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अल्लाह एक कल्पित चरित्र है

allah is not real

अल्लाह एक कल्पित चरित्र है —

लेखक- सत्यवादी

यदि कुरान और हदीसों को ध्यान से पढ़ें,  तो उसमे अल्लाह के द्वारा जितने भी आदेश दिए गए हैं, सब में केवल जिहाद ह्त्या लूट बलात्कार और अय्याशी से सम्बंधित है.

कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति इनकी ईश्वर के आदेश मानने से इंकार कर देगा. अप देखेंगे की अल्लाह हमेशा मुहम्मद का पक्ष लेता है, मुहम्मद के हरेक कुकर्म को किसी न किसी आयात से जायज बता देता है. मुहम्मद के लिए औरतों का इंतजाम करता है, मुहम्मद के घरेलु विवाद सुलझाता है, मुहम्मद के पापों पर पर्दा डालता है  आदि आदि.

यूरोप के विद्वान् इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वास्तव में अल्लाह एक कल्पित चरित्र है. अल्लाह का कोई अस्तित्व नहीं है. अल्लाह और कोई नहीं मुहम्मद ही था. जो अल्लाह का रूप धरकर पाखण्ड कर रहा था  और लोगों को मूर्ख बनाकर अपनी मनमर्जी चला रहा था और अय्याशी कर रहा था.

कुरान अल्लाह की किताब नहीं, बल्कि मुहम्मद, आयशा और वर्क बिन नौफल की बेतुकी बातों का संग्रह है  और हदीसें मुहम्मद के साथियों द्वारा चुगली की गयी बातें हैं.यहाँ पर उन्हीं तथ्यों की समीक्षा की जा रही है, जिस से साबित होता है  की मुहम्मद अलाह की खाल ओढ़कर अपनी चालें कैसे चलता था.

इसके लिए प्रमाणिक हदीसों और कुरान से हवाले लिए गए हैं —

1 -अल्लाह को केवल मुहम्मद ही जानता था —

रसूल ने कहा कि केवल मुझे ही अलह के बारे में पूरी पूरी जानकारी है ,कि अल्लाह कैसा है ,और कहाँ रहता है ,और भवष्य में क्या करने वाला है ” — सही मुस्लिम -किताब 30 हदीस 5814.”

“आयशा ने कहा कि ,जब भी मोमिन रसूल के पास आकर,उन से अल्लाह और रसूल के अधिकारों ,के बारे में कोई सवाल करता था ,तो रसूल एकदम भड़क जाते थे ,और कहते थे कि ,मैं अल्लाह को अच्छी तरह पहिचानता हूँ .मुझ में और अल्लाह में कोई फर्क नहीं है .मैं अल्लाह के बारे में तुम सब से अधिक जानता हूँ ” — बुखारी -जिल्द 1 किताब 2 हदीस 19″.

“सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,जन्नत में केवल उन्हीं लोगों को ऊंचा स्थान मिलेगा जो ,अल्लाह के साथ मुझे भी आदर देंगे और मुझे चाहेंगे ” — बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 478″ .

2 -अल्लाह मुहम्मद को औरतें भेजता था —

खौला बिन्त हकीम नामकी एक औरत रसूल के पास गयी ,रसूल ने उस से सहवास कि इच्छा प्रकट की ,लेकिन आयशा को यह पसंद नहीं आया .इस पर रसूल ने कहा कि ,आयशा क्या तुम नहीं चाहती हो ,आल्लाह मुझे औरतें भेजकर मुझे ख़ुशी प्रदान नहीं करे .इस औरत को अल्लाह ने मेरे लिए ही भेजा है “. — बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 48” .

3 -अल्लाह मुहम्मद का पक्ष लेता था —

“अब्ब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब ने कहा कि ,रसूल से मैंने सुना कि रसूल ने कहा अल्लाह हमेशा मेरा ही पक्ष लेता है .और मेरी हरेक बात को उचित ठहरा देता है .मेरे मुंह से अल्लाह ही बोलता है “सहीह मुस्लिम -किताब 1 हदीस 54 “.

4 -मुहम्मद को गाली,अल्लाह को गाली —

“अबू हुरैरा ने कहा कि ,जब कुरैश के लोग रसूल को मुहम्मद कि जगह “मुहम्मम “कहकर चिढाते थे तो,रसूल ने कहा क्या तुम लोग यह नहीं जानते हो कि ,तुम अल्लाह को चिढ़ा रहे हो .इस से तुम पर अजाब पड़ेगा “बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 773”.

5 -मुहम्मद कि जुबान अल्लाह कि जुबान —

अबू मूसा ने कहा कि ,रसूल ने कहा ,मैं जो भी कहता हूँ वह मेरी नहीं बल्कि अल्लाह कि जुबान है .जिसने मेरी बात मानी समझ लो उसने अल्लाह कि बात को मान लिया “अबू दाऊद-किताब 3 हदीस 5112”.

“आयशा ने कहा कि ,हिन्दा बिन्त उतबा रसूल के पास शिकायत लेकर आई और बोली कि ,मुझे अबू सुफ़यान से खतरा है ,क्या मैं अपना घर छोड़ कर चली जाऊं ,क्या सुफ़यान को अल्लाह का खौफ नहीं है .रसूल ने कहा तुम डरो नहीं ,तुम्हें कुछ नहीं होगा .यह मेरा नहीं अल्लाह का वायदा है “सहीह मुस्लिम -किताब 18 हदीस 4254 “.

6 -मुहम्मद को अल्लाह का डर नहीं था —

आयशा ने कहा कि ,एक बार जैसे ही रसूल घर में दाखिल हुए तो एक यहूदिन ने चिल्लाकर रसूल से कहा कि क्या तझे पता नहीं है कि कयामत के दिन अल्लाह तेरे गुनाहों के बारे में सवाल करेगा. रसूल ने कहा कि मुझे इसका कोई डर नहीं है  मैं खुद अपने आप से सवाल क्यों करूंगा “मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1212”.

“अम्र बिन आस ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,अल्लाह तो मेरा दोस्त है .और वह मुझसे या मेरे बाप दादाओं या मेरे साथियों से उनके गुनाहों के बारे में कोई सवाल नहीं करेगा .और मई सब गुनाह माफ़ कर दूंगा “मुस्लिम -किताब 1 हदीस 417 .इब्ने माजा -किताब 1 हदीस 93”.

7 -मुहम्मद से नीची आवाज में बोलो —

“हे ईमान वालो ,अपनी आवाजें रसूल की आवाजों से ऊंची नहीं करो ,और जो लोग रसूल के सामने अपनी आवाजें नीची रखते है .अल्लाह उनके लिए क्षमा और उत्तम बदला देगा “सूरा -अल हुजुरात 49 :2 और 3”.

8 -अल्लाह के नाम पर मुहम्मद का कानून —

“जब अल्लाह का रसूल की फैसला कर दे ,तो किसी को कोई अधिकार नहीं रह जाता है कि ,वह रसूल कि वह रसूल के फैसले कि अवज्ञा कर सके .” — सूरा -अहजाब 33 :36 “.

“इब्ने अब्बास ने कहा कि ,जो रसुल के आदेश को कबूलकरेगा और मान लेगा समझ ले कि उसाने अल्लाह केअदेश को मान लिया .और जो रसूल के आदेश का विरोध करेगा वह अल्लाह का विरोध माना जाएगा “बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 634” .

9 -मुहम्मद का आतंक अल्लाह का आतंक  —

“अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,मैं लोगों ले दिलों में आतंक पैदा कर दूंगा .और जो आतंक होगा वह अल्लाह के द्वारा पैदा किया आतंक समझा जाये  — “सहीह मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1066 और 1067” .

10 -अल्लाह ने शादियाँ तय करवायीं —

“जब मुहम्मद ने अपनी पुत्रवधू जैनब बिन्त से अपनी शादी करवाई थी ,वह शादी खुद अल्लाह ने ही करवायी थी .उस समय अल्लाह के आलावा कोई दूसरा नहीं रसूल ही थे “सहीह मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1212 “.

11 -अल्लाह के बहाने अली बोलता था —

जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि ,अक्सर जब रसूल कोई महत्वपूर्ण आयत सुनाने वाले होते थे तो ,सब को बुला लेते थे .फिर अपने घर के एक गुप्त कमरे में अली को बुला लेते थे .जबीर ने कहा कि इसी तरह एक बार रसूल ने हमें बुलाया ,फिर कहा कि एक विशेष आयत सुनाना है .फिर रसूल अली को एक कमरे में ले गए .आर कहा कि इस आयत में काफी समय लग सकता है इसलिए अप लोग रुके रहें ,हमने चुप कर देखा कि अली ,रसूल से अल्लाह की तरह बातें कर रहा था .वास्तव में कमरे में रसूल और अली के आलावा कोई नहीं था .अलह कि तरह बातें करने वाला और कोई नहीं बल्कि रसूल का चचेरा भाई अली था “शामए तिरमिजी हदीस 1590 “.

इस सारे विवरणों से साफ पता चलता है कि ,अल्लाह का कोई अस्तित्व ही नहीं है .यह मुहम्मद की चालबाजी और पाखंड था .अरब के मुर्ख ,लालची लोग मुहाम्मद की बे सर पैर की बातों को अल्लाह का आदेश मान लेते थे .आज भी कई ढोंगी बाबा ,फकीर इसी तरह से लोगों को ठगते रहते है .चूंकि आज विज्ञानं का प्रचार होने से लोग ऐसे ढोंगियों को जल्द ही भंडा फोड़ देते हैं .और पाखंडियों को जेल के अन्दर करा देते हैं .और ढोंगियों के जाल से बच जाते है .

आज इस बात की अत्यंत जरुरत है कि दुनिया के सबसे बड़े धूर्त ,पाखंडी ,और अल्लाह के नाम पर आतंक करने वाले स्यंभू रसूल का विश्व स्तर पर भंडा फोड़ा जाये .तभी लोग शांति से जी सकेंगे .अल्लाह को मानाने या उस से डरने कि कोई जरुरत नहीं है .मुहम्मद ही अल्लाह बना हुआ था .

कुरआन की शिक्षाएं

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कुरआन की शिक्षाएं

यह लेख किसी की धार्मिक भावना को आहत करने के लिए नहीं लिखा गया है केवल सत्य का प्रकाश करने के लिये लिखा गया है | मुस्लिम मित्रो का दावा है की कुरआन ने इन्सान को हर वो शिक्षा दी जो इन्सान के लिए जरुरी है | चाहे वो ज्ञान हो या विज्ञानं हर चीज की तालीम कुरआन ने दी है | इस लेख के माध्यम से हम कुरआन की शिक्षाओं प्रकाश डालेंगे |

शिक्षा :-

१.)  माता पिता की सेवा की शिक्षा

किसी  मनुष्य के जीवन में सबसे जरुरी चीज है उसकी शिक्षा जो उसे उसके माता पिता या फिर धार्मिक पुस्तकों से मिलती है | अच्छे शिक्षा ही मानव को मानव बनाते है वरना मनुष्य और जानवर में कोई ज्यादा अंतर नहीं है |

कुरान सूरह तौबा आयत २३ – ऐ ईमान वालो अपने बाप दादा को और अपने भाइयो को अपना मित्र न बनाओ अगर वे ईमान न लाये और कुफ्र को पसंद करे जो मित्र बनाएगा ऐसे वो अत्याचारी होगा |

अगली ही आयत में कुरान कहती है की कह दे अगर तुम्हे तुम्हारे बाप दादा भाई अल्लाह , अल्लाह के रसूल और उसकी राह में जिहाद से प्यारे है तो इन्तजार करो यहाँ तक की अल्लाह का हुकुम आ जाये |

यदि किसी व्यक्ति को जिहाद करते समय माता पिता या भाइयो पर रहम आ जाए और उनको वह व्यक्ति न मारे और उनको मित्र बनाने ले तो अल्लाह ने तुरंत आयत उतारी की ईमान न लाने वाले माता,पिता या भाइयो से मित्रता न रख अर्थात उन पर दया न कर और दूसरी आयत में कहा की अगर तुझे माता पिता भाई आदि अल्लाह के मार्ग में जिहाद से प्यारे है तो वो व्यक्ति अत्याचारी है और अल्लाह ऐसे नाफरमान लोगो को हिदायत नहीं देता |

जिन माता पिता ने कष्ट सह कर पाल पोश कर बड़ा किया हो उनसे केवल इस बात पर रिश्ता तोड़ लेना की वे ईमान नहीं लाते क्या यह अच्छी शिक्षा है ? यदि माँ बाप बुरा काम करने को कहते तब उनका कहा न मानना तो सही है पर केवल माता पिता भाइयो के ईमान ना लाने से उनसे रिश्ता ही खत्म कर लेना नहीं बल्कि उनको जान से मार देना कहाँ की मानवता है ?

२.) ईमानदारी की शिक्षा

मुहम्मद साहब के जीवन परिचय से स्पष्ट है की मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कोई भी कार्य नहीं करते थे | अधिकतर आज्ञा कुरआन में ही मोजूद है | ऐसी ही एक आज्ञा है

सूरह अनफ़ाल आयत १ – प्रश्न करते है तुझ से लूटो के बारे में तो कह दे लूटे अल्लाह और रसूल के लिए है |

सूरह अनफ़ाल आयत ६९ – उस में से खाओ जो तुम्हे लूट में हलाल मिला |

जहाँ तक की लूट की बात है मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कुछ नहीं करते थे भले ही कुरान में अल्लाह ने व्यस्तता के कारण लूट की आज्ञा न दी हो पर यह आज्ञा अल्लाह ही की थी जी की इन दो आयतों से स्पष्ट है |

यहाँ एक और जानकारी का विषय है की इन लूट में अल्लाह का बराबर का हिस्सा है क्योंकि इसी सूरह की आयत ९ के अनुसार अल्लाह ने इस लूट में मदद के लिए लगातार आने वाले एक हजार फरिश्तो की फोज भेजी थी | अर्थात अल्लाह भी कोई कार्य बिना कमिशन के नहीं करता |

पाठक गण यह भी अल्लाह की शिक्षा है लूटपाट करने की |

३)  भाईचारे की शिक्षा

जैसा की कुरआन से विदित है अल्लाह भाईचारे को बहुत पसंद करते थे | इसी भाईचारे के लिए अल्लाह ने कुरआन में जगह जगह मोमिनो अर्थात मुसलमानों को सन्देश भी दिए है | आइये उन संदेशो पर भी एक नजर डाल लेते है |

सूरह इमरान आयत २८ – मुसलमान को उचित है की वे मुसलमान को छोड़कर किसी काफिर को मित्र न बनाये और जो ऐसा करे उसका अल्लाह से कोई रिश्ता नहीं |

पाठको इस से बढ़कर भाईचारे की शिक्षा क्या हो सकती है ?

४) अहिंसा परमोधर्म की शिक्षा

कुरआन को पढने से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम था | लेकिन अल्लाह ने यह अहिंसा का सन्देश केवल शांतिप्रिय कौम को ही दिया | जिसकी शांतिप्रियता से आज पूरा विश्व त्रस्त है | कुरआन की अहिंसावादी सोच के कुछ नमूने देखिये –

सूरह बकर आयत १९१ – उन्हें मार डालो जहाँ पाओ और उन्हें निकाल दो जहां से उन्होंने तुम्हे निकाला |

कुछ मुसलमान मित्र यहाँ कहेंगे की अल्लाह ने उन लोगो को मारने को कहा है जिन्होंने खुद लड़ाई की और ईमान वालो को घर से निकाला | लेकिन अगली आयत से सत्य का पता चलता है कि उन्हें मारने का उद्देश्य क्या है |

सूरह बकर आयत १९३ – तुम उन से लड़ो की कुफ्र न रहे और दीन अल्लाह का हो जाए अगर वह बाज आ जाए तो उस पर जयादती न करो |

मित्रो इस आयत से स्पष्ट है की लड़ने का उद्देश्य क्या है | लड़ने का उद्देश्य केवल दीन को फैलाना है |

ऐसी ही एक अहिंसावादी सोच को दर्शाती शिक्षा आपके समक्ष है –

कुरान सूरह तौबा आयत ५ – फिर जब प्रतिष्ठित महीने बीत जाए काफ़िरो को जहां पाओ क़त्ल करो , उन्हें पकड़ लो उन्हें घेर लो , फिर अगर वो तौबा कर ले और नमाज कायम कर ले तथा जकात अदा करे तो उनका रास्ता छोड़ दो |

इस आयत से भी स्पष्ट है क़त्ल करने का कारण क्या है | केवल मुसलमान न होना और यदि वो मुसलमान हो जाए तो उसे छोड़ दो | इन आयतों से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम है |

५.) सदाचार की शिक्षा

मुहम्मद साहब के जीवन से पता चलता है की वे बहुत ही सदाचारी व्यक्तित्व वाले थे और हो भी क्यों न ? कुरआन ने जो उनको शिक्षा दी थी | मुहम्मद साहब ने जो भी सदाचार के कार्य किये उन सबकी प्रेरणा अल्लाह ने ही उन्हें दी थी | सदाचारी की प्रेरणा देती कुछ आयते निम्नलिखित है |

सुरह निसा आयत २४ – विवाहित स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वर्जित है सिवाय लोंडियो के जो तुम्हारी है, इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनसे दाम्पत्य जीवन अर्थात सम्भोग का मजा लो और बदले में उन्हें निश्चित की हुई रकम अदा कर दो |

इस आयत से कुरआन की सदाचार की शिक्षा साफ़ साफ़ झलकती है | लेकिन कुछ और भी आयते है जो सदाचार को प्रोत्साहन देती है | इसी प्रोत्साहन का नतीजा था की मुहम्मद साहब ने ९ वर्ष की अबोध बालिका और पुत्र वधु से भी सम्बन्ध बनाने में कोई हिचकिचाहट महसूस न हुई |

कुरान सूरह अजहाब आयत ३७ -फिर जब जैद ने जैनब से अपनी आवश्यकता पूरी कर ली तो हम ने उसे आप को निकाह में दे दिया ताकि मोमिनो को कोई तंगी न रहे अपने गोद लिए की बीवियों से निकाह करने में |

यदि कोई व्यक्ति किसी औरत को माँ मान ले और बाद में उसका दिल उसके ऊपर आ जाये तो अल्लाह ने इसके लिए भी एक शिक्षा दी है आयत के जरिये | देखिये

सूरह अह्जाब आयत ४- तुम्हारी उन बीवियों को जिन्हें तुम माँ कह बैठते हो नहीं बनाया तुम्हारी माँ |

सूरह अह्जाब आयत ५०- हम ने तुम्हारे लिए हलाल कर दी लूट में मिली बीवियां, तुम्हारे चाचाओ की बेटिया , तुम्हारे फुफियो की बेटियाँ, तुम्हारे मामुओ की बेटियाँ और तुम्हारे खालाओ की बेटिया |और मोमिन औरत जो अपने आप को नबी के हवाले कर दे |

पाठको के लिए ये आयते काफी होगी कुरआन की सदाचारी की शिक्षा दिखाने के लिए |

६.) एकेश्वरवाद की शिक्षा

जैसा की कुरआन के पढने से पता चलता है की अल्लाह को सबसे ज्यादा नफरत उस आदमी से है जो एक अल्लाह को नहीं मानता | वैसे अल्लाह भी अपनी जगह बिलकुल सही है उस अकेले ईश्वर की उपासना में कोई दूसरा शामिल नहीं होना चाहिए चाहे वो कोई भी हो | कुरआन ने अनेक जगह पर एकेश्वरवाद की शिक्षाए दी है | जैसे –

सूरह इमरान आयत १७४- अल्लाह व उसके रसूलो पर ईमान लाओ |

सूरह बकर आयत ३४- सजदा करो आदम को |

हमारे मुसलमान भाई नमस्ते नहीं बोलते क्योंकि उनके अनुसार नमस्ते कहने से शिर्क हो जाता है जो की एकेश्वरवाद के खिलाफ है | लेकिन शायद भूल जाते है अल्लाह के सिवा किसी दुसरे पर ईमान लाना और अल्लाह को छोड़ किसी दुसरे को सिजदा करवाना भी शिर्क ही है | सबसे बड़ी एकेश्वरवाद की शिक्षा तो कलमे में ही है की नमाज में भी मुहम्मद साहब का नाम बोलना जरुरी है जैसे ला इलल्लाह मुहम्मद रसुल्लुलाह | अब बिना कलमा बोले नमाज अर्थात उपासना नहीं होती और बिना रसूल का नाम लिया कलमा पूरा नहीं होता | यह है अल्लाह की एकेश्वरवाद की शिक्षा |

७.) रहमदिली की शिक्षा

कुरआन में शायद ३०० से ज्यादा बार अल्लाह को रहम करने वाला बताया गया है | रहम का अर्थ है दया | कुरआन ने भी कई बार इंसान को दयालु होने की शिक्षा दी है | कुछ आयते कुरआन की इस दयालुता को दर्शाती है |

कुरान सूरह हज्ज आयत २८ – और जानवरों को कुर्बान करते समय अल्लाह का नाम ले |

कुरान सूरह हज्ज आयत ३६ – कुर्बानी के ऊंट हमने तुम्हारे लिए मुकर्रर किये और जब कुर्बान हो जाए तो खुद भी खाओ और खिलाओ |

कुरआन किस रहमदिली की शिक्षा देता है वो इन आयतों में स्पष्ट है |

८.) पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा

मुस्लिम मित्रो का मानना है की अल्लाह ने मुहम्मद साहब की शादी ज्यादा उम्र और कम उम्र की ओरतो से इसलिए कराई थी ताकि दुनियो वालो को एक मिशाल पेश की जा सके कि जब ज्यादा उम्र की पत्नी हो या कम उम्र की पत्नी हो तो कैसे से प्रेम से रहा जाए | मुहम्मद साहब ने स्वंय न्यूनतम नौ शादियाँ की और दुसरे ईमान वालो को एक से अधिक शादी करने की आज्ञा भी कठोर शर्तो पर दी क्योंकि मुहम्मद साहब को लगता था की एक से अधिक शादी करके वे अपनी पत्नियों को प्रेम नहीं दे पायेंगे | परन्तु जब स्वंय मुहम्मद साहब ने ऐसा नहीं किया तो कुरआन ने उन्हें इस प्रेम और समानता के व्यवहार से बी छुट दे दी |

कुरआन सूरह अजहाब आयत ५१ – आप ( स ) जिसको चाहे दूर रक्खे और जिसको चाहे पास रक्खे और जिसको आपने दूर कर दिया उसे फिर पास रक्खे तो कोई तंगी नहीं |

इस आयत का आशय स्पष्ट है नबी जो चाहे वो पत्नी के साथ करे जब जी चाहे उसे पास रख लो और जब दिल न करे उसे दूर कर दो | यह है कुरआन की पति को पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा |

सूरह बकर आयत २२३ – तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेती है जैसे चाहो वैसे अपने खेत में जाओ |

वाकई कुरआन पत्नी के प्रति प्रेम की शिक्षा देती है | ये सब कुरआन की मुलभुत शिक्षाये है जिनका मुस्लिम मित्र दिलो जान से अनुसरण करते है |

 

 

 

 

मुल्ला सतीशचंद गुप्ता के दूसरे लेख का उत्तर

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यह मुल्ला सतीशचंद गुप्ता के दूसरे लेख “अहिंसा परमो धर्मं ” के उत्तर में लिखा है |

सतीशचंद गुप्ता :- वैदिक ब्राह्मण यज्ञ को प्रथम और उत्तम वैदिक संस्कार समझते थे। यह आर्यों का मुख्य धार्मिक कृत्य था। पशु बलि यज्ञ का मुख्य अंग थी। पशु बलि को बहुत ही पुण्य का कर्तव्य समझा जाता था। गौतम बुद्ध ने जब देखा कि आर्य लोग यज्ञ में निरीह पशुओं की बलि चढ़ाते हैं, तो यह देखकर उनका हृदय विद्रोह से भर उठा। आर्य धर्म के विरूद्ध उठने वाली क्रांति का प्रमुख कारण वैदिक पुरोहितवाद और हिंसा पूर्ण कर्मकांड ही था।
ईसा से करीब 500 वर्ष पहले गौतम बुद्ध ने वैदिक धर्म पर जो सबसे बड़ा आरोप लगाया था वह यह था कि,

‘‘पशु बलि का पुण्य कार्य और पापों के प्रायश्चित से क्या संबंध ? पशु बलि धर्माचरण नहीं जघन्य पाप व अपराध है ?’’

