सुविख्यात अनुसंधाता विद्वान् एवं इतिहासज्ञ प्राध्यापक श्री, राजेन्द्रजी जिज्ञासु ने ’आर्यसमाज और डॉ0 भीमराव अम्बेडकर‘ नामक अनुसंधान पुस्तक के प्राक्कथन में 16 जुलाई 2000 को जब यह लिखा था कि-’महाराष्ट्र में शिक्षा का प्रसार, अस्पृश्यता निवारण और जन-जागृति के आन्दोलन में आर्य विद्वान् डॉ0 बालकृष्णजी का भी अद्भुत योगदान रहा है और उनके व्यक्तित्व और सेवाओं की छाप भी डॉ0 अम्बेडकरजी पर रही हैं,‘ तब मुझे डॉ0 बालकृष्ण और डॉ0 अम्बेडकर के आपसी सम्बन्धों के विषय में यत्किंचित् भी जानकारी नहीं थी। हाँ, इन सम्बन्धों को जानने की जिज्ञासा प्रा0 जिज्ञासु जी के प्राक्कथन के कारण ही उत्पन्न हुई।
महाराष्ट्र आर्य लेखक संघ के अध्यक्ष व आर्यसमाज रामनगर लातूर के मन्त्री श्री ज्ञानकुमार जी आर्य से जब मैंने डॉ0 बालकृष्णजी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में जानकारी चाही, तो उन्होंने मुझे उनके ग्रन्थालय में उपलब्ध ’डॉ0 बालकृष्ण चरित्र कार्य व आठवणी‘ नामक ग्रन्थ की फोटोस्टेट प्रति 7 जून, 2002 को उपलब्ध करा दी। सबसे पहले इसी ग्रन्थ से प्रा0 जिज्ञासुजी के डॉ0 बालकृष्ण और डॉ0 अम्बेडकर विषयक उपरोक्त कथन को पुष्ट करनेवाली प्रामाणिक और विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हुई। डॉ0 बालकृष्णजी के देहावसान के दो वर्ष बाद कोल्हापुर आर्यसमाज और डॉ0 बालकृष्ण स्मारक समिति के तत्त्वावधान में सम्पादक श्री मो0 रा0 वालंबे ने यह 308 पृष्ठ का ग्रन्थ् सम्पादित किया है। जिसमें 22 लेख मराठी में, 15 लेख इंग्लिश में और 2 लेख हिन्दी में हैं। ग्रन्थ के मराठी शीर्षक के अन्त में आये ’आठवाणी‘ शब्द का अर्थ संस्मरण और यादें हैं।
कोल्हापुर के श्री विष्णु बलवंत शेंडगे ने ’हम दलितों के पक्षधर‘ (मराठी शीर्षक-आम्हा हरिजनांचे कैवारी) नामक लेख में लिखा है, श्री छत्रपति शाहू महाराज ने अपनी राजधानी कोल्हापुर में सन् 1918 में आर्यसमाज की स्थापना की थी। सन् 1922 से डॉ0 बालकृष्ण ने आर्यसमाज कोल्हापुर के प्रधान के रूप में कार्य करना शुरू किया था। 1922 से लेकर लगभग 1940 तक उन्होंने आर्यसमाज के माध्यम से दलितोद्धार का जो उज्जवल कार्य किया, वह अविस्मरणीय है। डॉ0 बालकृष्ण साहब के अन्तःकरण में दलितों के प्रति अतिशय आत्मीयता और सहानुभूति थी। उनकी सर्वांगीण उन्नति के लिए डॉ0 साहब ने अपनी ओर से बहुत से प्रयास स्वयं किये ही, अन्यों से भी इस क्षेत्र में जितना कार्य वे करवा सकते थे, उतना उन्होंने करवाया। दलितों के महान व विद्वान् नेता डॉ0 अम्बेडकर व डॉ0 बालकृष्ण साहब का आपस में अत्यन्त घनिष्ठ व स्नेहिल सम्बन्ध था। (पृष्ठ 199)। डॉ0 अम्बेडकर (1891-1956) से डॉ0 बालकृष्ण (1882-1940) आयु में नौ वर्ष बड़े थे। दोनों ही अर्थशास्त्र तथा इतिहास के विद्वान्, उत्तम वक्ता और लेखक थे।
डॉ0 बालकृष्ण और डॉ0 अम्बेडकर के इन घनिष्ठ सम्बन्धों की पुष्टि कालान्तर में श्री चांगदेव भवानराव खैरमोडे लिखित श्री भीमराव अम्बेडकर नामक चरित्र ग्रन्थ से हुई। लेखक ने यह ग्रन्थ डॉ0 बाबासाहब अम्बेडकर के जीवनकाल में ही अनेक खण्डों में लिखा था। लेखक की लगभग पन्द्रह साल तक डॉ0 अम्बेडकरजी के सान्निध्य में रहने का अवसर मिला। वे अपने इस चरित्र के द्वितीय खण्ड में प्रसंगवशात् डॉ0 अम्बेडकर और डॉ0 बालकृष्ण से सम्बन्धित घटना का वर्णन करते हुए लिखते हैं-
