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मुल्ला सतीश चंद गुप्ता को जवाब

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मुल्ला सतीश चंद गुप्ता को जवाब

लेखक – अनुज आर्य 

यह लेख सतीश चंद गुप्ता के ब्लॉग(halal-meet.blogspot.com) ‘ यह कैसा ब्रह्मचर्य था ‘ के प्रतिउत्तर में लिखा गया है | पाठको से अनुरोध है की पक्षपात को छोड़कर सत्य असत्य का निर्णय करे |

सतीश चंद गुप्ता यह नाम भले ही वैदिक या हिन्दू धर्म से सम्बन्ध रखने वाला लगता है पर यह व्यक्ति हिन्दू या वैदिक नहीं है अपितु एक कट्टर इस्लामी है जिसकी सोच कुरान से बाहर नहीं जाती | सतीश चंद गुप्ता जी के विषय में मै यहाँ ज्यादा न लिखते हुए मुद्दे पर ही लिखुगा | इस ब्लॉग में सतीश चंद जी ने स्वामी दयानंद सरस्वती के ब्रह्मचर्य पर प्रश्न उठाए है | अब पाठको देखिये जिस व्यक्ति का मजहब बलात्कार, अय्याशी और वेश्यावृति पर आधरित हो वो व्यक्ति किसी के ब्रह्मचर्यं पर प्रश्न उठाये बड़ा हास्यपद प्रतीत होता है और प्रश्न भी उस व्यक्ति पर उठाये जिसने मरणोपरांत तक स्त्री के साथ केवल माँ और बहन का रिश्ता रखा हो तो और भी ज्यादा हास्यपद प्रतीत होता है | जिस व्यक्ति के ब्रह्मचर्य के किस्से पुरे संसार में मशहूर थे उस व्यक्ति के ब्रह्मचर्यं के उपर सतीश चंद गुप्ता जी ने प्रश्न उठाये है | आइये देखते है की इनके ये सब प्रश्न कितने सही है |

सतीश चंद गुप्ता :-

एक ब्रह्मचारी और संयासी के जीवन का शास्त्रीय आदर्श है कि उसे काम, क्रोध, अहंकार, मोह, भय, शोक, ईष्र्या, निंदा, कपट, कुटिलता, अश्लीलता आदि अवगुणों से सदैव दूर रहना चाहिए। मगर ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में अहंकार, निंदा, अश्लीलता के अलावा कुछ और दिखाई नहीं पड़ता। स्वामी दयानंद ने अपने महान ग्रंथ में जैन तीर्थंकर स्वामी महावीर, महात्मा गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, हज़रत मुहम्मद, गुरू नानक सिंह आदि किसी भी महापुरूष और उनसे संबंधित संप्रदाय को नहीं बख्शा, जिसकी निंदा और अमर्यादित आलोचना न की हो। स्वामी जी ने स्वयं के अलावा किसी अन्य को विद्वान और पुण्यात्मा नहीं समझा।

आर्य सिद्धान्ती :-गुप्ता जी यह बात तो सत्य है की एक ब्रह्मचारी और संयासी के जीवन का शास्त्रीय आदर्श है कि उसे काम, क्रोध, अहंकार, मोह, भय, शोक, ईष्र्या, निंदा, कपट, कुटिलता, अश्लीलता आदि अवगुणों से सदैव दूर रहना चाहिए। और यही सब महर्षि दयानंद जी के जीवन से पता चलता है | सत्यार्थ प्रकाश में लेश मात्र भी अहंकार , निंदा और अश्लीलता दिखाई नहीं देती | सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कहना यदि निंदा कहलाता है तो सत्य और असत्य शब्द का कोई प्रयोजन नहीं रह जाता , गुप्ता जी मै आपसे प्रश्न करता हूँ की चोर को क्या कहेंगे ? चोर ? अब यदि कोई आप जैसा व्यक्ति चोर को चोर कहना चोर की निंदा समझता है तो उसमे लेखक की क्या गलती ? मजहब के लिए लड़ने की शिक्षा देने वाले को क्या कहेंगे ? पौती या बेटी की उम्र की लड़की से विवाह करने वाले को क्या कहेंगे ? लूट की आज्ञा देने वाले को क्या कहेंगे ? स्वामी दयानंद जी ने सत्यार्थ प्रकाश में एक जगह नहीं बल्कि कई बार लिखा है की मेरा उद्देश्य किसी की निन्दा या आलोचना करना नहीं है अपितु सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कहना है जो की स्वामी दयानंद जी ने भली भाँती किया , उन्होंने स्वंय से कोई बात किसी के लिए नहीं लिखी बल्कि जो जो बाते उन सम्प्रदायों में थी उनको लिखा | स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में स्पष्ट लिखा है की जो जो सब मतो में सत्य-सत्य बाते है , वे वे सब अविरुद्ध होने से उनका स्वीकार करके जो जो मत मतान्तरो में मिथ्या बाते है , उन उन का खंडन किया है | देखिये गुप्ता जी इस से ऊँचे आदर्श किसी के हो सकते है ? जो व्यक्ति सब मतों में फैली सत्य बातो को स्वीकार करता हो उस पर आपने ऐसे आरोप लगाये ये आपको शोभा नहीं देता | देखिये आगे स्वामी जी भूमिका में क्या लिखते है “ मै भी जो किसी एक का पक्षपाती होता तो जैसे आजकल के स्वमत की सतुति , मंडन और प्रचार करते और दुसरे मत की निंदा , हानि और बंध करने में तत्पर होते है , वैसे म भी होता परन्तु ऐसी बाते मनुष्य पन से बाहर है | बताओ जिस व्यक्ति के ऐसे उच्च विचार हो उसकी भाषा शैली पर आक्षेप लगाते हुए आपको एक बार भी लाज ना आई ? और देखिये गुप्ता जी की स्वामी दयानंद जी भूमिका में क्या लिखते है “ बहुत से हठी , दुराग्रही मनुष्य होते है जो वक्ता के अभिप्राय से विरुद्ध कल्पना करते है , विशेष कर मत वाले लोग | क्योंकि मत के आग्रह से उनकी बुद्धि अंधकार में फंस के नष्ट हो जाति है | इसलिए जैसा म पुराण , जैनियों के ग्रन्थ, बाइबल और कुरान को प्रथम ही बुरी दृष्टि से ना देखकर उन में से गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग तथा मनुष्य जाति की उन्नति के लिए प्रयत्न करता हूँ , वैसा सबको करना योग्य है | अब यही सब गुप्ता जी आपकी बातो को देख कर लगता है जो हठ और दुराग्रह कर चलते हुए किसी महापुरुष पर आक्षेप लग रहे है |

सतीश चंद गुप्ता :-

आधुनिक भारत के उक्त निर्माता आचार्य ने विभिन्न मत-मतान्तरों और उनके प्रवर्तकों के विषय में क्या टीका-टिप्पणी की है ज़रा उस पर भी एक नज़र डाल लीजिए-

……….. इससे यह सिद्ध होता है कि सबसे वैर, विरोध, निन्दा, ईष्र्या आदि दुष्ट कर्मरूप सागर में डुबाने वाला जैनमार्ग है। जैसे जैनी लोग सबके निन्दक हैं वैसे कोई भी दूसरा मत वाला महानिन्दक और अधर्मी न होगा। क्या एक ओर से सबकी निन्दा और अपनी अतिप्रशंसा करना शठ मनुष्यों की बातें नहीं हैं?विवेकी लोग तो चाहे किसी के मत के हों उनमें अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहते हैं। (12-105)

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी यह आपने जो यह टिप्पणी लिखी है इसमें कहीं पर भी यह उद्दत नहीं होता की स्वामी जी ने भाषा की मर्यादा को खोया है या उनकी भाषा में अहंकार दिखता है , यह सब केवल आपके हठ और दुराग्रह का नतीजा है | देखिये स्वामी जी ने तो क्या गजब बात लिखी है ऐसी बात तो कुरान बनाने वाले अल्लाह ने भी नहीं लिखी कि “विवेकी लोग तो चाहे किसी के मत के हों उनमें अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहते हैं “। अब वो विषय लिखता हूँ जिसके जवाब में स्वामी जी ने ये सब लिखा है जिसको आप इतना हव्वा बना रहे है |

जैसे विषधर सर्प में मणि त्यागने योग्य है वैसे ही जो जैनमत में नहीं वह चाहे कितना बड़ा धार्मिक पंडित हो उसको त्याग देना ही जैनियों को चित है { प्रकरणरत्नाकर भाग २ ,षष्टिशतक ६१,सूत्र १८ }

अन्य दर्शनी कुलिंगी अर्थात जैनमत विरोधी उन का दर्शन भी जैनी लोग न करे |{ प्रकरणरत्नाकर भाग २ ,षष्टिशतक ६१,सूत्र २९ }

जो जैनधर्म से विरुद्ध धर्म है वे मनुष्यों को पापी करने वाले है इसलिए किसी के अन्य धर्म को मान कर जैन धर्म को ही मानना श्रेष्ठ है |{ प्रकरणरत्नाकर भाग २ ,षष्टिशतक ६१,सूत्र २७ }

गुप्ता जी अब देखिये जैनमत की पुस्तकों में जो लिखा है उसके आधार पर आप उसे क्या कहेंगे ? क्या इन सब प्रमाणों से वैर,विरोध इर्ष्या आदि फैलाने वाला जैनमत नहीं लगता ? लेकिन आप ठहरे मत वाले तो आपको इन ग्रंथो के प्रमाण पर नहीं बल्कि इनकी समीक्षा करने वाले पर आपत्ति है | यदि इन सब प्रमाणों को देख कर यदि आपको कोई और भाषा शैली अच्छी लगती है तो जरा हमें भी बताइए की कैसी भाषा का प्रयोग होना चाहिए था ?

सतीश चंद गुप्ता :-

……….. भला! जो कुछ भी ईसा में विद्या होती तो ऐसी अटाटूट, जंगलीपन की बात क्यों कह देता?तथापि ‘यत्र देशे द्रुमो नास्ति तत्रैरण्डोऽपि द्रुमायते।’ जिस देश में कोई भी वृक्ष न हो तो उस देश में एरण्ड का वृक्ष ही सबसे बड़ा और अच्छा गिना जाता है वैसे महाजंगली देश में ईसा का भी होना ठीक था, पर आजकल ईसा की क्या गणना हो सकती है। (13-77)

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी इस समीक्षा में भी स्वामी जी की भाषा शैली में कोई अहंकार दिखाई नहीं देता , अब आप ही बताइए की जो व्यक्ति यह कहता हो की पहाड़ को जो कहोगे की यहाँ से वहाँ चला जा, तो वो चला जाएगा इसे आप अविद्या कहोगे या कुछ और ? यदि इसको आप कुछ और भी कह सकते है तो भी केवल ईसा की मुर्खता कह सकोगे | मुझे समझ नहीं आता की आप ने कैसे मुर्खता पूर्ण प्रश्न उठाये है स्वामी जी की भाषा शैली पर | अगर ये पहाड़ का एक जगह से दुसरे जगह पर चला जाना और वो भी लोगो के कहने पर ये सब जंगलीपन की बात नहीं तो और क्या है ? यदि आपके शब्दकोश में इसके लिए कुछ और उपयुक्त शब्द हो तो बताइए ? और स्वामी जी ने बहुत अच्छा उदाहरण दिया है किजिस देश में कोई भी वृक्ष न हो तो उस देश में एरण्ड का वृक्ष ही सबसे बड़ा और अच्छा गिना जाता है, यही सब ईसा के साथ हुआ , जो कुछ उसे थोड़ा बहुत ज्ञान था वही सब पुस्तक में लिख दिया गया और अनपढ़ लोगो ने उसे ही सही मान लिया | जैसे तोरेत उत्पत्ति पर्व ६ आयत १५-२२ में लिखा है की तीन सौ हाथ लम्बाई,पचास हाथ चौड़ाई और तीस हाथ ऊंचाई वाली नाव में सभी प्रकार के जिव जन्तुओ के जोड़े लेकर जाना , जंगलीपन और अविद्या की बात नहीं तो और क्या है जरा बतायेंगे ?

सतीश चंद गुप्ता :-

……….. अब सुनिए! ईसाइयों के स्वर्ग में विवाह भी होते हैं, क्योंकि ईसा का विवाह ईश्वर ने वहीं किया। पूछना चाहिए कि उसके श्वसुर, सासू, शालादि कौन थे और लड़के-बाले कितने हुए?और वीर्य के नाश होने से बल, बुद्धि, पराक्रम, आयु आदि के भी न्यून होने से अब तक ईसा ने वहाँ शरीर त्याग किया होगा। (13-145)

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी आपने बाईबल पर प्रश्न उठाने की जगह स्वामी जी पर प्रश्न उठाया है जो की केवल एक मत वाला ही कर सकता है | स्वामी जी ने इस समीक्षा में बहुत ही रोचक बात उठाई है की जब ईश्वर स्वर्ग में ईसा का विवाह किया तो उसकी पत्नी भी अवश्य होगी , यदि पत्नी है तो उसके माता पिता अर्थात ईसा के सास ससुर भी होंगे और जब शादी होगी तो बाल बच्चे भी जरुर होंगे | भला इसमें अहंकार या भाषा शैली का तो कोई सवाल ही नहीं | एक साधारण व्यक्ति के मन में भी यही सवाल आयंगे जो स्वामी जी ने उठाये है | क्या यह सवाल उठाना उचित नहीं ?

सतीश चंद गुप्ता :-

…. वाह कुरान का खुदा और पैग़म्बर तथा कुरान को! जिसको दूसरे का मतलब नष्ट कर अपना मतलब सिद्ध करना इष्ट हो ऐसी लीला अवश्य रचता है। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि मुहम्मद साहेब बड़े विषयी थे। यदि न होते तो (लेपालक) बेटे की स्त्री को जो पुत्र की स्त्री थी; अपनी स्त्री क्यों कर लेते? और फिर ऐसी बातें करने वाले का खुदा भी पक्षपाती बना और अन्याय को न्याय ठहराया। मनुष्यों में जो जंगली भी होगा वह भी बेटे की स्त्री को छोड़ता है और यह कितनी बड़ी अन्याय की बात है कि नबी को विषयासक्ति की लीला करने में कुछ भी अटकाव नहीं होना! यदि नबी किसी का बाप न था तो जैद (लेपालक) बेटा किसका था?और क्यों लिखा? यह उसी मतलब की बात है कि जिस बेटे की स्त्री को भी घर में डालने से पैग़म्बर साहेब न बचे, अन्य से क्योंकर बचे होंगे?ऐसी चतुराई से भी बुरी बात में निन्दा होना कभी नहीं छूट सकता। क्या जो कोई पराई स्त्री भी नबी से प्रसन्न होकर विवाह करना चाहे तो भी हलाल है?और यह महा अधर्म की बात है कि नबी जिस स्त्री को चाहे छोड़ देवे और मुहम्मद साहेब की स्त्री लोग यदि पैग़म्बर अपराधी भी हो तो कभी न छोड़ सकें! जैसे पैग़म्बर के घरों में अन्य कोई व्यभिचार दृष्टि से प्रवेश न करें तो वैसे पैग़म्बर साहेब भी किसी के घर में प्रवेश न करें। क्या नबी जिस किसी के घर में चाहें निश्शंक प्रवेश करें और माननीय भी रहें? भला! कौन ऐसा हृदय का अन्धा है कि जो इस कुरान को ईश्वरकृत और मुहम्मद साहेब को पैग़म्बर और कुरानोक्त ईश्वर को परमेश्वर मान सके। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसे युक्तिशून्य धर्मविरुद्ध बातों से युक्त इस मत को अरब देशनिवासी आदि मनुष्यों ने मान लिया! (14-129)

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी स्वामी जी की भाषा शैली पर तो आपने प्रश्न उठा दिए जबकि वे तो एक साधारण मनुष्य थे लेकिन मुहम्मद साहेब के चरित्र और अल्लाह की भाषा शैली पर आप चुप रह गये ? जो अल्लाह औरत को खेती बताता हो , उन्हें घर में कैद रहने की शिक्षा देता हो , गैर मुस्लिमो को मारने आदि की शिक्षा देता हो उसकी भाषा शैली पर तो आपको कोई एतराज नहीं हुआ लेकिन एक व्यक्ति की भाषा शैली पर आपने सवाल खड़ा कर दिया ? जो व्यक्ति खुद को अल्लाह का पैगम्बर बता कर फिर भी बेटे की पत्नी से निकाह करे उसको विषयी नहीं तो और क्या कहेंगे ? जो व्यक्ति उम्र का लिहाज किये बगैर ९ वर्ष की अबोध बालिका से निकाह और सम्भोग करे उसे विषयी नहीं तो क्या कहेंगे ? फैसला आप पर गुप्ता साहब | जिस दयानंद सरस्वती जी ने कभी माँ और बहन के सिवाय रिश्ता नहीं रक्खा किसी स्त्री से उस पर तो आपने प्रश्न उठा दिया पर एक व्यभिचारी व्यक्ति और अल्लाह का पक्ष रख रहे हो ? स्वामी जी ने तो बहुत उत्तम बात लिखी है की कोई जंगली भी होगा वो भी बेटे की पत्नी से शादी नहीं करेगा लेकिन मुहम्मद साहब तो उन जंगलियो से भी गये गुजरे निकले | जो व्यक्ति के अंदर पुत्रवधू के लिए ऐसी भावना थी तो अन्य स्त्रियों के लिए क्या भावना रही होगी यह पाठक गण स्वंय अंदाजा लगा सकते है | और गुप्ता जी को फिर भी दयानंद जी की भाषा पर आपत्ति हुई न की उन व्यभिचारी पर | होगी भी कैसे मत वाले जो ठहरे | स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में बिल्कुल सही लिखा है की हठी और दुराग्रही लोग वक्ता के अभिप्राय से विरुद्ध कल्पना करते है वही सब गुप्ता जी आप कर रहे है |

सतीश चंद गुप्ता :-

अच्छे व्यक्ति की पहचान की पहली कसौटी उसकी भाषा होती है। क्या उक्त प्रकार की भाषा शैली एक पूर्ण विद्वान और संन्यासी को शोभा देती है? क्या उक्त विषय वस्तु में एक ब्रह्मचारी ने शास्त्रीय आदर्शों का उल्लंघन नहीं किया है?

मी जी लिखते हैं कि ‘‘यदि किसी मत का विद्वान किसी अन्य मत की निंदा करता है तो निंदा करने वाले विद्वान की अच्छी बातें भी दोषयुक्त हो जाती हैं।’’ (12-95)

क्या यह बात स्वामी दयानंद पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी निंदा और सत्य में फर्क होता है | जो अपने को सही साबित करने के लिए किसी के बारे में झूठ कहा जाए उसे निंदा कहा जाता है | और जो जैसा हो उसे वैसा ही कहा जाए वो सत्य कहलाता है | यदि सत्य कहना ही निंदा कहलाती है तो सत्य की परिभाषा क्या होगी ? यह काम आप पर छोड़ देते है की सत्य की परिभाषा क्या होती है | यदि सत्य को सत्य कहना निंदा होती है तो फिर तो कोई भी सत्य बोलने से बचेगा | यदि स्वामी जी ने कुछ भी बात मनगड़ंत या झूठ लिखी होती तो हम मान लेते की यह गलत है , पर जब जब सब कुछ सत्य लिखा है तो उसे निंदा कैसे मान लिया जाए ?

सतीश चंद गुप्ता :-

स्वामी जी लिखते है कि ‘‘जो अपने ही मुख से अपनी प्रशंसा और अपने ही धर्म को बड़ा कहना और दूसरों की निंदा करना यह मूर्खता की बात है, क्योंकि प्रशंसा उसी की ठीक है जिसकी दूसरे विद्वान करें। अपने मुख से अपनी प्रशंसा तो चोर भी करते हैं।’’ (12-99)

क्या यह बात स्वामी दयानंद पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- स्वामी जी ने सर्वप्रथम ग्यारहवे समुल्लास में अपने धर्म और धर्म ग्रंथो की समीक्षा की फिर बाद में जैनियों,इसाइयों और इस्लाम आदि के विषय में लिखा | इस से बढ़ कर सम्मान की बात क्या हो सकती है गुप्ता जी ? और स्वामी जी ने किसी भी मत सम्प्रदाय की निंदा नहीं की बल्कि स्पष्ट शब्दों में कहा की “जो जो बाते सभी मतों में सत्य है म उन्हें स्वीकार करता हु “ भला इस से उच्च आदर्श क्या होंगे ? ना ही पुरे सत्यार्थ प्रकाश में ऐसा विदित होता है की स्वामी जी ने अपनी प्रशंसा की हो |

सतीश चंद गुप्ता ;- स्वामी जी लिखते है कि, ‘‘बहुत मनुष्य ऐसे हैं जिनको अपने दोष तो नहीं दीखते, किन्तु दूसरों के दोष देखने में अति उद्युक्त रहते हैं। यह न्याय की बात नहीं, क्योंकि प्रथम अपने दोष देख, निकाल के पश्चात दूसरे के दोषों में दृष्टि देके निकालें। (12-8)

क्या यह बात स्वामी दयानंद पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- इसी लिए तो स्वामी जी ने ग्याहरवे समुल्लास में पहले अपने मत में फैले दोषों को उजागर किया , उसके बाद में दुसरे मज्हबो के बारे में लिखा | जो स्वामी जी ने कहा वो ही किया |

सतीश चंद गुप्ता ;-

स्वामी जी लिखते हैं कि, ‘‘जो मनुष्य पक्षपाती होता है, वह अपने असत्य को भी सत्य और दूसरे विरोधी मतवाले के सत्य को भी असत्य सिद्ध करने में प्रवृत्त होता है। इसलिए वह सत्य मत को प्राप्त नहीं हो सकता।’’ (भूमिका)

क्या यह बात स्वामी जी पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- स्वामी जी ने जो लिखा बिलकुल सत्य लिखा है | उन्होंने स्वंय भी पक्षपात छोड़कर सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कहा है | उन्होंने जैनमत के विषय में लिखते हुए कहा है “ इन में बहुत सी बाते अच्छी है अर्थात अहिंसा और चोरी आदि निंदनीय कर्मो का त्याग अच्छी बात है “ और कुरान की समीक्षा ३९ में स्वामी जी लिखते है कि ” जो यह रजस्वला का स्पर्श न करना लिखा है वह अच्छी बात है “.. इसी तरह स्वामी जी ने कुरान की १२४ समीक्षा करते हुए लिखा है कि “ माता पिता की सेवा करना अच्छा ही है जो खुदा के साथ शरीक करने को कहे तो उनका कहना न मानना यह भी ठीक है “ अब गुप्ता जी इस से बढकर सत्य प्रिय होने का क्या उदाहरण हो सकता है ? पाठक गण इतने से समझ सकते है कि स्वामी जी को सत्य से कितना प्रेम था की सत्य चाहे कुरान या फिर किसी अन्य मत वालो के ग्रंथो में था उसे स्वीकार करते तथा उनकी प्रशंसा करते थे |

सतीश चंद गुप्ता;-

स्वामी जी लिखते हैं कि, ‘‘बहुत से हठी, दुराग्रही मनुष्य होते हैं कि जो वक्ता के अभिप्राय से विरुद्ध कल्पना किया करते हैं, विशेषकर मत वाले लोग। क्योंकि मत के आग्रह से उनकी बुद्धि अन्धकार में फंस के नष्ट हो जाती है।’’ (भूमिका)

क्या यह बात स्वामी जी पर लागू नहीं होती?

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी जरा यह बताने का कष्ट करेंगे की स्वामी जी कैसा हठ और दुराग्रह किया ? हाँ उनका हठ था वे सत्य के प्रति हठी थे इसीलिए उन्होंने जान की परवाह किये बिना पुराण,कुरान और बाइबल आदि के सत्य और असत्य को उजागर किया , स्वामी जी तो भूमिका में यह तक लिखते है की “ यद्यपि मै इस आर्यवर्त देश में उत्पन्न हुआ और वसता हूँ ,तथापि जैसे इस देश की झूठी बातो का पक्षपात न कर यथातथ्य प्रकाश करता हूँ “ | और आपने यह पंक्ति तो लिख दी लेकिन इस से अगली पंक्ति पढना शायद भूल गये जहाँ लिखा है “इसलिए जैसा म पुराण , जैनियों के ग्रन्थ, बाइबल और कुरान को प्रथम ही बुरी दृष्टि से ना देखकर उन में से गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग तथा मनुष्य जाति की उन्नति के लिए प्रयत्न करता हूँ” | जिस व्यक्ति के ऐसे विचार हों आप उस पर दुराग्रह का आरोप लगाये ये आपको शोभा नहीं देता |

सतीश चंद गुप्ता ;-

स्वामी जी ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में लिखा है कि एक ब्रह्मचारी के लिए अष्ट प्रकार के मैथुन जैसे स्त्री दर्शन, स्त्री चर्चा और स्त्री संग अदि सब निषिद्ध है, मगर स्वामी जी ने अपनी पुस्तक में न केवल स्त्री चर्या और सेक्स चर्चा की है, बल्कि एक नव विवाहित जोड़े को गर्भाधान किस प्रकार करना चाहिए ? इस विधि का खुला चित्रण किया है। विषय वस्तु पर एक नज़र डालिए –

…………. जब वीर्य का गर्भाशय में गिरने का समय हो उस समय स्त्री और पुरूष दोनों स्थिर और नासिका के सामने नासिका, नेत्र के सामने नेत्र अर्थात् सूधा शरीर और अत्यन्त प्रसन्नचित्त रहें, डिगें नहीं। पुरूष अपने ‘ारीर को ढीला छोड़े और स्त्री वीर्य प्राप्ति-समय अपान वायु को ऊपर खींचे, योनि को ऊपर संकोच कर वीर्य का ऊपर आकर्षण करके गर्भाशय में स्थिर करे। पश्चात् दोनों शुद्ध जल से स्नान करें।

आर्य सिद्धान्ती ; गुप्ता जी आप सत्यार्थ प्रकाश के जिन आठ प्रकार के मैथुनो को निषिद्ध की बात कर रहे है उसमे स्त्री चर्चा कहीं पर नहीं लिखा है ये शब्द केवल आपके दिमाग की उपज है | वहाँ { तीसरे समुल्लास प्रथम पृष्ठ } पर स्वामी जी ने स्त्री और पुरुष दर्शन ,स्पर्शन ,एकांतसेवन ,भाषण , विषय कथा ,परस्पर क्रीडा , विषय का ध्यान और संग इन आठ मैथुनो को लिखा है | जिस गर्भाधान विषय की आप बात कर रहे है वो स्त्री चर्चा या विषय चर्चा नहीं है अपितु एक संस्कार है जो हर गृहस्थ अपनाता है | विषय और संस्कार में अंतर होता है गुप्ता जी जो की इस्लाम वालो के बस की बात नहीं है | इसी संस्कार का उपदेश स्वामी जी ने गृहस्थो को दिया है | यदि ब्राह्मण उपदेश नहीं देगा तो कोन देगा ? उपदेश देने का काम ब्रह्मणों और विद्वानों का है | ऋग्वेद के दुसरे मन्त्र में ऋषि की व्याख्या करते हुए कहा गया है जो सब विद्याओ को जानता हो और जगत के कल्याण के लिए उनका प्रयोग अर्थात उपदेश करे उसे ऋषि कहा जाता है | स्वामी जी को ऋषि इसी लिए कहा जाता है क्योंकि उन्हें सब विद्याओ का ज्ञान था और उन्हें जिन विद्याओ का ज्ञान था उन सबका जगत के उपकार के लिए उपदेश भी किया | यह जरुरी नही की जो व्यक्ति उपदेश दे रहा है वो उसको स्वंय भी उपयोग करता है उदाहरणार्थ जैसे कोई डॉक्टर मरीज से कहे की फलां दवाई खाओ तुम्हारी बिमारी ठीक हो जायेगी तो इसका अर्थ ये नहीं की पहले डॉक्टर ने वो दवाई स्वंय खाई है फिर मरीज को बताई है | कोई डॉक्टर दवाइयों के सेवन से नहीं बनता बल्कि उसके बारे में अन्य विद्वानों के लिखे ग्रंथो का अध्ययन करता है फिर उसका उपदेश मरीज को करता है | यही सब स्वामी दयानंद जी ने किया है इसमें कोई आपत्ति होने का सवाल ही नहीं है | यदि कुरान में अल्लाह सम्भोग की बाते करता है तो क्या इसका मतलब ये हुआ की उसने भी सम्भोग किया है ?

सतीश चंद गुप्ता ;- कैसी विचित्र विडंबना है कि एक ऐसा व्यक्ति जो किसी विषय का अ ब स न जानता हो और वह विषय उसके लिए निषिद्ध और निंदनीय भी हो, फिर भी वह व्यक्ति उस विषय का ज्ञाता और प्रवक्ता हो। इससे अधिक धूर्तता, निर्लज्जता और दुस्साहस की बात यह देखिए कि वह व्यक्ति यह दावा भी करता है कि मैं इससे अधिक भी जानता हूँ, जिसका लिखना यहाँ उचित नहीं है। भला सेक्स संबंधी ऐसा कौन सा रहस्य है जिसे एक ब्रह्मचारी तो जान सकता है, मगर एक विवाहित नहीं जान सकता? क्या यहां प्रश्न चिंह नहीं बनता ?

आर्य सिद्धान्ती ;- गुप्ता जी पहले तो यह तय कर लीजिये की वे इस विषय का अ ब स न जानते थे या इस विषय के ज्ञाता थे | ये आपकी दोनों बाते विरोधाभाषी है जो केवल आपकी मुर्खता को दर्शाती है | आप भाषा का संयम दुसरो को सीखा रहे है पर आपने कैसी भाषा का प्रयोग किया है ? धूर्त , निर्लज्ज , दुस्साहसी ये सब क्या है ? आपने किस आधार पर स्वामी दयानंद जी को धूर्त लिखा ? इसलिए की उन्होंने कुरान जैसे कपोल कल्पित ईश्वरीय ग्रन्थ की धज्जिया उड़ा दी इसलिए उन्हें धूर्त लिख रहे हो ? अरे धूर्त शब्द तो आपको अल्लाह और मुहम्मद साहेब के लिए लिखना चाहिए जिसने स्वंय को ईश्वरीय पैगम्बर बता कर अरब वालो का मुर्ख बनाया | पर आप ऐसा क्यों करते मत वाले जो ठहरे | आपकी यह बात की सेक्स से सम्बन्धित ऐसी कोनसी बात है जिसे ब्रह्मचारी तो जान सकता है पर एक विवाहित नहीं जान सकता बिलकुल बालकपन की बात है भला बिमारीयों के बारे में डॉक्टर को ज्यादा जानकारी होगी या मरीज को ?

सतीश चंद गुप्ता :-

एक बात यह भी देखिए कि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में लगभग 40 बार वीर्य शब्द का प्रयोग हुआ है और लिखा है कि यह अमूल्य है। स्वामी जी के जीवन चरित्र को पढ़ने पर पता चलता है कि स्वामी जी नंगे रहा करते थे। लगभग 48 वर्ष की उम्र के बाद उन्होंने कपड़े पहनने प्रारम्भ किए। क्या यहीं चरित्र चिंतन है एक ब्रह्मचारी का ? क्या कोई धर्मग्रंथ किसी ब्रह्मचारी अथवा संन्यासी को नंगा रहने की अनुमति देता हैं ?

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी स्वामी जी ने क्या गजब और अनमोल बात कही है की वीर्य अनमोल है उसकी रक्षा करो | पर चरित्रहीनता वाले मजहब के लोगो को शायद वीर्य की रक्षा मजाक लगता है लगे भी क्यों न जब उनके प्रवर्तक ने ही पूरा जीवन अय्याशियों और व्यभिचार में बिता दिया हो उन्हें तो स्वामी जी की यह बाद हास्यपद लगेगी ही | आपका यह कहना की स्वामी जी नंगा रहते थे बिलकुल गलत है हाँ यह सत्य है की स्वामी जी केवल एक कोपीन पहनते थे | पुरुषो के लिए गुप्तांग को ढकने के लिए कोपीन काफी होता है | स्वामी जी इतने बलवान थे की उन्हें अतिरिक्त वस्त्रो की आवश्यकता ही नहीं थी | जिस चीज की आवश्यकता नहीं फिर भी उसे रखना मुर्खता होगी | आपको उनके पुरे जीवन में बस एक यही बात दिखी की वे नंगे रहते थे बाकी कुछ नहीं ? जिस व्यक्ति ने समाज के कल्याण के लिए १७ बार जहर पिया हो , लाठिया डंडे खाए हो फिर भी सत्य ही कहा ,,यह जीवन उनका आपको दिखाई नहीं दिया ? बड़े बड़े मौलानाओ और पादरियों को शास्त्रार्थ में हराया यह भी आपको दिखाई न दिया ? संसार के उपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया यह भी आपको दिखाई न दिया ? दिखे भी कैसे मत वाले जो ठहरे | गुप्ता जी लिख तो म और भी बहुत कुछ सकता था पर पाठक गण इतने से अंदाजा लगा लेंगे |

सतीश चंद गुप्ता :-

अब जहाँ तक गर्भाधान विधि का प्रश्न है, यह तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसे तो न केवल अनपढ़, गवार मनुष्य जानता है, बल्कि पशु-पक्षी भी जानते है। पशु-पक्षियों को कौनसे ‘शास्त्रों का ज्ञान होता हैं ? उन्हें भला कौन यह सब सिखाता हैं?

आर्य सिद्धान्ती ;- गर्भाधान एक स्वभाविक प्रक्रिया है यह बात तो सत्य है पर किस प्रकार से गर्भाधान किया जाए विषय ये है न की ये स्वभाविक या अस्वभाविक है | ऐसे तो खाना भी स्वभाविक है पर कैसे और क्या खाना चाहिए ये विषय होता है न की खाना स्वभाविक प्रक्रिया है | पशु पक्षियों का भी अपना एक ही तरीका होता है गर्भाधान करने या सम्भोग करने का पर ना जाने अल्लाह को पशुओ से भी कम अक्ल थी जो कह दिया की जैसे मर्जी सम्भोग करो तुम्हारी बिबिया तुम्हारी खेती है | पीछे से सम्भोग करना बताओ अल्लाह की कोन सी अक्लमंदी थी ?

सतीश चंद गुप्ता :-

स्वामी जी ने गर्भाधान की उक्त विधि के साथ यह भी बताया कि गर्भास्थिति (च्तमहदंदबल) का निश्चय हो जाने के बाद एक वर्ष तक स्त्री-पुरूष को समागम नहीं करना चाहिए, क्यांेकि ऐसा करने से अगली संतान निकृष्ट पैदा होती है, दोनों की आयु घट जाती है और अनेक प्रकार के रोग होते है। आगे यह भी लिखा है कि संतान के जन्म के बाद स्त्री योनिसंकोचादि भी करे।

स्वामी जी से किसी ने उक्त विषय से संबंधित निम्न सवाल भी किया-

प्रश्न- जब एक विवाह होगा, एक पुरूष को एक स्त्री और एक स्त्री को एक पुरूष रहेगा तब स्त्री गर्भवती, स्थिररोगिणी अथवा पुरूष दीर्घरोगी हो और दोनों की युवावस्था हो, रहा न जाय तो फिर क्या करें ?उत्तर- इस का प्रत्युत्तर नियोग विषय में दे चुके हैं और गर्भवती स्त्री से एक वर्ष समागम न करने के समय में पुरूष व स्त्री से दीर्घरोगी पुरूष की स्त्री से न रहा जाए तो किसी से नियोग करके उसके लिए पुत्रोत्पत्ति कर दे, परन्तु वेश्यागमन वा व्यभिचार कभी न करें। (4-149)

अब पहले तो उस सवाल पर ध्यान दीजिए, जिसमें स्वामी जी से पूछा गया है कि यदि किसी पुरूष की पत्नी गर्भवती हो और पुरूष की युवावस्था (ल्वनदह ।हम) हो और उससे न रहा जाए तो वह पुरूष क्या करे? स्वामी जी ने बताया कि वह किसी अन्य की पत्नी से नियोग करके पुत्रोत्पत्ति कर दे। अब यहां सभ्य और बुद्धिजीवी लोग ग़ौरे करें कि अगर किसी गाँव में 10 पुरूष ऐसे है जिनकी स्त्री गर्भवती है और स्त्री एक भी ऐसी नहीं है जिसे पुत्र की इच्छा हो, तो ऐसी स्थिति में वे 10 युवापुरूष कहां जाए? तीसरी बात यह कि युवा गर्भवती स्त्रियों का क्या होगा? क्या गर्भवती होने पर स्त्री की कामेच्छा समाप्त हो जाती हैं? अगर उनके अंदर यौन इच्छा हो, तो वे क्या करें?

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी स्वामी जी ने कहीं पर भी नियोग को अनिवार्य नहीं लिखा है यदि इच्छा हो , स्त्री , पुरुष व परिवार की आज्ञा हो तब ही नियोग हो सकता है लेकिन उसके भी नियम है जैसे विवाह के नियम होते है | इन पंक्तियों में स्वामी जी ने नियोग दो के लिए कहा है एक तो जिसकी पत्नी गर्भवती हो उसके लिए और दूसरा जिसका पति दीर्घरोगी हो उसके लिए | जिसकी पत्नी गर्भवती हो वो भी केवल किसी अन्य विधवा स्त्री के लिए नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकता है | तथा जिसका पति दीर्घ रोगी हो वह स्त्री क्या करेगी ? नियोग ही एक सामाधान है वर्तमान समय में दुनिया भर के स्त्री पुरुष जो संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है वे नियोग अर्थात स्पर्म डोनेसन का सहारा लेकर खुशी खुशी अपना जीवन जी रहे है | यदि गाँव में कोई विधवा या पुत्र की कामना करने वाली स्त्री नहीं है तो स्वामी जी ने कोनसा ये कहा है की नियोग करना ही करना है ? वो तो जिसकी इच्छा हो करो ना इच्छा हो न करो | रही बात कामेच्छा समाप्ति की तो स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश में जितेन्द्रिय होना सिखाया है न की कामोत्तेजक होना | स्वामी जी ने अंत में जो पंक्ति लिखी है वो सराहने योग्य है कि “परन्तु वेश्यागमन वा व्यभिचार कभी “ लेकिन सतीश चंद गुप्ता जी ने इसकी सराहना करने की बजाए इस पंक्ति को अनदेखा कर दिया | अनदेखा करे भी क्यों ना ? क्योंकि इस्लाम तो व्यभिचार और वेश्यागमन को पुरजोर पक्षधर है जिसे मुताः अर्थात अस्थायी शादी भी कहा जाता है जिसमे पुरुष पैसे देकर कुछ समय के लिए शादी करता है अपनी काम वासना को पूरा करने के लिए भले ही मुसलमान कहते रहे की यह अस्थाई शादी काम वासना के लिए नहीं है पर बुद्धिमान जन अंदाजा लगा सकते है की भला कोई व्यक्ति पैसे देकर कुछ दिन के लिए शादी क्यों करना चाहेगा ? क्या संतान पैदा करने के लिए ? नहीं केवल और केवल अपनी काम वासना मिटाने के लिए | उदाहरण के लिए देखिये कुरान सुरह निसा आयत २४ – विवाहित स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वर्जित है सिवाय लोंडियो के जो तुम्हारी है, इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनसे दाम्पत्य जीवन अर्थात सम्भोग का मजा लो और बदले में उन्हें निश्चित की हुई रकम अदा कर दो | अब गुप्ता जी देखिये नियोग तो केवल सन्तान उत्पत्ति के लिए तथा व्यभिचार और वेश्यगमन से बचने के लिए है लेकिन कुरान ने तो वेश्यवृति की खुली छुट दे डाली बस पैसा होना चाहिए माल खरीदने के लिए | ज्यादा जानकारी के लिए पढ़िएhttp://en.wikipedia.org/wiki/Nikah_mut‘ah

सतीश चंद गुप्ता :-

चैथी बात जो कही गई है कि गर्भवती स्त्री से समागम करने से वीर्य व्यर्थ जाएगा, अगली संतान निकृष्ट पैदा होगी, आयु घट जाएगी, अनेक प्रकार के रोग हो जाएंगे। क्या ये सब बातें चिकित्सा विज्ञान की (डमकपबंस ैबपमदबम) की दृष्टि से तर्क पूर्ण है ? स्वामी जी ब्रह्मचारी और योगी थे, मगर उनका स्वास्थ्य आम गृहस्थी से अच्छा नहीं था। 58-59 साल की आयु में स्वामी जी का वजन लगभग 150 कि0 ग्राम होना क्या अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है। क्या स्वामी जी की उक्त सभी प्रकार की सलाह (।कअपेमम) अतार्किक और अव्यावहारिक नहीं है ? न मालूम स्वामी जी ने कौनसा धर्मग्रंथ और चिकित्सा विज्ञान (डमकपबंस ैबपमदबम) पढ़कर उक्त सलाह (।कअपबम) गृहस्थियों को दी है?

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता यदि विज्ञानं की दृष्टि से देखा जाए तो भी स्वामी जी बाते बिलकुल सही है क्योंकि विज्ञानं की माने जाए तो वीर्य का कार्य अंडाणु के साथ मिल कर सन्तान पैदा करना है | जब पहले से ही सन्तान गर्भाशय में मोजूद है तो दोबारा वीर्य गर्भस्य में डालने का कोई ओचित्य नहीं रहता और उस वीर्य को व्यर्थ ही बहाना पढता है जिस से दुर्बलता आती है | अब देखिये विज्ञानं की दृष्टि से वीर्य सरंक्षण के क्या क्या फायदे है

१ . डॉ. डियो लुइस कहते है की यह तत्व अर्थात वीर्य का संरक्षण शरीर, मन की शक्ति और बुद्धि की इच्छा की शक्ति के लिए आवश्यक है

2

डॉ इ पी मिलर के अनुसार स्वेच्छा और अनैच्छिक तरीके से वीर्य का बहना बहुत ही उर्जा को नष्ट कर देता है |

3.

डॉ स्टीफन टी चंग वीर्यस्खलनता के बारे में लिखते है की अंडकोष शुक्राणुओ और हार्मोन्स का उत्पादन करते है , और प्राँस्टैट ग्रंथि पोषक तत्व , हार्मोन और उर्जा से भरपूर तरल का उत्पादन करती है | एक चम्मच वीर्य में न्यूयॉर्क स्टेक के दो टुकड़े, दस अंडे, छह संतरे, और संयुक्त दो नींबू के बराबर शक्ति होती है जो की वीर्य स्खलन से नष्ट हो जाति है |

४.

प्रोफेसर मोंतागाज़ा लिखते है की सभी युवा और पुरुष शुद्धता अर्थात वीर्य सरंक्षण के तत्काल लाभ को अनुभव करते है |यह स्मृति शांत, दृढ होती है और मस्तिष्क जीवंत होता है

५. डॉ मोल्विल कैथ एम् डी लिखते है की यह वीर्य हड्डियों के लिए मज्जा अर्थात सार , दिमाग के लिए भोजन , जोड़ो के तेल और श्वास के लिए मिठास है | और यदि आप पुरुष है तो आपको इसकी एक बूंद भी खोनी नहीं चाहिए जब तक आप पुरे तीस वर्ष के नहीं हो जाते | और उसके बाद भी केवल संतानोत्पत्ति के लिए ही इसका प्रयोग करे |

६. Sir James Pagen लिखते है की शरीर और आत्मा को क्षतिग्रस्त मत करो , वीर्य की सुरक्षा करो , आत्मनियंत्रण दुसरे आचरणों से बेहतर है |

पाठक गण इन सब प्रमाणों से अंदाजा लगा सकते है की वीर्य कितना अनमोल है और उसको व्यर्थ नहीं बहने देना चाहिए और उसका उपयोग केवल संतानोत्पत्ति के लिए किया जाना चाहिए यही सब स्वामी जी ने लिखा है | जानवर भी ऋतूगामी होकर प्रजनन करते है फिर मानव तो अपने को बुद्धिमान कहता है उसे तो जरुर आवश्यकता अनुसार ही सम्भोग करना चाहिए | यहाँ पर म अनेक ग्रंथो के प्रमाण दे सकता था लेकिन ज्ञानी लोग इतने से अंदाजा लगा लेवेंगे | आगे गुप्ता जी ने स्वामी जी के स्वास्थ्य पर टिप्पणी की है की योगी और ब्रह्मचारी होने के बावजूद उनका स्वस्थ्य एक आम इन्सान की भाँती था | गुप्ता जी आपकी इस टिप्पणी का जवाब भी आपकी इस से प्रथम टिपण्णी में ही है | आपने स्वंय लिखा है की स्वामी जी नंगे रहते थे अब देखिये जो व्यक्ति कंपकपाती सर्दी में भी नंगा रहता हो क्या वो साधारण आदमी हो सकता है ? यदि आपको जनवरी के महीने में आधा घंटा नंगा बाहर खड़ा कर दिया जाए तो आपकी कुल्फी जम जायेगी जबकि स्वामी दयानन्द जी तो हमेशा एक कोपीन में रहते थे | इस से ज्यादा ब्रह्मचर्य का फल क्या हो सकता है ? उनके स्वास्थ्य और शरीर के विषय में कुछ व्यक्तियों के वक्तव्य जो स्वामी दयानंद के साथ रहे या जिन्होंने उन्हें देखा –

उनके शरीर से इस समय के बलवानो की जो तुलना करता हूँ तो बड़ा अंतर पाता हूँ , उनके अंग प्रत्यंग ऐसे सुदृढ़ व सुडोल थे की वैसे आज तक देखने में नहीं आये | ने नित्य प्रति प्रातः योगसाधना के लिए जंगल में जाते और प्राणायाम की क्रियाए करते थे | { राजाधिराज नाहर सिंह , शाह्पुराधिश }

वे शिखा रहित,मुंडित मस्तक , कोपीन मात्र धारण किये दिगम्बर प्रायः लगभग ६ फीट ऊँचे , सबल , मांसल भुजाओं वाले तथा अंग प्रत्यंगो में पूर्णतया संतुलित दिखाई दिए | मुझे वे यूनानी वीर हरक्युलिस की भाँती दीर्घाकार देहयष्टि वाले किसी पेशेवर पहलवान के ह्रदय में भी ईर्ष्या उत्पन्न करते प्रतीत हुए | { श्री रामगोपाल } यह स्वामी जी का असली चित्र है जो की १८७४ में लिया गया था

यदि मै स्वामी जी के ब्रह्मचर्य और स्वास्थ्य के विषय में लिखने लागु तो शायद सैकड़ो पन्ने भर जायेंगे | ये जरुरी नहीं की वजन अधिक होने से शारीरिक अवस्था सही नहीं होती | व्यायाम करने वाले व्यक्ति का वजन एक आम इन्सान से ज्यादा होता है ये साधारण सी बात है जैसे वर्तमान में मशहुर रेसलर अंडरटेकर का वजन १३६ किलोग्राम है , ऐसे ही मशहुर रेसलर केन का वजन १४६ किलोग्राम है | क्या वह शारीरिक अवस्था से सही नहीं है ? यह जरुरी नहीं की अगर वजन अधिक हो तो शारीर बेडोल होगा | अंतः आपका यह कहना की स्वामी जी स्वास्थ्य एक आम गृहस्थी जैसा था व्यर्थ है |

आगे स्वामी जी ने जैसा कि लिखा है कि संतान के जन्म के बाद स्त्री योनिसंकोचादि करे और छह दिन के बाद स्तन के अग्र भाग पर ऐसा लेप करे कि दूध स्रवित न हो। यहां ये दोनों बातें भी स्वामी जी से पूछने की है कि आख़िर ये योनिसंकोचादि क्या है? यह किस प्रकार होता है ? दूसरी बात यह भी स्वामी जी से पूछने की है कि क्या प्रसव के छह दिन के बाद स्त्री का दूध रोकना प्राकृतिक व्यवस्था के विरूद्ध नहीं हैं? तीसरी बात यह कि क्या धायी स्त्री नहीं होती, आख़िर वही बच्चे को दूध क्यों पिलाए? क्या स्वामी जी की सारी बातें बेतुकी नहीं हैं?

आर्य सिद्धान्ती :- प्रथम तो स्वामी जी की मृत्यु को इतना समय हो गया है आप उनसे कैसे पूछोगे इसलिय आपका यह कहना की ये दोनों बाते स्वामी जी से पूछने योग्य है केवल आपकी मुर्खता को दर्शाता है | अब आपकी दोनों बातो का जवाब भी जान लीजिये संतानोत्पत्ति के बाद जो योनीक्षति होती है उसको दोबारा पहले जैसा होना योनिसंकोच कहा जाता है | यह समय के साथ स्वंय भी हो सकता है , कई बार इसके लिए उपचार की भी आवश्यकता होती है | आपकी दूसरी बात का जवाब स्वामी जी ने इसी समुल्लास में लिखा है “ क्योंकि प्रसूता स्त्री के शरीर के अंश से बालक का शरीर होता है , इसी से स्त्री प्रसव समय निर्बल हो जाति है इसलिए प्रसूता स्त्री दूध न पिलावे “ इस पंक्ति में स्वामी जी स्पष्ट रूप से कारण लिख दिया है | फिर भी यदि आपकी बुद्धि में बात ना आवे तो स्वामी जी की क्या गलती ? स्वामी जी ने कहीं नहीं कहा की इसके बाद हमेशा दाई ही दूध पिलाए | स्वामी जी के लिखे शब्दों से स्पष्ट है की प्रसूता का दूध पिलाना इसलिए सही नहीं क्योंकि वो निर्बल हो जाती है अब यदि प्रसूता निर्बल ना हो तो जब तक चाहे दूध पिलाए क्योंकि दूध न पिलाने का एक कारण निर्बलता ही है |

सतीश चंद गुप्ता :-

अश्लील विषय से संबंधित समुल्लास-14 में कुरआन की कुछ आयतों की समीक्षा के कुछ अंश भी देखिए –

………….. वाह क्या कहना इसके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरबदेश से भी बढ़कर दीखती है! और जो मद्य मांस पी-खाके उन्मत्त होते हैं इसलिए अच्छी-अच्छी स्त्रियाँ और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिए नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमत्त हो जावें। अवश्य बहुत स्त्री-पुरूषों के बैठने सोने के लिए बिछौने बड़े-बड़े चाहिए। जब खुदा कुमारियों को बहिश्त में उत्पन्न करता है तभी तो कुमारे लड़कों को भी उत्पन्न करता है। भला कुमारियों का तो विवाह जो यहाँ से उम्मेदवार होकर गये हैं उनके साथ खुदा ने लिखा पर उन सदा रहनेवाले लड़कों का भी किन्हीं कुमारियों के साथ विवाह न लिखा तो क्या वे भी उन्हीं उम्मेदवारों के साथ कुमारीवत् दे दिये जावेंगें? इसकी व्यवस्था कुछ भी न लिखी। यह खुदा से बड़ी भूल क्यों हुई? यदि बराबर अवस्थावाली सुहागिन स्त्रियाँ पतियों को पाके बहिश्त में रहती हैं तो ठीक नहीं हुआ, क्योंकि स्त्रियों से पुरूष का आयु दूना-ढाई गुना चाहिए, यह तो मुसलमानों के बहिश्त की कथा है (14-143)

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी आपने केवल समीक्षा दिखाकर स्वामी जी के ग्रन्थ को तो अश्लील साबित करना चाहा है पर आप कुरान की वो आयते लिखना कैसे भूल गये जिनकी स्वामजी ने समीक्षा की है ? आइये जरा कुरान की उन आयतों पर प्रकाश डालते है जिनकी स्वामी जी ने समीक्षा की है इस से पाठकगण स्वंय अंदाजा लगा सकेंगे की स्वामी जी की समीक्षा में अश्लीलता दिखाई देती है या फिर कुरान में |

कुरान सूरह अल वाकिया आयत १२-२४/३४/३५/३६

नेमतो वाले बाग़ में बड़ी जमात पहलों में से और थोड़े पिछलो में से सोने की तारो से बने हुए पलंग पर तकिये लगाये उस पर बैठे हुए आमने सामने उनके लड़के फिरेंगे हमेशा लड़के ही रहने वाले आबखोरो और सुराहियो के साथ शराब के प्याले लिए हुए जिनसे न तो सर में दर्द होगा न ही उनकी अक्लो में फतूर आएगा | और मेवे जो वे पसंद करेंगे और पक्षियों का गोश्त जो वह चाहेंगे | और बड़ी बड़ी आँखे वाली हुरे जैसे मोती सीपी में छिपे हो | उसकी जजा जो वे करते थे और बड़े बिछोने | हम उन्हें कुंवारी बना देंगे , महबूब और हम उम्र |

