी सहधर्मिणी श्रीमती ज्योत्स्ना आर्या तथा आपकी पुत्रियाँ आपके सामाजिक कार्यों में पूर्णरूप से सहयोगी हैं और आपका पूरा परिवार पारस्परिक व्यवहार में संस्कृत भाषा का प्रयोग करता है।

आपने वैदिक धर्म, अध्यात्म आदि के प्रचारार्थ भारत वर्ष के प्रायः सभी प्रान्तों में यात्रा की है और विदेशों में हॉलैण्ड, सिंगापुर, नेपाल आदि स्थानों पर वैदिक धर्म का प्रचार किया है। प्रचार के साथ-साथ आप जिज्ञासु छात्रों को वैदिक साहित्य का अध्यापन भी पूरी निष्ठा से कराते रहते हैं। आप महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा से ईसवी सन् 1984 में जुड़े और प्रधान तथा मन्त्री आदि पदों का निर्वहन करके सभा के उद्देश्यों तथा कार्यों को आपने एक सच्चे ऋषिभक्त के रूप में पूरा किया है। आपने परोपकारिणी सभा के अधीन अनेक प्रकल्प और योजनाएँ संचालित की हैं, जिनमें गुरुकुल स्थापना, साधना आश्रम की स्थापना, गोशाला की स्थापना आदि प्रमुख हैं।

आपने लेखन के माध्यम से महनीय कार्य किया है। आप परोपकारिणी सभा के मुखपत्र ‘परोपकारी’ पाक्षिक के अनेक वर्षों से अवैतनिक समपादक हैं। परोपकारी पत्रिका आर्यसमाज की विशिष्ट एवं मानक पत्रिका है। इसके गमभीर तथा समसामयिक समपादकीय आपकी अद्भुत प्रतिभा के प्रमाण हैं। आपकी लेखनी से समाज को ऊर्जा मिलती है।

आपके समपादकत्व में परोपकारी में ‘योगविद्या विषयक’ अनेक लेख प्रकाशित होते रहते हैं। आपने ‘सत्यार्थप्रकाश क्या है’ नामक पुस्तक के साथ-साथ अन्य लेखन भी किया है। आपके मार्गदर्शन में ऋषि उद्यान में साधना आश्रम का संचालन हो रहा है, जिसमें साधकगण साधनारत हैं। वर्ष में कई बार यहाँ योग शिविरों का आयोजन होता है, जिनमें आर्यसमाज के उच्चकोटि के योगविशेषज्ञ/योगगुरु/योगप्रशिक्षक जिज्ञासु साधकों को योग का क्रियात्मक प्रशिक्षण देते हैं और आप स्वयं भी योगविषय पर व्याखयान देने के साथ-साथ ‘योगदर्शन’ का अध्यापन करते हैं। आपकी प्रेरणा से आर्ययुवकों तथा युवतियों ने योगसाधना के मार्ग का अनुकरण किया है।

आप द्वारा वैदिक तथा दार्शनिक विषयों पर दूरदर्शन पर भी व्याखयान प्रस्तुत किये जाते हैं, जिनमें योग अध्यात्म भी एक अंग है। आपके व्यक्तिगत जीवन में योगाभयास के रूप में आसन, प्राणायाम और ध्यान अनिवार्य रूप से समाहित है। आपने विद्यार्थी काल में स्वामी ओमानन्द सरस्वती से प्राणायाम आदि का ज्ञान प्राप्त किया था। यहाँ ध्यातव्य है कि स्वामी ओमानन्द सरस्वती ने आर्यसमाज के महान् योगी स्वामी आत्मानन्द सरस्वती (पं0 मुक्तिराम उपाध्याय) से योग साधना का ज्ञान प्राप्त किया था और योगदर्शन के प्रकाण्ड शास्त्रीय विद्वान् तथा साधक स्वामी आर्यमुनि से योगदर्शन का विशेष अध्ययन किया है। डॉ0 धर्मवीर आचार्य को ऐसे महान् योगसाधक (स्वामी ओमानन्द सरस्वती) से प्राणायाम आदि का विशेष ज्ञान मिला है।

डॉ0 धर्मवीर जी को अपने जीवन में अनेक योगसाधकों का सानिध्य मिला, जिनमें स्वामी सत्यपति परिव्राजक (रोजड़), स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती (हरिद्वार), स्वामी आत्मानन्द सरस्वती, स्वामी ब्रह्ममुनि आदि प्रमुख हैं। इनके साथ ही आपको पौराणिक संन्यासी महात्मा आनन्द चैतन्य (बिजनौर) की योगसाधना को भी निकट से देखने व जानने का विशेष अवसर प्राप्त हुआ है।

डॉ0 धर्मवीर ने परोपकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित अनेक ग्रन्थों का समपादन, निरीक्षण और प्रबन्धन किया, अतः इस प्रक्रिया में जितना भी योगविषयक साहित्य प्रकाशित हुआ है, उसमें आपका अनुभवी योगदान रहा है। इसके साथ ही स्वामी दयानन्द का समस्त साहित्य परोपकारिणी सभा के द्वारा प्रकाशित हुआ है। उसमें आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा अपने ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर योगविषयक बिन्दुओं की व्याखया प्रस्तुत की गई है, जिसे आपको अनेक बार पढ़ने और समपादित करने का विशेष अवसर प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त ऋषिमेले के अवसर पर अजमेर में आयोजित वेदगोष्ठियों में विद्वानों द्वारा प्रस्तुत शोधनिबन्धों को आपके समपादकत्व में पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है।

आर्यसमाज के प्रसिद्ध योगसाधक तथा लेखक स्वामी विश्वङ्ग द्वारा लिखित योगविषयक पुस्तकों में प्रकाशकीय का लेखन आप द्वारा किया गया है, जिनका प्रकाशन वैदिक पुस्तकालय दयानन्द आश्रम केसरगंज अजमेर द्वारा हुआ है।

उपरोक्त विवरण के आधार पर प्रमाणित है कि डॉ0 धर्मवीर आचार्य व्यक्तिगत जीवन में तथा लेखन और प्रचार के माध्यम से योगविद्या के विस्तार में संलग्न हैं और आप द्वारा सपादित परोपकारी पत्रिका तथा आपके नेतृत्व में संचालित दयानन्द साधक आश्रम और परोपकारी प्रकाशन विभाग आदि भी योगशास्त्रीय परमपरा के संवर्द्धन में विशेषरूप से सक्रिय हैं।

– शोधछात्र, संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, म.द.वि.वि. रोहतक, हरियाणा

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