कुरआन की शिक्षाएं

back to vedas

कुरआन की शिक्षाएं

यह लेख किसी की धार्मिक भावना को आहत करने के लिए नहीं लिखा गया है केवल सत्य का प्रकाश करने के लिये लिखा गया है | मुस्लिम मित्रो का दावा है की कुरआन ने इन्सान को हर वो शिक्षा दी जो इन्सान के लिए जरुरी है | चाहे वो ज्ञान हो या विज्ञानं हर चीज की तालीम कुरआन ने दी है | इस लेख के माध्यम से हम कुरआन की शिक्षाओं प्रकाश डालेंगे |

शिक्षा :-

१.)  माता पिता की सेवा की शिक्षा

किसी  मनुष्य के जीवन में सबसे जरुरी चीज है उसकी शिक्षा जो उसे उसके माता पिता या फिर धार्मिक पुस्तकों से मिलती है | अच्छे शिक्षा ही मानव को मानव बनाते है वरना मनुष्य और जानवर में कोई ज्यादा अंतर नहीं है |

कुरान सूरह तौबा आयत २३ – ऐ ईमान वालो अपने बाप दादा को और अपने भाइयो को अपना मित्र न बनाओ अगर वे ईमान न लाये और कुफ्र को पसंद करे जो मित्र बनाएगा ऐसे वो अत्याचारी होगा |

अगली ही आयत में कुरान कहती है की कह दे अगर तुम्हे तुम्हारे बाप दादा भाई अल्लाह , अल्लाह के रसूल और उसकी राह में जिहाद से प्यारे है तो इन्तजार करो यहाँ तक की अल्लाह का हुकुम आ जाये |

यदि किसी व्यक्ति को जिहाद करते समय माता पिता या भाइयो पर रहम आ जाए और उनको वह व्यक्ति न मारे और उनको मित्र बनाने ले तो अल्लाह ने तुरंत आयत उतारी की ईमान न लाने वाले माता,पिता या भाइयो से मित्रता न रख अर्थात उन पर दया न कर और दूसरी आयत में कहा की अगर तुझे माता पिता भाई आदि अल्लाह के मार्ग में जिहाद से प्यारे है तो वो व्यक्ति अत्याचारी है और अल्लाह ऐसे नाफरमान लोगो को हिदायत नहीं देता |

जिन माता पिता ने कष्ट सह कर पाल पोश कर बड़ा किया हो उनसे केवल इस बात पर रिश्ता तोड़ लेना की वे ईमान नहीं लाते क्या यह अच्छी शिक्षा है ? यदि माँ बाप बुरा काम करने को कहते तब उनका कहा न मानना तो सही है पर केवल माता पिता भाइयो के ईमान ना लाने से उनसे रिश्ता ही खत्म कर लेना नहीं बल्कि उनको जान से मार देना कहाँ की मानवता है ?

२.) ईमानदारी की शिक्षा

मुहम्मद साहब के जीवन परिचय से स्पष्ट है की मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कोई भी कार्य नहीं करते थे | अधिकतर आज्ञा कुरआन में ही मोजूद है | ऐसी ही एक आज्ञा है

सूरह अनफ़ाल आयत १ – प्रश्न करते है तुझ से लूटो के बारे में तो कह दे लूटे अल्लाह और रसूल के लिए है |

सूरह अनफ़ाल आयत ६९ – उस में से खाओ जो तुम्हे लूट में हलाल मिला |

जहाँ तक की लूट की बात है मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कुछ नहीं करते थे भले ही कुरान में अल्लाह ने व्यस्तता के कारण लूट की आज्ञा न दी हो पर यह आज्ञा अल्लाह ही की थी जी की इन दो आयतों से स्पष्ट है |

यहाँ एक और जानकारी का विषय है की इन लूट में अल्लाह का बराबर का हिस्सा है क्योंकि इसी सूरह की आयत ९ के अनुसार अल्लाह ने इस लूट में मदद के लिए लगातार आने वाले एक हजार फरिश्तो की फोज भेजी थी | अर्थात अल्लाह भी कोई कार्य बिना कमिशन के नहीं करता |

पाठक गण यह भी अल्लाह की शिक्षा है लूटपाट करने की |

३)  भाईचारे की शिक्षा

जैसा की कुरआन से विदित है अल्लाह भाईचारे को बहुत पसंद करते थे | इसी भाईचारे के लिए अल्लाह ने कुरआन में जगह जगह मोमिनो अर्थात मुसलमानों को सन्देश भी दिए है | आइये उन संदेशो पर भी एक नजर डाल लेते है |

सूरह इमरान आयत २८ – मुसलमान को उचित है की वे मुसलमान को छोड़कर किसी काफिर को मित्र न बनाये और जो ऐसा करे उसका अल्लाह से कोई रिश्ता नहीं |

पाठको इस से बढ़कर भाईचारे की शिक्षा क्या हो सकती है ?