यह एक विडंबना ही है कि गौतम बुद्ध के करीब 2350 वर्ष बाद आर्य समाज के संस्थापक, वेदों के प्रकांड पंडित स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस्लाम पर जो सबसे बड़ा आरोप लगाया है वह यह है कि

‘‘यदि अल्लाह प्राणी मात्र के लिए दया रखता है तो पशु बलि का विधान क्यों कर धर्म-सम्मत हो सकता है ? पशु बलि धर्माचरण नहीं जघन्य पाप व अपराध है।’’

कैसी अजीब विडंबना है कि जो सवाल गौतम बुद्ध ने वैदिक ऋषियों से किया था, वही सवाल करीब 2350 वर्ष बाद एक वैदिक महर्षि मुसलमानों से करता है। जो आरोप गौतम बुद्ध ने आर्य धर्म पर लगाया था, वही आरोप कई ‘शताब्दियों बाद एक आर्य विद्वान इस्लाम पर लगाता है।

वैदिक मत : यज्ञ वैदिक धर्मं का एक अत्यावश्यक तत्व है इस में कोई संदेह नहीं | वेदों में यज्ञो का महत्व अनेक स्थलों पर अत्यंत स्पष्ट शब्दों में बताया गया है, यहाँ तक कि यज्ञो के द्वारा ही भगवान कि पूजा और मोक्ष प्राप्ति का विधान किया गया है |

यज्ञेन यज्ञमयजन्त…………………………………प्रथमान्यासन |

ते ह नाकं……………………………………………सन्ति देवा: || १०.९०.१६ |

अर्थात सत्यनिष्ठ विद्वान लोग यज्ञो के द्वारा ही पूजनीय परमेश्वर कि पूजा करते है | यज्ञो में सब श्रेष्ट धर्मो का समावेश होता है | वे यज्ञो के द्वारा भगवान कि पूजा करनेवाले महापुरुष दुःख रहित मोक्ष को प्राप्त करते है. जंहा सब ज्ञानी लोग निवास करते है इत्यादि मंत्र इस विषय में उल्लेखनीय है | यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है गुप्ता जी कि यज्ञ शब्द जिस यज धातु से बनता है उस के देव पूजा—संगती करण और दान ये तीन अर्थ धातु पाठ में वर्णित है जिन में हमारे सब कर्तव्यों का समावेश हो जाता है | पर इस सब से आपको क्या गुप्ता जी आप तो उसी अन्य और विपरीत अर्थ को लेंगे जो आपके हित का है और आपका दोष भी नहीं है एक तो आपको भाषा का भी ज्ञान नहीं है और दूसरा मुक्य बात आदरणीय गौतम बुद्ध को भी वैदिक भाषा का ज्ञान नहीं था | और अंतिम वैदिक भाषा यौगिक अर्थ को प्रस्तुत करती है एक शब्द के अनेक अर्थ है जो प्रकरण अनुसार ग्रहण करने होते है | जिसने इस सिद्धांत को तोडा और मनमाने अर्थ किये वह वेद के मंत्रो के ऐसे ही मनमाने अर्थ करेंगा जो उस काल के तथकथित ब्राह्मणों ने किया |

यह बड़े दुःख कि बात है जिस यज्ञ कि इतनी महिमा बी=वेदों में बताई गयी है और जिस को परमेश्वर कि पूजा और प्राप्ति का साधन बताया गया है, उस के विषय में इतने अशुद्ध विचार मध्य कालीन आचार्यो ने उसे बगेर स्वाध्याय किये ही समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिये |

वेद में ऐसा कही नहीं लिखा है की पशु हिंसा से मुक्ति को प्राप्त होंगे उल्टा इसके विपरीत यजुर्वेद ४.१४ में लिखा है “ जो मनुष्य विद्या और अविद्या के स्वरुप को साथ ही साथ जानता है वह ‘अविद्या’ अर्थात कर्मोपसना से मृत्यु को तरके ‘विद्या’ अर्थात यथार्थ ज्ञान से मोक्ष को प्राप्त होता है |

सब वेदों में यज्ञ के पर्याय अथवा कही कही विशेषण के रूप में अध्वर शब्दों का प्रयोग सैकडो स्थानों पर पाया जाता है जिस कि व्युत्पति करते हुए निरुक्तकार श्री यास्काचार्य ने लिखा है |

निरुक्त २.७ में आचार्य लिखते है “ अध्वर यह यज्ञ का नाम है जिस का अर्थ हिंसा रहित कर्म है | चारो बी=वेदों में अध्वर के प्रयोग के हजारो उदाहरण है जिस में से निम्नलिखित कुछ का निर्देश यहाँ पर्याप्त है |

  • अग्ने ये यज्ञमध्वरम………………………………..भूरसि |

स ……………गच्छति || ऋग्वेद १.१. ४ |

इस मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर | तू हिंसा रहित यज्ञो में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञो को सत्यनिष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है |

ऋग्वेद १.१. ८ में मंत्र आता है –

इस मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर ! तू हिंसा रहित यज्ञो में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञो को सत्यनिष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है |

मै सतीशजी ऐसे कई उदाहरण दे सकता हू जो आपके आरोप को सिरे से ख़ारिज कर दे देते है |

मध्य के काल में यज्ञो में पशु हिंसा हुई इससे कोई इंकार नहीं कर सकता पर इसका दोष हम वेदों पर नहीं दाल सकते | दृष्टिहीन को सूर्य नहीं दिखे तो इसमें सूर्य का क्या दोष ?

अब आप कहेंगे ऋषि दयानंद का भाष्य कैसे सत्य और अन्यों का कैसे गलत वैसे ये समझदार को बताना अनावश्यक है पर आप उस श्रृंखला  में नहीं आते इसलिए आप को कुछ विद्वानों द्वारा ऋषि के भाष्य पर कि हुई टिप्पणिय बता देते है |

यह सच्च में भारतीयो  के लिए एक युगांतरकारी तारीख थी जब एक ब्राह्मण ( स्वामी दयानंद सरस्वती ) ने न केवल स्वीकार किया की सभी मनुष्यों को वेदों को पढने का हक़ है ,जिसका अध्ययन पहले से रूढ़िवादी ब्राह्मण द्वारा निषिद्ध किया गया था |किन्तु  जोर देकर कहा कि इनका अध्ययन और प्रचार सभी आर्यों का कर्तव्य है  ( Life of Ram Krishna By Roman Rolland p. 59 )

 

  • “There is nothing fantastic in Dayanand’s idea that Veda contains truth of Science as well as truth of Religion. I will even add my own convictions that Veda contains the other truths of a science the modern world does not at all possess and in that case, Dayananda has rather understand than overstated the depth and range of the Vedic wisdom. ….It as Dayanand held on strong enough grounds, the Veda reveals to us God, reveals to us the relation of the soul to God and nature, what is it but a Revelation of divine Truth ? And if, as Dayananda held, it reveals them to us with a perfect truth, flawlessly, he might well hold it for an infallible Scripture……In the matter of Vedic interpretation; I am convinced that whatever may be the final complete interpretation, Dayananda will be honored as the first discoverer of the right clues. A midst the chaos and obscurity of old ignorance and age long misunderstanding. His was the eye of direct vision that pierced to the truth and fastened on to that time had closed and rent asunder the seal of the imprisoned fountains.” (Dayanand and Veda from the article in the Vedic Magazine Lahore for Nov 1916 by Shri Arvinda.)

 

ये सिद्ध हो गया की पशु बलि ना पुण्य का कार्य है गोर पाप है और वेद विरुद्ध है | पापों के प्रायश्चित का इन दुष्कर्मो का कोई लेना देना नहीं है | निश्चित पशु बलि धर्मा चरण नहीं जघन्य पाप और अपराध है |

ऋषि दयानंद का इस्लाम से पशु बलि विषय से प्रश्न करना कोई विडंबना नहीं है क्यों की इस्लाम का कहना है की कुरान ईश्वरीय ज्ञान है | जब ईश्वरीय ज्ञान वेद पर प्रश्न हो सकते है तो कुरान पर क्यों नहीं |कुरहान से कुछ प्रमाण :-

1.

न उनके मांस अल्लाह को पहुँचते है और न उनके रक्त | किन्तु उसे तुम्हारा धर्म परायण पहुँचता है | इस प्रकार उसने उन्हें तुम्हारे लिए वशीभूत किया है , ताकि तुम अल्लाह की बढ़ाई ब्यान करो | इसपर की उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया और सुकर्मियो को शुभ  सुचना दे दो |( कुरान २२:३७ )

ये कितनी मूर्खता की बात है जब खुदा तक उनका गोश्त और खून पहुचेंगा ही नहीं सिर्फ खुदा की प्रशंसा मात्र करने के लिए कुर्बानी दो उस तथाकथित अल्लहा के नाम से जो दयालु है उचित प्रथित नहीं होता | इसलिए प्रश्न किया आप से क्या इसे कहते है ईश्वरीय ज्ञान और ईश्वर जो मात्र अपनी प्रशंसा के निर्दोष प्राणियों की हत्या करवाये गुप्ता जी |

  • 2. इसलिए तुम अपने रब के लिए नमाज पढो और क़ुरबानी करो  ( १०८.२ )

जब ईश्वरीय ज्ञान ही कहता है कुर्बानी दो तो यह कैसे दया और यह कैसा ईश्वर और कैसा ईश्वरीय ज्ञान | आप को गुप्ता जी कोई अधिकार नहीं किसी अन्य पर प्रश्न करे आप कोई एक भी मंत्र वेदों में से बता सखे जो ईश्वर को खुश करने के लिए हत्या की बात करता हो |

 

Qurbani is Fardh for :

Qurbani, like Zakat, is essential for one who has the financial means and savings that remain surplus to his own needs over the year. It is essential for one?s own self.

However, a slaughter of animal can also be offered for each member of one?s family. It may be offered, though it is not essential, for one?s deceased relations, too, in the hope of benediction and blessings for the departed souls.

What to Sacrifice

All the permissible (halal) domesticated or reared quadrupeds can be offered for Qurbani. Generally, slaughter of goats, sheep, rams, cows, and camels is offered. It is permissible for seven persons to share the sacrifice of a cow or a camel on the condition that no one?s share is less than one seventh and their intention is to offer Qurbani. Age of Sacrificial Animals Sacrifice of goat or sheep less than one year old (unless the sheep is so strong and fat that it looks to be a full one year old) is not in order. Cow should be at least two years old. Camels should not be less than five years old. (http://www.islamawareness.net/Eid/azha.html)

सतीशचंद गुप्ता :- कैसी अजीब विडंबना है कि जो सवाल गौतम बुद्ध ने वैदिक ऋषियों से किया था, वही सवाल करीब 2350 वर्ष बाद एक वैदिक महर्षि मुसलमानों से करता है। जो आरोप गौतम बुद्ध ने आर्य धर्म पर लगाया था, वही आरोप कई ‘शताब्दियों बाद एक आर्य विद्वान इस्लाम पर लगाता है।

वैदिक मत :- आप इस तरह से कुराहन के कुर्बानी विषय को भटका नहीं सकते  यह ऊप्पर सिद्ध हो चूका है की वैदिक मत यज्ञ में पशु हिंसा को स्थापित नहीं करता और ना ही ऐसा कोई मंत्र है जिसका अर्थ आपके आरोप को सिद्ध करता है | गौतम बुद्ध के जो आरोप थे वह अज्ञानता वश थे उसे वेदों पर थोपा नहीं जा सकता | यह दोष उस काल के अज्ञानी ब्राह्मण जिन्होंने वेदों के मनमाने अर्थ किये जिस वजह से गौतम बुद्ध वेदों से दूर हुए | हम आपको आवाहन करते है की आप वेदों में से जो आपने आरोप लगाये है सिद्ध कर के बताये | जो की हमने कुरहान से सिद्ध कर दिये है | इसलिये इस्लाम पर प्रश्न तो होंगे अपर इस्लाम के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है इसलिये आप इस विषय को परिवर्तित करने में लगे हुए है जो की हो नहीं सकता |

सतीशचंद गुप्ता :- धर्म का संपादन मनुष्य द्वारा नहीं होता। धर्म सृष्टिकर्ता का विधान होता है। धर्म का मूल स्रोत आदमी नहीं, यह अति प्राकृतिक सत्ता है। यह भी विडंबना ही है कि गौतम बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व का इंकार करके वैदिक धर्म को आरोपित किया था, मगर स्वामी दयानंद सरस्वती ने ईश्वर के अस्तित्व का इकरार करके इस्लाम को आरोपित किया है।

वैदिक मत :- ईश्वर के इकरार और इंकार का चर्चा के विषय से क्या लेना देना गुप्ता जी | ईश्वर का इकरार तो हज़रत मोहम्मद ने भी किया तो फिर उन्होंने भी बहोत गलत किया ? इसे कहते है मुह छुपाना और विषय को भटखाना सतीशचंद  गुप्ता जी यह चर्चा के नियम के विरुद्ध है |

सतीशचंद गुप्ता :- प्राचीन भारतीय समाज में पशु बलि के साथ-साथ नर बलि की भी एक सामान्य प्रक्रिया थी। यज्ञ-याग का समर्थन करने वाले वैदिक ग्रंथ इस बात के साक्षी हैं कि न केवल पशु बलि बल्कि नर बलि की प्रथा भी एक ठोस इतिहास का परिच्छेद है। यज्ञों में आदमियों, घोड़ों, बैलों, मेंढ़ों और बकरियों की बलि दी जाती थी। रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी मुख्य पुस्तक ‘‘संस्कृति के चार अध्याय’’ में लिखा है कि यज्ञ का सार पहले मनुष्य में था, फिर वह अश्व में चला गया, फिर गो में, फिर भेड़ में, फिर अजा में, इसके बाद यज्ञ में प्रतीकात्मक रूप में नारियल-चावल, जौ आदि का प्रयोग होने लगा। आज भी हिंदुओं के कुछ संप्रदाय पशु बलि में विश्वास रखते हैं।

वैदिक मत :-आप ने आरोप लगाया था वेदों पर कोई एक तो मंत्र दे दिया होता तो बड़ा आनंद आता | आप की विद्वता का ज्ञान होता पर गुप्ता जी आप तो हवाई घोड़े दौड़ा रहे है | वेद में ऐसे किसी बलि का कोई उल्लेख नहीं है | बात कर रहे है वेदों की और वेदों से प्रमाण तो नहीं दिया प्रमाण दे रहे है एक कवी के ग्रन्थ का वाह ! मान गये गुप्ता जी वेद स्वत: प्रमाण है वेद को किसी अन्य ग्रन्थ के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है | यह विशेषता होती है ईश्वरीय वाणी की जो कुरहान में नहीं है |

Dedication of the human sacrifice to the Moon God
“Then the man HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”pulled out a long knife and cut offHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”Bigley’sHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”headHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” with the help of a group of masked men who shouted, “God is great!” in Arabic. This is actually incorrect. They shouted ‘Allahu Akhbar!’ which means ‘Allah is the Greatest’.

However Allah cannot be the same as the Judeo-Christian God, because God forbade human sacrifice when Abraham tried to sacrifice Isaac. There are also warnings in the Old Testament about a moon-demon called Moloch who demands human sacrifice.

This dedication of the slaughtered kafirs to Allah occurs again and again in Islamic attacks. The Fort Hood shooter shouted ‘HYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive”AllahuHYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive” HYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive”Akbar’ as he opened fire. [Again ‘Allah’ is mistranslated as ‘God’]

Note also in the following videos how the congregation shout ‘AllahuAkbar’ as the Kafir’s blood begins to flow. (/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”http://crombouke.blogspot.in/HYPERLINK “http://crombouke.blogspot.in/2010/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”2010/01/HYPERLINK “http://crombouke.blogspot.in/2010/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”satanic-islam-allah-moloch-demands.html)

वेदों में तो नहीं है पर कुरान के अल्लाह के नाम पर आज भी इंसान की बलि दी जाती है | उस दयालु अल्लाह के नाम से बड़ा हास्यास्पद लगता है दयालु और इंसान की कुर्बानी |

सतीशचंद गुप्ता :- वेदों के बाद अगर हम रामायण काल की बात करें तो यह तथ्य निर्विवाद रूप से सत्य है कि श्री राम शिकार खेलते थे। जब रावण द्वारा सीता का हरण किया गया, उस समय श्री राम हिरन का शिकार खेलने गए हुए थे। उक्त तथ्य के साथ इस तथ्य में भी कोई विवाद नहीं है कि श्रीमद्भागवतगीता के उपदेशक श्री कृष्ण की मृत्यु शिकार खेलते हुए हुई थी। यहाँ यह सवाल पैदा होता है कि क्या उक्त दोनों महापुरुष हिंसा की परिभाषा नहीं जानते थे ? क्या उनकी धारणाओं में जीव हत्या जघन्य पाप व अपराध नहीं थी ? क्या शिकार खेलना उनका मन बहलावा मात्र था ?

वैदिक मत :- सतीश जी रामायण के उस श्लोक की बात करते है जिसमे हिरण के शिकार की बात कही गयी है और क्यों कही गयी है ( अरण्यकाण्ड सर्ग ३३ श्लोक १८  –  मृग को देख कर लक्ष्मण ने शंका करते हुए कहा की इस प्रकार रत्नों से विचित्र मृग नहीं होता है अर्थात यह कोई माया है | लक्ष्मण जी की बात को काटते हुए सीता जी कहती है हे आर्यपुत्र ! यह सुहावना मृग मेरे मन को हरता है हे महाबाहो इसे लाइए यह हमारी क्रीडा के लिए होगा | यदि यह मृग जीता हुआ आपके हाथ आये तो इसकी स्वर्ण खाल को बिछा कर उपासना करने योग्य होगा | तब रामचन्द्र जी लक्ष्मण को कहते है की हे लक्ष्मण तुम्हारे कहे अनुसार यह मृग माया वि है तो इसका वध करना जरुरी है )

अब गुप्ता जी यहाँ स्पष्ट है की सीता जी के द्वारा मृग पकड़ने को कहने का उद्देश्य उसके साथ क्रीडा करना था और रामचन्द्र जी का उद्देश्य उसको या तो क्रीडा के लिए पकड़ कर लाना या यदि वो मायावी हो तो उसका वध करना था |

अब रही श्री कृष्ण जी की मृत्यु की बात तो आपका यह दावा बिलकुल गलत है की उनकी मृत्यु शिकार खेलते हुई थी

महाभारत मौलवपर्व के अनुसार कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद द्वारिका चले आए थे। यादवराजकुमारों ने अधर्म का आचरण शुरू कर दिया तथा मद्यमांस का सेवन भी करने लगे। परिणाम यह हुआ कि कृष्ण के सामने ही यादव वंशी राजकुमार आपस लड़ मरे। कृष्ण का पुत्र साम्ब भी उनमें से एक था। बलराम ने प्रभासतीर्थ में जाकर समाधि ली। कृष्ण भी दुखी होकर प्रभासतीर्थ चले गए, जहाँ उन्होंने मृत बलराम को देखा। वे एक पेड़ के सहारे योगनिद्रा में पड़े रहे। उसी समय जरा नाम के एक शिकारी ने हिरण के भ्रम में एक तीर चला दिया जो कृष्ण के तलवे में लगा और कुछ ही क्षणों में वे भी परलोक सिधार गए। उनके पिता वसुदेव ने भी दूसरे ही दिन प्राण त्याग दिए।

सच्चे धर्मं का स्त्रोत वेद ही है | इसलिये मनु जी महाराज ने कहा है “धर्मं को जानना चाहे, उनके लिए परम श्रुति अर्थात वेद ही है, यह माना है |”

यजुर्वेद १२.४० में कहा है इन ऊन रूपी बालो वाले भेड, बकरी, ऊंट आदि चौपाये, पक्षी आदि दो पग वालो को मत मार |

अथर्ववेद .१६ में कहा है “यदि हमारे गौ,घोड़े पुरुष का हनन करेंगा तो तुझे शीशे की गोली से बेध देंगे, मार देंगे जिससे तू हनन कर्ता रहे | अर्थात पशु, पक्षी आदि प्राणियों केवध करने वाले कसाई को वेद भगवान गोली से मारने की आज्ञा देते है |”

अब ऐसे में मर्यादा पुरषोतम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण कैसे किसी निर्दोष प्राणी की हत्या कर सकते है | वे तो वेदों के ज्ञाता थे |

सतीशचंद गुप्ता :-
अगर हम उक्त सवाल पर विचार करते हुए यह मान लें कि पशु बलि और मांस भक्षण का विधान धर्मसम्मत नहीं हो सकता, क्योंकि ईश्‍वर अत्यंत दयालु और कृपालु है, तो फिर यहाँ यह सवाल भी पैदा हो जाता है कि जानवर, पशु, पक्षी आदि जीव हत्या और मांस भक्षण क्यों करते हैं। अगर अल्लाह की दयालुता का प्रमाण यही है कि वह जीव हत्या और मांस भक्षण की इजाजत कभी नहीं दे सकता तो फिर शेर, बगुला, चमगादड़, छिपकली, मकड़ी, चींटी आदि जीवहत्या कर मांस क्यों खाते हैं ? क्या शेर, चमगादड़ आदि ईश्वर की रचना नहीं है ?

वैदिक मत :- क्या गुप्ता जी प्राणियों  के साथ अपनी तुलना कर रहे है | पर चलिए ठीक ही किया ऐसा कर के | मनुष्य ईश्वर की उपासना करता है तो उसमे ईश्वर के दया और कृपा के गुण आना स्वाभाविक है पर आप में नहीं आये और मनुष्य में स्वाभाविक ज्ञान के अलावा वह नैमितिक ज्ञान को भी धारण करता है | ये दोनों ही गुण पशुओ में न होने के वजह से उनमे दया और कृपा नहीं होती फिर भी एक गुण उनमे मनुष्य से अतिरिक्त होता है और वह है परमात्मा ने जैसा उनका शरीर बनाया है वे वैसा ही भोजन ग्रहण करते है गुप्ता जी पर मनुष्य ज्ञानी होते हुए भी शारीरिक व्यवस्था के विपरीत भोजन ग्रहण करता है और जिम्मेदार ईश्वर को ठहरता है |

सतीशचंद गुप्ता :- विश्व के मांस संबंधी आंकड़ों पर अगर हम एक सरसरी नज़र डालें तो आंकड़े बताते हैं कि प्रतिदिन 8 करोड़ मुर्गियां, 22 लाख सुअर, 13 लाख भेड़-बकरियां, 7 लाख गाय, करोड़ों मछलियां और अन्य पशु-पक्षी मनुष्य का लुकमा बन जाते हैं। कई देश तो ऐसे हैं जो पूर्ण रूप से मांस पर ही निर्भर हैं। अब अगर मांस भक्षण को पाप व अपराध मान लिया जाए तो न केवल मनुष्य का जीवन बल्कि सृष्टि का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। जीव-हत्या को पाप मानकर तो हम खेती-बाड़ी का काम भी नहीं कर सकते, क्योंकि खेत जोतने और काटने में तो बहुत अधिक जीव-हत्या होती है।

वैदिक मत :- चलिए आप एक काम करिये रोटी,दाल,चावल, सब्जी कुछ भी ग्रहण मत कीजिये मात्र मांस खाइए और जी के बताइए आप जी नहीं सकते | ये बकवास है एक काल ऐसा भी था की सृष्टि पर जिव हत्या पर मृत्यु दंड की शिक्षा थी पर सृष्टि तो उस अवस्था में आज से भी अच्छी तरह से चली | ये मात्र आपकी सोच है कोई सिद्धांत नहीं है | खेती एक वैदिक कार्य या कर्म है जो समाज के लिए है अगर अनाज नहीं होंगा तो खायेंगे क्या ? पर मांसाहार निजी स्वार्थ है क्यों की कोई भी पशु मरना नहीं चाहता यही सिद्ध करता है यह ईश्वरीय व्यवस्था नहीं है | पर खेती ईश्वरीय नियम के अनुसार होती है न की व्यक्ति विशेष के नियम अनुसार |

सतीशचंद गुप्ता :- विज्ञान के अनुसार पशु-पक्षियों की भांति पेड़-पौधों में भी जीवन Life है। अब जो लोग मांस भक्षण को पाप समझते हैं, क्या उनको इतनी-सी बात समझ में नहीं आती कि जब पेड़-पौधों में भी जीवन है तो फिर उनका भक्षण जीव-हत्या क्यों नहीं है? फिर मांस खाने और वनस्पति खाने में अंतर ही क्या है ? यहाँ अगर जीवन Life ; और जीव Soul; में भेद न माना जाए तो फिर मनुष्य भी पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की श्रेणी में आ जाता है। जीव केवल मनुष्य में है इसलिए ही वह अन्यों से भिन्न और उत्तम है।

वैदिक मत :- उसमे भले ही जिव है पर पशु की चेतना में और वृक्ष की चेतना में बहोत अंतर है | वृक्ष की चेतना आतंरिक है और पशु की चेतना बाह्य है | इसलिये जब हम किसी पेड पौधे का सेवन करते है तो उनको दुःख नहीं होता और पशु को अत्यंत दुःख सहना पड़ता है | पेडपौधों का सेवन मनुष्य के लिए ईश्वरीय व्यवस्था है जब की पशु की हत्या कर के खाना नहीं | फल हमेशा पक कर निच्चे गिर जायेंगा पर ऐसी कोई व्यवस्था पशुओ में नहीं |

सतीशचंद गुप्ता :- विज्ञान के अनुसार मनुष्य के एक बार के वीर्य Male generation fluid स्राव (Discharge) में 2 करोड़ ‘शुक्राणुओं (Sperm) की हत्या होती है। मनुष्य जीवन में एक बार नहीं, बल्कि सैकड़ों बार वीर्य स्राव करता है। फिर मनुष्य भी एक नहीं करोड़ों हैं। अब अगर यह मान लिया जाए कि प्रत्येक ‘शुक्राणु (Sperm) एक जीव है, तो इससे बड़ी तादाद में जीव हत्या और कहां हो सकती है ? करोड़ों-अरबों जीव-हत्या करके एक बच्चा पैदा होता है। अब क्या जीव-हत्या और ‘‘अहिंसा परमों धर्मः’’ की धारणा तार्किक और विज्ञान सम्मत हो सकती है

वैदिक मत :- यह ईश्वरीय व्यवस्था है गुप्ता जी करोडों शुक्रानोओ में से कोई एक शुक्राणु गर्भ में जाए और गर्भ स्थापित होंगा | यह नियम है और वैज्ञानिक है एक शुक्राणु गर्भ मे जायेंगा तो गर्भ स्थापना होना बहोत मुश्किल हो जायेंगा | और जब उन शुक्रनुओ ने शरीर ही धारण नहीं किया तो उनको दुःख कैसा और उनकी मृत्यु कैसी ? जिव हत्या तो तब हुई जब शरीर धारण किया | हत्या तो आप करते हो गुप्ता जी | जिव की कभी हत्या नहीं होती, शरीर का त्याग ही मृत्यु कहलाती है | अवश्य पशु हत्या की धारण तार्किक और विज्ञान सम्मत है क्यों की उस अवस्था में जीव ने शरीर धारण कर लिया |

सतीशचंद गुप्ता :-  जहाँ-जहाँ जीवन है वहाँ-वहाँ जीव (Soul) हो यह ज़रूरी नहीं। वृद्धि- ह्रास , विकास जीवन (Life) के लक्षण हैं जीव के नहीं। आत्मा वहीं है जहाँ कर्म भोग है और कर्म भोग वही हैं जहाँ विवेक (Wisdom) है। पशु आदि में विवेक नहीं है, अतः वहां आत्मा नहीं है। आत्मा नहीं है तो कर्म फल भोग भी नहीं है। आत्मा एक व्यक्तिगत अस्तित्व (Cosmic Existence) है जबकि जीवन एक विश्वगत अस्तित्व (Individual Existence) है। पशु और वनस्पतियों में कोई व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं होता। अतः उसकी हत्या को जीव हत्या नहीं कहा जा सकता। जब पशु आदि में जीव (Soul) ही नहीं है, तो जीव-हत्या कैसी ? पशु आदि में सिर्फ और सिर्फ जीवन है, जीव नहीं। अतः पशु-पक्षी आदि के प्रयोजन हेतु उपयोग को हिंसा नहीं कहा जा सकता।

वैदिक मत :- क्यों जरुरी नहीं जीवन का ही दूसरा नाम चेतना है जो जीव के बगेर हो ही नहीं सकती |वृद्धि और विकास उसी शरीर में देखने को मिलेंगे जहा जीव है जहाँ जीव नहीं वह वृद्धि और विकास भी नहीं | किसी मृतक शरीर में यह सब लक्षण प्राप्त नहीं होंगे गुप्ता जी | कर्म और भोग तो एक दूजे के पूरक है | कर्म है तो भोग है और अगर कर्म नहीं तो भोग भी नहीं | जहाँ जड़ और चेतन का प्रत्यक्ष अनुभूति हो जाए उसे विवेक कहते है और वह निरंतर पुरषार्थ करने से प्राप्त होता है नाकि मात्र साधारण कर्म और भोग  से | कर्म और भोग की व्यवस्था तो पशुओ में भी है पर उनमे विवेक नहीं है | जब बच्चे का जन्म होता है तो क्या उसमे विवेक होता है | कर्म-भोग होता है ? तो फिर क्या उसमे जीव नहीं है गुप्ता जी ? आप मात्र शब्दों का जाल बना रहे है सरल और सिद्धि बात है आत्मा है तो जीवन है ये भी एक  दूजे के साथी है | आत्मा नहीं रहेंगी तो जीवन भी नहीं रहेंगा और अगर जीवन रहेंगा तो आत्मा भी रहेंगी | पशुओ में साधारण कर्म की व्यवस्था है, पशुओ में भोग है, और पशुओ में जीवन है तो पशुओ में आत्मा कैसे नहीं ?

अगर पशुओ में आत्मा नहीं है तो जो स्वाभाविक ज्ञान हमे उनमे दीखता है वह किसका गुण है आत्मा का या शरीर का ? अगर आत्मा नहीं तो शरीर का है और अगर शरीर का है तो मृतक शरीर में फिर क्यों नहीं दीखता ? यह गुण आत्मा का है जो आत्मा के साथ आता है और आत्मा के साथ चला जाता है |अंत में तुमने ही मान लिया की पशुओ में जीवन है जीव नहीं यह जीवन शब्द जीव से ही बना है | जीव है इस लिए जीवन है और जीव नहीं तो मृत्यु है | अत: पशु पक्षी की स्व प्रयोजनार्थ हत्या करना घोर हिंसा है |

 

 

यह कैसी अमानत ?

aap ki amanant

 

लेखक – अनुज आर्य 

कुछ दिन पहले मेरे एक मुस्लिम मित्र ने मुझे एक किताब पढने को कहा जिसका नाम था ” आप की अमानत आप की सेवा में ” लेखक थे मौलाना मुहम्मद कलीम सिद्दकी .
पुस्तक का नाम सुनकर मुझे लगा की इसमें कुछ नया होगा , लेकिन जब इस पुस्तक को पढ़ा तो पता चला की कुरान और अल्लाह को जबरदस्ती सही साबित करने की कोशिश की है | वे ही सब पुराने कुतर्क जिनका जवाब आर्य समाज पिछले १५० वर्षो से देता आ रहा है | इस लेख के माध्यम से मौलना की लिखी बातो पर प्रकाश डाला जाएगा
मौलाना :-

मेरे प्रिय पाठको ! मुझे क्षमा करना , मै अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी को ओर से आप से क्षमा और माफ़ी मांगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान( राक्षस ) के बहकावे में आकार आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुचाई , उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठकर इस पुरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी यदि इस्लाम की तुलना शैतान से की जाए तो भी शैतान ही सही साबित होगा | क्योंकि शैतान ने कभी बेगुनाह जानवरों के जिबह की आज्ञा नहीं दी पर इस्लाम वालो को देखिये न जाने अल्लाह के नाम पर कितने बेगुनाह जानवरों को जिबह कर चुके है | शैतान कोण हुआ ? मुसलमान या अजाजिल ?जिस बेचारे ने हजारो वर्षो तक अल्लाह को सजदा किया हो , जन्नत से निकलना मंजूर हुआ पर शिर्क न किया उस बेचारे को शैतान कहा जा रहा है | मुसलमान तो जन्नत के लिए नमाज करते है पर शैतान ने तो जन्नत में होते हुए भी सजदा करना ना छोड़ा | शैतान ने कोई काम अल्लाह की आज्ञा के बिना नहीं किया | फिर भी उसे बदनाम किया जाता है
मौलाना जी अब मै आपका ध्यान आपके कुरान की तरफ ही ले जाता हूँ जहां लिखा है की आदम ने अल्लाह के मना करने के बावजूद भी सैतान के बहकावे में आकर उस पेड़ का फल खाया जिसे खाने से अल्लाह ने मना किया था | तो भ्राता श्री आप तो एक साधारण इन्सान है जब आदम जो की अल्लाह के पहले नबी थे वो ही सैतान के बहकावे में आगये तो आपका बहकावे में आना स्वभाविक है | ये बाद का विषय है की शैतान किसके बहकावे में आया था | और हमारी दोलत हमारे पास देर से पहुचाने में आपकी कोई गलती नहीं है ये सारी गलती तो अल्लाह की है जिसे मात्र १४०० वर्ष पहले ख्याल आया की जिस कायानात को उसने करोड़ो साल पहले बनाया था तो उसके लिए कुरान रूपी ज्ञान भी भेजना है ? ये विषय बाद का है की अल्लाह ने तौरेत,जबूर या इंजील भी भेजी है |अब बात आती है घृणा फ़ैलाने की तो मानव जाती में घृणा को फ़ैलाने में महत्वपूर्ण योगदान भी कुरान का ही रहा है जिसने मानव जाती को दो भागो में बाँट दिया , एक ईमान वाले तथा दुसरे बेईमान | इस से बड़ी भेदभाव की बात क्या हो सकती है ? और इसी भेदभाव का नतीजा आज दुनिया भुगत रही है की देश के देश खत्म हो गये है इसी भेदभाव के कारण जो अल्लाह के द्वारा पैदा किया गया है दो इंसानों के बिच |

मौलाना :-

वह सच्चा मालिक जो दिलो के भेद जानता है , गवाह है की इन पृष्ठों को आप तक पंहुचाने में मै निस्वार्थ हूँ और सच्ची हमदर्दी का हक़ अदा करना चाहता हूँ | इन बातो को आप तक न पंहुचा पाने के गम में कितनी रातो की मेरी नींद उड़ी है | आपके पास एक दिल है उस से पूछ लीजिये वह सच्चा है |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी हम कैसे दिल से पूछ ले हमारे दिल पर तो अल्लाह ने पहले ही मोहर लगा दी है और हमारा रोग बड़ा दिया है तो आपका यह कहना व्यर्थ है

मौलाना :-

यह बात कहने की नहीं मगर मेरी इच्छा है की मेरी इन बातो को जो प्रेमवाणी है , आप प्रेम की आँखों से देखे और पड़े | उस मालिक के लिए सारे संसार को चलाने और बनाने वाला है गौर करे ताकि मेरे दिल और आत्मा को शान्ति प्राप्त हो , की मैंने अपने भाई या बहिन की धरोहर उस तक पंहुचाई और अपने इन्सान होने का कर्तव्य पूरा कर दिया |

आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी यह आपने इन्सान होने का नहीं बल्कि मुसलमान होने का कर्तव्य पूरा किया है क्योंकि जिस कुरान का आप पक्षधर कर रहे है उसमे कहीं भी इन्सान बनना नहीं बताया है केवल और केवल मुसलमान बनना सिखाया है | यदि आप वेद ज्ञान को दुसरो तक पाहुचाते तो आप इंसान होने का कर्तव्य पूरा करते
मै आपकी इस बात से सहमत हूँ की इस संसार को बनाने वाला एक ही है | पर क्या उस सैतान को बनाने वाला भी वाही है ? यदि शैतान को बनाने वाला भी वही है तो उस बनाने वाले से बड़ा शैतान कोन होगा ? क्योंकि इस्लाम तो जिव को स्वतंत्र नहीं मानता कर्म करने में |

मौलाना :-

इस संसार बल्कि प्रकृति की सब से बड़ी सच्चाई है की इस संसार सृष्टि और कायनात का बनाने वाला , पैदा करने वाला और उसका प्रबंध चलाने वाला सिर्फ और सिर्फ अकेला मालिक है | वह अपने अस्तित्व ( जात ) और गुणों में अकेला है | संसार को बनाने . चलाने , मारने जिलाने में उसका कोई साझी नहीं |

आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो शहिह मुस्लिम ३२/६३२५ ने ये क्यों लिखा की ” आदम खुदा की छवि है |” सिद्दकी साहब अब बताइए की यहाँ किस छवि की बात हो रही है ? यादी आप गुणों में तुलना करोगे तो आपका यह कहना व्यर्थ हो जाएगा की अल्लाह आपने गुणों में अकेला है और यदि आप ये कहो की ये शारीरिक छवि की बात हो रही है तो आपका अल्लाह साकार सिद्ध हो जाएगा | मर्जी आपर्की है की आप किस प्रकार का अल्लाह पसंद करते है | कुरान और इस्लाम ने अल्लाह को ही इस सब संसार का बनाने वाला माना है | लेकिन वो अल्लाह वही है जिसने कुरान की रचना की या फिर कोई दूसरा अल्लाह ? क्योकिं कुरान में अल्लाह भी दो है उदाहरण के लिए देखिये
१.)अल्लाह की सौगंध ! हम तुमसे पहले भी कितने ही समुदायों की ओर रसूल भेज चुके है ” सूरत अन-नहल १६, आयत ६
२.)तुम्हारे रब की कसम ! हम अवश्य ही उन सबके विषय में पूछेंगे जो कुछ वे करते रहे | सूरत अलहिज्र, आयत ८२,८३
अब निर्णय आप पर छोड़ देते है की संसार को बनाने वाला अल्लाह एक है या फिर दो ?

मौलाना :-

वह एक ऐसी शक्ति है जो हर जगह मौजूद है , हर एक की सुनता है और हर एक को देखता है | समस्त संसार ने एक पत्ता भी उसकी आज्ञा के बिना नहीं हिल सकता |

आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो कुरान में अल्लाह ताला ने ये क्यों कहा ”
निसंदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है जिसने आकाशो और धरती को छह दिनों में पैदा किया और फिर राजसिंहासन पर विराजमान हुआ ” सूरत युनस आयत ३
अब वो सिंहासन कहां है यह भी देख लीजिये ” वही है जिसने आकाशो और धरती को छह दिन में पैदा किया -उसका सिहासन पानी पर था ” सुरत हूद आयत ७
अतः आपका यह कहना की वह हर जगह मौजूद है व्यर्थ है |
यदि( अल्लाह ) की मर्जी के बिना एक भी पत्ता नहीं हिल सकता “
तो जितने भी हत्या , चोरी ,बलात्कार आदि जितने भी अपराध है ये सब अल्लाह की मर्जी से ही हो रहे है तो फिर शैतान और अल्लाह में क्या भेद रह गया ? यहाँ तक की शैतान भी सभी कार्य अल्लाह की मर्जी से करता है |

मौलाना :-इतनी बड़ी सृष्टि का प्रबंध एक से ज्यादा खुदा या मालिको द्वारा कैसे चल सकता है | और संसार के प्रबंधक कई लोग किस प्रकार हो सकते है ?

आर्य सिद्धान्ती :-
यदि आपकी कुरान के अनुसार देखा जाए तो एक खुदा के सिवाय बहुत से प्रबन्धक है | सबसे पहला प्रबन्धक तो जिब्राइल नाम का फरिश्ता ही है जो अल्लाह के पोस्टमैन की तरह कार्य करता है अर्थात अल्लाह का पैगाम नबियो तक पहुचाता फिरता है यदि वह न हो तो अल्लाह का पैगाम कोण पहुचाये ?दूसरा और सबसे बड़ा प्रबन्धक मुहम्मद साहब है जो अल्लाह के हर कार्य में सहयोग करते है चाहे वो अल्लाह के दीन को फैलाना या फिर अल्लाह का आज्ञापालन करना | अल्लाह की आज्ञापालन न करो तो चल जाएगा लेकिन जो नबी अर्थात मुहम्मद की आज्ञापालन नही करेगा वो दोज़ख में जाएगा |
एक दलील नामक शीर्षक के व्याख्यान में आप लिखते है की

मौलाना :-

चौदह सौ साल से आज तक इस संसार के बसने वाले और साइंस कम्पुटर तक शोध करके थक चुके और अपना अपना सिर झुका चुके है किसी में भी यह कहने की हिम्मत नहीं हुई की यह अल्लाह की किताब नहीं है

आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी शायद आप महर्षि दयानंद सरस्वती और आर्य समाज को भूल गये जिन्होंने १३२ वर्ष पहले कुरान की धज्जीया उड़ा दी थी ? बड़े बड़े मौलानाओ को आर्य समाज ने धुल चटाई है शास्त्रार्थ में वो सब आप शायद भूल गये है | आज तो भूल से भी कोई आर्य समाज के साथ शास्त्रार्थ करने नहीं आता | सत्यार्थ प्रकाश नाम तो आपने सुना ही होगा ? कैसी धज्जिया उड़ाई है कुरान की शायद आप भूल गये |
मौलाना :- इस पवित्र किताब में मालिक ने हमारी बुद्धि को समझाने के लिए अनेक दलीले दी है | एक उदाहरण है की ” अगर धरती और आकाश में अनेक माबूद होते तो खराबी और फसाद मच जाता |

आर्य सिद्धान्ती :-
मै आपकी बात से सहमत हूँ लेकिन क्या उस माबूद की किताब कुरान के मानने से फसाद उत्पन्न नहीं हो रहा है ? उसी अल्लाह और कुरान के नाम पर न जाने कितने करोड़ बेकसूरों का लहू बहाया है इस्लाम ने | उसी कुरान के आदेशो के कारण आज पूरे विश्व में अशांति का वातावरण है | इसी कुरान की आयतों को पढ़ कर अजमल कसाब और ओसामा से जैसे लोग काफ़िरो ( गैर मुस्लिमो ) को मारने निकल पड़े | इसी कुरान के कारण इंसान दो हिस्सों में बंट गया एक ईमान वाले तथा दुसरे ईमान न लाने वाले ||इस्लाम तो कहता है की जहालियत को खत्म करने के लिए कुरान अवतरित हुआ है लेकिन इसने तो खुद लोगो को जहालियत में डाल दिया है |

मौलाना :-

सच यह की संसार की हर चीज गवाही दे रही है यह भली भाँती चलता हुआ सृष्टि का निजाम गवाही दे रहा है की संसार का मालिक अकेला और केवल अकेला है | वह जब चाहे और जो चाहे कर सकता है |

आर्य सिद्धान्ती :-
सिद्दकी साहब दुनिया यही तो जानना चाहती है की वह अकेला है कोन ? क्या कुरान का लिखने वाला अल्लाह ही वह अकेला है ? यदि वही अकेला अल्लाह है तो फिर ये दूसरा अल्लाह कोन है ?
“अल्लाह की सौगंध ! हम तुमसे पहले भी कितने ही समुदायों की ओर रसूल भेज चुके है ” सूरत अन-नहल १६, आयत ६ “
अतः आपका यह कहना की अल्लाह एक ही है इस्लाम के अनुसार तो यह बात कुछ हजम नही हुई |और यदि वह जब चाहे जो चाहे कर सकता है तो शैतान से सजदा क्यूँ न करवा सका ? आदम को फल खाने से क्यों न रोक सका ? कयामत तक शैतान लोगो को बहकाता रहेगा , उसे अल्लाह क्यों न रोक सके ?

मौलना :-

यह धरती भी मनुष्य की सेवक है , आग पानी जीव जंतु , संसार की हर वास्तु मनुष्य की सेवा के लिए बनाई गयी है | इन्सान को इन सब चीजो का सरदार बनाया गया है तथा सिर्फ अपना दास और अपनी पूजा और आज्ञा पालन के लिए पैदा किया है

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी धरती मनुष्य की सेवक नहीं है बल्कि जन्म और कर्म भूमि है | यदि मनुष्य की सेवक होती तो मनुष्य को धरती का सीना चिर कर फसले आदि न उगानी पड़ती मालिक के आदेश से वे स्वंय फसल उत्पन्न कर देती | यदि इन सबको सेवक मान भी लिया जाए तो सेवक की सेवा के बदले आप का भी कुछ फर्ज बनता होगा उन्हें देने को या फिर मुफ्त खोरी ही करना जानता है इस्लाम ? वेद ने तो धरती को माँ कहा है क्योंकि प्रथम मानव उत्पत्ति इसी भूमि से हुयी थी | लेकिन इस्लाम की समझ से ये बात दूर है , इस्लाम ने तो हर चीज को केवल भोग की दृष्टि से देखा चाहे वो रिश्ते में | इन्सान को सब चीजो कर सरदार नही बनाया गया अपितु वो अपने सामर्थ्य से सरदार बन बैठा | यदि अल्लाह ने इन्सान को अपनी पूजा के लिए बनाया है तो इन्सान के बन ने पहले उसकी पूजा कोन करता था ? जब अल्लाह बिना पूजा के रहता था तो अचानक ये अपनी पूजा करवाने की क्या सूझी ?

मौलाना :-

अगर एक मनुष्य अपना जीवन उस अकेले मालिक की आज्ञा पालना में नहीं गुजार रहा है तो वह इन्सान नहीं |

आर्य सिद्धान्ती :-

हाँ यह तो सत्य है की वो इन्सान नहीं बल्कि मुसलमान है | क्योंकि मुसलमान ही उस अकेले मालिक की आज्ञा पालन न करके रसूलो की भी आज्ञा पालन करते है |
देखिये प्रमाण ” और आज्ञापालन करो अल्लाह और उसके रसूल की ” सुरत मायदा आयत ९२
” आज्ञापालन करो रसूल का सम्भव है तुम्हे क्षमादान मिले ” सुरत नूर आयत ५५
एक या दो बार नहीं कई बार कहा है , यहाँ तक की धमकी भी दी है जो आज्ञापालन रसूल का नहीं करता तो वह काफिर है | अब निर्णय आप कर लीजिये की आपकी बात मानी जाए या फिर अल्लाह की ?

मौलाना :-

उस सच्चे मालिक ने अपने सच्चे प्रन्य , कुरान में एक सच्चाई हम को बताई है

आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी ये आपने किस आधार पर लिख दिया की उस सच्चे मालिक का सच्चा प्रनय कुरान है ?कोई एक आध प्रमाण तो दिया होता की कुरान ही ईश्वरीय ज्ञान है ?यदि ईश्वरीय ज्ञान होता तो तब से होता जब से मानव जाति है इतने करोड़ो वर्ष बीत जाने के बाद ना आता | यदि ये कुरान सच्चे मालिक का बनाया होता तो बिना सिर पैर की बातो और भेदभाव से न भरा होता |इस लिए यह दावा की यह ईश्वरीय ज्ञान है व्यर्थ है |

मौलाना :-इस संसार में जैसे भी कार्य करोगे वैसा बदला पाओगे |

आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो कुरान ने यह क्यों लिखा ? ” वह जिसको चाहेगा क्षमा करेगा जिस को चाहे दण्ड देगा क्योंकि वह सब वस्तु पर बलवान है ” सुरत बकर आयत २६९
एक और प्रमाण देखिये ” खुदा जिसको चाहे अनंत रिजक देवे ” सुरत बकर आयत २१२
तो आपका कुरान के अनुसार यह कहना की जो जैसा कार्य करेगा वैसा ही बदला पायेगा व्यर्थ है क्योंकि अल्लाह कर्म के अनुसार फल नही देता केवल अपनी मर्जी से फल देता है |

मौलाना :-

मरने के बाद तुम गल सड़ जाओगे और दोबारा पैदा नहीं किये जाओगे ऐसा नहीं है | न ही सत्य है की मरने के बाद तुम्हारी आत्मा किसी योनी में प्रवेश कर जायेगी | यह दृष्टिकोण किसी मानवीय बुद्धि की कसोटी पर खरा नहीं उतरता |

आर्य सिद्धान्ती:-
यदि ऐसा है तो वर्तमान शरीर किस आधार पर मिला है ? कोई सूअर है तो कोई इन्सान ,कोई आमिर है तो कोई गरीब , कोई जन्म से लंगड़ा है तो कोई अँधा | इन सब का क्या आधार है ? यदि ये सब शरीर बिना पूर्व जन्म के कर्मो का फल है तो अल्लाह पक्षपाती कहलायेगा क्योंकि एक को उसने आमिर के घर पैदा किया और दुसरे को गरीब के घर पैदा किया | किसी को रसूल बनाया तो किसी को काफिर के घर पैदा कर दिया | यदि आप पूर्व जन्म को नही मानते तो आदमियों में इतनी विभिन्नता क्यों ? लेकिन इस्लामिक जन्नत के बारे में आपका क्या विचार है ? वो किस दृष्टिकोण से सही है ? वो भी ऐसा जन्नत जो बिलकुल किसी वेश्याघर जैसा है |

मौलाना :-आवागमन ( पुनर्जन्म) का यह दृष्टिकोण वेदों में उपलब्ध नहीं है “

आर्य सिद्धान्ती :-
यह कहना आपकी भूल है देखिये वेद क्या कहता है पुनर्जन्म के बारे में
पुनर्नो असुं पृथ्वी ददातु पुनर्धौर्देवी पुनरन्तरिक्षम
पुनर्न सोमस्तन्वे ददातु पुनः पूषा पथ्या या स्वस्तिः ||( ऋग्वेद मंडल १० सूक्त ५९ मन्त्र ७ )
भावार्थः- मरणान्तर में पुनः जन्म धारण करते समय भूमि ,घुलोक और अन्तरिक्ष प्राणशक्ति देते है , वायु पोषण देता है और वाक्शक्ति वाक् देती है और भगवान इन सब से युक्त शरीर को देता है |
असुनीते पुनरस्मासु चक्षुः पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम
ज्योक पश्येम सूर्यमुच्चरंन्तमनुमते मृडय नः स्वस्ति ||( ऋग्वेद मंडल १० सूक्त ५९ मन्त्र ६ )
भावार्थः- हे प्राणविद्याविद ! हमारे इस शरीर में आप पुनः दृष्टि और प्राणशक्ति को धारण कराइए | हमे भोगो को भोगने की शक्ति दे | हम चिरकाल तक उदय को प्राप्त होते हुए सूर्य को देखे | हे उत्तम मती वाले हमे सुख से सुखी कर
अतः आपका यह कहना भी व्यर्थ है की वेद आवागमन की आज्ञा नहीं देता |बल्कि खुद कुरान और हादिश पुनर्जन्म की वकालत करती है देखिये प्रमाण
तू ही रात को दिन में दाखिल कर देता है और दिन को रात में दाखिल कर देता है | तू ही है जो बेजान से जानदार को पैदा करता है और जानदार से बेजान बना देता है तू ही जिसको चाहता है बेहिसाब रोजी देता है | अल इमरान आयत २७
यहाँ पर अल्लाह ताला ने साफ़ साफ़ फ़रमाया है की जिस प्रकार दिन और रात एक के बाद एक आते है उसी प्रकार जीवन और मृत्यु एक के बाद एक आते है |
” कोन शख्स है जो मुर्दे से जिन्दा निकालता है और ज़िन्दा से मुर्दा निकालता है और हर काम का बन्दोबस्त कोण रखता है फ़ौरन बोल उठेंगे की खुदा ,तुम कहो क्या तुम इस पर भी नहीं डरते हो ” सुरत युनस आयत ३१
” वही जिन्दा को मुर्दे से निकालता है और वही मुर्दा को जिन्दा से पैदा करता है और जमीन को मरने के बाद जिन्दा करता है और इसी तरह तुम लोग भी मरने के बाद निकाले जाओगे ” अर रूम आयत १९
ये तमाम आयते इस बात का प्रमाण है की कुरान भी आवागमन को मानता है क्योकि आवागमन का अर्थ ही यही है की मृत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद फिर मृत्यु |
चलो कुछ समय के लिए मान भी लिया जाए की ये सब संसार एक ही बार है मृत्यु और जन्म भी एक बार है जो वर्तमान में है |अगर कोई प्रश्न करता है की अल्लाह ने कायनात को क्यों बनाया ये मखलूक क्यों पैदा की ? तो आप का उत्तर होगा की अपनी कुदरत दिखने के लिए व् अपनी इबादत करवाने के लिए | तो फिर ये प्रश्न खड़े हो जायेंगे
१.) अल्लाह के निन्यानवे नाम उसको गुणों को प्रदर्शित करते है तथा वह अनादी है , अतः उसके गुण भी अनादी होंगे | तो जब यह कायनात नही थी ,तब अल्लाह के गुण और अल्लाह के नाम की क्या सार्थकता थी ?
२.) जब अल्लाह अनंत काल से अकेला था ,तो अचानक कायनात बनाने की इच्छा और इबादत करवाने की चाह कहाँ से आ गयी ? अगर हमेशा से थी , तो उसकी उपयोगिता क्या , तथा इससे पहले जगत क्यों नहीं ?
३.) अल्लाह ने यह कायनात अपनी कुदरत से बनाई है तो यह कुदरत द्रव्य है या गुण ? गुण है तो उस से कायनात कैसे बनी ?यदि द्रव्य है तो फिर अल्लाह अकेला कैसे हुआ ?
४.) पूर्वजन्म आप मानते नही तो कोई रसुल्लाहतो कोई फकीर कोई अँधा ,कोई बहरा ?
( नोट :- यह ४ प्रश्न राजबीर आर्य जी की लिखी पुस्तक किताबुल्लाह वेद या कुरान में उठाये है )
आगे आप आवगमन के तीन विरोधी तर्क लिखते है जिनका समाधान किया जाएगा
मौलाना :- इस क्रम में सबसे बड़ी बात यह है की सारे संसार के विद्वानों और शोध कार्य करने वाले साइंस दोनों का कहना है की इस धरती पर सबसे पहले वनस्पति जगत ने जन्म लिया | फिर जानवर पैदा हुए और उसके करोड़ो वर्ष बाद इन्सान का जन्म हुआ | अब जबकि इन्सान अभी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुए थे और किसी इंसानी आत्मा ने अभी बुरे कर्म नहीं किये थे तो किन आत्माओ ने वनस्पति और जानवरों के शरीर में जन्म लिया ?
आर्य सिद्धान्ती :- आप जिन शोध के बारे में कह रहे है आपने उनका कोई प्रमाण नही दिया और न ही किसी विद्वान का नाम दिया | लेकिन यह सत्य है की सबसे पहले वनस्पति जगत उत्पन्न हुआ और यह सत्य भी है कोई इन्सान के जन्म से पहले ही उसकी मुलभुत आवश्यकताओ की पूर्ति कर दी गयी इसी लिए वेद ने ईश्वर को पुरोहित कहा है | उसके बाद ही इन्सान को धरती पर पैदा किया गया पर क्या इस्लाम मान्यता के अनुसार ये करोड़ो वर्षो का सृष्टि समय होना सही है | इस्लाम की मान्यता तो यह है की कुछ हजार साल पहले ही इस सृष्टि का निर्माण हुआ है | वेद आत्मा ,परमात्मा और प्रकृति तीन को अनादी माना है अर्थात इन तीनो का न कोई आरम्भ है और न ही अंत | आत्मा का शरीर धारण करना भी कोई प्रथम नही है ये भी अनादी ही है क्योंकि शरीर प्रकृति से ही बना है | जैसे इस सृष्टि में ये सब जिव जन्तु व घूलौक आदि है वैसे पहले भी थे इसी लिए वेद ने कहा है ” सुर्यचन्द्रम्सो धाता यथा पुर्वम कल्प्यते दिवं च पृथिवी चं अन्तरिक्षे मथो स्वाह ” अर्थात जैसे अब ये सूर्य चन्द्रमा पृथ्वी आदि घूलोक है वैसे ही पहले भी थे | यहाँ स्पष्ट है की यह सृष्टि प्रलय ये पूर्व भी थी और प्रलय के बाद भी होगी | अब जिन मनुष्यों ने पूर्व सृष्टि में गलत कार्य किये थे वे इस सृष्टि के आरम्भ में जानवर के शरीर में जन्म लिए |
मौलाना :- दूसरी बात यह है की इस धारणा को मान लेने के बाद यह मानना पड़ेगा की इस धरती पर प्राणियों की संख्या में लगातार कमी होती रहे | जो आत्माए मोक्ष प्राप्त कर लेगी | उनकी संख्या कम होती रहनी चाहिए | अब यह तथ्य हमारे सामने है की इस विशाल धरती पर इन्सान जिव जंतु और वनस्पति हर प्रकार के प्राणियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है |
आर्य सिद्धान्ती :-
यह आपका तर्क नही बल्कि कुतर्क है , क्या प्रत्येक आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर रही है ?जो पूर्ण योगी है उनकी आत्मा ही मोक्ष को प्राप्त करती है तो कितने योगी होंगे इस मानव जाती में ? और क्या आपको यह नही मालुम की आत्मा ३६००० सृष्टि प्रलय तक मोक्ष में रहती है फिर दोबारा शरीर धारण करती है अपने उन कर्मो के आधार पर जो उसने मोक्ष से पहले किये थेतो फिर प्राणियों की संख्या में कमी आप किस आधार पर कह रहे है ? यह भी आपकी गलत फहमी है की धरती पर हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है क्योकि सैकड़ो से ज्यादा प्रजातीय ऐसी है जो अब लुप्त हो चुकी है उदाहरण के लिए डायनासोर, सेबर टूथ कैट , मैमथ इत्यादि | शेर ,बाघ , गेंडा आदि तमाम ऐसे जिव है जिनकी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है | रही बात इन्सान की जनसंख्या वृद्धि की तो वर्तमान के समय में मृत्यु दर और जन्म दर में कोई ज्यादा अंतर नही है | तो आपका यह कहना की हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है व्यर्थ है |
मौलाना :- तीसरी बात यह है की इस संसार में जन्म लेने वालो और मरने वालो की संख्या में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है | मरनेवाले मनुष्य की तुलना में जन्म लेने वाले बच्चो की संख्या कहीं अधिक है |
|आर्य सिद्धान्ती:-
यह जन्म लेने और मरने वालो की संख्या आप इन्सान के लिए देख रहे है उसमे भी वर्तमान के समय में कोई ज्यादा अंतर नही है |वर्तमान में शेर , काला हिरण , बाघ , गेंडा कोबरा अनेक ऐसी प्रजातीय है जो खत्म होने के कगार पर पहुँच गयी है जिन्हें सुरक्षित रखने के लिए सख्त कानून बनाये जा रहे है | फ्रेंच वैज्ञानिक बैरोन जिओर्ज्स लिओपोल्ड आदी का मत था की आरम्भ में जो प्रजातीय थी उनमे से अधिकतर लुप्त हो गयी है | इसका सीधा अर्थ ये है की यदि कोई प्रजाति बढ़ रही है तो कोई प्रजाति लुप्त होती जा रही है |कई जगह करोड़ो मच्छर जन्म लेते है तो कई जगह दवाइयों के छिडकाव से करोड़ो मच्छर मार दिए जाते है | अब पुनर्जन्म का इस से अच्छा प्रमाण कोण सा हो सकता है जो आपने दिया है की कुछ बच्चे अपने पिछले जन्म के राज खोलते है जिसे आप शैतान का काम कह रहे है | यह कितने ख़ुशी की बात है जो काम आज तक कोई न कर पाया वो शैतान ने कर दिया और बच्चे को उसके पिछले जन्म के सत्य बता दिए | यदि यह सब शैतान का ही काम है तो वे सब बाते सत्य कैसे हो जाती है जो बच्चा अपने बारे में बता देता है ? आप भुत प्रेत को तो सही मान रहे है जिसे विज्ञानं भी पूरी तरह से नकारता है लेकिन उसे मानने से इनकार कर रहे है जिसका यदि विज्ञानं समर्थन नही करता तो कम से कम उसके अस्तित्व को भी नही नकारता |इस बात का क्या प्रमाण है की मरने के बाद वही सब होगा जो आप कह रहे है ? यदि मरने के बाद सच्चाई सामने आ ही जायेगी तो आपने इतनी तकलीफ क्यों उठाई ये पुस्तक लिखने में ?
मौलाना :- कर्मो का फल मिलेगा
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि आप कर्मो का फल मानते है तो वर्तमान में जो फल भुगत रहे है वे किन कर्मो का फल है ? कोई जन्म से गरीब तो कोई जन्म से वजीर है ये सब किन कर्मो का फल है या अल्लाह का पक्षपात है

मौलाना :- यदि सत्कर्म करेगा भलाई और नेकी की राह पर चलेगा तो वह स्वर्ग में जाएगा | स्वर्ग जहाँ हर आराम की चीज है |

आर्य सिद्धान्ती :-
यह बात भी कुरान के हिसाब से गलत है क्योंकि अल्लाह सत्कर्म के बदले भलाई और स्वर्ग नहीं देता बल्कि जिसको चाहता है उसको स्वर्ग देता है | अगर सत्कर्मो के हिसाब से स्वर्ग या जन्नत देता तो काफ़िरो के लिए केवल दोजख की आग और केवल मुस्लिमो के लिए स्वर्ग देने की बात न कहता | क्या अंबानी बंधुओ के पास किसी आराम की चीज की कमी है ? क्या वे स्वर्ग सा जीवन नही जी रहे है क्या उनके पास सुख के सभी साधन नही मौजूद है ? यदि इस्लामिक स्वर्ग की बात कर रहे हो तो वो केवल एक अय्याशी का अड्डा प्रतीत होता है | जहां पर मर्दों को तो ७२ हरे मिलेंगी पर औरतो को केवल उनके पति मिलेंगे सम्भोग के लिए | अर्थात जन्नत में भी पक्षपात |

मौलाना:- सबसे बड़ी जन्नत की उपलब्धी यह होगी की स्वर्गवासी लोग वहां अपने मालिक के अपनी आँखों से दर्शन कर सकेंगे | जिसके बराबर और कोई मजे की चीज नहीं होगी |

आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो अल्लाह निराकार कैसे रहा ? यदि अल्लाह केवल स्वर्ग में है तो नरक की देखभाल कोन करता होगा ? क्या अल्लाह का अधिकार नरक पर ना रहा ? यदि अल्लाह नरक वालो को भी अपने दर्शन करा दे तो क्या पता वे भी ईमान ले आये अल्लाह का चेहरा देख कर |और जो सत्तर हजार फरिस्ते दोजख को खीच रहे है उन फरिश्तो की क्या गलती जो उन्हें भी दोजख में काम करना पढ़ रहा है ? अब ईमान ना लाने पर नरक की अग्नि तैयार है | यह तो सोच लेना था की ईश्वरीय संदेश को स्वीकार करने में बुद्धि की कठिनाइयाँ भी बाधक हो सकती है क्या इनका इलाज दोज़ख है ? दण्ड सदा बुरे विचार का होता है कोई बिना बुरी इच्छा के इमानदारी से कुरान के ईश्वरीय होने से इनकार कर दे तो ? और वह सच्चरित्र हो तब ?

मौलाना :-

उस मालिक के यहाँ गुनाह , कुकर्म , पाप भी छोटे बड़े होते है उसने हमे बताया है की जो पाप हमे सबसे अधिक सजा का भागीदार बनाता है और जिसको वो कभी क्षमा नहीं करेगा और जिस का करने वाला सदैव नरक में जलता रहेगा और उसको मौत भी न आएगी व उस अकेले मालिक को किसी का साझी बनाना है , अपने शीश और मस्तिष्क को उसके अतिरिक्त किसी दुसरे के आगे झुकाना या उसके अलावा किसी और को पूजा के योग्य मानना, घोर पाप है |

आर्य सिद्धान्ती :-
लेकिन क्या अल्लाह ही इन सबकी आज्ञा नही देता ? देखिये कुरान क्या कहता है ” अतः ईमान लाओ अल्लाह व् उसके रसूल पर ” जल इमरान आयत १७४
क्या यह अल्लाह के साथ किसी दुसरे को साझी बनाना नही है ? “आज्ञापालन करो अल्लाह और उसके रसूल की ” सुरत मायदा आयत ९२
यहाँ भी अल्लाह के साथ रसूल को भी आज्ञापालन में साझी नही ठहराया गया है ? और तो और नमाज में भी रसूल को मुहम्मद के साथ साझी ठहराया गया है | क्या ये सब शिर्क नही है ? और तो और अल्लाह खुद शिर्क करने की आज्ञा देते है देखिये प्रमाण ”
जब हमने फरिश्तो से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गये मगर शैतान ने नहीं किया उसने गरूर किया और काफिर हो गया ” सूरते बकर आयत ३४
अब बोलिए ऐसे अल्लाह को क्या कहेंगे की जो खुद शिर्क करवाता हो ? क्या अल्लाह को नरक में नही डाल देना चाहिए ?इस आयत से एक बात और सामने आती है की जब सजदा करने के लिए फरिश्तो को बोला गया है तो भला इब्लिश सजदा क्यों करे ? क्या वह भी फरिश्ता था ? लेकिन छोड़िये यह बात केवल शिर्क की हो रही है |
यहाँ तक की बिना मुहम्मद का नाम बोले नमाज नहीं होती फिर किस मुह से आपको मुसलमानों को एकेश्वरवादी मानते हो ?

मौलाना :-
” उदाहरण के लिए यदि पत्नी अपने पति से कहे आप मेरे पति देव है मेरा अकेले आप से काम नही चलता इसलिए जो पड़ोसी है मैंने उसे भी अपना पति मान लिया है तो यदि आप में कुछ भी लज्जा और मानवता है तो आप यह बात बर्दाश्त नही कर पाओगे , या अपनी पत्नी की जान के लेंगे अथवा स्वंय मर जायेंगे “

आर्य सिद्धान्ती :-
आपने उदाहरण अच्छा दिया है लेकिन कुरान की आयत “जब हमने फरिश्तो से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गये मगर शैतान ने नहीं किया उसने गरूर किया और काफिर हो गया ” सूरते बकर आयत ३४ को पढ़ कर तो ऐसा लगता है की जैसे पति ने खुद ही पत्नी को कहा हो की तुम उस पड़ोसी को भी पति मान लो और जब पत्नी ने मना किया तो उसे घर से बाहर निकाल दिया | अब ऐसे पति को आप क्या कहेंगे ? उसे भी मार न देना चाहिए ? निर्णय आप पर है सिद्दकी साहब |

मौलाना :-

अल्लाह को छोड़ कर तुम जिन वस्तुओ को पूजते हो वह सब मिलकर एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकती , और पैदा करना तो दूर की बात है यदि मक्खी उनके सामने से कोई चीज प्रसाद इत्यादि छीन ले तो वापस नहीं ले सकती | फिर कैसे कायर है पूज्य और पूजने वाले उन्होंने उस अल्लाह की कद्र नहीं की जैसी करनी चाहिए थी जो ताकतवर और जबरदस्त है |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी यह बात तो सत्य है की ये वस्तुए कुछ नहीं कर सकती इनकी पूजा व्यर्थ है | पर क्या इन|वस्तुओ को दुःख आदि भी होता है ? यदि इन पत्थरों को दुःख व् कष्ट नही होता तो फिर हज करते समय शैतान को पत्थर मारने की प्रक्रिया को इस्लाम वालो ने आज तक बंद क्यों नहीं किया ? क्या यह शैतान को पत्थर मारने की प्रथा हज यात्रिओ की मुर्खता नहीं दर्शाती ? शैतान को पत्थर मारने के चक्कर में न जाने कितने लोग घायल हो जाते है |

मौलाना :-

कुछ लोगो का मानना यह है की हम उनकी पूजा इसलिए करते है की उन्होंने ही हमे मालिक का मार्ग दिखाया और उनके वास्ते से हम मालिक की दया प्राप्त करते है | यह बिलकुल ऐसी बात हुयी की कोई कुली से ट्रेन के बारे मालुम करे जब कुली उसे ट्रेन के बारे जानकारी दे दे तो वह ट्रेन की जगह कुली पर ही सवार हो जाए की इसने हमे ट्रेन के बारे में बताया है |इसी तरह अल्लाह की सही दिशा और मार्ग बताने वाले की पूजा करना बिलकुल ऐसा है जैसे ट्रेन को छोड़कर कुली पर सवार हो जाना |

आर्य सिद्धान्ती :-

अगर मौलाना जी मै आपसे पुछू की नमाज में मुहम्मद का नाम क्यों ? कलमा में मुहम्मद का नाम क्यों ? यहाँ आपका जवाब यही होगा की मुहम्मद ने हमे अल्लाह का रास्ता दिखाया इस लिए नमाज में मुहम्मद का नाम भी है | तो मौलाना जी ये ट्रेन और कुली का उदाहरण तो आप मुसलमानों पर भी बिलकुल फिट बैठता है | की मुहम्मद ने बताया अल्लाह का मार्ग और मुसलमानों ने मुहम्मद को ही इबादत में शामिल कर लिया |

मौलाना :-

कुछ भाई यह कहते है की हम केवल ध्यान जमाने के लिए इन मूर्तियों को रखते है | यह भी खूब रही की खूब गोर से खम्बे को देख रहे है और कह रहे है की पिता जी का ध्यान जमाने के लिए खम्बे को देख रहे है | कहां पिताजी कहां खम्बा ?

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी बात तो आपकी सही है पर ये सारे मुसलमान क्यों काबे की तरफ मुह करे नमाज अदा करते है ? उसे अल्लाह का घर बताते है | कहां वो सर्वव्यापक ईश्वर और कहाँ वो अरब का छोटा सा जगह जहा पर मुसलमानों ने अल्लाह का घर बना रक्खा है | कुछ मुसलमान भाइयो से पूछा की काबे के पत्थर को क्यों चुमते है बोले हमारे नबी ने भी इसे चूमा था | क्या कमाल का तर्क है की नबी ने चूमा इस लिए हम भी चुमते है

मौलाना :

सच्चा धर्म शुरू से एक ही है और सब की शिक्षा है की उस अकेले को माना जाए और उसकी आज्ञा का पालन किया जाए , पवित्र कुरआन ने कहा है की ” धर्म तो अल्लाह का केवल इस्लाम है और इस्लाम के अतिरिक्त जो भी धर्म लाया जाएगा वह मान्य नहीं है ” ( सूरह आले इमरान :८५ )

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी धर्म सच्चा या झूठा नहीं होता | जो झूठा हो वो धर्म काहें का ? उसे अधर्म कहा जाता है | धर्म इतना व्यापक शब्द है जो उसकी महत्व को जान लिया होता तो अल्लाह के नाम पर इतना कत्लेआम ना मचता | आप इस्लाम को धर्म बता रहे हो पूरी अरबी भाषा में धर्म शब्द नहीं है फिर आपने कैसे इस्लाम को धर्म लिख दिया ? इस आयत दीन लिखा है धर्म नहीं | इस्लाम को तो बने हुए भी मात्र १४०० वर्ष हुए है और आप इसे आरम्भ से बता रहे है | धर्म संस्कृत का शब्द है जिसका प्रयोग केवल वैदिक ग्रंथो में है | धर्म शब्द धृ धातु से बना है जिसका मतलब है जो धारण करने योग्य हो अर्थात जो धारण करने योग्य हो उसे धर्म कहते है | और धारण करने योग्य क्या है इसके लिए मनु महाराज मनुस्मृति में लिखते है ” वेदोऽखिलोधर्ममूल ” अर्थात धर्म का मूल वेद है | वेद के अनुसार चलना धर्म और वेद के विपरीत चलना ही अधर्म कहलाता है | तो मौलाना जी इस संसार में एक ही धर्म है जिसे वैदिक या सनातन धर्म भी कहते है | धर्म पूरी मानव जाती के लिए है लेकिन दीन किसी विशेष वर्ग के लिए होता है |

मौलाना :-शैतान लोगो के पास गया और कहा की तुम्हे अपने महागुरु रसूल से बड़ा प्रेम है | मरने के बाद वे तुम्हारी निगाहों से ओझल हो गये है | अतः मई उनकी एक मूर्ति बना देता हूँ उसको देख कर तुम संतुष्टि पा सकते हो | शैतान ने मूर्ति बनाई| जब उसका जी करता वह उसे देखा करते थे | धीरे धीरे जब उस मूर्ति का प्रेम उन के मन में बस गया शैतान ने कहा की यदि तुम इस मूर्ति के आगे सर झुकाओगे तो इस मूर्ति में भगवान को पाओगे | मनुष्य के दिल में मूर्ति की बड़ाई पहले ही भर चुकी थी | इस लिए उसने मूर्ति के आगे सिर झुकाना और उसे पूजना आरम्भ कर दिया |

आर्य सिद्धान्ती :- काबा के बारे में आपका क्या विचार है ? क्या काबा के पत्थर को चूमना मुस्लिमो का मुहम्मद के प्रति प्रेम नहीं है ? क्या काबा की परिक्रमा करना मुसलमानो का काबा के प्रति प्रेम नहीं है ? जैसे मूर्ति के प्रति लोगो का प्रेम मूर्ति पूजा में बदल गया तो क्या आपको नहीं लगता की काबा के प्रति प्रेम भी किसी दिन उसकी पूजा में बदल जाएगा ? वैसे पूजा में बचा ही क्या है जैसे मूर्तिपूजक मूर्ति के समक्ष मुह करके प्रार्थना करते है वैसे ही मुसलमान लोग चाहे किसी भी देश में क्यों न रहता हो वह काबे की तरफ मुह करके ही इबादत करता है | यदि कहो की इस से एकता बढती है तो क्या जो लोग मूर्ति के सामने खड़े होकर इबादत करते है क्या उस से एकता नहीं बड़ेगी ?

मौलाना :-

इस संसार का सरदार ( मनुष्य ) जब पत्थर या मिट्टी के आगे झुकने लगा तो वह जलील हुआ और मालिक की निगाह से गिर कर सदा के लिए नरक का इंधन बन गया | उसके बाद अल्लाह ने फिर अपने रसूल भेजे जिन्होंने लोगो मूर्ति पूजा और अल्लाह के अलावा दुसरे की पूजा से रोका , कुछ लोग उनकी बात मानते थे तथा कुछ लोगो ने उनकी अवमानना की |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी फिर तो आपको महर्षि दयानंद को रसूल मान ने में बिलकुल भी विलम्ब न करना चाहिए क्योंकि उन्होंने अतिंम रसूल मुहम्मद के मृत्यु के हजारो सालो बाद मूर्ति पूजा के खिलाफ अभियान चलाया और एक ईश्वर के अलावा दुसरो की पूजा से रोका , उनके साथ भी यही कुछ हुआ की कुछ लोग उनकी बात मानते रहे और कुछ ने उनकी अवमानना की , और इन्ही एक अल्लाह को मानने वालो ने उनका विरोध किया |

मौलाना :-

एक के बाद एक नबी और रसूल आते रहे , उनके धर्म का आधार एक सा होता वह एक धर्म की और बुलाते की एक ईश्वर को मानो , किसी को उसके व्यक्तित्व और गुणों में साझी न ठहराओ , उसकी पूजा में किसी को साझी न करो |

आर्य सिद्धान्ती :- महर्षि दयानंद के लिए भी धर्म का एक आधार था , उन्होंने ने भी दुनिया को एक धर्म अर्थात वैदिक धर्म की ओर बुलाया और एक ईश्वर को मानने को कहा था | या बात तो सत्य है की ईश्वर के गुणों और व्यक्ति तव में किसी को साझी नहीं बनाओ पर क्या खुद को मुसलमान कहने वालो ने स्वंय उसके गुणों और पूजा में साझी नहीं बनाया ? खुद कुरान ने कई बार मुहम्मद को अल्लाह का साझी ठहराया , नमाज में मुहम्मद का नाम लिए बगैर नमाज पूरी नहीं होती , बिना मुहम्मद का नाम लिए कलमा नहीं पड़ा जा सकता , बिना मुहम्मद पर ईमान लाये मुसलमान नहीं बना जा सकता तो आप लोग किस मुह से ये बात कह सकते हो की किसी को अल्लाह का साझी न बनाओ ? हादिशो ने तो यहाँ तक कह डाला की आदम अल्लाह का ही प्रतिबिम्ब था | अब इस हादिश का क्या अर्थ निकाला जाए ? आदम किस स्वरूप में अल्लाह का प्रतिबिम्ब हुआ ? क्या आकार में या फिर गुणों में ? यदि कहो आकार में तो कुरान का अल्लाह भी आदम की तरह ९० फीट का हुआ यदि कहो गुणों में तो आदम भी अल्लाह का साझी हो गया |

मौलाना :-

जो उसकी पवित्रा मखलूक है न खाते है न पीते है न सोते है हर काम में मालिक की आज्ञा पालन करते है , सच्चा जानो , उसने अपने फरिश्तो के माध्यम से वाणी भेजी या ग्रन्थ उतारे है उन सब को सच्चा जानो ,मरने के बाद दोबारा जीवन पाकर अपने अच्छे बुरे कार्यो का बदला पाना है |

आर्य सिद्धान्ती :-

जब फरिश्ते न थे तब अल्लाह की आज्ञा पालन कौन करता था ? और अल्लाह को फरिश्ते बनाने की क्या सूझी क्या वह अकेला कार्य करने में सक्षम न था ? जब अल्लाह को कुछ भी करने के लिए कुन कहना पड़ता है तो वाणी भेजने के लिए फरिश्तो की क्या जरुरत आन पड़ी ? यह बात तो सत्य है की दोबारा जीवन पाकर अपने अच्छे बुरे कार्यो का बदला पाना है तो पुनर्जन्म की परिभाषा क्या है ? पुनर्जन्म की परिभाषा भी तो यही है की दोबारा जीवन पाकर अच्छे बुरे कार्यो का फल अर्थात बदला पाना है , लेकिन आप साहब तो पुनर्जन्म को सिरे से नकारते हो , इसी पुस्तक के आरम्भ में आप पुनर्जन्म को नकार चुके है |

मौलाना :-

जितने अल्लाह के नबी और रसूल आये सब सच्चे थे और उन पर जो धार्मिक ग्रन्थ उतरे वह सब सच्चे थे उन सब पर हमारा इमान है और हम उनमे अंतर नही करते |जिन महापुरुषों के यहाँ मूर्तिपूजा या अनेकेशवरवाद की शिक्षा हो वे या तो रसूल नहीं है या फिर उनकी शिक्षाओं में फेर बदल हो गया है | मुहम्मद साहब के पूर्व के तमाम रसूलो की शिक्षाओं में फेर बदल कर दिया गया है और कहीं कहीं ग्रंथो को भी बदल दिया गया है

आर्य सिद्धान्ती :- यदि सारे नबी सच्चे थे तो मौलाना साहब कलमा में मुहम्मद का नाम ही क्यों ? आप कहते हो की हम उनमे अंतर नहीं करते तो फिर कलमे और इबादत में केवल एक रसूल ही नाम लेना दुसरे का नाम नहीं लेना , यह सब क्या है ? क्या यह अंतर और पक्षपात नहीं है ? यदि मुहम्मद साहब के पहले के तमाम रसूलो के ग्रंथो में बदलाव हुआ है तो इसका जिम्मेवार कौन है ? जब अल्लाह ने कुरान की सुरक्षा की जिम्मेवारी ली तो क्या बाकी किताबो की सुरक्षा की जिम्मेवारी अल्लाह की नहीं थी ? ऐसा भेदभाव क्यों ? यदि अल्लाह पहली किताबो की ही सुरक्षा कर देता तो बाकी किताबो के भेजनेकी जरुरत ही न पड़ती |

मौलाना :-

यह भी इस्लाम की सत्यता का प्रमाण है की प्राचीन ग्रंथो में अत्यंत फेरबदल के बावजूद उस मालिक ने अंतिम रसूल के आने की खबर को बदलने न दिया ताकि कोई यह कह सके की हमे खबर न थी | वेदों में उसका नाम नराशंस , पुराणों में कल्कि अवतार . बाइबिल में फारकलीट इत्यादि लिखा गया है | इन सब ग्रंथो में मुहम्मद साहब का जन्म स्थान , जन्म तिथि समय और बहुत से वास्तविक लक्षण पहले ही बता दिए गये थे |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी जब अल्लाह ने प्राचीन ग्रंथो से अंतिम रसूल का नाम नही बदलने दिया तो बाकी सब कुछ कैसे बदलने दे दिया ? अगर अल्लाह पहले ही बाकी सब को बदलने से बचा लेते तो बार बार फ़रिश्ते या रसूल भेजने की तकलीफ न उठानी पड़ती | वैसे आपने वेदों या पुराणों में जो मुहम्मद साहब का होना बताया है तो आपको वेदों और पुराणों पर गर्व करना चाहिए और बड़ी शान से वैदिक धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि दुनिया का सबसे पहला ग्रन्थ वेद ही है और जब वेद ने इतने वर्षो पहले ही ये बात बता दी है तो इस से बढकर कोन सा ग्रन्थ हो सकता है | पर आपकी जानकारी के लिए बता दू की ना तो वेद ने मुहम्मद साहब को नराशंस कहा है ना पुराणों ने कल्कि अवतार कहा है ये सब ग़लतफ़हमी का नतीजा है जैसे रामपाल दास महाराज को कहीं पर भी कवि शब्द लिखा हुआ दिख जाए तो उसे कबीरदास बताते है वैसा ही हाल आपका है जो अदीना को मदीना बताते है | जिस अथर्ववेद २०/१२७ /१ मन्त्र के आधार पर आप मुहम्मद साहब को ही नराशंस साबित करने पर तुले है तो कुरान के सूरह फुर्कानी आयत ५२-५९ में अल्लाह को कबीर कहा गया है तो यदि कल को कोई कबीर पंथी कबीरदास को कुरान का अल्लाह बता दे तो संकोच मत करना , इस लिए फैसला आप पर है मौलाना जी , रही बात पुराण के कल्कि अवतार की तो जरा कल्कि पुराण के श्लोक (१:२:१५) पर नजर डालिए , यहाँ स्पष्ट है की कल्कि के जन्म के समय उनके माता पिता दोनों जीवित थे जबकि मुहम्मद साहेब के पिता की मृत्यु उनके जन्म से पहले ही हो गयी थी | इस से स्पष्ट है की कल्कि अवतार मुहम्मद साहेब नहीं हो सकते | दूसरा प्रमाण यह है की श्लोक ( १/३/९ ) के अनुसार कल्कि की एक ही पत्नी होगी जिसका नाम पद्मा होगा जो सिन्हाला में रहती होगी , जबकि मुहम्मद साहेब की ११ बीवियां थी | इन दोनों प्रमाणों से स्पष्ट है की पुराणों का कल्कि मुहम्मद नहीं हो सकता |ज्यादा जानकारी के लिए पढ़िए http://agniveer.com/muhammad-vedas-hi/