पाठको यह ध्यान रहे की यह सब खुबिया कुरान की जन्नत की है न की वेश्याघर की | वैसे इन आयतों से पता चलता है की कुरान की जन्नत वेश्याघर से कुछ अधिक है | इन आयतों में विचारने वाली बात यह भी है कि ये सब सुविधाए पुरुषो को मिलेंगी , पुरुषो को लड़के भी मिलंगे जो हमेशा लड़के ही रहेंगे अब यह तो अल्लाह जाने की उन लडको की क्या आवश्यकता ? कहीं अल्लाह ने स्वर्ग में समलैंगिकता का तो बंदोबस्त नहीं कर दिया ? इस आयत से तो यही लगता है वरना हमेशा लड़के ही रहने वाले लडको की क्या आवश्यकता | भले ही मुसलमानों के लिए धरती पर शराब हराम क्यों न हो पर जन्नत में इन्हें शराब के प्याले भी मिलेंगे अब ये तो अल्लाह ही जाने की जन्नत में शराब की क्या आवश्यकता पड़ गई ? स्वामी जी ने बड़ा उचित सवाल उठाया है की इसलिए अच्छी-अच्छी स्त्रियाँ और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिए नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमत्त हो जावें | और अल्लाह ने अगली ही आयतों में उन नशेबाजो के लिए हूरो और हम उम्र मह्बुबो की व्यवस्था कर दी | गुप्ता जी जरा बतायेंगे की अल्लाह ने हम उम्र मह्बुबो और हूरो की व्यवस्था किस लिए की है जन्नत में ?अब गुप्ता जी बताइए की अल्लाह , उसकी कुरान और उसकी जन्नत अश्लीलता दिखा रही है या स्वामी जी की समीक्षा ? इन आयतों से एक प्रश्न और अल्लाह के ऊपर खड़ा हो गया की जब अल्लाह ने कुरान सूरह अन नूर आयत ४१ में लिखा है की पक्षी भी नमाज अदा करते है तो क्या एक नमाजी को दुसरे बेगुनाह नमाजी का गोश्त खाना उचित है ?

सतीश चंद गुप्ता :-

दूसरी जगह देखिए स्वामी जी क्या लिखते हैं –

क्योंजी मोती के वर्ण से लड़के किस लिए वहाँ रक्खे जाते हैं? क्या जवान लोग सेवा वा स्त्रीजन उनको तृप्त नहीं कर सकतीं? क्या आश्चर्य है कि जो यह महा बुरा कर्म लड़कों के साथ दुष्ट जन करते हैं उसका मूल यही कुरान का वचन हो और बहिश्त में स्वामी सेवकभाव होने से स्वामी को आनन्द और सेवक को परिश्रम होने से दुःख तथा पक्षपात क्यों हैं ? और जब खुदा ही उनको मद्य पिलावेगा तो वह भी उनका सेवकवत् ठहरेगा, फिर खुदा की बड़ाई क्योंकर रह सकेगी? और वहाँ बहिश्त में स्त्री-पुरूष का समागम और गर्भस्थिति और लड़के-बाले भी होते हैं वा नहीं ? यदि नहीं होते तो उनका विषय सेवन करना व्यर्थ हुआ और जो होते हैं तो वे जीव कहाँ से आये? और बिना खुदा की सेवा के बहिश्त में क्यों जन्मे? यदि जन्मे तो उनको बिना ईमान लाने और किन्हीं को बिना धर्म के सुख मिल जाए इससे दूसरा बड़ा अन्याय कौन-सा होगा? (14-152)

उक्त कुरआन की समीक्षा को पढ़कर क्या ऐसा नही लगता, जैसे कोई बद-जबान आदमी शराब पीकर अनाप-शनाप बकना शुरू कर दे? एक विद्वान और सभ्य पुरूष का अपना एक बौद्धिक स्तर (Intellectual Level) और एक नैतिक स्तर (Moral Standred) होता है। वह अपनी बात शिष्टता और सभ्यता के साथ कहता है बशर्ते वह आलोचना अथवा विरोध ही क्यों न कर रहा हो। उसके तर्कों में गहनता और गंभीरता होती है। मेरा तो यही मानना है कि एक विद्वान और पुण्यात्मा पुरूष कभी ऐसी अनाप-शनाप बातें (Talking) नहीं कर सकता।

आर्य सिद्धान्ती :- गुप्ता जी यदि आपने कुरान की वो आयते भी लिखी होती जिनकी स्वामी जी ने समीक्षा की है तो पाठको को कुरान की झलकियाँ देखने को मिल जाती |

आइये हम कुरान की वो आयत लिखते है जिसकी स्वामी जी ने समीक्षा की है कुरान सूरह अद दहर आयत १९/२१ – और फिरेंगे ऊपर लड़के सदा रहने वाले , जब देखेगा तू उनको ,अनुमान करेगा तू उनको मोती बिखरे हुए | और पहनाये जावेंगे कंगन चांदी के और पिलावेगा उन को रब उन का शराब पवित्र |

इन आयतों में भी इस्लामी जन्नत का वर्णन है | अब गुप्ता जी आप ही बता दीजिये की इन सदा रहने वाले लडको का क्या काम है ? जिस प्रकार से अल्लाह ने इनके रंग रूप की प्रशंसा करते हुए इन्हें मोती के सामान लिखा है इस से तो प्रतीत होता है की इनका उपयोग सम्बंध बनाने के लिए ही होगा | अगर केवल शराब पिलाना होता तो जवान लोगो को भी रक्खा जा सकता था सदा लड़के रहने वाले लड़के ही क्यों ? यदि काम तृप्ति के लिए रखा गया था तो क्या स्त्री उनकी तृप्ति नहीं कर सकती थी जो लडको को ही चुना ? कहीं अल्लाह को स्वंय तो समलैंगिकता पसंद नहीं थी ? गुप्ता जी प्रश्न तो अब भी वाही है आपने समीक्षा को अश्लील कह कर उस से पल्ला झाड़ लिया | एक बुद्धिमान व्यक्ति को यदि ये आयत पढाई जाए तो उसके मन में यही सवाल आएगा की आखिर लड़के ही क्यों ?

अंत में कुछ आयते जिनसे अंदाजा लगाया जा सकता है की किसी ने शराब पीकर समीक्षा की है या फिर किसी ने शराब पीकर आयते उतारी है |

१. कुरान ५६/५ – और पहाड़ उड़ाए जायेंगे |

२. कुरान ७५/९ – इकट्ठा किया जावेगा सूर्य और चाँद |

३. कुरान ८१/१- जब की सूर्य लपेटा जावेगा |

४. कुरान ८१/२ –जब की तारे गदले हो जावेंगे |

५. कुरान ८१/३ – जब की पहाड़ चलाए जावेंगे |

६. कुरान ८१/११ – जब आसमान की खाल उतारी जायेगी |

७. कुरान ८२/१ – जब आसमान फट जावे |

८. कुरान ८२/२ – जब तारे झड़ जावे |

९. कुरान ८२/३ – जब दर्या चीरे जावे |

१०. कुरान ८२/४ – जब कब्रे जिला कर उठायी जावे |

११. कुरान १३/२७ – कह निश्चय अल्लाह गुमराह करता है |

१२. कुरान २/६० –मूसा ने अपनी कौम के लिए पानी माँगा , हम ने कहा की अपना दंड पत्थर पर मार | उसमे से बारह चश्मे बह निकले |

१३. कुरान ५/१२ – अल्लाह को अच्छा उधार दो |

१४. कुरान ६६/९ – ऐ नबी झगड़ा कर काफ़िरो से |

इन सब आयतों से पता चल सकता है की नशे में किसने लिखा है क्या यह सब बाते अल्लाह की हो सकती है ? स्वामी जी की समीक्षाओ में कहीं पर भी कोई बात तर्कहीन नहीं दिखती | बल्कि जिसके कारनामो से जो सिद्ध होता है व्ही लिखा है | जब आयतों में हूरो , लड़कों और महबूबाओ की बाते होंगी तो भला समीक्षा में ये सब प्रश्न क्यों नहीं आने चाहिए ? आप स्वंय बताइए की इन आयतों की समीक्षा में क्या लिखा जाता ?