४) अहिंसा परमोधर्म की शिक्षा

कुरआन को पढने से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम था | लेकिन अल्लाह ने यह अहिंसा का सन्देश केवल शांतिप्रिय कौम को ही दिया | जिसकी शांतिप्रियता से आज पूरा विश्व त्रस्त है | कुरआन की अहिंसावादी सोच के कुछ नमूने देखिये –

सूरह बकर आयत १९१ – उन्हें मार डालो जहाँ पाओ और उन्हें निकाल दो जहां से उन्होंने तुम्हे निकाला |

कुछ मुसलमान मित्र यहाँ कहेंगे की अल्लाह ने उन लोगो को मारने को कहा है जिन्होंने खुद लड़ाई की और ईमान वालो को घर से निकाला | लेकिन अगली आयत से सत्य का पता चलता है कि उन्हें मारने का उद्देश्य क्या है |

सूरह बकर आयत १९३ – तुम उन से लड़ो की कुफ्र न रहे और दीन अल्लाह का हो जाए अगर वह बाज आ जाए तो उस पर जयादती न करो |

मित्रो इस आयत से स्पष्ट है की लड़ने का उद्देश्य क्या है | लड़ने का उद्देश्य केवल दीन को फैलाना है |

ऐसी ही एक अहिंसावादी सोच को दर्शाती शिक्षा आपके समक्ष है –

कुरान सूरह तौबा आयत ५ – फिर जब प्रतिष्ठित महीने बीत जाए काफ़िरो को जहां पाओ क़त्ल करो , उन्हें पकड़ लो उन्हें घेर लो , फिर अगर वो तौबा कर ले और नमाज कायम कर ले तथा जकात अदा करे तो उनका रास्ता छोड़ दो |

इस आयत से भी स्पष्ट है क़त्ल करने का कारण क्या है | केवल मुसलमान न होना और यदि वो मुसलमान हो जाए तो उसे छोड़ दो | इन आयतों से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम है |

५.) सदाचार की शिक्षा

मुहम्मद साहब के जीवन से पता चलता है की वे बहुत ही सदाचारी व्यक्तित्व वाले थे और हो भी क्यों न ? कुरआन ने जो उनको शिक्षा दी थी | मुहम्मद साहब ने जो भी सदाचार के कार्य किये उन सबकी प्रेरणा अल्लाह ने ही उन्हें दी थी | सदाचारी की प्रेरणा देती कुछ आयते निम्नलिखित है |

सुरह निसा आयत २४ – विवाहित स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वर्जित है सिवाय लोंडियो के जो तुम्हारी है, इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनसे दाम्पत्य जीवन अर्थात सम्भोग का मजा लो और बदले में उन्हें निश्चित की हुई रकम अदा कर दो |

इस आयत से कुरआन की सदाचार की शिक्षा साफ़ साफ़ झलकती है | लेकिन कुछ और भी आयते है जो सदाचार को प्रोत्साहन देती है | इसी प्रोत्साहन का नतीजा था की मुहम्मद साहब ने ९ वर्ष की अबोध बालिका और पुत्र वधु से भी सम्बन्ध बनाने में कोई हिचकिचाहट महसूस न हुई |

कुरान सूरह अजहाब आयत ३७ -फिर जब जैद ने जैनब से अपनी आवश्यकता पूरी कर ली तो हम ने उसे आप को निकाह में दे दिया ताकि मोमिनो को कोई तंगी न रहे अपने गोद लिए की बीवियों से निकाह करने में |

यदि कोई व्यक्ति किसी औरत को माँ मान ले और बाद में उसका दिल उसके ऊपर आ जाये तो अल्लाह ने इसके लिए भी एक शिक्षा दी है आयत के जरिये | देखिये

सूरह अह्जाब आयत ४- तुम्हारी उन बीवियों को जिन्हें तुम माँ कह बैठते हो नहीं बनाया तुम्हारी माँ |

सूरह अह्जाब आयत ५०- हम ने तुम्हारे लिए हलाल कर दी लूट में मिली बीवियां, तुम्हारे चाचाओ की बेटिया , तुम्हारे फुफियो की बेटियाँ, तुम्हारे मामुओ की बेटियाँ और तुम्हारे खालाओ की बेटिया |और मोमिन औरत जो अपने आप को नबी के हवाले कर दे |