मौलाना :-

अब से लगभग साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व वह अंतिम ऋषि मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही व् सल्लम सउदी अरब के देश मक्का में पैदा हुए |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी मुहम्मद साहब को ऋषि लिख कर इस शब्द का अपमान न कीजिये | आपको मालुम भी है की ऋषि किसे कहते है ? जरा निरुक्त ( ७/३ ) पढ़ कर देखिये ऋषि किसे कहते है | इस निरुक्त में स्पष्ट लिखा है ऋषिणा मंत्रदृष्टयों भवन्ति अर्थात वेद मंत्रो के दृष्टाओ को ऋषि कहते है अब जरा बताने का कष्ट करोगे की मुहम्मद साहब कोंसे वेद मन्त्रो के दृष्टा थे ? ऋग्वेद १/१/२ के अनुसार जो सब तरह की विद्याओ को जानता हो और उन विद्याओ को समाज के कल्याण के लिए उपयोग करे उसे ऋषि कहते है | लेकिन मुहम्मद साहब तो अनपढ़ थे विद्या से तो दुर दूर तक उनका कोई लेना देना नहीं था | जिस व्यक्ति का पूरा जीवन दुराचार , और हिंसा में बिता हुआ हो उसे आप ऋषि कहते है ? न कुरान ने मुहम्मद को कभी ऋषि कहा न ही हादिशो ने तो आपने किस आधार पर मुहम्मद साहेब को ऋषि कह दिया ?और अंतिम ऋषि तो महर्षि दयानंद को कहा जाता है उनके बाद कोई ऋषि पैदा नहीं हुआ | अगर आपको अंतिम ऋषि पर ही ईमान लाना है तो फिर ऋषि दयानंद पर लाओ जिन्होंने जीवन भर सत्य और वेद विद्याओ का प्रचार किया और सत्य के लिए ही प्राणों की आहुति दे दी |

मौलाना :-

पैदा होने के कुछ माह पूर्व ही उनके पिता का देहांत हो गया था | माँ भी कुछ ज्यादा दिन जीवित नही रही | पहले दादा और उनके देहांत के बाद आपके चाचा ने उन्हें पाला | संसार में सबसे निराला यह इन्सान समस्त मक्का नगर की आँखों का तारा बन गया |

आर्य सिद्धान्ती :-

जब मुहम्मद साहेब के जन्म से पूर्व उनके पिता का देहांत हो गया तो वे कल्कि कैसे हो गये ? क्योकी कल्किपुराणम् ( १/२/१५)) के अनुसार कल्कि के जन्म के समय उनके पिता जी जीवित होंगे | अब अल्लाह की अपने रसूल के प्रति दरियादिली देखिये की जन्म से पूर्व पिता जी को छीन लिया और कुछ दिन बाद माता को भी छीन लिया | क्या यही अल्लाह का मुहम्मद साहेब के प्रति प्रेम था ? आपने मुहम्मद साहेब का परिचय तो दिया पर पूरा स्पष्ट नही दिया | हम इस परिचय को थोडा और आगे बड़ा देते है , मुहम्मद साहेब के कारनामो से |
मुहम्मद साहेब ने अपने जीवन में सभी तरह की शादिया की , कुँआरी से शादी , शादीशुदा से शादी , विधवा से शादी , ९ वर्ष की अबोध बालिका से शादी तो कहीं माँ की उम्र की औरत से शादी |

मौलाना :-

सब ने एक स्वर में होकर कहा , भला आप की बात पर कौन विश्वास नहीं करेगा आप कभी झूठ नही बोलते और पहाड़ की छोटी से दूसरी ओर देख भी रहे है |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी इस्लाम टिका हुआ ही मुहम्मद साहब के झूठो पर है | खुद को अल्लाह का नबी बताना ही सबसे बड़ा झूठ है | लेकिन ऐसा मै नही कह रहा हूँ बल्कि अरब के लोगो के मुहम्मद साहब के प्रति क्या विचार थे इसका खुलासा तो खुद कुरान ही करता है | देखिये
“तुम्हारे कबीले के लोग तुम्हें झूठा बताते हैं ” सूरा -फातिर 35 :4
“यह लोग कहते हैं कि तुमने अल्लाह के नाम से झूठ बातें गढ़ रखी हैं ” सूरा -अश शूरा 42 :24
” तुम खुद ही अल्लाह के नाम से कुरान रचते हो “सूरा -सबा 34 :8

मौलाना :-
मनुष्य की यह कमजोरी रही है की वह अपने पूर्वजो की गलत बातो को भी अन्धविश्वास में मान कर चला जाता है | इंसानों की बुद्धि और तर्कों के नकारने के बावजूद मनुष्य पूर्वजो की बातो पर जमा रहता है और उसके अतिरिक्त करना तो क्या , कुछ सुन भी नहीं सकता |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी इसका सबसे अच्छा उदाहरण भी मुसलमान ही है क्योंकि वे आज भी कुरान की बातो को ईश्वरीय मानते है जो की बिलकुल तर्कहीन है , जैसे मुहम्मद साहब का ऊँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े करना | और चाँद के आधे हिस्से का मीना की पहाडियों पर गिरना | अब मौलाना जी बताइए इस से बड़ा अन्धविश्वास क्या होगा ? चाँद दसवा हिस्सा पृथ्वी को पूरी तरह तबाह कर सकता है और इस्लाम कहता है की चाँद का आधा हिस्सा मीना की पहाडियों पर गिर गया | दूसरा अन्धविश्वास देखिये की अल्लाह को खुश करने के लिए और अल्लाह के प्रति अपना समर्पण दिखाने के लिए लाखो बेजुबानो को कत्ल कर दिया जाता है | यदि अल्लाह को समर्पण करना भी है तो अपना जीवन कीजिये दुसरो का क्यूँ ?
मौलाना :-

यही कारण था की चालीस वर्ष की आयु तक आपका आदर करने और सच्चा मानने और जाने भी मक्का के लोग आपकी शिक्षाओं के शत्रु हो गये |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी मक्का वालो को तो शत्रु बनना ही था क्योंकि एक तरफ तो मुहम्मद साहब  उनके देवी देवताओं का अपमान करते थे तथा दूसरी तरफ खुद को अल्लाह का एजेंट अर्थात नबी बताते थे | ऊपर से ऐसी उट पटांग बाते मानने के लिए उन्हें बाध्य करते थे |
मौलाना :-
जब कुछ लोग ईमान वालो को सताते , मारते और आग पर लिटा लेते , गले में फंदा दाल कर घसीटते और उन पर पत्थर बरसाते | परन्तु आप सब के लिए प्रार्थना करते किसी से बदला नहीं लेते , पूरी पूरी रात अपने मालिक से उनके लिए हिदायत की दुआ करते |एक बार मक्का के लोगो ने उस महापुरुष का अनादर किया आपके पीछे लड़के लगा दिए जो आपको भला बुरा कहते | उन्होंने आप को पत्थर मारे जिससे आपके पैरो से रक्त बहने लगा | तकलीफ की वजह से आप कही बैठ जाते वे फिर आपको खड़ा करते और मारते |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी मेरी ये बात समझ नही आई की एक तरफ तो अल्लाह बदर के युद्ध में ३००० फरिस्तो की फ़ौज भेज देता है मुहम्मद साहेब की मदद करने को और दूसरी तरफ जब कुछ लड़के मुहम्मद साहब को मार रहे थे तो चुप चाप देखते रहे ? या अल्लाह का समय मुड़ नहीं था फ़रिश्ते भेजने का या जानभुज कर मुहम्मद साहेब को पिटता देखना चाहते थे | और मौलाना जी यदि मुहम्मद साहेब बदला नही लेते थे और अल्लाह से उनके लिए हिदायत मांगते थे तो फिर मुहम्मद साहेब ने काफ़िरो के खिलाफ इतने युद्ध क्यूँ  लड़े ? चलो मान लिया की मुहम्मद साहब ने उनके लिए हिदायत मांगी पर अल्लाह ने क्या कहा ? जरा देखिये
ऐ नबी मोमिनों से कहो काफिरों को कतल करे ,युद्ध के लिए तैयार रहे और धैर्य से काम ले बीस मुसलमान दो सौ काफिरों पर पड़ेंगे क्योंकि बीस अल्लाह वाले है =सुरा-अनफाल आ .६५
2) और निषिद्ध महीना खत्म होने पर काफिरों को जहां पाओ कतल करो उन्हें बंदी बना लो और रोक दो उनका रास्ता ,जगह -जगह पर ताक पर रहो उन्हें यातनाएँ दे दे कर मारो ,जब तक वह मुसलमान बनने का पश्चाताप न करे और अगर तौबा कर ले नमाज पड़े ,जकात दे फिर उसे अल्लाह के रास्ते में छोडो ,अल्लाह रहम करने वाला दयालु है ,सूरा-तौबा -आ.५

मौलाना :- आप ने यह भी खबर दी की मै रसूल हूँ अब मेरे बाद कोई रसूल न आएगा , मई ही वह अंतिम ऋषि नराशंस और कल्कि अवतार हूँ जिसकी तुम प्रतीक्षा करते थे और जिसके बारे में तुम सब कुछ जानते हो |

आर्य सिद्धान्ती :-

मौलाना जी आप ने ये जो लिखा है किसी हादिश से दिखा सकते हो जहां मुहम्मद साहेब ने अपने को अंतिम ऋषि नराशंस और कल्कि अवतार लिखा हो |

मौलाना :-
अब प्रलय तक आने वाले हर मनुष्य का कर्तव्य है और उसका धार्मिक और इंसानी दायित्व है की वह उस अकेले मालकी की पूजा करे , उसके साथ किसी को साझी न जाने और न माने , और उसके अंतिम संदेस्ता हजरत मुहम्मद को सच्चा जाने और उनके द्वारा लाये गये दीन और जीवन व्यतीत करने के ढंग का पालन करे , इस्लाम में इसी को ईमान कहा गया है इसके बिना मरने के बाद हमेशा के लिए नरक में जलना पड़ेगा |

आर्य सिद्धान्ती :-

जहा तक एक ईश्वर की पूजा की बात है वहाँ तक तो सही है | अगर उसके साथ किसी को साझी नही बनाना चाहते तो आज से ही कलमा बोलना बंद कर दीजिये |अब मुहम्मद साहेब जैसा जीवन जीने की आप बात कर रहे है भला १३-१३ शादिया की मुहम्मद साहेब ने और आप लोगो को कहा की ४ ही हलाल है तो बताओ कैसे जीवन जिओगे उनके जैसा ? और हाँ कैसे इंसान जैसा जीवन व्यतीत करने की आप बात कर रहे है जिसने उम्र की लिहाज किये वगैर पौती की आयु की बच्ची से निकाह किया हो , जिसने अपने बेटे की बीवी से निकाह किया हो ऐसे व्यक्ति को आप मार्गदर्शक बनाना चाहते हो ? मुहम्मद साहब ने खुद तो  १३-१३ शादिया की  और आप लोगो को कहा की ४ ही हलाल है और तो और बेचारे फातिमा के पति को दूसरी शादी भी न करने दी | अब बताओ मौलाना जी ऐसे पक्षपाती को कैसे अपना मार्ग दर्शक बनाया जा सकता है ? अगर मार्ग दर्शक बनाना है तो रामचन्द्र जी को बनाइए जिन्होंने चक्रवर्ती राजा होते हुए भी सम्पूर्ण जीवन मर्यादा में रह कर बिताया , पिता की आज्ञा के लिए राजकाज को छोड़कर १४ वर्षो तक जंगल में रहे | अपनी पत्नी की रक्षा के लिए समुद्र पर २९ मील लम्बा पुल बनाकर रावण को उसके घर में घुसकर मारा और अपनी पत्नी की रक्षा की | ऐसे चरित्र को अपना मार्गदर्शक बनाइए न की बीवियों के शौक़ीन व्यक्ति को |

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कुरान – ईश्वरीय वाणी है ?

यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते है : Quran the word of God?

इसके लेखक Ryunen Raj  जी है |

 

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कुरआन, मतलब सस्वर पाठ ,इस्लाम की पवित्र पुस्तक है | मुस्लिम परम्परा के अनुसार यह पुस्तक अलग अलग आकाशवाणी में मुहम्मद साहब के जीवन के एक बड़े हिस्से में मक्का और मदीना में अल्लाह द्वारा उतारी गई थी | कुरान को शायद एक ग्रन्थ में संकलित तीसरे खलीफा , उथमान , जिसने (651-52 ) में एक समिति नियुक्त करके किया था | कुरान की आंतरिक संगठन कुछ हद तक तदर्थ है | इस आकशवाणी में आयते है जो 114 सूरह में बांटी गई है | Continue reading कुरान – ईश्वरीय वाणी है ?

मुल्ला सतीश चंद गुप्ता को जवाब

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मुल्ला सतीश चंद गुप्ता को जवाब

लेखक – अनुज आर्य 

यह लेख सतीश चंद गुप्ता के ब्लॉग(halal-meet.blogspot.com) ‘ यह कैसा ब्रह्मचर्य था ‘ के प्रतिउत्तर में लिखा गया है | पाठको से अनुरोध है की पक्षपात को छोड़कर सत्य असत्य का निर्णय करे |

सतीश चंद गुप्ता यह नाम भले ही वैदिक या हिन्दू धर्म से सम्बन्ध रखने वाला लगता है पर यह व्यक्ति हिन्दू या वैदिक नहीं है अपितु एक कट्टर इस्लामी है जिसकी सोच कुरान से बाहर नहीं जाती | सतीश चंद गुप्ता जी के विषय में मै यहाँ ज्यादा न लिखते हुए मुद्दे पर ही लिखुगा | इस ब्लॉग में सतीश चंद जी ने स्वामी दयानंद सरस्वती के ब्रह्मचर्य पर प्रश्न उठाए है | अब पाठको देखिये जिस व्यक्ति का मजहब बलात्कार, अय्याशी और वेश्यावृति पर आधरित हो वो व्यक्ति किसी के ब्रह्मचर्यं पर प्रश्न उठाये बड़ा हास्यपद प्रतीत होता है और प्रश्न भी उस व्यक्ति पर उठाये जिसने मरणोपरांत तक स्त्री के साथ केवल माँ और बहन का रिश्ता रखा हो तो और भी ज्यादा हास्यपद प्रतीत होता है | जिस व्यक्ति के ब्रह्मचर्य के किस्से पुरे संसार में मशहूर थे उस व्यक्ति के ब्रह्मचर्यं के उपर सतीश चंद गुप्ता जी ने प्रश्न उठाये है | आइये देखते है की इनके ये सब प्रश्न कितने सही है |

सतीश चंद गुप्ता :-

एक ब्रह्मचारी और संयासी के जीवन का शास्त्रीय आदर्श है कि उसे काम, क्रोध, अहंकार, मोह, भय, शोक, ईष्र्या, निंदा, कपट, कुटिलता, अश्लीलता आदि अवगुणों से सदैव दूर रहना चाहिए। मगर ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में अहंकार, निंदा, अश्लीलता के अलावा कुछ और दिखाई नहीं पड़ता। स्वामी दयानंद ने अपने महान ग्रंथ में जैन तीर्थंकर स्वामी महावीर, महात्मा गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, हज़रत मुहम्मद, गुरू नानक सिंह आदि किसी भी महापुरूष और उनसे संबंधित संप्रदाय को नहीं बख्शा, जिसकी निंदा और अमर्यादित आलोचना न की हो। स्वामी जी ने स्वयं के अलावा किसी अन्य को विद्वान और पुण्यात्मा नहीं समझा।

आर्य सिद्धान्ती :-गुप्ता जी यह बात तो सत्य है की एक ब्रह्मचारी और संयासी के जीवन का शास्त्रीय आदर्श है कि उसे काम, क्रोध, अहंकार, मोह, भय, शोक, ईष्र्या, निंदा, कपट, कुटिलता, अश्लीलता आदि अवगुणों से सदैव दूर रहना चाहिए। और यही सब महर्षि दयानंद जी के जीवन से पता चलता है | सत्यार्थ प्रकाश में लेश मात्र भी अहंकार , निंदा और अश्लीलता दिखाई नहीं देती | सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कहना यदि निंदा कहलाता है तो सत्य और असत्य शब्द का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता , गुप्ता जी मै आपसे प्रश्न करता हूँ की चोर को क्या कहेंगे ? चोर ? अब यदि कोई आप जैसा व्यक्ति चोर को चोर कहना चोर की निंदा समझता है तो उसमे लेखक की क्या गलती ? मजहब के लिए लड़ने की शिक्षा देने वाले को क्या कहेंगे ? पौती या बेटी की उम्र की लड़की से विवाह करने वाले को क्या कहेंगे ? लूट की आज्ञा देने वाले को क्या कहेंगे ? स्वामी दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में एक जगह नहीं बल्कि कई बार लिखा है की मेरा उद्देश्य किसी की निन्दा या आलोचना करना नहीं है अपितु सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कहना है जो की स्वामी दयानंद जी ने भली भाँती किया , उन्होंने स्वंय से कोई बात किसी के लिए नहीं लिखी बल्कि जो जो बाते उन सम्प्रदायों में थी उनको लिखा | स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में स्पष्ट लिखा है की जो जो सब मतो में सत्य-सत्य बाते है , वे वे सब अविरुद्ध होने से उनका स्वीकार करके जो जो मत मतान्तरो में मिथ्या बाते है , उन उन का खंडन किया है | देखिये गुप्ता जी इस से ऊँचे आदर्श किसी के हो सकते है ? जो व्यक्ति सब मतों में फैली सत्य बातो को स्वीकार करता हो उस पर आपने ऐसे आरोप लगाये ये आपको शोभा नहीं देता | देखिये आगे स्वामी जी भूमिका में क्या लिखते है “ मै भी जो किसी एक का पक्षपाती होता तो जैसे आजकल के स्वमत की सतुति , मंडन और प्रचार करते और दुसरे मत की निंदा , हानि और बंध करने में तत्पर होते है , वैसे म भी होता परन्तु ऐसी बाते मनुष्य पन से बाहर है | बताओ जिस व्यक्ति के ऐसे उच्च विचार हो उसकी भाषा शैली पर आक्षेप लगाते हुए आपको एक बार भी लाज ना आई ? और देखिये गुप्ता जी की स्वामी दयानंद जी भूमिका में क्या लिखते है “ बहुत से हठी , दुराग्रही मनुष्य होते है जो वक्ता के अभिप्राय से विरुद्ध कल्पना करते है , विशेष कर मत वाले लोग | क्योंकि मत के आग्रह से उनकी बुद्धि अंधकार में फंस के नष्ट हो जाति है | इसलिए जैसा म पुराण , जैनियों के ग्रन्थ, बाइबल और कुरान को प्रथम ही बुरी दृष्टि से ना देखकर उन में से गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग तथा मनुष्य जाति की उन्नति के लिए प्रयत्न करता हूँ , वैसा सबको करना योग्य है | अब यही सब गुप्ता जी आपकी बातो को देख कर लगता है जो हठ और दुराग्रह कर चलते हुए किसी महापुरुष पर आक्षेप लग रहे है |

सतीश चंद गुप्ता :-

आधुनिक भारत के उक्त निर्माता आचार्य ने विभिन्न मत-मतान्तरों और उनके प्रवर्तकों के विषय में क्या टीका-टिप्पणी की है ज़रा उस पर भी एक नज़र डाल लीजिए-

……….. इससे यह सिद्ध होता है कि सबसे वैर, विरोध, निन्दा, ईष्र्या आदि दुष्ट कर्मरूप सागर में डुबाने वाला जैनमार्ग है। जैसे जैनी लोग सबके निन्दक हैं वैसे कोई भी दूसरा मत वाला महानिन्दक और अधर्मी न होगा। क्या एक ओर से सबकी निन्दा और अपनी अतिप्रशंसा करना शठ मनुष्यों की बातें नहीं हैं?विवेकी लोग तो चाहे किसी के मत के हों उनमें अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहते हैं। (12-105)

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी यह आपने जो यह टिप्पणी लिखी है इसमें कहीं पर भी यह उद्दत नहीं होता की स्वामी जी ने भाषा की मर्यादा को खोया है या उनकी भाषा में अहंकार दिखता है , यह सब केवल आपके हठ और दुराग्रह का नतीजा है | देखिये स्वामी जी ने तो क्या गजब बात लिखी है ऐसी बात तो कुरान बनाने वाले अल्लाह ने भी नहीं लिखी कि “विवेकी लोग तो चाहे किसी के मत के हों उनमें अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहते हैं “। अब वो विषय लिखता हूँ जिसके जवाब में स्वामी जी ने ये सब लिखा है जिसको आप इतना हव्वा बना रहे है |

जैसे विषधर सर्प में मणि त्यागने योग्य है वैसे ही जो जैनमत में नहीं वह चाहे कितना बड़ा धार्मिक पंडित हो उसको त्याग देना ही जैनियों को चित है { प्रकरणरत्नाकर भाग २ ,षष्टिशतक ६१,सूत्र १८ }

अन्य दर्शनी कुलिंगी अर्थात जैनमत विरोधी उन का दर्शन भी जैनी लोग न करे |{ प्रकरणरत्नाकर भाग २ ,षष्टिशतक ६१,सूत्र २९ }

जो जैनधर्म से विरुद्ध धर्म है वे मनुष्यों को पापी करने वाले है इसलिए किसी के अन्य धर्म को मान कर जैन धर्म को ही मानना श्रेष्ठ है |{ प्रकरणरत्नाकर भाग २ ,षष्टिशतक ६१,सूत्र २७ }

गुप्ता जी अब देखिये जैनमत की पुस्तकों में जो लिखा है उसके आधार पर आप उसे क्या कहेंगे ? क्या इन सब प्रमाणों से वैर,विरोध इर्ष्या आदि फैलाने वाला जैनमत नहीं लगता ? लेकिन आप ठहरे मत वाले तो आपको इन ग्रंथो के प्रमाण पर नहीं बल्कि इनकी समीक्षा करने वाले पर आपत्ति है | यदि इन सब प्रमाणों को देख कर यदि आपको कोई और भाषा शैली अच्छी लगती है तो जरा हमें भी बताइए की कैसी भाषा का प्रयोग होना चाहिए था ?

सतीश चंद गुप्ता :-

……….. भला! जो कुछ भी ईसा में विद्या होती तो ऐसी अटाटूट, जंगलीपन की बात क्यों कह देता?तथापि ‘यत्र देशे द्रुमो नास्ति तत्रैरण्डोऽपि द्रुमायते।’ जिस देश में कोई भी वृक्ष न हो तो उस देश में एरण्ड का वृक्ष ही सबसे बड़ा और अच्छा गिना जाता है वैसे महाजंगली देश में ईसा का भी होना ठीक था, पर आजकल ईसा की क्या गणना हो सकती है। (13-77)

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी इस समीक्षा में भी स्वामी जी की भाषा शैली में कोई अहंकार दिखाई नहीं देता , अब आप ही बताइए की जो व्यक्ति यह कहता हो की पहाड़ को जो कहोगे की यहाँ से वहाँ चला जा, तो वो चला जाएगा इसे आप अविद्या कहोगे या कुछ और ? यदि इसको आप कुछ और भी कह सकते है तो भी केवल ईसा की मुर्खता कह सकोगे | मुझे समझ नहीं आता की आप ने कैसे मुर्खता पूर्ण प्रश्न उठाये है स्वामी जी की भाषा शैली पर | अगर ये पहाड़ का एक जगह से दुसरे जगह पर चला जाना और वो भी लोगो के कहने पर ये सब जंगलीपन की बात नहीं तो और क्या है ? यदि आपके शब्दकोश में इसके लिए कुछ और उपयुक्त शब्द हो तो बताइए ? और स्वामी जी ने बहुत अच्छा उदाहरण दिया है किजिस देश में कोई भी वृक्ष न हो तो उस देश में एरण्ड का वृक्ष ही सबसे बड़ा और अच्छा गिना जाता है, यही सब ईसा के साथ हुआ , जो कुछ उसे थोड़ा बहुत ज्ञान था वही सब पुस्तक में लिख दिया गया और अनपढ़ लोगो ने उसे ही सही मान लिया | जैसे तोरेत उत्पत्ति पर्व ६ आयत १५-२२ में लिखा है की तीन सौ हाथ लम्बाई,पचास हाथ चौड़ाई और तीस हाथ ऊंचाई वाली नाव में सभी प्रकार के जिव जन्तुओ के जोड़े लेकर जाना , जंगलीपन और अविद्या की बात नहीं तो और क्या है जरा बतायेंगे ?

