कुरान – ईश्वरीय वाणी है ?

यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते है : Quran the word of God?

इसके लेखक Ryunen Raj  जी है |

 

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कुरआन, मतलब सस्वर पाठ ,इस्लाम की पवित्र पुस्तक है | मुस्लिम परम्परा के अनुसार यह पुस्तक अलग अलग आकाशवाणी में मुहम्मद साहब के जीवन के एक बड़े हिस्से में मक्का और मदीना में अल्लाह द्वारा उतारी गई थी | कुरान को शायद एक ग्रन्थ में संकलित तीसरे खलीफा , उथमान , जिसने (651-52 ) में एक समिति नियुक्त करके किया था | कुरान की आंतरिक संगठन कुछ हद तक तदर्थ है | इस आकशवाणी में आयते है जो 114 सूरह में बांटी गई है |

यह सब वो है जो कुरान अपने हिंदी भाष्य में कहती है , आइये देखते है कुरान के अंदर कितने शब्द अल्लाह की तरफ से है | क्योंकि मुस्लिमो का दावा है की कुरान के दो आवरणों के बिच जो भी शब्द है वे सब अल्लाह की तरफ से है अर्थात अल्लाह की वाणी है | यह सवाल किसी भी संदेह से परे है और कुरान स्वंय भी साबित करती है की कुछ आयते मुहम्मद की तरफ से है | यदि कुरान के अंदर एक भी अक्षर मुहम्मद की तरफ से है या अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ से है | इसका मतलब इसको पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए जैसे से एक आदमी द्वारा बदला गया है |

कुरान अपने आप यह दावा करती है की यह अल्लाह की पवित्र वाणी है , और इसमें किसी तरह की विसंगतिया और त्रुटी नहीं है | अब यह मेरी गलती नहीं है यदि मुझे इसमें सिर्फ एक भी त्रुटी , विरोधाभास या मिथ्या विज्ञानं  मिले  और इसे खारिज कर दूँ , क्योंकि कुरान मुझे ऐसा करने की आज्ञा देती है | आयत को पढ़िए

( कुरान 4/82

क्या वे कुरान में सोच विचार नहीं करते ? यदि यह अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की तरफ से होता तो निश्चय ही बहुत सी बेमेल बाते पाते | )

मुस्लिमो के अनुसार कुरान अल्लाह के अंदर अल्लाह की वाणी समाहित है | कुरान को ऐसे पढ़ा जाए जैसे अल्लाह खुद इन शब्दों को बोल रहा है जो की इसमें है | इस बिंदु पर जोर देना बहुत जरुरी है क्योंकि यदि कुरान अल्लाह की वाणी है तो इसके अंदर कोई भी इंसानी शब्द और त्रुटी नहीं होनी चाहिए और यह हर समय के सत्य होनी चाहिए |

मगर , ऐसी बात नहीं है | प्रथम , हम देखेंगे की कुरान की कुछ आयते स्वंय दर्शाती है की इसमें कुछ आयते मुहम्मद के द्वारा ही बोली गई है , अल्लाह के द्वारा नहीं |

( कुरान 1/1-7

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील ,अत्यंत दयावान है | प्रशंसा अल्लाह के लिए ही है जो सारे संसार का रब है | बड़ा कृपाशील और अत्यंत दयावान है | बदला दिए जाने के दिन का मालिक है | हम तेरी ही बंदगी करते है और तुझी से मदद मांगते है | हमे सीधे मार्ग पर चला | उन लोगो के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए है , जो ना प्रकोप के भागीदार हुए और न ही पथ भ्रष्ट के | )

किसी को समझने के लिए एक रॉकेट वैज्ञानिक होना जरूरी नहीं है कि ये शब्द साफ़ साफ़ अल्लाह को सम्बोधित कर रहे है प्रार्थना के रूप में | यह शब्द मुहम्मद के है जो प्रार्थना में कहे गये है अल्लाह की सहायता और मार्गदर्शन मांगने के लिए | कुछ मुस्लिम संकलनकर्ता सुविधाजनक ढंग से इंग्लिश या हिंदी भाष्य में इस कठिनाई को दूर करने के लिए सूरह के आरम्भ आदेशसूचक “ कहो “ जोड़ देते है | कहो शब्द का यह आदेशसूचक रूप कुरान में कम से कम ३५० बार आया है और यह स्पष्ट है की यह शब्द अनगिनत एक जैसी शर्मनाक कठिनाइयों को दूर करने के लिए बाद में जोड़ा गया है | इस प्रकार , हमारे पास सीधा सबुत है की कुरान मुहम्मद के शब्दों से आरम्भ होता है |

स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने अपनी पुस्तक “ सत्यार्थ प्रकाश “ में कुरान की पहली आयत के ऊपर यही टिप्पणी की है | उन्होंने कहा है –

( मुसलमान लोग ऐसा कहते है की यह कुरान खुदा का कहा है परन्तु इस वचन से विदित होता है की इसके बनाने वाला कोई दूसरा है क्योंकि जो परमेश्वर का बनाया होता तो “ आरम्भ साथ नाम अल्लाह के “ ऐसा न कहता किन्तु “ आरम्भ वास्ते उपदेश मनुष्यों के “ ऐसा कहता | यदि मनुष्यों को शिक्षा करता है कि तुम ऐसा कहो तो भी ठीक नहीं | क्योंकि इस से पाप का आरम्भ भी खुदा के नाम से होकर उसका नाम भी दूषित हो जाएगा | )

इसलिए यह कहा जा सकता है की कम से कम पहला सूरह तो बिना किसी संदेह के अल्लाह की तरफ से नहीं है परन्तु या तो मुहम्मद की तरफ से या फिर बाद के अन्य संकलनकर्ता की तरफ से है | कुरान में कई जगह हमे सबूत देते है की यह अल्लाह की वाणी नहीं , बल्कि किसी और की है | जैसे की कुरान 6/104 पढ़िए , जो कहती है –

( तुम्हारे रब की तरफ से निशानियाँ आ चुकी | तो जिसने देख लिया सो अपने वास्ते , और जो अँधा रहा तो ( उसका बवाल ) उसकी जान पर , और मै तुम पर निगहबान नहीं | )

इस आयत की पंक्ति “ मै तुम पर निगहबान नहीं “ का वक्ता स्पष्ट रूप से मुहम्मद है | वास्तव में एन जे दाउद ने अपने भाष्य में पादटिप्पणी अर्थात फुटनोट जोड़ा है कि “ मै “ यहाँ पर मुहम्मद का उल्लेख करता है | इसके अलावा अल जलालिन इस आयत के स्पष्टीकरण में लिखती है

( और मै रखवाली करने वाला नहीं हूँ , एक चौकीदार ,तुम्हारे ऊपर , तुम्हारे कर्मो के लिए | परन्तु मै एक सावधान करने वाला हूँ | )

विषय कांच की तरह साफ़ है की मुहम्मद अपने आपको सावधान करने वाला और संदेशवाहक मानता था | इस लिए यह आयत मुहम्मद ने अपने ऊपर उतारी है मक्का के लोगो को अल्लाह के क्रोध से डराने के लिए | ताकि लोग डर से इस्लाम में शामिल हो सके | यहाँ पर बहुत सी ऐसी आयते है जिनमे मुहम्मद प्रथम व्यक्ति के रूप में बोल रहा है | आइये देखते है –

( कुरान 27/91

मुझे तो बस यही आदेश मिला है की इस नगर ( मक्का ) के रब की बंदगी करू , जिसने इसे आदरणीय ठहराया और उसी की हर चीज है | और मुझे आदेश मिला है की मै आज्ञाकारी बन कर रहूँ | )

फिर से , बोलने वाला स्पष्ट रूप से मुहम्मद है जो मक्का के निर्दोष लोगो की हत्या का औचित्य सिद्ध करने की कोशिश कर रहा जो की अल्लाह के संस्करण मुहम्मद का पालन करने के लिए तैयार नहीं थे | दाउद और पिकथल दोनों ने वाक्य के आरम्भ में “ कहो “ शब्द जोड़ा है जिसका असली अरबी संस्करण में अभाव है |

यदि हम शब्द से शब्द भाष्य शब्दकोश करयोग करे , यह और भी स्पष्ट हो जाता है की यह आयत अल्लाह की बजाय , मुहम्मद की अपनी बनाई हुई है | अरबी में असली आयत कहती है –