पाठको के लिए ये आयते काफी होगी कुरआन की सदाचारी की शिक्षा दिखाने के लिए |

६.) एकेश्वरवाद की शिक्षा

जैसा की कुरआन के पढने से पता चलता है की अल्लाह को सबसे ज्यादा नफरत उस आदमी से है जो एक अल्लाह को नहीं मानता | वैसे अल्लाह भी अपनी जगह बिलकुल सही है उस अकेले ईश्वर की उपासना में कोई दूसरा शामिल नहीं होना चाहिए चाहे वो कोई भी हो | कुरआन ने अनेक जगह पर एकेश्वरवाद की शिक्षाए दी है | जैसे –

सूरह इमरान आयत १७४- अल्लाह व उसके रसूलो पर ईमान लाओ |

सूरह बकर आयत ३४- सजदा करो आदम को |

हमारे मुसलमान भाई नमस्ते नहीं बोलते क्योंकि उनके अनुसार नमस्ते कहने से शिर्क हो जाता है जो की एकेश्वरवाद के खिलाफ है | लेकिन शायद भूल जाते है अल्लाह के सिवा किसी दुसरे पर ईमान लाना और अल्लाह को छोड़ किसी दुसरे को सिजदा करवाना भी शिर्क ही है | सबसे बड़ी एकेश्वरवाद की शिक्षा तो कलमे में ही है की नमाज में भी मुहम्मद साहब का नाम बोलना जरुरी है जैसे ला इलल्लाह मुहम्मद रसुल्लुलाह | अब बिना कलमा बोले नमाज अर्थात उपासना नहीं होती और बिना रसूल का नाम लिया कलमा पूरा नहीं होता | यह है अल्लाह की एकेश्वरवाद की शिक्षा |

७.) रहमदिली की शिक्षा

कुरआन में शायद ३०० से ज्यादा बार अल्लाह को रहम करने वाला बताया गया है | रहम का अर्थ है दया | कुरआन ने भी कई बार इंसान को दयालु होने की शिक्षा दी है | कुछ आयते कुरआन की इस दयालुता को दर्शाती है |

कुरान सूरह हज्ज आयत २८ – और जानवरों को कुर्बान करते समय अल्लाह का नाम ले |

कुरान सूरह हज्ज आयत ३६ – कुर्बानी के ऊंट हमने तुम्हारे लिए मुकर्रर किये और जब कुर्बान हो जाए तो खुद भी खाओ और खिलाओ |

कुरआन किस रहमदिली की शिक्षा देता है वो इन आयतों में स्पष्ट है |

८.) पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा

मुस्लिम मित्रो का मानना है की अल्लाह ने मुहम्मद साहब की शादी ज्यादा उम्र और कम उम्र की ओरतो से इसलिए कराई थी ताकि दुनियो वालो को एक मिशाल पेश की जा सके कि जब ज्यादा उम्र की पत्नी हो या कम उम्र की पत्नी हो तो कैसे से प्रेम से रहा जाए | मुहम्मद साहब ने स्वंय न्यूनतम नौ शादियाँ की और दुसरे ईमान वालो को एक से अधिक शादी करने की आज्ञा भी कठोर शर्तो पर दी क्योंकि मुहम्मद साहब को लगता था की एक से अधिक शादी करके वे अपनी पत्नियों को प्रेम नहीं दे पायेंगे | परन्तु जब स्वंय मुहम्मद साहब ने ऐसा नहीं किया तो कुरआन ने उन्हें इस प्रेम और समानता के व्यवहार से बी छुट दे दी |

कुरआन सूरह अजहाब आयत ५१ – आप ( स ) जिसको चाहे दूर रक्खे और जिसको चाहे पास रक्खे और जिसको आपने दूर कर दिया उसे फिर पास रक्खे तो कोई तंगी नहीं |

इस आयत का आशय स्पष्ट है नबी जो चाहे वो पत्नी के साथ करे जब जी चाहे उसे पास रख लो और जब दिल न करे उसे दूर कर दो | यह है कुरआन की पति को पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा |

सूरह बकर आयत २२३ – तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेती है जैसे चाहो वैसे अपने खेत में जाओ |

वाकई कुरआन पत्नी के प्रति प्रेम की शिक्षा देती है | ये सब कुरआन की मुलभुत शिक्षाये है जिनका मुस्लिम मित्र दिलो जान से अनुसरण करते है |

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *