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मुर्गे क्यों बांग देते हैं? गधे क्यों रेंकते हैं ?- इस्लाम के नज़रिए में :

ईश्वर द्वारा बनायी इस सृष्टि में सभी जीव ईश्वर द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते हए जीवन यापन करते हैं. जिन्हें जिव्ह्या प्रदान की है वो उसका प्रयोग अपने भावों को व्यक्त करने के लिए करते हैं . चाहे वो खुशी को व्यक्त करना चाहें या दुःख को या जीवन की अलग अलग भावनाओं और आवश्यकताओं को.

लेकिन हदीसों का अवलोकन करने पर हम इसका एक अन्य कारण भी पाते हैं :-

सहीह बुखारी हदीस नॉ ५२२ , पृष्ट संख्या ३३२

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अबू हुरैरा से रिवायत है की मुहम्मद साहब ने कहा कि जब आपको मुर्गे की बांग सुनाई दे तो अल्लाह से दुआ मांगों क्योंकि मुर्गे का बांग देना यह  प्रदर्शित करता है कि इसने फरिश्तों को देखा है . और जब तुम गधे का रेंकना सुनो तो अल्लाह से शरण की दुआ करो क्योंकि गधे का रेंकना यह प्रदर्शित करता है की गधे ने शैतान को देखता है .

यही हदीस सहीह मुल्सिम में भी है :

सहीह मुस्लिम जिल्द ४ हदीस २७२९ पृष्ठ संख्या २६५

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अबू हुरैरा ने बताया कि अल्लाह के रसूल ने कहा की जब तुम मुर्गे की बांग को सुनो तो अल्लाह से अपने लिए दुआ मांगो क्योंकि मुर्गे ने फरिश्तों को देखा है और जब तुम गधे का रेंकना सुनो तो शैतान से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करो क्योंकि गधे ने शैतान को देखा है .

बड़ा ही नायब तर्क  है गधे के रेंकने  और मुर्गे के बांग देने का !

विज्ञान तो अभी तक फरिश्तों और  शैतान के अस्तित्व को खोजने में ही असफल रहा है.

मौलवियों को आवश्यक है कि विज्ञानं द्वारा इस तथ्य को साबित करें क्योंकि ज्ञान का प्रचार प्रसार होना सभी के हित में है.

वैसे ये शैतान है बडा ही अद्भुत पात्र क्योंकि अल्लाह को भी  शैतान की फिक्र लगी रहती है और अल्लाह के दिखाए मार्ग पर चलने वाले मुसलमान भी इसके डर से खौफजदा रहते हैं और बार बार अल्लाह से शैतान से  बचने के लिए दुआ करते रहते हैं .

ये हमारी दरख्वास्त है मौलियों आलिमों फाज़िलों  से कि इस्लाम की इस खोज को कि मुर्गे क्यों बांग देते और गधे क्यों रेंकते हैं की  हकीकत को विज्ञानं की दृष्टि में सिद्ध करें जिससे सत्य का प्रसार विश्व भर में हो .

 

अल्लाह ने ‘कुन’ कहा और …….- राजेन्द्र जिज्ञासु

एक करणीय कार्यःगुजरात यात्रा में हम लोगों ने महर्षि की गुजरात यात्रा तथा महर्षि के जीवन पर तो व्यायान दिये ही, इनके साथ सैद्धान्तिक व आध्यात्मिक व्यायान तथा प्रवचन भी देते रहे। एक नगर में महर्षि दयानन्द की वैचारिक क्रान्ति तथा विश्वव्यापी दिग्विजय पर बोलते हुए मैंने मत पन्थों के नये-नये ग्रन्थों के उद्धरण देकर ऋषि दयानन्द की दिग्विजय व अमिट छाप के प्रमाण दिये तो आदरणीय आचार्य नन्दकिशोर जी ने यात्रा की समाप्ति तक बार-बार यह अनुरोध किया कि अपनी इस नवीन खोज व चिन्तन पर कुछ लिख दें। अधिक नहीं तो 36-48 पृष्ठ की एक पुस्तक अतिशीघ्र लिखकर छपवा दें।

मैंने उनकी प्रेरणा को स्वीकार करते हुए इस करणीय कार्य को अतिशीघ्र करने को कहा। श्रीमान् आनन्द किशोर जी की यह बहुत बड़ी विशेषता है कि वह दिन-रात धर्म प्रचार व साहित्य के लिये सोचते रहते हैं।

मैंने उस व्यायान में कहा क्या? इस पर कुछ लिखना नई पीढ़ी व पुराने आर्यों सबके लिए लाभप्रद रहेगा। उ.प्र. के गोरखपुर जनपद से भी आर्य बन्धु श्री लल्लनसिंह का एक ऐसा ही पत्र मिला है। ऋषि जी ने सृष्टि नियमों को अनादि, अटल व नित्य माना है। महर्षि ने तीन पदार्थों को अनादि व नित्य माना है। धर्म को सार्वभौमिक माना है। ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव के विपरीत कुछ भी ऋषि को मान्य नहीं है। यह है ऋषि की मूलभूत विचारधारा जिसका आज संसार में डंका बज रहा है। आर्यसमाज महर्षि दर्शन की दिग्विजय के प्रचार को पूरी शक्ति से, ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पा रहा। मैंने कहा, इस्लाम का दृष्टिकोण यह रहा कि अल्लाह ने ‘कुन’ कहा तो सृष्टि रची गई। ‘कुन’ कहा किस से? श्रोता जब कोई था ही नहीं तो यह आदेश जड़ को दिया गया या चेतन को? बिना उपादान कारण के सब सृष्टि जब रची गई तो फिर अल्लाह अनादि काल से पालक, मालिक, न्यायकारी, दाता व स्रष्टा कैसे माना जा सकता है? कुरान  में अल्लाह के इन नामों की व्याया तो कोई करके दिखावे?

आज उपादान कारण के बिन ‘कुन’ कहकर कोई सूई, मेज, चारपाई, चाय की प्याली तो बनाकर दिखा दे। चाँद-सूरज तो भगवान् ही बना सकता है। यह हमें मान्य है परन्तु जीव अपने वाला कोई कार्य तो करके दिखा दे।

इरान, जापान, मिश्र, पाकिस्तान व अमरीका, बंगला देश के सब वैज्ञानिक यह मानते हैं कि Matter can neither be created nor it can be destroyed. अर्थात् प्रकृति को न तो कोई उत्पन्न कर सकता है और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है। बाइबिल व कुरान की किसी आयत से ऐसा सिद्ध नहीं हो सकता। वहाँ तो ‘कुन’ मिलेगा अथवा। बाइबिल की पहली आयत ‘पोल’ की चर्चा करती है। बाइबिल के नये संस्करणों में VOID (पोल) का लोप हो जाना वैदिक धर्म की दिग्विजय माननी पड़ेगी।

ÒÒand the spirit of God was howering over the waters.ÓÓ  अर्थात् परमात्मा का आत्मा जलों पर मंडरा रहा था। हम बाइबिल के इस कथन पर दो प्रश्न पूछने की अनुमति माँगते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जल कहाँ से आ गये? सृजन का कार्य तो अभी आरभ ही नहीं हुआ। जलों को किसने बना दिया? जल ईश्वर द्वारा बनाने की बाइबिल में कहीं चर्चा ही नहीं। ईश्वर के अतिरिक्त प्रकृति (जल) का होना बाइबिल की पहली आयत से ही सिद्ध हो गया। फिर यह भी मानना पड़ेगा कि बाइबिल का ईश्वर यहाँ शरीरधारी नहीं। वह निराकार है। आगे बाइबिल 3-8 में हम पढ़ते हैं ÒÒThen the man and his wife heard the sound of the Lord God as he was walking in the garden in the cool of the day.ÓÓ अर्थात् तब आदम व उसकी पत्नी ने परमात्मा की आवाज सुनी। वह (परमात्मा) दिन की ठण्डी में वाटिका में सैर कर रहा था।

यहाँ परमात्मा देहधारी के रूप में उद्यान में विचरण करते हुए उन दोनों की खोज करता है। आवाजें लगाता है कि तुम कहाँ हो? परमात्मा का शरीर कब बना? किस ने बनाया? किससे बनाया? मनुष्य तो भक्ति भाव से मक्का, मदीना, काशी व यरुशलम में ईश्वर को खोजते फिरते हैं। यहाँ ईश्वर अपनी बनाई जोड़ी को खोजने निकला है। उसकी सर्वज्ञता पर ही पानी फेर दिया गया है। ऐसे-ऐसे कई प्रश्न श्री हरिकिशन जी की पूना से छपी पुस्तक ‘बाइबिल-ईश्वरीय सन्देश।’ में पाठक पढ़ें तो। हमनेाी इसके प्राक्कथन में एक प्रश्न उठाया है। अब बाइबिल में ‘उत्पत्ति’ पुस्तक में दो बार ÒHuman BeingsÓ शब्दों  का प्रयोग किया गया है अर्थात् एक जोड़ा नहीं कई जोड़े सृष्टि के आदि में बिना माता-पिता के (अमैथुनी) उत्पन्न किये गये।

क्या यह सब कुछ महर्षि दयानन्द जी की दिग्विजय नहीं है? गत 50-60 वर्षों में आर्य लेखकों की पुस्तकों की सूचियाँ बनाकर प्रचारित करने को ही शोध समझ लिया गया। पं. लेखराम जी से लेकर उपाध्याय जी पर्यन्त सैद्धान्तिक दृष्टि से बाइबिल कुरान आदि पर समीक्षा व शोध करना छूट गया। फिर भी आप इसे पं. लेखराम जी, पं. चमूपति जी की परपरा के विद्वानों की तपस्या का चमत्कार मानेंगे कि बाइबिल के भाव तो बदले सो बदले, पाठ के पाठ बदल दिये गये हैं। ऋषि की इस दिग्विजय पर श्री नन्दकिशोर जी ‘कुरान सत्यार्थ प्रकाश के आलोक में’ जैसा एक ग्रन्थ मुझसे चाहते हैं। बड़ा ग्रन्थ न सही 48 पृष्ठ का ही हो जाये। उनका यह अनुरोध मुझे मान्य है।

आयशा की हड्डी

सहीह मुस्लिम में दी गयी  एक हदीस (अध्याय -३  , हदीस संख्या ३००  , पृष्ट संख्या २२० , २२१) पढ़िए

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सारांश ये है कि आयशा ने बताया कि मासिक धर्म के समय जब मैं  पेय पदार्थ पी रही होती थी तो मैं उस बर्तन को जिसमें से  पेय पदार्थ  पी रही होती थी मुहम्मद साहब को दे दिया करती थी और वह उस जगह जिस जगह मैने मुंह लगा के पीया होता था अपना मुंह लगा कर पी लिया करते थे  और जब मासिक धर्म के समय  में मैं  हड्डी से मांस खा रही होती थी तो  उसे मुहम्मद साहब को दे दिया करती थी और वो उसी जगह जहाँ मेरा मुंह होता था अपना मुंह लगाते थे . ज़ुहैर ने पीने के बारे में कुछ नहीं बताया.

यही हदीस अहमद बिन हम्बल ज ६ स ६४ पर कुछ शब्दों के हेर फेर से दी हुयी है :

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आयशा का बयान है कि :

दस्तरख्वान पर जब आं हजरत मेरे साथ खाना खाते तो उसी हड्डी को आप भी चूसते, जिसे मैं चूसती थी और उसी प्याले में उसी जगह आप भी मुंह लगाकर पीते जिस प्याले में जहाँ पर मैं मुंह लगाती थी हालांकि में हैज़ की हालात में होती थी .

सभ्यताओं के  इतिहास व उनके महापुरुषों के  आचरण से युवक प्रेरणा ग्रहण कर  महापुरुषों के उत्तम आचरण को अपने व्यवहार में ढालते और उनके उद्देशों की पूर्ति के लिए अग्रसर होते हैं . यही उस सभ्यता एवं संकृति के उत्थान या पतन को निश्चित करता है . यदि इतिहास उत्तम है और युवक उससे प्रेरणा ग्रहण कर उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं तो उस सभ्यता का उत्थान होता है अन्यथा वह पतन के गर्त में चली जाती है .

हदीसें मुसलामानों के इतिहास का एक बड़ा स्त्रोत है . और इस स्त्रोत में सबसे ज्यादा हदीसें शायद हजरत आयेशा के माध्यम से ही हैं . लेकिन इस हदीसों को पढने से उत्तम आचरण और सभ्यता के समन्वय का अभाव ही दृष्टि गोचर होता है.

इस हदीस का हम क्या विश्लेष्ण करें मुस्लिम लेख्रक फरोग काजमी साहब ने बड़े ही प्रभावी ढंग से वर्णन किया है उसे ही पाठकों के लिए देते हैं :

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  • इस बयान के जरिये हजरत आयशा का मकसद सिर्फ ये जाहिर करना है कि रसूले खुदा आपको इस कदर चाहते थे कि उन्हें आपके थूक या हैज़ से कोई गुरेज़ नहीं था .
  • लेकिन ये बात समझ में नहीं आती कि आखिर आं हजरत उसी हड्डी को क्यों चूसते थे जिसे आप चूसती थी ?
  • क्या आधी हड्डी आपके और आधी हड्डी पैगम्बर के मुंह में होती थी ?
  • क्या उस हड्डी में दोनों तरफ छेद होता था कि आधा गूदा आपके हिस्से में और आधा गूदा पैगम्बर के हिस्से में आता था ?
  • या फिर चूसने का कोई और तरीका था कि जब आप उस हड्डी को चूस लेती थी, तो पैगम्बर चूसते थे ?
  • मगर आपके चूसने के बाद उसमें गोश्त गूदा या शोरबा वगैरहा तो रहता न होगा, फिर पैगम्बर क्या चूसते थे?
  • बयान में ये सराहत भी नहीं की गयी कि जिस प्याले में आयशा और पैगम्बर एक ही जगह मुंह लगाकर पीते थे उसमें क्या चीज होती थी ? पानी ………….. या कुछ और !

फरोग काजमी साहब इन हदीसों से अत्यंत विचलित प्रतीत होते हैं और कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग आयशा, जो मुसलामानों की माँ हैं, के लिए किया है उन्हें  हम यहाँ लिखना ठीक नहीं समझते .

मुस्लिम विद्वानों को चाहिए कि इतिहास में से ऐसे सन्दर्भ जो ठीक नहीं हैं पर स्पष्टीकरण दें जिससे ये किसी महापुरुष की छवि को धुमिल  करने का करना न बनें

ये कैसा ईश्वरीय ज्ञान ! : शैतान खून की तरह शरीर में घूमता है

इस्लाम की मान्यता के अनुसार मुहम्मद साहब आखिरी पैगम्बर हैं . अल्लाह ने अपनी पहले भेजी हुयी सारी किताबें, जो पुरानी हो चुकी थीं और उनका ज्ञान भी पुराना हो गया था , निरस्त करके मुहम्मद साहब को भेजा और उन्हें अपनी  आख़िरी किताब कुरान देकर  से नवाजा.

इस्लामी मान्यता के अनुसार आसमान से कुरान की आयतें मुहम्मद साहब पर उतरा करती थीं जो ज्यादातर फरिश्तों द्वारा लाई जाती थीं . इसे वही उतरना कहा जाता है . मुहम्मद साहब, इस्लाम की मान्यतानुसार,   इस्लाम के अंतिम पैगम्बर अर्थात अल्लाह की रचाई गयी इस सृष्टी के अंतिम संदेशवाहक हैं .

उपर्युक्त कथन की दृष्टी से देखा जाये तो मुहम्मद साहब की एक  विद्वान, विचारक आदि गुणों से संपन्न व्यक्ति की छवि किसी के पटल पर उतरना स्वाभाविक है .लेकिन जब हम इस्लामी इतिहास का अध्ययन करते हैं तो वास्तविकता को इससे विपरीत ही पाते हैं :-

शैतान खून की तरह शरीर में घूमता है :

कृपया नीचे दी हुयी हदीस को पढ़िए जो सहीह बुखारी जिल्द ३   से ली गयी है :

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साफिया जो मुहम्मद साहब की पत्नी थीं ने अली बिन अल हुसैन को बताया कि मुहम्मद साहब इतिकाफ के वक्त अपनी बेगमों के साथ मस्जिद में थे . जब बेगम जाने लगीं  तो मुहम्मद साहब ने साफिया से कहा कि जल्दी मत करो में भी तुम्हारे साथ चलूँगा ( उस समय मुहम्मद साहब उसामा के साथ रह रहे थे ) मुहम्मद साहब बाहर  गए और तभी तो अंसारी व्यक्ति उन्हें मिले उन्होंने मुहम्मद साहब की ओर देखा और चले गए . मुहम्मद साहब ने उनसे कहा यहाँ आओ . वह साफिया बिन्त हयाई मेरी बेगम है . अंसारों ने जवाब दिया : “माशा अल्लाह “ ( हम बुरा  सोचने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं! ) हे अल्लाह के रसूल ! हम कभी आपसे बुराई की उम्मीद नहीं करते .

मुहम्मद साहब ने जवाब दिया “ शैतान इंसानों में ऐसे घूमता है जैसे की रक्त का प्रवाह व्यक्ति में होता है .और मुझे डर था कि कहीं ऐसा न हो कि  कहीं शैतान तुम्हारे विचारों में बुरे विचार घुसा सकता है  .

उपर्युक्त हदीस से यह विदित होता है कि इस्लाम के अंतिम पैगम्बर इस मान्यता के पोषक थे कि  व्यक्ति के शरीर में खून के साथ साथ शैतान का प्रभाव भी होता है जो कि व्यक्ति के मानसिक विचारों को बदलने की क्षमता रखता है .

 

शैतान नाक के उपरी भाग में रहता है :

अब इसी एक और हदीस पर नजर डालते हैं जो सहीह बुखारी जिल्द चार से है :

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अबू हुरैरा ने बताया की मुहम्मद साहब ने कहा की यदि आपमें से कोई जब निद्रा से जागता है और वजू करता है तो उसे उसे अपनी नाक में पानी डालकर इसे धोना चाहिए और पानी को बाहर निकाल देना चाहिए क्योंकि पूरी रात उसकी नाक के उपरी हिस्से में शैतान ने निवास किया है .

इसी हदीस को सहीह मुस्लिम ने भी कुछ शब्दों  के हेर फेर से लिखा है कि अबू हुरैरा ने बताया की मुहम्मद साहब ने कहा की आप आप निद्रा से जागो तो वजू करते समय अपनी नाक को तीन बार साफ करना चाहिए क्यूंकि पुरी रात शैतान उसके अन्दर निवास करता है .

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अब देखिये मस्लिम विद्वान् इन बातों पर कैसे लीपा पोती कर रहे हैं :

अब्दुल हामिद सिद्दकी साहब अपनी सहीह मुस्लिम की व्याख्या में शान वलीउल्लाह साहब की हज़ातुल्लाह अल बलिघ जिल्द १ का रिफरेन्स देके कहते यहीं कि  नाक में गन्दगी का होना मनुष्य के मष्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और उसे बुरे सपने आते हैं .

मौलवी साहब बड़ी ही चतुराई से शैतान के होने की सम्भावना को नकार गए और शैतान को गन्दगी से जोड़ दिया .

इसी प्रकार देखिये इस्लामिक विश्वविद्यालय मदीना अल मुनाव्वारा के डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब साहील अल बुखारी की व्याख्या में कहते हैं कि हमें यह मानना चाहिए की शैतान वास्तव में व्यक्ति की नाक के उपरी भाग में रहता है हालांकि हम नहीं समझ सकते कि वह कैसे रहता है यह उस अदृश्य विश्व से सम्बन्ध रखता है जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते हम केवल उतना ही जानते हैं जितना अल्लाह पैगम्बर के माध्यम से बताता है .

आपने इन हदीसों के ऊपर मुस्लिम विद्वानों की का संशय और संशय के निवारण में घुमा फिर के कही गयी बातें तो देख लीं. उपर्युक्त व्याख्याओं से यह तो सिद्ध हो जाता है कि मुस्लिम विद्वान भी इन हदीसों पर उठे हुए प्रश्नों पर उपापोह की स्तिथी में हैं . जन साधारण के मन में इन हदीसों को पढ़ के प्रश्न उठाना जायज़ ही है कि:

  • शैतान का अस्तिव्त क्या है ?
  • क्या शैतान अल्लाह से ज्यादा ताकतवर है जो अल्लाह के मनाने वालों को तंग करता रहता है ?
  • शैतान नाक के कौनसे हिस्से में और कहा रहता है
  • क्या शैतान सर्व्व्यापी है जो सभी के नाक में एक साथ उपस्थित हो जाता है ?
  • यह शैतान क्या केवल मुस्लिमों की नाक में रहता है या गैर मुस्लिमों की नाक में भी रहता है ?
  • यदि शैतान गदगी के रूप में है तो केवल नाक में ही क्यूँ है शरीर के बाकी हिस्स्सों में भी तो गन्दगी होती है ?
  • इस शैतान को अल्लाह ने पैदा ही क्यूँ किया ? तो न केवल अल्लाह की बनाये हुए इस संसार में इस कदर आतंक मचाता है ?
  • शैतान यदि खून में बहता है तो विज्ञानं उसे आज तक पहचान क्यूँ नहीं पाई ?
  • अल्लाह के मनाने वालों को शैतान का गुमराह करना अल्लाह की सर्वशक्तिमान जैसी विशेषताओं को खुली चुनौती है
  • जब अल्लाह के पैगम्बर यह जानने में सक्षम नहीं थे की अंसारी बंधुओं के दिमाग में शैतान ने प्रभाव किया या नहीं तो बाकी के लोग शैतान को कैसे जानने में सक्षम होंगे . और जैसे की मुल्सिम विद्वानों ने ऊपर हदीसों की व्याख्या में कहा है कि हम शैतान को नहीं जान सकते तो अल्लाह मियां ने ऐसी रचना की ही क्यूँ जिसको कि जिसको जाना ही न जा सके ? यह अल्लाह की श्रृष्टि में एक दोष पैदा करती है कि एक ऐसी कृति का निर्माण किया गया जो उसके बनाये गए लोगों के बीच में रहती उनके जीवन को प्रभावित करती है लेकिन वो लोग उसके बारे में जान ही नहीं सकते .

iciज्ञान के इस युग में इस तरह की हदीसों की शिक्षा न केवल मुस्लिम समाज के लिए हास्य का कारण  बनती हैं बल्कि इन मत पंथों के लोगों को भी अन्धविश्वासी बनाती है .

प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य व नैतिक दायित्व है की सत्य को ग्रहण करे और असत्य का त्याग करे . इसलिए मुसलमान विद्वानों को चाहिए की या तो इन हदीसों की विश्वशनीयता से विश्व को अवगत कराएं या फिर इन हदीसों का परित्याग करें क्यूंकि ये न केवल उपहास का कारण हैं अपितु मुसलमानों के मान्य मुहम्मद साहब के नाम को भी धूमिल करने का कारण हैं .

जहाँ शैतान करता है कानों में पेशाब

शैतान के अस्तित्व्य की विचारधारा कई पंथों के सिद्धांतों की आधारशिला है . शैतान का अस्तित्व न तो ये मत पंथ ही आज तक सिद्ध कर सके  हैं न ही विज्ञानं इसकी किसी अस्तित्व्य की संभावना से  इत्तिफाक रखता है . शैतान इन मत मंथीय साहित्य के एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली किरदारों  में से एक है जो निरन्तर इन मत पंथियों के ईश्वर की सत्ता को नकारता एवं  कदम दर  कदम  उसके सर्वशक्तिमान होने के दावे को खण्डित करता है.

शैतान की यह कल्पना अवैज्ञानिक तो है ही अनेकानेक स्थानों पर अत्यंत ही उपहास का कारण बनाती है :-

सहीह अल बुखारी ने की ये हदीस पढ़िए :

जिल्द ४

1.2.

सारांश यह है कि अबू हुरैरा ने बताया कि  मुहम्मद साहब ने कहा कि शैतान तुम सभी के सिर के पीछे तीन गांठें बाँध देता है और और वह हर गाँठ को बंधाते समय प्रत्येक साँस के साथ कहता है कि “ रात्री लम्बी है इसलिए अभी सोते रहो “

यदि व्यक्ति जाग जाता है और अल्लाह के गुणगान गाता है तो उसकी एक गाँठ खुल जाती है और जब वह वजू करता है तो दूसरी गाँठ खुल जाती है और जब वह नमाज़ अदा करता है तो तीनों गांठे खुल जाती हैं .

और वह व्यक्ति सुबह का आनंद लेता है अन्यथा वह सुबह उस व्यक्ति को कुंठित करने और उदास रखने वाली होती है .

शैतान के अस्तित्व्य के यक्ष प्रश्न के अलाह अब इस्लाम के जानकारों से हमारी गुजारिश है कि  इस हदीस की प्रमाणिकता सिद्ध करें :

  • शैतान का सर के पीछे गाँठ लगाना .
  • गांठों का किसी को न दिखना
  • शैतान का वार्तालाप और
  • अल्लाह के गुणगान और वजू आदि से इन गांठों का खुल जाना
  • गांठें गांठें लगाने के लिए किसी पदार्थ का प्रयोग तो अवश्यम्भावी है तो शैतान वह गांठें कैसे और किस पदार्थ का प्रयोग करके लगाता है और वह  पदार्थ इसकेलिए कहाँ से प्राप्त करता है इत्यादि .