सतीश चंद गुप्ता :-

……….. अब सुनिए! ईसाइयों के स्वर्ग में विवाह भी होते हैं, क्योंकि ईसा का विवाह ईश्वर ने वहीं किया। पूछना चाहिए कि उसके श्वसुर, सासू, शालादि कौन थे और लड़के-बाले कितने हुए?और वीर्य के नाश होने से बल, बुद्धि, पराक्रम, आयु आदि के भी न्यून होने से अब तक ईसा ने वहाँ शरीर त्याग किया होगा। (13-145)

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी आपने बाईबल पर प्रश्न उठाने की जगह स्वामी जी पर प्रश्न उठाया है जो की केवल एक मत वाला ही कर सकता है | स्वामी जी ने इस समीक्षा में बहुत ही रोचक बात उठाई है की जब ईश्वर स्वर्ग में ईसा का विवाह किया तो उसकी पत्नी भी अवश्य होगी , यदि पत्नी है तो उसके माता पिता अर्थात ईसा के सास ससुर भी होंगे और जब शादी होगी तो बाल बच्चे भी जरुर होंगे | भला इसमें अहंकार या भाषा शैली का तो कोई सवाल ही नहीं | एक साधारण व्यक्ति के मन में भी यही सवाल आयंगे जो स्वामी जी ने उठाये है | क्या यह सवाल उठाना उचित नहीं ?

सतीश चंद गुप्ता :-

…. वाह कुरान का खुदा और पैग़म्बर तथा कुरान को! जिसको दूसरे का मतलब नष्ट कर अपना मतलब सिद्ध करना इष्ट हो ऐसी लीला अवश्य रचता है। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि मुहम्मद साहेब बड़े विषयी थे। यदि न होते तो (लेपालक) बेटे की स्त्री को जो पुत्र की स्त्री थी; अपनी स्त्री क्यों कर लेते? और फिर ऐसी बातें करने वाले का खुदा भी पक्षपाती बना और अन्याय को न्याय ठहराया। मनुष्यों में जो जंगली भी होगा वह भी बेटे की स्त्री को छोड़ता है और यह कितनी बड़ी अन्याय की बात है कि नबी को विषयासक्ति की लीला करने में कुछ भी अटकाव नहीं होना! यदि नबी किसी का बाप न था तो जैद (लेपालक) बेटा किसका था?और क्यों लिखा? यह उसी मतलब की बात है कि जिस बेटे की स्त्री को भी घर में डालने से पैग़म्बर साहेब न बचे, अन्य से क्योंकर बचे होंगे?ऐसी चतुराई से भी बुरी बात में निन्दा होना कभी नहीं छूट सकता। क्या जो कोई पराई स्त्री भी नबी से प्रसन्न होकर विवाह करना चाहे तो भी हलाल है?और यह महा अधर्म की बात है कि नबी जिस स्त्री को चाहे छोड़ देवे और मुहम्मद साहेब की स्त्री लोग यदि पैग़म्बर अपराधी भी हो तो कभी न छोड़ सकें! जैसे पैग़म्बर के घरों में अन्य कोई व्यभिचार दृष्टि से प्रवेश न करें तो वैसे पैग़म्बर साहेब भी किसी के घर में प्रवेश न करें। क्या नबी जिस किसी के घर में चाहें निश्शंक प्रवेश करें और माननीय भी रहें? भला! कौन ऐसा हृदय का अन्धा है कि जो इस कुरान को ईश्वरकृत और मुहम्मद साहेब को पैग़म्बर और कुरानोक्त ईश्वर को परमेश्वर मान सके। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसे युक्तिशून्य धर्मविरुद्ध बातों से युक्त इस मत को अरब देशनिवासी आदि मनुष्यों ने मान लिया! (14-129)

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी स्वामी जी की भाषा शैली पर तो आपने प्रश्न उठा दिए जबकि वे तो एक साधारण मनुष्य थे लेकिन मुहम्मद साहेब के चरित्र और अल्लाह की भाषा शैली पर आप चुप रह गये ? जो अल्लाह औरत को खेती बताता हो , उन्हें घर में कैद रहने की शिक्षा देता हो , गैर मुस्लिमो को मारने आदि की शिक्षा देता हो उसकी भाषा शैली पर तो आपको कोई एतराज नहीं हुआ लेकिन एक व्यक्ति की भाषा शैली पर आपने सवाल खड़ा कर दिया ? जो व्यक्ति खुद को अल्लाह का पैगम्बर बता कर फिर भी बेटे की पत्नी से निकाह करे उसको विषयी नहीं तो और क्या कहेंगे ? जो व्यक्ति उम्र का लिहाज किये बगैर ९ वर्ष की अबोध बालिका से निकाह और सम्भोग करे उसे विषयी नहीं तो क्या कहेंगे ? फैसला आप पर गुप्ता साहब | जिस दयानंद सरस्वती जी ने कभी माँ और बहन के सिवाय रिश्ता नहीं रक्खा किसी स्त्री से उस पर तो आपने प्रश्न उठा दिया पर एक व्यभिचारी व्यक्ति और अल्लाह का पक्ष रख रहे हो ? स्वामी जी ने तो बहुत उत्तम बात लिखी है की कोई जंगली भी होगा वो भी बेटे की पत्नी से शादी नहीं करेगा लेकिन मुहम्मद साहब तो उन जंगलियो से भी गये गुजरे निकले | जो व्यक्ति के अंदर पुत्रवधू के लिए ऐसी भावना थी तो अन्य स्त्रियों के लिए क्या भावना रही होगी यह पाठक गण स्वंय अंदाजा लगा सकते है | और गुप्ता जी को फिर भी दयानंद जी की भाषा पर आपत्ति हुई न की उन व्यभिचारी पर | होगी भी कैसे मत वाले जो ठहरे | स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में बिल्कुल सही लिखा है की हठी और दुराग्रही लोग वक्ता के अभिप्राय से विरुद्ध कल्पना करते है वही सब गुप्ता जी आप कर रहे है |

सतीश चंद गुप्ता :-

अच्छे व्यक्ति की पहचान की पहली कसौटी उसकी भाषा होती है। क्या उक्त प्रकार की भाषा शैली एक पूर्ण विद्वान और संन्यासी को शोभा देती है? क्या उक्त विषय वस्तु में एक ब्रह्मचारी ने शास्त्रीय आदर्शों का उल्लंघन नहीं किया है?

मी जी लिखते हैं कि ‘‘यदि किसी मत का विद्वान किसी अन्य मत की निंदा करता है तो निंदा करने वाले विद्वान की अच्छी बातें भी दोषयुक्त हो जाती हैं।’’ (12-95)

क्या यह बात स्वामी दयानंद पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी निंदा और सत्य में फर्क होता है | जो अपने को सही साबित करने के लिए किसी के बारे में झूठ कहा जाए उसे निंदा कहा जाता है | और जो जैसा हो उसे वैसा ही कहा जाए वो सत्य कहलाता है | यदि सत्य कहना ही निंदा कहलाती है तो सत्य की परिभाषा क्या होगी ? यह काम आप पर छोड़ देते है की सत्य की परिभाषा क्या होती है | यदि सत्य को सत्य कहना निंदा होती है तो फिर तो कोई भी सत्य बोलने से बचेगा | यदि स्वामी जी ने कुछ भी बात मनगड़ंत या झूठ लिखी होती तो हम मान लेते की यह गलत है , पर जब जब सब कुछ सत्य लिखा है तो उसे निंदा कैसे मान लिया जाए ?

सतीश चंद गुप्ता :-

स्वामी जी लिखते है कि ‘‘जो अपने ही मुख से अपनी प्रशंसा और अपने ही धर्म को बड़ा कहना और दूसरों की निंदा करना यह मूर्खता की बात है, क्योंकि प्रशंसा उसी की ठीक है जिसकी दूसरे विद्वान करें। अपने मुख से अपनी प्रशंसा तो चोर भी करते हैं।’’ (12-99)

क्या यह बात स्वामी दयानंद पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- स्वामी जी ने सर्वप्रथम ग्यारहवे समुल्लास में अपने धर्म और धर्म ग्रंथो की समीक्षा की फिर बाद में जैनियों,इसाइयों और इस्लाम आदि के विषय में लिखा | इस से बढ़ कर सम्मान की बात क्या हो सकती है गुप्ता जी ? और स्वामी जी ने किसी भी मत सम्प्रदाय की निंदा नहीं की बल्कि स्पष्ट शब्दों में कहा की “जो जो बाते सभी मतों में सत्य है म उन्हें स्वीकार करता हु “ भला इस से उच्च आदर्श क्या होंगे ? ना ही पुरे सत्यार्थ प्रकाश में ऐसा विदित होता है की स्वामी जी ने अपनी प्रशंसा की हो |

सतीश चंद गुप्ता ;- स्वामी जी लिखते है कि, ‘‘बहुत मनुष्य ऐसे हैं जिनको अपने दोष तो नहीं दीखते, किन्तु दूसरों के दोष देखने में अति उद्युक्त रहते हैं। यह न्याय की बात नहीं, क्योंकि प्रथम अपने दोष देख, निकाल के पश्चात दूसरे के दोषों में दृष्टि देके निकालें। (12-8)

क्या यह बात स्वामी दयानंद पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- इसी लिए तो स्वामी जी ने ग्याहरवे समुल्लास में पहले अपने मत में फैले दोषों को उजागर किया , उसके बाद में दुसरे मज्हबो के बारे में लिखा | जो स्वामी जी ने कहा वो ही किया |

सतीश चंद गुप्ता ;-

स्वामी जी लिखते हैं कि, ‘‘जो मनुष्य पक्षपाती होता है, वह अपने असत्य को भी सत्य और दूसरे विरोधी मतवाले के सत्य को भी असत्य सिद्ध करने में प्रवृत्त होता है। इसलिए वह सत्य मत को प्राप्त नहीं हो सकता।’’ (भूमिका)

क्या यह बात स्वामी जी पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- स्वामी जी ने जो लिखा बिलकुल सत्य लिखा है | उन्होंने स्वंय भी पक्षपात छोड़कर सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कहा है | उन्होंने जैनमत के विषय में लिखते हुए कहा है “ इन में बहुत सी बाते अच्छी है अर्थात अहिंसा और चोरी आदि निंदनीय कर्मो का त्याग अच्छी बात है “ और कुरान की समीक्षा ३९ में स्वामी जी लिखते है कि ” जो यह रजस्वला का स्पर्श न करना लिखा है वह अच्छी बात है “.. इसी तरह स्वामी जी ने कुरान की १२४ समीक्षा करते हुए लिखा है कि “ माता पिता की सेवा करना अच्छा ही है जो खुदा के साथ शरीक करने को कहे तो उनका कहना न मानना यह भी ठीक है “ अब गुप्ता जी इस से बढकर सत्य प्रिय होने का क्या उदाहरण हो सकता है ? पाठक गण इतने से समझ सकते है कि स्वामी जी को सत्य से कितना प्रेम था की सत्य चाहे कुरान या फिर किसी अन्य मत वालो के ग्रंथो में था उसे स्वीकार करते तथा उनकी प्रशंसा करते थे |

सतीश चंद गुप्ता;-

स्वामी जी लिखते हैं कि, ‘‘बहुत से हठी, दुराग्रही मनुष्य होते हैं कि जो वक्ता के अभिप्राय से विरुद्ध कल्पना किया करते हैं, विशेषकर मत वाले लोग। क्योंकि मत के आग्रह से उनकी बुद्धि अन्धकार में फंस के नष्ट हो जाती है।’’ (भूमिका)

क्या यह बात स्वामी जी पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी जरा यह बताने का कष्ट करेंगे की स्वामी जी कैसा हठ और दुराग्रह किया ? हाँ उनका हठ था वे सत्य के प्रति हठी थे इसीलिए उन्होंने जान की परवाह किये बिना पुराण,कुरान और बाइबल आदि के सत्य और असत्य को उजागर किया , स्वामी जी तो भूमिका में यह तक लिखते है की “ यद्यपि मै इस आर्यवर्त देश में उत्पन्न हुआ और वसता हूँ ,तथापि जैसे इस देश की झूठी बातो का पक्षपात न कर यथातथ्य प्रकाश करता हूँ “ | और आपने यह पंक्ति तो लिख दी लेकिन इस से अगली पंक्ति पढना शायद भूल गये जहाँ लिखा है “इसलिए जैसा म पुराण , जैनियों के ग्रन्थ, बाइबल और कुरान को प्रथम ही बुरी दृष्टि से ना देखकर उन में से गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग तथा मनुष्य जाति की उन्नति के लिए प्रयत्न करता हूँ” | जिस व्यक्ति के ऐसे विचार हों आप उस पर दुराग्रह का आरोप लगाये ये आपको शोभा नहीं देता |

सतीश चंद गुप्ता ;-

स्वामी जी ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में लिखा है कि एक ब्रह्मचारी के लिए अष्ट प्रकार के मैथुन जैसे स्त्री दर्शन, स्त्री चर्चा और स्त्री संग अदि सब निषिद्ध है, मगर स्वामी जी ने अपनी पुस्तक में न केवल स्त्री चर्या और सेक्स चर्चा की है, बल्कि एक नव विवाहित जोड़े को गर्भाधान किस प्रकार करना चाहिए ? इस विधि का खुला चित्रण किया है। विषय वस्तु पर एक नज़र डालिए –

…………. जब वीर्य का गर्भाशय में गिरने का समय हो उस समय स्त्री और पुरूष दोनों स्थिर और नासिका के सामने नासिका, नेत्र के सामने नेत्र अर्थात् सूधा शरीर और अत्यन्त प्रसन्नचित्त रहें, डिगें नहीं। पुरूष अपने ‘ारीर को ढीला छोड़े और स्त्री वीर्य प्राप्ति-समय अपान वायु को ऊपर खींचे, योनि को ऊपर संकोच कर वीर्य का ऊपर आकर्षण करके गर्भाशय में स्थिर करे। पश्चात् दोनों शुद्ध जल से स्नान करें।

आर्य सिद्धान्ती ; गुप्ता जी आप सत्यार्थ प्रकाश के जिन आठ प्रकार के मैथुनो को निषिद्ध की बात कर रहे है उसमे स्त्री चर्चा कहीं पर नहीं लिखा है ये शब्द केवल आपके दिमाग की उपज है | वहाँ { तीसरे समुल्लास प्रथम पृष्ठ } पर स्वामी जी ने स्त्री और पुरुष दर्शन ,स्पर्शन ,एकांतसेवन ,भाषण , विषय कथा ,परस्पर क्रीडा , विषय का ध्यान और संग इन आठ मैथुनो को लिखा है | जिस गर्भाधान विषय की आप बात कर रहे है वो स्त्री चर्चा या विषय चर्चा नहीं है अपितु एक संस्कार है जो हर गृहस्थ अपनाता है | विषय और संस्कार में अंतर होता है गुप्ता जी जो की इस्लाम वालो के बस की बात नहीं है | इसी संस्कार का उपदेश स्वामी जी ने गृहस्थो को दिया है | यदि ब्राह्मण उपदेश नहीं देगा तो कोन देगा ? उपदेश देने का काम ब्रह्मणों और विद्वानों का है | ऋग्वेद के दुसरे मन्त्र में ऋषि की व्याख्या करते हुए कहा गया है जो सब विद्याओ को जानता हो और जगत के कल्याण के लिए उनका प्रयोग अर्थात उपदेश करे उसे ऋषि कहा जाता है | स्वामी जी को ऋषि इसी लिए कहा जाता है क्योंकि उन्हें सब विद्याओ का ज्ञान था और उन्हें जिन विद्याओ का ज्ञान था उन सबका जगत के उपकार के लिए उपदेश भी किया | यह जरुरी नही की जो व्यक्ति उपदेश दे रहा है वो उसको स्वंय भी उपयोग करता है उदाहरणार्थ जैसे कोई डॉक्टर मरीज से कहे की फलां दवाई खाओ तुम्हारी बिमारी ठीक हो जायेगी तो इसका अर्थ ये नहीं की पहले डॉक्टर ने वो दवाई स्वंय खाई है फिर मरीज को बताई है | कोई डॉक्टर दवाइयों के सेवन से नहीं बनता बल्कि उसके बारे में अन्य विद्वानों के लिखे ग्रंथो का अध्ययन करता है फिर उसका उपदेश मरीज को करता है | यही सब स्वामी दयानंद जी ने किया है इसमें कोई आपत्ति होने का सवाल ही नहीं है | यदि कुरान में अल्लाह सम्भोग की बाते करता है तो क्या इसका मतलब ये हुआ की उसने भी सम्भोग किया है ?

सतीश चंद गुप्ता ;- कैसी विचित्र विडंबना है कि एक ऐसा व्यक्ति जो किसी विषय का अ ब स न जानता हो और वह विषय उसके लिए निषिद्ध और निंदनीय भी हो, फिर भी वह व्यक्ति उस विषय का ज्ञाता और प्रवक्ता हो। इससे अधिक धूर्तता, निर्लज्जता और दुस्साहस की बात यह देखिए कि वह व्यक्ति यह दावा भी करता है कि मैं इससे अधिक भी जानता हूँ, जिसका लिखना यहाँ उचित नहीं है। भला सेक्स संबंधी ऐसा कौन सा रहस्य है जिसे एक ब्रह्मचारी तो जान सकता है, मगर एक विवाहित नहीं जान सकता? क्या यहां प्रश्न चिंह नहीं बनता ?

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी पहले तो यह तय कर लीजिये की वे इस विषय का अ ब स न जानते थे या इस विषय के ज्ञाता थे | ये आपकी दोनों बाते विरोधाभाषी है जो केवल आपकी मुर्खता को दर्शाती है | आप भाषा का संयम दुसरो को सीखा रहे है पर आपने कैसी भाषा का प्रयोग किया है ? धूर्त , निर्लज्ज , दुस्साहसी ये सब क्या है ? आपने किस आधार पर स्वामी दयानंद जी को धूर्त लिखा ? इसलिए की उन्होंने कुरान जैसे कपोल कल्पित ईश्वरीय ग्रन्थ की धज्जिया उड़ा दी इसलिए उन्हें धूर्त लिख रहे हो ? अरे धूर्त शब्द तो आपको अल्लाह और मुहम्मद साहेब के लिए लिखना चाहिए जिसने स्वंय को ईश्वरीय पैगम्बर बता कर अरब वालो का मुर्ख बनाया | पर आप ऐसा क्यों करते मत वाले जो ठहरे | आपकी यह बात की सेक्स से सम्बन्धित ऐसी कोनसी बात है जिसे ब्रह्मचारी तो जान सकता है पर एक विवाहित नहीं जान सकता बिलकुल बालकपन की बात है भला बिमारीयों के बारे में डॉक्टर को ज्यादा जानकारी होगी या मरीज को ?

सतीश चंद गुप्ता :-

एक बात यह भी देखिए कि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में लगभग 40 बार वीर्य शब्द का प्रयोग हुआ है और लिखा है कि यह अमूल्य है। स्वामी जी के जीवन चरित्र को पढ़ने पर पता चलता है कि स्वामी जी नंगे रहा करते थे। लगभग 48 वर्ष की उम्र के बाद उन्होंने कपड़े पहनने प्रारम्भ किए। क्या यहीं चरित्र चिंतन है एक ब्रह्मचारी का ? क्या कोई धर्मग्रंथ किसी ब्रह्मचारी अथवा संन्यासी को नंगा रहने की अनुमति देता हैं ?

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी स्वामी जी ने क्या गजब और अनमोल बात कही है की वीर्य अनमोल है उसकी रक्षा करो | पर चरित्रहीनता वाले मजहब के लोगो को शायद वीर्य की रक्षा मजाक लगता है लगे भी क्यों न जब उनके प्रवर्तक ने ही पूरा जीवन अय्याशियों और व्यभिचार में बिता दिया हो उन्हें तो स्वामी जी की यह बाद हास्यपद लगेगी ही | आपका यह कहना की स्वामी जी नंगा रहते थे बिलकुल गलत है हाँ यह सत्य है की स्वामी जी केवल एक कोपीन पहनते थे | पुरुषो के लिए गुप्तांग को ढकने के लिए कोपीन काफी होता है | स्वामी जी इतने बलवान थे की उन्हें अतिरिक्त वस्त्रो की आवश्यकता ही नहीं थी | जिस चीज की आवश्यकता नहीं फिर भी उसे रखना मुर्खता होगी | आपको उनके पुरे जीवन में बस एक यही बात दिखी की वे नंगे रहते थे बाकी कुछ नहीं ? जिस व्यक्ति ने समाज के कल्याण के लिए १७ बार जहर पिया हो , लाठिया डंडे खाए हो फिर भी सत्य ही कहा ,,यह जीवन उनका आपको दिखाई नहीं दिया ? बड़े बड़े मौलानाओ और पादरियों को शास्त्रार्थ में हराया यह भी आपको दिखाई न दिया ? संसार के उपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया यह भी आपको दिखाई न दिया ? दिखे भी कैसे मत वाले जो ठहरे | गुप्ता जी लिख तो म और भी बहुत कुछ सकता था पर पाठक गण इतने से अंदाजा लगा लेंगे |

सतीश चंद गुप्ता :-

अब जहाँ तक गर्भाधान विधि का प्रश्न है, यह तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसे तो न केवल अनपढ़, गवार मनुष्य जानता है, बल्कि पशु-पक्षी भी जानते है। पशु-पक्षियों को कौनसे ‘शास्त्रों का ज्ञान होता हैं ? उन्हें भला कौन यह सब सिखाता हैं?

आर्य सिद्धान्ती ;- गर्भाधान एक स्वभाविक प्रक्रिया है यह बात तो सत्य है पर किस प्रकार से गर्भाधान किया जाए विषय ये है न की ये स्वभाविक या अस्वभाविक है | ऐसे तो खाना भी स्वभाविक है पर कैसे और क्या खाना चाहिए ये विषय होता है न की खाना स्वभाविक प्रक्रिया है | पशु पक्षियों का भी अपना एक ही तरीका होता है गर्भाधान करने या सम्भोग करने का पर ना जाने अल्लाह को पशुओ से भी कम अक्ल थी जो कह दिया की जैसे मर्जी सम्भोग करो तुम्हारी बिबिया तुम्हारी खेती है | पीछे से सम्भोग करना बताओ अल्लाह की कोन सी अक्लमंदी थी ?

सतीश चंद गुप्ता :-

स्वामी जी ने गर्भाधान की उक्त विधि के साथ यह भी बताया कि गर्भास्थिति (च्तमहदंदबल) का निश्चय हो जाने के बाद एक वर्ष तक स्त्री-पुरूष को समागम नहीं करना चाहिए, क्यांेकि ऐसा करने से अगली संतान निकृष्ट पैदा होती है, दोनों की आयु घट जाती है और अनेक प्रकार के रोग होते है। आगे यह भी लिखा है कि संतान के जन्म के बाद स्त्री योनिसंकोचादि भी करे।

स्वामी जी से किसी ने उक्त विषय से संबंधित निम्न सवाल भी किया-

प्रश्न- जब एक विवाह होगा, एक पुरूष को एक स्त्री और एक स्त्री को एक पुरूष रहेगा तब स्त्री गर्भवती, स्थिररोगिणी अथवा पुरूष दीर्घरोगी हो और दोनों की युवावस्था हो, रहा न जाय तो फिर क्या करें ?उत्तर- इस का प्रत्युत्तर नियोग विषय में दे चुके हैं और गर्भवती स्त्री से एक वर्ष समागम न करने के समय में पुरूष व स्त्री से दीर्घरोगी पुरूष की स्त्री से न रहा जाए तो किसी से नियोग करके उसके लिए पुत्रोत्पत्ति कर दे, परन्तु वेश्यागमन वा व्यभिचार कभी न करें। (4-149)

अब पहले तो उस सवाल पर ध्यान दीजिए, जिसमें स्वामी जी से पूछा गया है कि यदि किसी पुरूष की पत्नी गर्भवती हो और पुरूष की युवावस्था (ल्वनदह ।हम) हो और उससे न रहा जाए तो वह पुरूष क्या करे? स्वामी जी ने बताया कि वह किसी अन्य की पत्नी से नियोग करके पुत्रोत्पत्ति कर दे। अब यहां सभ्य और बुद्धिजीवी लोग ग़ौरे करें कि अगर किसी गाँव में 10 पुरूष ऐसे है जिनकी स्त्री गर्भवती है और स्त्री एक भी ऐसी नहीं है जिसे पुत्र की इच्छा हो, तो ऐसी स्थिति में वे 10 युवापुरूष कहां जाए? तीसरी बात यह कि युवा गर्भवती स्त्रियों का क्या होगा? क्या गर्भवती होने पर स्त्री की कामेच्छा समाप्त हो जाती हैं? अगर उनके अंदर यौन इच्छा हो, तो वे क्या करें?

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी स्वामी जी ने कहीं पर भी नियोग को अनिवार्य नहीं लिखा है यदि इच्छा हो , स्त्री , पुरुष व परिवार की आज्ञा हो तब ही नियोग हो सकता है लेकिन उसके भी नियम है जैसे विवाह के नियम होते है | इन पंक्तियों में स्वामी जी ने नियोग दो के लिए कहा है एक तो जिसकी पत्नी गर्भवती हो उसके लिए और दूसरा जिसका पति दीर्घरोगी हो उसके लिए | जिसकी पत्नी गर्भवती हो वो भी केवल किसी अन्य विधवा स्त्री के लिए नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकता है | तथा जिसका पति दीर्घ रोगी हो वह स्त्री क्या करेगी ? नियोग ही एक सामाधान है वर्तमान समय में दुनिया भर के स्त्री पुरुष जो संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है वे नियोग अर्थात स्पर्म डोनेसन का सहारा लेकर खुशी खुशी अपना जीवन जी रहे है | यदि गाँव में कोई विधवा या पुत्र की कामना करने वाली स्त्री नहीं है तो स्वामी जी ने कोनसा ये कहा है की नियोग करना ही करना है ? वो तो जिसकी इच्छा हो करो ना इच्छा हो न करो | रही बात कामेच्छा समाप्ति की तो स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश में जितेन्द्रिय होना सिखाया है न की कामोत्तेजक होना | स्वामी जी ने अंत में जो पंक्ति लिखी है वो सराहने योग्य है कि “परन्तु वेश्यागमन वा व्यभिचार कभी “ लेकिन सतीश चंद गुप्ता जी ने इसकी सराहना करने की बजाए इस पंक्ति को अनदेखा कर दिया | अनदेखा करे भी क्यों ना ? क्योंकि इस्लाम तो व्यभिचार और वेश्यागमन को पुरजोर पक्षधर है जिसे मुताः अर्थात अस्थायी शादी भी कहा जाता है जिसमे पुरुष पैसे देकर कुछ समय के लिए शादी करता है अपनी काम वासना को पूरा करने के लिए भले ही मुसलमान कहते रहे की यह अस्थाई शादी काम वासना के लिए नहीं है पर बुद्धिमान जन अंदाजा लगा सकते है की भला कोई व्यक्ति पैसे देकर कुछ दिन के लिए शादी क्यों करना चाहेगा ? क्या संतान पैदा करने के लिए ? नहीं केवल और केवल अपनी काम वासना मिटाने के लिए | उदाहरण के लिए देखिये कुरान सुरह निसा आयत २४ – विवाहित स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वर्जित है सिवाय लोंडियो के जो तुम्हारी है, इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनसे दाम्पत्य जीवन अर्थात सम्भोग का मजा लो और बदले में उन्हें निश्चित की हुई रकम अदा कर दो | अब गुप्ता जी देखिये नियोग तो केवल सन्तान उत्पत्ति के लिए तथा व्यभिचार और वेश्यगमन से बचने के लिए है लेकिन कुरान ने तो वेश्यवृति की खुली छुट दे डाली बस पैसा होना चाहिए माल खरीदने के लिए | ज्यादा जानकारी के लिए पढ़िएhttp://en.wikipedia.org/wiki/Nikah_mut‘ah

सतीश चंद गुप्ता :-

चैथी बात जो कही गई है कि गर्भवती स्त्री से समागम करने से वीर्य व्यर्थ जाएगा, अगली संतान निकृष्ट पैदा होगी, आयु घट जाएगी, अनेक प्रकार के रोग हो जाएंगे। क्या ये सब बातें चिकित्सा विज्ञान की (डमकपबंस ैबपमदबम) की दृष्टि से तर्क पूर्ण है ? स्वामी जी ब्रह्मचारी और योगी थे, मगर उनका स्वास्थ्य आम गृहस्थी से अच्छा नहीं था। 58-59 साल की आयु में स्वामी जी का वजन लगभग 150 कि0 ग्राम होना क्या अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है। क्या स्वामी जी की उक्त सभी प्रकार की सलाह (।कअपेमम) अतार्किक और अव्यावहारिक नहीं है ? न मालूम स्वामी जी ने कौनसा धर्मग्रंथ और चिकित्सा विज्ञान (डमकपबंस ैबपमदबम) पढ़कर उक्त सलाह (।कअपबम) गृहस्थियों को दी है?