इननमा = केवल

उमिर’तु = मुझे आज्ञा है

अन = कि

अ’बुदा = मै पुजू

रब्बा = स्वामी

हधिहिल बल्दाती =यह नगर

मेरी सोची कल्पना से भी , मै नहीं समझ सकता अल्लाह अपने आप को मालिक की पूजा की आज्ञा क्यों दे रहा है | नहीं तो यह आयत मुहम्मद या किसी और के द्वारा है | कुरान में दूसरी जगह पर , संसार का बनाने वाला , इस्लाम का स्वामी , अपनी ही बनाई सृष्टि की कसम खाना आरम्भ कर देता है | हमने अक्सर देखा है कि इन्सान उन चीजो की कसमे खाता है जो उसके लिए श्रेष्ठ होती है जैसे माता , पिता , भगवान , पवित्र किताबे इत्यादि | हमने मुश्किल से ऐसे व्यक्ति मिले होंगे जो अपनी मोटरसाइकिल , कार या बटुओ की कसम खाते हो | परन्तु कोई बात नहीं अल्लाह करता है यदि उसने यह ( कुरान 81/15 ) आयत अपने आप उतारी है | आयत कहती है –

( कुरान 81/15 -अतः ! मै वास्तव में गवाह बुलाता हूँ दूर जाने वाले ग्रहों को )

फारुख खान के अनुवाद में लिखा है – अतः ! मई कसम खाता हूँ दूर जाने वाले ( ग्रहों ) की

क्या हमे इस आयत के विषय में ओर संदेह है ? जाहिर है यह मुहम्मद है जो ग्रहों और तारो की कसम खाता है | हमे ऐसी ही आयते सूरह 84/16-19 में भी मिली जो कहती है –

( कुरान 84/16-19

सो मै कसम खाता हूँ शाम की सुर्खी की ,और रात की जो सिमट आती है , और चाँद की जब मुकम्मल हो जाए )

एक बार फिर यह मुहम्मद है , अल्लाह नहीं | वह अपने बुतपरस्त विरासत को छिपाने में असमर्थ है | वह फिर से सूरज और चंद के नाम पर कसमे खाता है ये दोनों इस्लाम से पूर्व अरब में पवित्र देवता माने जाते थे | हमे पर्याप्त सबूत मिले गये है यह साबित करने के लिए कि कुरान में मुहम्मद द्वारा कहे शब्द भी है | परन्तु यह ही सब नहीं है , हम मुहम्मद की कई आयतों के साथ छोड़ रहे है | उदाहरण के लिए पढ़िए कुरान 6/114

( कुरान 6/114

अब क्या मै अल्लाह के अलावा कोई ओर निर्णायक ढूढू ? हालांकि वही है जिसने तुम्हारी और किताब अवतरित की है )

कोई भी समझदार व्यक्ति समझ सकता है कि ये शब्द अल्लाह द्वारा नहीं बोले गये है किन्तु मुहम्मद ने स्वंय बोले है | युसूफ अली ने अपने भाष्य में इस वाक्य के आरम्भ में “ कहो “ शब्द जोड़ा है जो की मूल अरबी में नहीं है और उसने ऐसा बिना किसी टिप्पणी और फुटनोट अर्थात पदटीका के बिना किया है | अरबी आयत “ अफाघयरा-ल-लाही “ से  आरम्भ होती है जिसका मतलब है “ फिर यह अल्लाह से अलग है “ | कोई भी मुस्लिम जिसने कुरान पढ़ा हो इस तथ्य की जांच कर सकता है |

अब , वापस आते है मुस्लिमो के दावे पर कि किताब कुरान अल्लाह के शब्दशः शब्द है और इसमें मानवकृत आयते या अक्षर नहीं है | लेकिन मेरे ज्ञान के अनुसार और कुरान के अध्ययन से , मैंने आधा दर्जन आयते मुहम्मद कृत दिखाई है | या फिर कुरान में बाद में जोड़ी गई है | अब क्या वे कुरान को अल्लाह की वाणी के रूप में अस्वीकार कर देंगे या अपने अंध विश्वास पर अडिग रहेंगे उन निर्भर करता है ?

दिलचस्प बात यह है कि मैंने अभी तक त्रुटियों और मिथ्या विज्ञान हिस्से को छुआ तक नहीं है , जो की अल्लाह ने हमें कुरान में ढूढने की चुनोती दी है | जो की इस लेख के अगले भाग में किया जाएगा |

 

 

2 thoughts on “कुरान – ईश्वरीय वाणी है ?”

    1. Kuraan ka allah paigamber bhejne ki bat karta jai

      Lagta hai swyam samvaad karne men asmarth hai isliye aise dear kiye jate rahe hein

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