 

सहीह अल बुखारी में  इससे आगे एक हदीस और लिखी है जो  अत्यंत ही हास्यास्पद है :

जिल्द – ४

3.

सारांशतः अब्दुल्लाह ने बताया की एक बार मुहम्मद साहब को बताया गया कि एक व्यक्ति सुबह तक अर्थात सूर्य उगने के बाद तक सोया रहा . मुहम्मद साहब के कहा यह वो व्यक्ति  है जिसके कानों में शैतान ने मूत्र का त्याग किया है .

यह हदीस शैतान के मस्तिष्क के पीछे गांठे लगाने से आगे बढ़कर शैतान द्वारा मुसलमानों के कानों में मूत्र त्याग के बारे में बताती है जो न ही हास्यास्पद है बल्कि अवैज्ञानिक मान्यता की पोषक  भी है .

वर्तमान युग में अनेकों व्यक्ति चाहे वो मुस्लिम हैं मुशरिक हैं सूर्योदय के पश्चात् निद्रा त्यागने के अभ्यस्त हैं लेकिन आज तक किसी ने ऐसी शिकायत नहीं की और न ही किसी की शैतान के मूत्र त्यागने के कारण निद्रा ही टूटी है .

यदि किसी भी व्यक्ति से, जिसने  सूर्योंदय के बाद निद्रा त्याग किया है, से कहा जाये की शैतान ने आपके कान में मूत्र त्याग किया है तो वह कहने वाले को मानसिक रोगी ही  समझेगा ऐसे में यह मौलानाओं का दायित्व्य बनता है कि इस हदीस की वैज्ञानिकता को सिद्ध करें जिससे सभी को इस हदीस की सत्यता का ज्ञान हो सके.

 

मौलवियों को १४०० साल लग गए लेकिन …….

यह सर्व विदित है की मक्खियाँ बीमारी फ़ैलाने का कारण बनती हैं. हैजा तापिदिक जैसी अनेकों बीमारियों को फैलाने में मक्खियाँ सहायक  हैं. ये मक्खियाँ इधर उधर फ़ैली हुयी गंदगी पर बैठती हैं और विषैले जीवाणुओं को अपने माध्यम से खाने पीने की चीजों तक ले जाती हैं. इन खाद्य पदार्थों का हम जब सेवन करते हैं तो बीमार होना स्वाभाविक है क्योंकि मक्खियों द्वारा इन खाद्य पदार्थों पर लाये गए विषैले जीवाणु हमें बीमार कर देते हैं.यही कारण है कि सरकार और समाज सेवी संस्थाओं द्वारा सामाजिक चेतना का कार्य किया जाता है कि हम ऐसे खाद्य पदार्थ खाने से बचें जिन मक्खियाँ बैठी हों.

अब देखिये की मक्खियों के बारे में हदीस क्या कहती है :

सहीह बुखारी ४: ५४ : ५३७

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तात्पर्य है कि  अबू हरैरा का कथन है की मुहम्मद साहब ने कहा कि यदि मक्खी आपके पेय  पदार्थ (Drink ) में गिर जाए तो आपको उसे डूबने देना चाहिए क्योंकि उसके एक पंख में बीमारियाँ और दुसरे पंख में इन बीमारियों का इलाज़ है.

ये हदीस सहीह बुखारी में एक और जगह आयी है और यही बात कुछ शब्दों के उलटफेर के साथ पुनः कही गयी है

सहीह बुखारी ७ : ७१  : ६७३

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यह भी अबू हरेरा की कही हदीस है की अल्लाह के रसूल ने कहा की यदि कोई मक्खी किसी बर्तन में गिर जाये तो उसे बर्तन में डूब जाने दो और फिर उसे फेंक दो क्यूंकि इसकी एक पंख में बीमारियाँ हैं और दुसरे में बीमारियों का इलाज़.

पिछले १४०० साल से ज्यादा हो गए मौलवियों को इस प्रश्न का उत्तर ढूंडते हुए लेकिन आजतक यह साबित नहीं कर पाए की मक्खियाँ जो बीमारी फैलाने का कार्य करती हैं उनकी पंखों में कौनसे रोगों को दूर करने की क्षमता होती है?

