अग्नियज्ञ, शिक्षायज्ञ और गृहयज्ञ – रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः गोतमः । देवता यज्ञः । छन्दः आर्षी पङ्किः ।
भर्वतं नः सर्मनस सचेतसावरपस
मा यज्ञहिसिष्टुं मा यज्ञपतिं जातवेदसौ शिवौ भवतमद्य नः ॥
-यजु० ५। ३
हे यजमान-पुरोहित, गुरु-शिष्य तथा गृहस्थ पति-पत्नी ! तुम ( नः ) हमारे लिए (समनसौ ) मन से युक्त अर्थात् सावधान, ( सचेतसौ ) सज्ञान और ( अरेपसौ ) निर्दोष ( भवतं ) होवो। ( मा यज्ञं हिंसिष्टम् ) न यज्ञ की हिंसा करो ( मा यज्ञपतिं ) न यज्ञपति की। हे ( जातवेदसौ ) युगल वेदज्ञो! आप ( अद्य) आज (नः ) हमारे लिए (शिवौ भवतं ) शिव होवो।
| यजमान एवं पुरोहित, गुरु एवं शिष्य तथा पति एवं पत्नी अग्निहोत्र-यज्ञ, शिक्षा-यज्ञ और गृहस्थ-यज्ञ को चलाते हैं। प्रथम हम अग्निहोत्र-यज्ञ को लेते हैं। यज्ञकर्ता लोग यजमान और पुरोहित को सम्बोधन करके कह रहे हैं। तुम दोनों समनस् अर्थात् मन से सावधान रहो। यदि यजमान और पुरोहित का ध्यान यज्ञ में नहीं लग रहा है, तो यज्ञ से होनेवाले लाभों से वे प्रायः वञ्चित ही रहते हैं, क्योंकि यज्ञ के विधि विधानों के साथ जो भावनाएँ निहित हैं, न उन्हें वे मन में लाते हैं, न मन्त्रार्थ का विचार करते हैं, न परमेश्वर का चिन्तन करते हैं, न अग्नि के तेजस्विता, ऊर्ध्वगमन आदि गुणों को ग्रहण करने का प्रयास, करते हैं। फिर उन्हें सचेतस्’ अर्थात् सज्ञान, जातवेदस्’ अर्थात् वेदज्ञ और ‘अरेपस्’ अर्थात् निर्दोष और निष्पाप होने की भी प्रेरणा की गयी है। यदि वे सज्ञान एवं वेदज्ञ नहीं हैं तो मन्त्रार्थ, यज्ञ के लाभ आदि से अपरिचित होने के कारण यज्ञ को सफल नहीं बना सकते। यदि निर्दोष नहीं हैं, तो यज्ञ में भयङ्कर भूलें करते हुए वे यज्ञ को पूर्णता की ओर नहीं ले जा सकते। इसके विपरीत यदि यजमान और पुरोहित सावधान, सज्ञान, वेदवेत्ता और निर्दोष हैं तो न उनका यज्ञ हिंसित होगा, न यज्ञपति आत्मा हिंसित होगा, अपितु वे यज्ञ में उपस्थित सभी जनों के लिए मङ्गलकारी सिद्ध होंगे।
अब लीजिए शिक्षा-यज्ञ को। शिक्षा- यज्ञ पूर्ण होता है गुरु एवं शिष्यों से। इन्हें भी यज्ञ की पूर्णता के लिए सावधान, सज्ञान, वेदवित् और निर्दोष होना आवश्यक है। यदि वे इन गुणों से युक्त रहते हैं, तो न यज्ञ हिंसित या विघ्नत होगा, न यज्ञपति अर्थात् शिक्षा-यज्ञ के सञ्चालन कुलपति का अपयश होगा, प्रत्युत समस्त गुरुकुलवासी शिक्षायज्ञ के सफल होने से सुप्रसन्न तथा मङ्गलभाजन होंगे।
अब आते हैं तीसरे गृहस्थ-यज्ञ पर। गृहस्थ-यज्ञ के सम्पादक हैं पति-पत्नी। वे भी गृहस्थ-यज्ञ का निर्वाह करते हुए यदि सावधान, सज्ञान, वेदोक्त गृहशास्त्र के ज्ञाता तथा निर्दोष नहीं हैं, तो इस यज्ञ को सम्यक् प्रकार वे सिद्ध नहीं कर सकते। यदि वे इन गुणों से समन्वित रहते हैं, तो यज्ञ को भी सफल करते हैं तथा घर में सबसे बड़ा जो गृहपति है, उसे भी प्रसन्न रखते हैं और सब गृहवासियों के लिए भी सुखद होते हैं।
आओ, हम भी यदि इन तीनों यज्ञों के कर्ता हैं, तो इन्हें सुरुचिपूर्वक करते हुए यश के भागी बनें।
पाद-टिप्पणियाँ
१. चेतसा विज्ञानेन सहितौ सचेतसौ।
२. न विद्यते रेपः पापं दोषो वा ययोस्ती ।।
३. जातं वेदः वेदज्ञानं ययोस्तौ।
अग्नियज्ञ, शिक्षायज्ञ और गृहयज्ञ – रामनाथ विद्यालंकार