सन् 1927 में मुम्बई क्षेत्र में तीन शासकीय रिक्त स्थानों की पूर्ति की जानी थी। इस जगह के लिए संस्कृत विषय लेकर बी0ए0 ऑनर्स की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले महाराष्ट्रीय दलित (महार) युवक श्री मा0 का0 जाधव ने भी प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था। जब वे बी0 ए0 उत्तीर्ण हुए तब डॉ0 अम्बेडकर ने पत्र लिखकर उनका अभिनन्दन तो किया ही था, इसके अतिरिक्त दीक्षान्त समारोह के अवसर पर पहिनने के लिए उन्होंने अपना वकालत का चोगा भी उन्हें प्रदान किया था। स्वयं डॉ0 बाबासाहब अम्बेडकरजी ने ही राजाराम कॉलेज में श्री जाधव की फॅलो के रूप में नियुक्ति भी करवाई थी। इस स्थान पर कार्य करते समय ही श्री जाधव ने मुम्बई की शासकीय सेवा हेतु अपना प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया था, पर मुम्बई सरकार ने दो रिक्त स्थानों पर मराठा समुदाय के लोगों की नियुक्ति की थी और तीसरे स्थान पर एक मुसलमान व्यक्ति की नियुक्ति कर दी गई थी। डॉ0 बाबासाहब अम्बेडकर ने इस बात पर खेद व्यक्त करते हुए कहा था कि-मुसलमन उम्मीदवार के सामान्य बी0 ए0 होने पर भी मुम्बई सरकार ने उसकी नियुक्ति कर दी और दलित प्रत्याशी के बी0 ए0 ऑनर्स होने पर भी उसकी नियुक्ति नहीं की गई। डॉ0 बाबासाहब ने तत्काल इस सरकार की कार्यवाही पर अपनी टिप्पणी व्यक्त करते हुए इसे दलित प्रत्याशी पर सरासर अन्याय घोषित किया था।
तत्युगीन समाज में जब केवल अशिक्षित दलितों पर ही नहीं, किन्तु शिक्षित दलितों पर भी इस प्रकार के अन्याय हो रहे थे, तब प्राचार्य डॉ0 बालकृष्णजी द्वारा दलित स्नातक को आर्यसमाजी शिक्षण संस्था राजाराम महाविद्यालय कोल्हापुर में संस्कृत फॅलो के रूप में नियुक्ति प्रदान करना, अपने आपमें विशेष महत्त्व रखता है। प्राचार्य डॉ0 बालकृष्णजी का आर्योचित व्यवहार देखकर डॉ0 अम्बेडकरजी का मन सुनिश्चित रूप से गद्गद् हुआ होगा। डॉ0 अम्बेडकरजी ने आर्य विद्वान् और आर्य शिक्षण संस्था की जैसी प्रशंसा सुनी थी, तदनुरूप ही उन्हें व्यावहारिक जीवन में मानवोचित सदाचरण करते हुए पाया। मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्। मनसा-वाचा-कर्मणा आचार्य-महात्माओं का आचरण अभिन्न-एकरूप होता है।
उपरोक्त घटना के समय सन् 1927 में प्राचार्य डॉ0 बालकृष्णजी की आयु 45 वर्ष और बाबासाहब डॉ0 अम्बेडकरजी की आयु 36 वर्ष की थी। कोल्हापुर जाकर समकालीन व्यक्तियों से मिलने पर अथवा समकालीन साहित्य के अध्ययन के उपरान्त कालान्तर में डॉ0 बालकृष्ण और डॉ0 अम्बेडकर के आत्मीय सम्बन्धों की और भी अधिक विस्तार से जानकारी उपलब्ध हो सकती हैं। प्रा0 श्री राजेन्द्रजी जैसे इतिहासज्ञ इस विषय पर और अधिक विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं। ’हम दलितों के पक्षधर‘ के लेखक श्री0 वि0 ब0 शेंडगे के शब्दों में ’अपने जीवन के अंतिम क्षण तक डॉ0 बालकृष्णजी आर्यसमाज की ओर से दलितोद्धार के लिए अविश्रांत और अनथक संघर्ष करते रहे थे।‘ (पृष्ठ 200)
डॉ0 बालकृष्ण के कोल्हापुर में सक्रिय आर्यसमाज का होना अत्यावश्यक
कोल्हापुर के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज पर आर्यसमाज का प्रभाव पड़ा। उन्होंने कोल्हापुर का राजाराम कॉलेज संयुक्त प्रान्तीय आर्य प्रतिनिधि सभा को सौंप दिया। सभा ने कॉलेज के प्राचार्य पद के लिए विख्यात आर्य विद्वान् डॉ0 बालकृष्णजी को भेजा। वे कोल्हापुर के ही हो गये। उन्होंने वहाँ वैदिक धर्म प्रचार की धूम मचा दी। सहस्रों व्यक्ति शुद्ध होकर आर्य धर्म में दीक्षित हुए। डॉ0 बालकृष्ण, डॉ0 अविनाशचन्द्र बोस, पं0 गंगाप्रसाद उपाध्याय आदि के प्रयत्नों से अस्पृश्यता व जन्म की जात-पाँत की जड़ें उखड़ने लगीं। खेद की बात है जिस कोल्हापुर में बालकृष्ण जैसे यशस्वी शिक्षा शास्त्री, गवेषक लेखक, इतिहासज्ञ और प्रारंभिक काल में महाराष्ट्र केसरी छत्रपति शिवाजी पर अंग्रेजी में प्रामाणिक जीवन चरित्र लिखने वाले चरित्रकार ने जीवन खपाया, वहाँ अब सक्रिय आर्यसमाज नहीं। आर्यसमाज की लाखों के भवन हैं, परन्तु आर्यों के हाथ में कुछ भी नहीं। किसी समय कोल्हापुर से हिन्दी, मराठी तथा अंग्रेजी में आर्यसमाज सम्बन्धी बहुत सारा साहित्य निकला था। (व्यक्ति से व्यक्तित्व-प्रा0 राजेन्द्रजी जिज्ञासु-पृष्ठ 105-107)