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता यदि विज्ञानं की दृष्टि से देखा जाए तो भी स्वामी जी बाते बिलकुल सही है क्योंकि विज्ञानं की माने जाए तो वीर्य का कार्य अंडाणु के साथ मिल कर सन्तान पैदा करना है | जब पहले से ही सन्तान गर्भाशय में मोजूद है तो दोबारा वीर्य गर्भस्य में डालने का कोई ओचित्य नहीं रहता और उस वीर्य को व्यर्थ ही बहाना पढता है जिस से दुर्बलता आती है | अब देखिये विज्ञानं की दृष्टि से वीर्य सरंक्षण के क्या क्या फायदे है

१ . डॉ. डियो लुइस कहते है की यह तत्व अर्थात वीर्य का संरक्षण शरीर, मन की शक्ति और बुद्धि की इच्छा की शक्ति के लिए आवश्यक है

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डॉ इ पी मिलर के अनुसार स्वेच्छा और अनैच्छिक तरीके से वीर्य का बहना बहुत ही उर्जा को नष्ट कर देता है |

3.

डॉ स्टीफन टी चंग वीर्यस्खलनता के बारे में लिखते है की अंडकोष शुक्राणुओ और हार्मोन्स का उत्पादन करते है , और प्राँस्टैट ग्रंथि पोषक तत्व , हार्मोन और उर्जा से भरपूर तरल का उत्पादन करती है | एक चम्मच वीर्य में न्यूयॉर्क स्टेक के दो टुकड़े, दस अंडे, छह संतरे, और संयुक्त दो नींबू के बराबर शक्ति होती है जो की वीर्य स्खलन से नष्ट हो जाति है |

४.

प्रोफेसर मोंतागाज़ा लिखते है की सभी युवा और पुरुष शुद्धता अर्थात वीर्य सरंक्षण के तत्काल लाभ को अनुभव करते है |यह स्मृति शांत, दृढ होती है और मस्तिष्क जीवंत होता है

५. डॉ मोल्विल कैथ एम् डी लिखते है की यह वीर्य हड्डियों के लिए मज्जा अर्थात सार , दिमाग के लिए भोजन , जोड़ो के तेल और श्वास के लिए मिठास है | और यदि आप पुरुष है तो आपको इसकी एक बूंद भी खोनी नहीं चाहिए जब तक आप पुरे तीस वर्ष के नहीं हो जाते | और उसके बाद भी केवल संतानोत्पत्ति के लिए ही इसका प्रयोग करे |

६. Sir James Pagen लिखते है की शरीर और आत्मा को क्षतिग्रस्त मत करो , वीर्य की सुरक्षा करो , आत्मनियंत्रण दुसरे आचरणों से बेहतर है |

पाठक गण इन सब प्रमाणों से अंदाजा लगा सकते है की वीर्य कितना अनमोल है और उसको व्यर्थ नहीं बहने देना चाहिए और उसका उपयोग केवल संतानोत्पत्ति के लिए किया जाना चाहिए यही सब स्वामी जी ने लिखा है | जानवर भी ऋतूगामी होकर प्रजनन करते है फिर मानव तो अपने को बुद्धिमान कहता है उसे तो जरुर आवश्यकता अनुसार ही सम्भोग करना चाहिए | यहाँ पर म अनेक ग्रंथो के प्रमाण दे सकता था लेकिन ज्ञानी लोग इतने से अंदाजा लगा लेवेंगे | आगे गुप्ता जी ने स्वामी जी के स्वास्थ्य पर टिप्पणी की है की योगी और ब्रह्मचारी होने के बावजूद उनका स्वस्थ्य एक आम इन्सान की भाँती था | गुप्ता जी आपकी इस टिप्पणी का जवाब भी आपकी इस से प्रथम टिपण्णी में ही है | आपने स्वंय लिखा है की स्वामी जी नंगे रहते थे अब देखिये जो व्यक्ति कंपकपाती सर्दी में भी नंगा रहता हो क्या वो साधारण आदमी हो सकता है ? यदि आपको जनवरी के महीने में आधा घंटा नंगा बाहर खड़ा कर दिया जाए तो आपकी कुल्फी जम जायेगी जबकि स्वामी दयानन्द जी तो हमेशा एक कोपीन में रहते थे | इस से ज्यादा ब्रह्मचर्य का फल क्या हो सकता है ? उनके स्वास्थ्य और शरीर के विषय में कुछ व्यक्तियों के वक्तव्य जो स्वामी दयानंद के साथ रहे या जिन्होंने उन्हें देखा –

उनके शरीर से इस समय के बलवानो की जो तुलना करता हूँ तो बड़ा अंतर पाता हूँ , उनके अंग प्रत्यंग ऐसे सुदृढ़ व सुडोल थे की वैसे आज तक देखने में नहीं आये | ने नित्य प्रति प्रातः योगसाधना के लिए जंगल में जाते और प्राणायाम की क्रियाए करते थे | { राजाधिराज नाहर सिंह , शाह्पुराधिश }

वे शिखा रहित,मुंडित मस्तक , कोपीन मात्र धारण किये दिगम्बर प्रायः लगभग ६ फीट ऊँचे , सबल , मांसल भुजाओं वाले तथा अंग प्रत्यंगो में पूर्णतया संतुलित दिखाई दिए | मुझे वे यूनानी वीर हरक्युलिस की भाँती दीर्घाकार देहयष्टि वाले किसी पेशेवर पहलवान के ह्रदय में भी ईर्ष्या उत्पन्न करते प्रतीत हुए | { श्री रामगोपाल } यह स्वामी जी का असली चित्र है जो की १८७४ में लिया गया था

यदि मै स्वामी जी के ब्रह्मचर्य और स्वास्थ्य के विषय में लिखने लागु तो शायद सैकड़ो पन्ने भर जायेंगे | ये जरुरी नहीं की वजन अधिक होने से शारीरिक अवस्था सही नहीं होती | व्यायाम करने वाले व्यक्ति का वजन एक आम इन्सान से ज्यादा होता है ये साधारण सी बात है जैसे वर्तमान में मशहुर रेसलर अंडरटेकर का वजन १३६ किलोग्राम है , ऐसे ही मशहुर रेसलर केन का वजन १४६ किलोग्राम है | क्या वह शारीरिक अवस्था से सही नहीं है ? यह जरुरी नहीं की अगर वजन अधिक हो तो शारीर बेडोल होगा | अंतः आपका यह कहना की स्वामी जी स्वास्थ्य एक आम गृहस्थी जैसा था व्यर्थ है |

आगे स्वामी जी ने जैसा कि लिखा है कि संतान के जन्म के बाद स्त्री योनिसंकोचादि करे और छह दिन के बाद स्तन के अग्र भाग पर ऐसा लेप करे कि दूध स्रवित न हो। यहां ये दोनों बातें भी स्वामी जी से पूछने की है कि आख़िर ये योनिसंकोचादि क्या है? यह किस प्रकार होता है ? दूसरी बात यह भी स्वामी जी से पूछने की है कि क्या प्रसव के छह दिन के बाद स्त्री का दूध रोकना प्राकृतिक व्यवस्था के विरूद्ध नहीं हैं? तीसरी बात यह कि क्या धायी स्त्री नहीं होती, आख़िर वही बच्चे को दूध क्यों पिलाए? क्या स्वामी जी की सारी बातें बेतुकी नहीं हैं?

आर्य सिद्धान्ती :- प्रथम तो स्वामी जी की मृत्यु को इतना समय हो गया है आप उनसे कैसे पूछोगे इसलिय आपका यह कहना की ये दोनों बाते स्वामी जी से पूछने योग्य है केवल आपकी मुर्खता को दर्शाता है | अब आपकी दोनों बातो का जवाब भी जान लीजिये संतानोत्पत्ति के बाद जो योनीक्षति होती है उसको दोबारा पहले जैसा होना योनिसंकोच कहा जाता है | यह समय के साथ स्वंय भी हो सकता है , कई बार इसके लिए उपचार की भी आवश्यकता होती है | आपकी दूसरी बात का जवाब स्वामी जी ने इसी समुल्लास में लिखा है “ क्योंकि प्रसूता स्त्री के शरीर के अंश से बालक का शरीर होता है , इसी से स्त्री प्रसव समय निर्बल हो जाति है इसलिए प्रसूता स्त्री दूध न पिलावे “ इस पंक्ति में स्वामी जी स्पष्ट रूप से कारण लिख दिया है | फिर भी यदि आपकी बुद्धि में बात ना आवे तो स्वामी जी की क्या गलती ? स्वामी जी ने कहीं नहीं कहा की इसके बाद हमेशा दाई ही दूध पिलाए | स्वामी जी के लिखे शब्दों से स्पष्ट है की प्रसूता का दूध पिलाना इसलिए सही नहीं क्योंकि वो निर्बल हो जाती है अब यदि प्रसूता निर्बल ना हो तो जब तक चाहे दूध पिलाए क्योंकि दूध न पिलाने का एक कारण निर्बलता ही है |

सतीश चंद गुप्ता :-

अश्लील विषय से संबंधित समुल्लास-14 में कुरआन की कुछ आयतों की समीक्षा के कुछ अंश भी देखिए –

………….. वाह क्या कहना इसके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरबदेश से भी बढ़कर दीखती है! और जो मद्य मांस पी-खाके उन्मत्त होते हैं इसलिए अच्छी-अच्छी स्त्रियाँ और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिए नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमत्त हो जावें। अवश्य बहुत स्त्री-पुरूषों के बैठने सोने के लिए बिछौने बड़े-बड़े चाहिए। जब खुदा कुमारियों को बहिश्त में उत्पन्न करता है तभी तो कुमारे लड़कों को भी उत्पन्न करता है। भला कुमारियों का तो विवाह जो यहाँ से उम्मेदवार होकर गये हैं उनके साथ खुदा ने लिखा पर उन सदा रहनेवाले लड़कों का भी किन्हीं कुमारियों के साथ विवाह न लिखा तो क्या वे भी उन्हीं उम्मेदवारों के साथ कुमारीवत् दे दिये जावेंगें? इसकी व्यवस्था कुछ भी न लिखी। यह खुदा से बड़ी भूल क्यों हुई? यदि बराबर अवस्थावाली सुहागिन स्त्रियाँ पतियों को पाके बहिश्त में रहती हैं तो ठीक नहीं हुआ, क्योंकि स्त्रियों से पुरूष का आयु दूना-ढाई गुना चाहिए, यह तो मुसलमानों के बहिश्त की कथा है (14-143)

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी आपने केवल समीक्षा दिखाकर स्वामी जी के ग्रन्थ को तो अश्लील साबित करना चाहा है पर आप कुरान की वो आयते लिखना कैसे भूल गये जिनकी स्वामजी ने समीक्षा की है ? आइये जरा कुरान की उन आयतों पर प्रकाश डालते है जिनकी स्वामी जी ने समीक्षा की है इस से पाठकगण स्वंय अंदाजा लगा सकेंगे की स्वामी जी की समीक्षा में अश्लीलता दिखाई देती है या फिर कुरान में |

कुरान सूरह अल वाकिया आयत १२-२४/३४/३५/३६

नेमतो वाले बाग़ में बड़ी जमात पहलों में से और थोड़े पिछलो में से सोने की तारो से बने हुए पलंग पर तकिये लगाये उस पर बैठे हुए आमने सामने उनके लड़के फिरेंगे हमेशा लड़के ही रहने वाले आबखोरो और सुराहियो के साथ शराब के प्याले लिए हुए जिनसे न तो सर में दर्द होगा न ही उनकी अक्लो में फतूर आएगा | और मेवे जो वे पसंद करेंगे और पक्षियों का गोश्त जो वह चाहेंगे | और बड़ी बड़ी आँखे वाली हुरे जैसे मोती सीपी में छिपे हो | उसकी जजा जो वे करते थे और बड़े बिछोने | हम उन्हें कुंवारी बना देंगे , महबूब और हम उम्र |

पाठको यह ध्यान रहे की यह सब खुबिया कुरान की जन्नत की है न की वेश्याघर की | वैसे इन आयतों से पता चलता है की कुरान की जन्नत वेश्याघर से कुछ अधिक है | इन आयतों में विचारने वाली बात यह भी है कि ये सब सुविधाए पुरुषो को मिलेंगी , पुरुषो को लड़के भी मिलंगे जो हमेशा लड़के ही रहेंगे अब यह तो अल्लाह जाने की उन लडको की क्या आवश्यकता ? कहीं अल्लाह ने स्वर्ग में समलैंगिकता का तो बंदोबस्त नहीं कर दिया ? इस आयत से तो यही लगता है वरना हमेशा लड़के ही रहने वाले लडको की क्या आवश्यकता | भले ही मुसलमानों के लिए धरती पर शराब हराम क्यों न हो पर जन्नत में इन्हें शराब के प्याले भी मिलेंगे अब ये तो अल्लाह ही जाने की जन्नत में शराब की क्या आवश्यकता पड़ गई ? स्वामी जी ने बड़ा उचित सवाल उठाया है की इसलिए अच्छी-अच्छी स्त्रियाँ और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिए नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमत्त हो जावें | और अल्लाह ने अगली ही आयतों में उन नशेबाजो के लिए हूरो और हम उम्र मह्बुबो की व्यवस्था कर दी | गुप्ता जी जरा बतायेंगे की अल्लाह ने हम उम्र मह्बुबो और हूरो की व्यवस्था किस लिए की है जन्नत में ?अब गुप्ता जी बताइए की अल्लाह , उसकी कुरान और उसकी जन्नत अश्लीलता दिखा रही है या स्वामी जी की समीक्षा ? इन आयतों से एक प्रश्न और अल्लाह के ऊपर खड़ा हो गया की जब अल्लाह ने कुरान सूरह अन नूर आयत ४१ में लिखा है की पक्षी भी नमाज अदा करते है तो क्या एक नमाजी को दुसरे बेगुनाह नमाजी का गोश्त खाना उचित है ?

सतीश चंद गुप्ता :-

दूसरी जगह देखिए स्वामी जी क्या लिखते हैं –

क्योंजी मोती के वर्ण से लड़के किस लिए वहाँ रक्खे जाते हैं? क्या जवान लोग सेवा वा स्त्रीजन उनको तृप्त नहीं कर सकतीं? क्या आश्चर्य है कि जो यह महा बुरा कर्म लड़कों के साथ दुष्ट जन करते हैं उसका मूल यही कुरान का वचन हो और बहिश्त में स्वामी सेवकभाव होने से स्वामी को आनन्द और सेवक को परिश्रम होने से दुःख तथा पक्षपात क्यों हैं ? और जब खुदा ही उनको मद्य पिलावेगा तो वह भी उनका सेवकवत् ठहरेगा, फिर खुदा की बड़ाई क्योंकर रह सकेगी? और वहाँ बहिश्त में स्त्री-पुरूष का समागम और गर्भस्थिति और लड़के-बाले भी होते हैं वा नहीं ? यदि नहीं होते तो उनका विषय सेवन करना व्यर्थ हुआ और जो होते हैं तो वे जीव कहाँ से आये? और बिना खुदा की सेवा के बहिश्त में क्यों जन्मे? यदि जन्मे तो उनको बिना ईमान लाने और किन्हीं को बिना धर्म के सुख मिल जाए इससे दूसरा बड़ा अन्याय कौन-सा होगा? (14-152)

उक्त कुरआन की समीक्षा को पढ़कर क्या ऐसा नही लगता, जैसे कोई बद-जबान आदमी शराब पीकर अनाप-शनाप बकना शुरू कर दे? एक विद्वान और सभ्य पुरूष का अपना एक बौद्धिक स्तर (Intellectual Level) और एक नैतिक स्तर (Moral Standred) होता है। वह अपनी बात शिष्टता और सभ्यता के साथ कहता है बशर्ते वह आलोचना अथवा विरोध ही क्यों न कर रहा हो। उसके तर्कों में गहनता और गंभीरता होती है। मेरा तो यही मानना है कि एक विद्वान और पुण्यात्मा पुरूष कभी ऐसी अनाप-शनाप बातें (Talking) नहीं कर सकता।

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी यदि आपने कुरान की वो आयते भी लिखी होती जिनकी स्वामी जी ने समीक्षा की है तो पाठको को कुरान की झलकियाँ देखने को मिल जाती |

आइये हम कुरान की वो आयत लिखते है जिसकी स्वामी जी ने समीक्षा की है कुरान सूरह अद दहर आयत १९/२१ – और फिरेंगे ऊपर लड़के सदा रहने वाले , जब देखेगा तू उनको ,अनुमान करेगा तू उनको मोती बिखरे हुए | और पहनाये जावेंगे कंगन चांदी के और पिलावेगा उन को रब उन का शराब पवित्र |

इन आयतों में भी इस्लामी जन्नत का वर्णन है | अब गुप्ता जी आप ही बता दीजिये की इन सदा रहने वाले लडको का क्या काम है ? जिस प्रकार से अल्लाह ने इनके रंग रूप की प्रशंसा करते हुए इन्हें मोती के सामान लिखा है इस से तो प्रतीत होता है की इनका उपयोग सम्बंध बनाने के लिए ही होगा | अगर केवल शराब पिलाना होता तो जवान लोगो को भी रक्खा जा सकता था सदा लड़के रहने वाले लड़के ही क्यों ? यदि काम तृप्ति के लिए रखा गया था तो क्या स्त्री उनकी तृप्ति नहीं कर सकती थी जो लडको को ही चुना ? कहीं अल्लाह को स्वंय तो समलैंगिकता पसंद नहीं थी ? गुप्ता जी प्रश्न तो अब भी वाही है आपने समीक्षा को अश्लील कह कर उस से पल्ला झाड़ लिया | एक बुद्धिमान व्यक्ति को यदि ये आयत पढाई जाए तो उसके मन में यही सवाल आएगा की आखिर लड़के ही क्यों ?

अंत में कुछ आयते जिनसे अंदाजा लगाया जा सकता है की किसी ने शराब पीकर समीक्षा की है या फिर किसी ने शराब पीकर आयते उतारी है |

१. कुरान ५६/५ – और पहाड़ उड़ाए जायेंगे |

२. कुरान ७५/९ – इकट्ठा किया जावेगा सूर्य और चाँद |

३. कुरान ८१/१- जब की सूर्य लपेटा जावेगा |

४. कुरान ८१/२ –जब की तारे गदले हो जावेंगे |

५. कुरान ८१/३ – जब की पहाड़ चलाए जावेंगे |

६. कुरान ८१/११ – जब आसमान की खाल उतारी जायेगी |

७. कुरान ८२/१ – जब आसमान फट जावे |

८. कुरान ८२/२ – जब तारे झड़ जावे |

९. कुरान ८२/३ – जब दर्या चीरे जावे |

१०. कुरान ८२/४ – जब कब्रे जिला कर उठायी जावे |

११. कुरान १३/२७ – कह निश्चय अल्लाह गुमराह करता है |

१२. कुरान २/६० –मूसा ने अपनी कौम के लिए पानी माँगा , हम ने कहा की अपना दंड पत्थर पर मार | उसमे से बारह चश्मे बह निकले |

१३. कुरान ५/१२ – अल्लाह को अच्छा उधार दो |

१४. कुरान ६६/९ – ऐ नबी झगड़ा कर काफ़िरो से |

इन सब आयतों से पता चल सकता है की नशे में किसने लिखा है क्या यह सब बाते अल्लाह की हो सकती है ? स्वामी जी की समीक्षाओ में कहीं पर भी कोई बात तर्कहीन नहीं दिखती | बल्कि जिसके कारनामो से जो सिद्ध होता है व्ही लिखा है | जब आयतों में हूरो , लड़कों और महबूबाओ की बाते होंगी तो भला समीक्षा में ये सब प्रश्न क्यों नहीं आने चाहिए ? आप स्वंय बताइए की इन आयतों की समीक्षा में क्या लिखा जाता ?

Systematic Persecution of Religious Minorities in Bangladesh

Bangladesh1

Systematic Persecution of Religious Minorities in Bangladesh

– DR SAMEER SARKAR

 

Introduction

 

There may be scepticism whether minorities (Hindus) in Bangladesh are really persecuted in their homeland. The post election situation would unfold the truth. In addition, if we scan the history of the partition of India and the independence of Bangladesh we will get a vivid picture of the reality. The partition of India cost one million lives and displaced fifteen million people. After the partition, India was named as Republic of India whereas Pakistan as Islamic Republic of Pakistan.

 

The birth of Pakistan began with anti-minority stance as is evident from the constitution. In the constitution of Islamic Republic of Pakistan the post of the president was specially reserved for a Muslim with a belief that if a non-Muslim is elected as a president Islam will be endangered.

“A person shall not be qualified for election unless he is a Muslim” [Article 32(2)]

 

The division between Muslims and non-Muslims was clearly specified in the constitution,

 

“WHEREIN the Muslims of Pakistan should be enabled individually and collectively to order their lives in accordance with the teachings and requirements of Islam, as set out in the Holy Quran and Sunnah; WHEREIN adequate provision should be made for the minorities freely to profess and practice for religion and develop their culture”

 

On the contrary the Indian constitution provides a different message

 

“WE THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN, DEMOCRATIC REPUBLIC,

and to see are all its citizens;

JUSTICE, Social, economical and political, LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship; EQUALITY of states and opportunity; and to promote among the all; FRETERNITY assuring the dignity of the individual and the unity of the nation”.

 

The following sections would reveal the mechanisms used to persecute the minorities systematically.

 

Communal violence

 

Communal riots in 1950s are established facts and the plight of the affected Hindus are also well known. The Pakistani authority deployed army and paramilitary forces to protect the Hindus. Instead of protecting the Hindus the law enforcement authority carried out large-scale oppression against them particularly against women which is evident from the resignation letter from the then Minister for Law and Parliamentary Affairs, Jogendra Mondol: “The military not only oppressed the people and took away food stuffs forcibly from Hindu houses, but forced Hindus to send their womenfolk at night to the camp to satisfy the carnal desire of the military”. The riots of 1950s caused mass exodus of Hindus from their homeland, which is current Bangladesh. Two and half million Hindus left their homeland during the period of 1950-51. No political party played any role to protect the minorities or to prevent the exodus.

 

 

Use of Judiciary for oppression

 

The Pakistani government promulgated ‘East Bengal Emergency Requisition of Property Act 13 (1948); East Bengal Evacuees Administration of Immovable Property Act 24 (1951); East Bengal Prevention of Transfer of Property and Removal of Documents and Records Act (1952). In order to increase the oppression another law was instituted, Pakistan Administration of Evacuees Property Act 12 (1957). After the dissolution of the United Front Government Martial Law was declared in 1958. The mass movement against the Martial Law was culminated in 1962. In order to divert the mass movement the government sponsored the horrendous communal riot in 1964. Then ‘East Pakistan Disturbed Persons (Rehabilitation) ordinance 1, 1964 was enacted. Although this law was aimed to rehabilitate the Hindu victims, but in practice it was used to persecute the minorities.

 

During the Indo-Pak war, 1965 (6 September), ‘Defence of Pakistan Ordinance No. 23’, 6 September 1965 was instituted. Under this ordinance the historical BLACK LAW ‘Enemy Property Custody and Registration Order, 1965’ commonly known as ‘Enemy Property Act’ was promulgated.

 

The unflinching love of the minorities to their motherland and their patriotism inspired them to take part in the liberation war of Bangladesh. The minorities cherished hopes for fair treatment and equal right in an independent Bangladesh as her constitution guarantees. On 10 April 1971, Bangladesh Government at Mujibnagar declared that all irrelevant Pakistani Acts would be annulled. On 26 March 1972 Bangladesh Vesting of Property and estates, Presidential Ordinance No. 29 was enforced. Though ‘Enemy Property (Continuance of Emergency Provisions (Repeal) Act 45’ was enforced in 1974, ‘Vested and Non-resident Property (Administration) Act 46, 1974 was enacted. In essence, ‘Enemy Property Act’ was abrogated through Act 45 and reinstituted through Act 46. The expectation of the minorities was a mere illusion.

 

In 1976 Ziaur Rahman abrogated the ‘Vested and Non-resident Property (Administration) Act 46’ and instituted No. 92 Ordinance. Alongside Act 45 ‘Enemy Property (Continuance of Emergency Provisions) Repeal Act’ was amended and the preventive ‘Enemy Property (Continuance of Emergency) Provisions Repeal (Amendment) Ordinance (No. 93) 196’ was enforced retrospectively from 23 March 1974.Through this Ordinance (No. 93) Government took the sole authority to control and sell the so called vested property. This shows Ziaur Rahman moved one step ahead to oppress the Hindus by violating Hindu Law in terms of ownership of the property. It is necessary to mention that it was Ziaur Rhaman who changed the four basic principles of the constitution of Bangladesh on 23 April 1977 which was subsequently instituted as 5th amendment. He was the architect of installing Pakistani tradition in the state machinery of an independent Bangladesh by depriving her citizens from their fundamental rights. Furthermore, Ziaur Rahman ordered the administration to find out more enemy property through a circular dated 23 May 1977. This circular intensified harassment and oppression on Hindus.

 

Another army President General Ershad just followed his predecessor’s foot marks. On 31 July he ordered to withhold the official circular of 23 May 1977. On the contrary, he declared Islam as the state religion through the 8th amendment, which was used as a licence to persecute the minorities. Unfortunately no repercussion was evident among the so called progressive politicians considering political gains and losses.

 

Khaleda Zia’s Government added momentum to the process of oppression on the Hindus through a circular (4 November 1993) in the name of validation of the list of enemy property.

 

During the last phase of the Awami League Government this black law was abrogated. However, practical implementation of the abrogation is a long way to go.

 

Hindu Population

 

Variation of the Hindu population with time as presented in Table 1 raises many questions.

Table 1: Hindu population at different times

 

 

Year                                           Muslim (%)                                                     Hindu (%)

 

1951                                           76.9                                                                             23.1

 

1961                                           80.4                                                                             19.6

 

1974                                           85.4                                                                             14.6

 

1981                                           86.6                                                                             13.4

 

1991                                           87.4                                                                             12.6

 

 

During the last fifty years the average increase in population in the subcontinent is approximately three times. Taking this into account the present Hindu population in Bangladesh should be 40 million. Therefore, the statistics of population suggests that about 25 million Hindus are missing, which raises more questions than answers.

Representation of Minorities

 

The representation of the minorities in various sectors demonstrate how the minorities are treated in public representations, jobs and education.

Members of the Parliament

 

Table 2: Representation of Hindus in the parliament

 

            Year                                                    Total                                                    Hindu

 

1954                                                    309                                                      72

 

1973                                                    315                                                      12

 

1979                                                                                                                     8

 

1988                                                                                                                      4

 

1991                                                                                                                   11

 

1996                                                                                                                  9(?)

 

2001                                                                                                                    3

 

 

Based on the percentage of Hindu population the present number of the Hindu parliamentarians should be about 40.

 

Defence

 

The representation of Hindus in defence including army, border security and police services is appalling as apparent from the following data:

 

Army

Table 3: Representation of Hindus in army

 

Position                                                  Total                                                                Hindu (%)

Jawan                                                     80,000                                                 0.63

 

Second LT/LT                                         900                                                                0.33

 

Captain                                                    1,300                                                 0.62

 

Major                                                       1,000                                                 4.0

 

LtCol                                                         450                                                      1.7

 

Colonel                                                        70                                                     1.4

 

Brigadier                                                      65                                                  (?)

 

Maj General                                                 22                                                  4.5

 

 

Air Force and Navy

 

Essentially the Hindu representation in these two services is almost nil.

 

Border Security Personnel

 

The Hindu representation in Border Security Service is about 0.75% .

 

Police

Table 4: Representation of Hindus in police

 

Position                                                  Total                                                                Hindu (%)

 

Ordinary                                                 80,000                                                 2.5%

 

ASP/Asst Commissioner                         635                                                  6.3

 

DSP/Addl SP                                                   87                                                   2.3

 

SP/AIG                                                           123                                                    8.1

 

DIG                                                                      18                                                    5.5

 

Add/IG                                                                  6                                                       0

 

IG                                                                               1                                                       0

 

 

The representation of the minority is no way better in the public service.

 

Education and other sectors

 

There was only one Hindu Vice Chancellor in the history of Bangladesh. Ironically, he was removed unlawfully from his position because of the religious denomination. Apart from the Vice Chancellor, the government also appoints the Pro-Vice Chancellor of a university. Not a single Hindu was appointed in this position although there are many distinguished Hindu academics. Discrimination is prevalent in awarding scholarships and enrolment in medical institutions.

 

Millions of dollars are spent for the development of Madras’s and there is Islamic University. However, Sanskrit ‘Tols’ and ‘Pali Institutions’ only exist in name. Religious teachers of the minority community are discriminated in terms of salary and other benefits.

 

Bangladesh Government spends huge amount of money for the development of particular religious places whereas such development of Hindu and Buddhist temples and Christian churches is denied. In almost every government, semi-government, autonomous and academic institution there is mosque for prayer but the minorities are not fortunate to have their prayer house in such institutions.

 

In the radio and television there is regular recitation from a particular holy book while recitation from the minority religious book is quite casual. The festivals of a particular religion are observed at a national level whereas other religious festivals are observed unceremoniously.

 

Savar mausoleum is a symbol of respect for those who sacrificed their lives for the independence of Bangladesh. It is a hard fact that people of all religions took part in the country’s liberation war. Regrettably a mosque was built at the memorial denying the recognition of the sacrifices of the religious minorities.

 

In general, the currency contains the portraits or images of famous people or places. In the Bagladeshi currency there are images of various mosques but no religious places of the minorities receive any importance.

 

Conclusion

 

The aforementioned facts strongly suggest that there has been a slow motion ethnic cleansing in Bangladesh. The change in power on 01 October 2001 has accelerated the cleansing process.

 

The recent atrocities and repression on the minorities raise the question of their survival in their homeland. The extinction of religious minorities can only be prevented if the following steps are implemented:

 

  • Separate state from the religion
  • Reinstate secularism in the constitution of Bangladesh
  • Establish a truly independent judiciary
  • Abolish all sorts of discriminatory laws and policies.

 

The recent government sponsored atrocities toll the bells for exposing those elements who, by their acts of commission and omission, are pushing the nation into the dark dungeons from which there can be no retrieval.

 

 

Bibliography

 

Kankar Sinha (1997). Communalism and Minority Crisis. Dhaka: Anannya Publishers

 

Bhowmik N and Dhar B (1997). Anjali. Dhaka: Dhaka Mahanagar Puja Committee

 

Dutta C R (1993). The Disgrace

 

 

DR AMBEDKAR ON ISLAM

pakistan or partition of india

DR AMBEDKAR IS REGARDED AS MOST POWERFUL VOICE OF DALITS IN INDIA.
HIS WORDS ARE TAKEN AS TAKE IT FOR FOR GRANTED BY EVERY DALIT OF THE COUNTRY.TODAY DALIT LEADERS ARE MORE INTERESTED IN POLITICS AND FILLING THEIR HOMES INSTEAD OF REAL DEVELOPMENT OF DALITS. SO THEY PLAYS CASTE BASED POLITICS AND THE LATEST ADDITION IS OF DALIT-MUSLIM NEXUS.

HOW DALITS COULD FORGET WONDEROUS TREATMENT BY FOLLOWERS OF ISLAM AGAINST HINDUS AND BUDDHISTS IN PAST?

HOW BUDDHIST DALITS COULD FORGET WIPE OUT OF BUDDHISM FROM AFGANISTAN, PAKISTAN, BANGALDESH BY MUSLIMS?

HOW COULD DALITS FORGET THE WORDS OF DR AMBEDKAR ON WONDEROUS TRATEMENT BY FOLLOWERS OF ISLAM AND JOIN THE DALIT BUDDHIST NEXUX?

FOLLOWING ARE THE QUOTES BY DR AMBEDKAR ON ISLAM

All quotations are from pakistan or the partition of india by Dr B.R.Ambedkar, 3rd edition ,1946 BAWS Vol. 8,1990 , govt of Maharashtra publication; previous name of the book: Thoughts on Pakistan
Hindu is a Kafir-Not worthy of respect-

“To the muslims, a Hindu (and any non-muslim) is a Kafir. A Kafir (non-believer in islam) is not worthy of respect. He is a low born and without status. That is why a country ruled by the Kafir (Non-muslim) is a Dar-ul-Harb (i.e. the land of war) to a Muslim, which must be conquered, by any means for the muslims and turned into Dar-ul-Islam (i.e. land of muslims alone). Given this, no further evidence seems necessary to prove that the muslims will not obey a Hindu (or for that matter any non- muslim) government ”
Ref-page 301

Brotherhood of muslims for the muslims only-

“Islam is a close corporation and the distinction that it makes between muslims and non-muslims is a very real, very positive and very alienating distinction. The brotherhood of islam is not the universal brotherhood of man.It is the brotherhood of muslims for muslims only. There is fraternity but its benefit is confined to those within that corporation. For those who are outside the corporation, there is nothing but contempt and enmity.
The second defect of islam is that it is a system of social self-government, because the allegiance of a muslim does not rest on his domicile in the country which is his but on the faith to which he belongs. To the muslim ibi bene patria is unthinkable. Wherever- there is the rule of islam, there is his own country.
In other words, Islam can never allow a true muslim to adopt india as his motherland and regard a hindu as his kith and kin. that is probably the reason why maulana Mahomed Ali, a great indian but a true muslim, preferred to be buried in Jerusalem rather than in India.’
(Ref-page 330-331)

Difficult to see difference between a communal and nationalist muslim:

“It is difficult to see any real difference between the communal muslims who form the Muslim league and the nationalist muslims. It is extremely doubtful whether the nationalist musalmans have any real community of sentiment, aim and policy with the congress which mark them off from the muslim league. Indeed many Congressmen are alleged to hold the view that there is no different between the two and that the nationalist muslim inside the congress are only an outpost of the communal muslims”
ref- page 408

Muslim invaders planted the seeds of Islam in India.

“The Muslim invaders, no doubt, came to India singing a hymn of hate against the hindus, but, they did not merely sing their hymn of hate and go back burning a few temples on the way. That would have been a blessing. they were not content with so negative a result. They did a positive act, namely, to plant the seed of islam. The growth of this plant is remarkable. It is not a summer sapling. It is as great and as stronger as an oak. Its growth is thickest in northern india. The successive invasions have deposited their ‘silt’ served as watering exercises of devoted gardners, its growth is so thick in northern india that the remnants of hindu and buddhist culture are just shurbs. Even the sikh axe could not fell this oak”
Ref page- 65

Muslim’s strategy in politics:

“The third thing that is noticeable is teh adoption by the muslims of the gangster’s method in politics. The riots are a sufficient indication that gangsterism has become a settled part of their strategy in polices”
Ref page- 269

Murderers are religious martyrs

“But whether the number of prominent Hindus killed by fanatic muslims is large or small mattes little. What matters is the attitude of those who count towards these murderes. The murderers paid the penalty of law where law is enforced. The leading moslems, however , never condemned these criminals. On the contrary, they were hailed as religious martyrs and agitation was carried on for clemency being shown to them. As an illustration of this attitude, one may refer to Mr. Barkat Ali , a barrister of Lahore, who argued the appeal of Abdul Qayum. He went to the length of saying that qayum was not guilty of murder of Nathuramal because his act was justifiable by the law of the Koran. This attitude of the moslems is quite understandable. what is not understandable is the attitude of Mr. Gandhi ‘

Ref page 157

Hindus and muslims are two distinct spiritual species from aspritual point of view, Hindus and Musalmans are not merely two classes or two sects such as protestants and Catholics or Shaivas and Vaishnavas. They are two distinct species.

page 193

Islam and Castism

“Everybody infers that islam must be free from slavery and caste. Regarding slavery nothing needs to be said. It stands abolished now by law. But while it existed much of its support was derived from islam and islamic countries.”
But if slavery has gone, caste among musalmans has remained, as an illustration one may take the conditions prevalent among the Bengal Muslims. The superintendent of the census for 1901 for the province of Bengal records the following interesting facts regarding the muslims of bengal:-

The conventional division of the Mahomedans into four tribes- sheikh, saiad, moghul and pathan- has very little application to this province (bengal). the mahomedans themselves recognize two main social divisions, (1) ashraf or sharaf and (2) ajlaf. ashraf means noble and includes all undoubted descendents of foreigners and converts from high castes hindus. all other mahamedans including the occupational groups and all converts of lower ranks ,are known by the contemptuous-terms. ‘ajlab’, ‘wretches’ or ‘mean people’: they are also called kamina or itar, ‘base’ or rasil, a corruption of rizal, “worthless’. in some places a third class, called arzal or lowest of all is added. With them no other mohomedan would associate, and they are forbidden to enter the mosque to use the public burial ground.
“within these groups there are castes with social precedence of exactly the same nature as one finds among the Hindus.”

1. ashraf or better class mahomedans.
(1) saiads (2) sheikhs (3) pathans (4) moghul (5) malik and (6) mirza

2. ajlaf or lower class mahomedans.
(1) cultivating sheikhs, and other who were originally hindus but do not belong to any functional group, and have not gained admittance to the ashraf community e.g. pirali and thakrai
(2) darzi, jolaha, fakir and rangrez
(3) brahi, bhathiara, cluk, chrihar, dai, dhawa, dhunia, gaddi, kalal, kasai, kula, kunjara, laheri, mahifarosh, mallah, naliya, nikari.
(4) abdal, bako, bediya, bhat , chamba, dafali,dhobi, hallam, mucho, nagarchi, nat, panwari, madaria,tuntia.

3. arzal or degraded class.
bhanar, halalkhor, hijra, kasbi, lalbegi, mougtra, mehtar.
similar facts from other provinces of India could be gathered from their respective census reports and those who are curious may refer to them. But the facts for Bengal are enough to show that the mahamoedans observed not only caste but also untouchability
page- 228-230

Muslim canon oppose social reform

The existence of these evils among the muslims is distressing enough. But far more distressing is the fact that there is no organized movement of social reform among the musalmans of india on a scale sufficient to bring about their eradication. The hindus have their social evils. But there is relieving feature about them namely, that some of them are conscious of their existance and a few of them are actively agitating for their removal. Indeed, they oppose any change in their existing practices. it is noteworthy that the muslims opposed the child marriage bill brought in the central assembly in 1930, whereby the age for marriage of a girl was raised to 14 and for a boy to 18 on the ground that it was opposed to the muslim canon law. Not only did they oppose the bill at every stage but that when it became law they started a campaign of civil disobedience against that act

Ref page-233

Muslim politicians oppose secular categories: “muslim politicians do not recognize secular categories of life as the basis of their politics because to them it means the weakening of the community in it fight against the hindus. The poor muslims will not join the poor hindus to get justice from the rich. Muslim tenants will not join hindu tenants to prevent the tyranny of the landlord. Muslim labourers will not join hindu labourers in the fight of labour against the capitalist. Why? the answer is simple. The poor muslims sees that if he joins in the fight of the poor against the rich, he may be fighting against a rich muslim. The muslim laborer feels that if he joins in the onslaught of labor against capitalist he will be injuring a muslim mill-owner. He is conscious that any injury to a rich muslim, to a muslim landlord or to a muslim mill-owner, is a disservice to the muslim community, for it is thereby weakened in outs struggle against the hindu community ”

Ref page -236

India cannot be common motherland of the hindus and muslims as per muslim laws:

According to muslim canon law the world is divided into two camps, dar-ul-islam (abode of islam) and dar-ul-harb (adobe of war). a country is dar-ul-islam when it is ruled by muslims. a country is dar-ul-harb when muslims only reside in it but are not rulers of it. that being the canon law of the muslims, india cannot be the common motherland of the hindus and the musalmans. it can be the land of the musalmans- but it cannot be the land of the ‘hindus and musalmans living as equals’. Further, it can be the land of the musalmans only when it is governed by the muslims. the moment the land become subject to the authority of a non-muslim power, it ceases to be the land of the muslims. instead of being dar-ul-islam it becomes dar-ul-harb.
I must not be supposed that this view is only of academic interest. For it is capable of becoming an active force capable of influencing the conduct of the Muslims.

Ref- page 294

Jihad to transform dar-ul-harb india to dar-ul-islam

It might also be mentioned that hijrat is not the only way of escape to Muslims who find themselves in adar-ul-harb. there is another injunction of Muslim canon law called jihad (crusade) by which it becomes incumbent on a Muslim ruler to extend the rules of Islam until the whole world shall have been brought under its sway. The world, being divided into two camps, dar-ul-islam (adobe of islam) , dar-ul-harb (adobe of war), all countries come under one category or the other. technically , it is the duty of the Muslim ruler, who is capable of doing so, to transform dar-ul-harb into dar-ul-islam.

The fact remains that India, if not exclusively under Muslim rule, is a dar-ul-harb and the musalmans, according to the tenants of Islam are justified in proclaiming a jihad.
The fact remains that India, if not exclusively under Muslim rule, is a dar-ul-harb and the muslamns, according to the tenets of Islam are justified in proclaiming a jihad.
Not only can they proclaim jihad but they can call the aid of a foreign Muslim power to make jihad success, or if the foreign Muslim power intents to proclaim a jihad, help that power in making its Endeavour a success.

Ref-page 295-296

Why is hindu-muslim unity a failure?

“The real explanation of this failure of hindu-muslim unity lies in the failure to realize that what stands between the Hindus and Muslims is not a mere matter of difference , and that this antagonism is not to be attributed to material cause. it is formed by causes which take their origin in historical, religious, cultural and social antipathy, of which political antipathy is only a reflection.”

Ref- page 329

Hindu-Muslim unity is out of sight

nothing i could say can so well show the futility of any hope of hindu-muslim unity. Hindu -Muslim unity up to now was at least in sight although it was like a mirage. Today it is out of sight and also out of mind. Even Mr. Gandhi has given up what, he perhaps now realizes, is an impossible task.

Ref- page 187

Transfer of minorities is the only remedy for communal peace.

“The transfer of minorities is the only lasting remedy for communal peace, is beyond doubt. if that is so, there is no reason why the Hindus and the Muslims should keep on trading in safeguards which have proved so unsafe. if small countries, with limited resources like Greece, turkey and Bulgaria, were capable of such an undertaking there is no reason to suppose that what they did cannot be accomplished by Indians”

The problem of majority-minority will continue

“the musalmans are scattered all over Hindustan-though they are mostly congregated in towns and no ingenuity in the matter of redrawing of boundaries can make it homogenous. The only way to make Hindustan homogenous is to arrange for exchange of population. Until that is done, it must be admitted that even with the creation of Pakistan, the problem of majority vs. minority will remain in Hindustan as before and will continue to produce disharmony in the body politic of Hindustan ”

 

क्या क़ुरान खुदा की लिखी है …..

writer 1

क्या क़ुरान खुदा की लिखी है …..

 

-क़सम है कुरान दृढ़ की।। निश्चय तू भेजे हुओं से है।। उस पर मार्ग सीधे के।। उतारा है ग़ालिब दयावान ने।। मं0 5। सि0 23। सू0 36। आ0 2-5

समी0 -अब देखिये ! यह क़ुरान खुदा का बनाया होता तो वह इसकी सौगंध क्यों खाता ? यदि नबी खुदा का भेजा होता तो लेपालक बेटे की स्त्री पर मोहित क्यों होता ?  यह कथनमात्र है कि कुरान के मानने वाले सीधे मार्ग पर हैं। क्योंकि सीधा मार्ग वही होता है जिसमें सत्य मानना, सत्य बोलना, सत्य करना; पक्षपात

रहित न्याय धर्म का आचरण करना आदि हैं और इससे विपरीत का त्याग करना । सो न कुरान में न मुसलमानो में और न इनके खुदा में ऐसा स्वभाव है यदि सब पर प्रबल पैग़म्बर मुहम्मद साहेब होते तो सबसे अधिक विद्यावान् और शुभगुण युक्त  क्यों न होते ? इसलिये जैसी कूंजड़ी अपने बेरों को खड्डा नहीं बतलाती, वैसी यहबात भी है |

-और फूंका जावेगा बीच सूर के बस नागहां वह कबरों में से तर्फ़ मालिक अपने की दौड़ेंगे।। और गवाही देंगे पांव उनके साथ उस वस्तु के कमाते थे।। सिवाय इसके नहीं कि आज्ञा उसकी जब चाहे उत्पन्न करना किसी वस्तु का यह कि कहता वास्ते उसके कि हो जा, बस हो जाता है।। मं0 5। सि0 23। सू0 36।आ0 53। 65। 82

समी0 -अब सुनिये उटपटांग बातें! पग कभी गवाही दे सकते हैं ? खुदा के सिवाय उस समय कौन था जिसको आज्ञा दी ? किसने सुनी ? और कौन बन गया ? यदि न थी तो यह बात झूठी और जो थी तो वह बात जो सिवाय खुदा के कुछ चीज़ नहीं थी और ख़ुदा ने सब कुछ बना दिया वह झूठी |

-वही की हमने तर्फ़ मूसा की यह कि ले चल रात को बन्दों मेरे को,निश्चय तुम पीछा किये जाओगे।। बस भेजे लोग फि़राने ने बीच नगरों के जमा करने वाले।। और वह पुरुष कि जिसने पैदा किया मुझको, बस वही मार्ग दिखलाता है।। और वह जो खिलाता है मुझको पिलाता है मुझको।। और वह पुरुष की आशा रखता हूं मैं यह कि क्षमा करे वास्ते मेरे, अपराध मेरा दिन क़यामत के।। मं0 5। सि0 19। सू0 26। आ0 52। 53। 78। 79। 82

समी0 – जब खुदा ने मूसा की ओर वही भेजी पुनः दाऊद, ईसा और मुहम्मद साहेब की ओर किताब क्यों भेजी ? क्योंकि परमेश्वर की बात सदा एकसी और बेभूल होती है। और उसके पीछे कुरान तक पुस्तकों का भेजना पहिली पुस्तक को अपूर्ण भूल माना जायगा। यदि ये तीन पुस्तक सच्चे हैं तो यह कुरान झूठा होगा। चारों का जो कि परस्पर प्रायः विरोध रखते हैं, उनका सर्वथा सत्य होना नहीं होसकता। यदि खुदा ने रूह अर्थात् जीव पैदा किये हैं तो वे मर भी जायेंगे अर्थात् उनका कभी भाव कभी अभाव भी होगा ? जो परमेश्वर ही मनुष्यादि प्राणियों को खिलाता-पिलाता है तो किसी को रोग होना न चाहिये और सबको तुल्य भोजन देना चाहिये। पक्षपात से एक को उत्तम और दूसरे को निकृष्ट जैसा कि राजा और कंगले को श्रेष्ठ-निकृष्ट भोजन मिलता है, न होना चाहिये। जब परमेश्वर ही खिलाने-पिलाने और पथ्य कराने वाला है तो रोग ही न होना चाहिये। परन्तु मुसलमान आदि को भी रोग होते हैं। यदि खुदा ही रोग छुड़ाकर आराम करनेवाला है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग न रहना चाहिये। यदि रहता है तो खुदापूरा वैद्य नहीं है। यदि पूरा वैद्य है तो मुसलमानों के शरीर में रोग क्यों रहते हैं ? यदि वही मारता और जिलाता है तो उसी खुदा को पाप-पुण्य लगता होगा। यदि जन्म-जमान्तर के कर्मानुसार व्यवस्था करता है तो उसको कुछ भी अपराध नहीं। यदि वह पाप क्षमा और न्याय क़यामत की रात में करता है तो खुदा पाप बढ़ानेवाला होकर पापयुद्ध होगा। यदि क्षमा नहीं करता तो यह कुरान की बात झूठी होने से बच नहीं सकती है |

खुदा के भी दुश्मन ! यह कैसा खुदा …..

satanic verses

 खुदा के भी दुश्मन यह कैसा खुदा …..

-आनन्द का सन्देशा ईमानदारों को।। अल्लाहफरिश्तों पैगम्बरों जिबरइर्ल और मीकाईल का जो शत्रु है अल्लाह भी ऐसे काफि़रों का शत्रु है | मं0 1सि01।सू0 2। आ0 97 -98

समी0 -जब मुसलमान कहते हैं कि ‘ख़ुदा लाशरीक’ है फिर यह फौज की फौज ‘शरीक’ कहासे कर दी ? क्या जो औरों का शत्रु वह ख़ुदा का भी शत्रु है ? यदि ऐसा है तो ठीक नहीं क्योंकि ईश्वर किसी का शत्रु नहीं हो सकता |

-और कहो कि क्षमा मांगते हैं हम क्षमा करंगे तुम्हारे पाप और अधिकभलाई करने वालों के।। मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 58

समी0 -भला यह ख़ुदा का उपदेश सब को पापी बनाने वाला है वा नहीं ? क्योंकि जब पाप क्षमा होने का आश्रय मनुष्यों को मिलता है तब पापों से कोई भी नहीं डरता, इसलिये ऐसा कहने वाला ख़ुदा और यह ख़ुदा का बनाया हुआ पुस्तक नहीं हो सकता क्योंकि वह न्यायकारी है, अन्याय कभी नहीं करता और पाप क्षमा करने में अन्यायकारी हो जाता है किन्तु यथापराध दण्ड ही देने में न्यायकारी होसकता है |

-जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिये पानी मांगा हमने कहा कि अपना असा दण्ड पत्थर पर मार, उसमें से बारह चश्मे बह निकले।। मं0 1। सि0 1। सू02। आ0 60

समी0- अब देखिये! इन असम्भव बातों के तुल्य दूसरा कोई कहेगा ? एक पत्थर की शिला में डंडा मारने से बारह झरनों का निकलना सर्वथा असम्भव है | हां, उस पत्थर को भीतर से पोला कर उसमें पानी भर बारह छिद्र करने से सम्भव है अन्यथा नहीं |

-और अल्लाह ख़ास करता है जिसको चाहता है साथ दया अपनी के।मं0 1। सि0 1। सू0 2। आ0 105

समी0 -क्या जो मुख्य और दया करने के योग्य न हो उसको भी प्रधान बनाता और उस पर दया करता है ? जो ऐसा है तो खुदा बड़ा गड़बडि़या है क्योंकि फिर अच्छा काम कौन करेगा ? और बुरे कर्म को कौन छोड़ेगा ? क्योंकि खुदा की प्रसन्नता पर निर्भर करते हैं, कर्म फल पर नहीं,  इससे सबको अनास्था होकर कर्मोच्छेद प्रसंग होगा |

-ऐसा न हो कि काफि़र लोग इर्ष्या करके तुमको ईमान से फेर देवें क्योंकि उनमें से ईमान वालों के बहुत से दोस्त हैं।। मं0 1। सि0 1ं सू0 2ं आ0 10

समी0 -अब देखिये खुदा ही उनको चिताता है कि तुम्हारे ईमान को काफिऱ लोग न डिगा दवे । क्या वह सर्वज्ञ नहीं है ऐसी बातें खुदा की नहीं हो सकती हैं |