सहीह बुखारी पढ़ते हुए डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब जो इस्लामिक विश्वविद्यालय मदीना अल मुनावारा से ताल्लुकात रखते हैं का इस बारे में तर्क पढ़ा जो आपके समक्ष रख रहे हैं जिससे पाठक भी उन्हीं के शब्दों में समझ सकें :

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डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब का तात्पर्य है  कि यह आज सभी को पता है की मक्खियाँ कीटाणुओं को इधर उधर ले जाती हैं ये मुहम्मद साहब ने बताया उनके हिसाब से लगभग १४०० साल पहले मनुष्यों को आधुनिक विज्ञानं के बारे में बहुत कम जानकारी थी.

डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब के अनुसार हाल ही में हुए कुछ शोध ये बताते हैं की मक्खियाँ रोगाणुओं के साथ साथ एंटीबायोटिक भी फैलाती हैं .

डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब मक्खी को डुबाने का तात्पर्य समझाते हुए कहते हैं कि  जब मक्खी पेय पदार्थ को छूती  है तो तो ये उस पेय पदार्थ को उन रोगाणुओं से संक्रमित कर देती है इसलिए मक्खी को खाने में डूबा देना चाहिए जिससे की इसकी दूसरी पंख में लगा antibotic भी निकल जाये जिससे वो रोगाणुओं का नाश कर दे.

आगे डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब लिखते हैं कि मक्खी के पेट में कुछ  cells होते हैं को एंटीबायोटिक्स का काम  करते हैं जब मक्खी पेय पदार्थ में डुबोई जाती है तो ये सेल्स फट जाते हैं और इनसे निकले एंटीबायोटिक रोगाणुओं का नाश कर देते हैं.

अत्यंत ही नया तर्क था जो सामान्य व्यक्ति की तो समझ से परे है .

जहाँ समाजसेवी संस्थाएं और सरकारें मक्खियों द्वारा दूषित खाने लोगों को बचाने के लिए इतना व्यय कर रही है वह तो इन हदीसों की रोशनी में व्यर्थ ही प्रतीत होता है !

और वह चिकित्सा विज्ञान भी इन हदीसों के उजाले में झूठा साबित हो जाता है जो यह कहता है की मक्खियाँ रोगों को फैलाने का कार्य करती हैं .

१४०० साल में तो मौलवी इस सवाल का जवाब नहीं ढूंड पाए लेकिन डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब इस हदीस की व्याख्या में इस हदीस को साबित करते करते करते नई  बात कह गए जो मुहम्मद साहब ने भी नहीं कही कि मक्खी के पेट में एंटीबायोटिक्स होते हैं.

मौलवी साहब १४०० साल पहले लोगों को ये पता था या नहीं था की मक्खी रोगाणुओं को फैलाती हैं लेकिन आपने तो  जो नया तथ्य बताया है की मक्खी के पेट में एंटीबायोटिक्स होते हैं ये तो अभी तक भी शायद ही किसी गैर इस्लामी विद्वान या सामान्य व्यक्ति को पता हो और ये तो मुहम्मद साहब को भी शायद ही पता हो क्यूंकि उन्होंने तो मक्खी के पंख में बताया था .

आपने शोध की बात तो की लेकिन ये नहीं बताया की ये शोध कहाँ हुआ किस संस्था में हुआ इसकी रिपोर्ट कहाँ है . शायद आप बता देते तो चिकित्सा जगत के लिए ये नई उपलब्धी होती.

जो यक्ष प्रश्न १४०० साल से ज्यादा से खड़ा इस्लामिक विद्वानों से उत्तर की राह देख रहा है शायद उसकी तृप्ति हो जाती .

 

अब यह सुनिए मौसम किस तरह बदलते हैं : डॉ. गुलाम जिलानी बर्क ( دو اسلام )

हम और आप तो इतना ही जानते हैं और हकीकत भी यही है कि गर्मी में हम सूरज के करीब होते हैं और सर्दी में दूर . इसलिए गर्मी और सर्दी महसूस करते हैं .

गर्मी में जमीन के खाकी जर्रात गरम हो जाते हैं और चूँकि यह जर्रात पहाड़ों में  कम होते हैं इसलिए वहां मुकाबलतन ठंडक होती है . लेकिन हदीस कहती है :-

“अबू हुरैरा आ हजरत सल्ल्लम से रवायत करते हैं की एक मर्तबा जहन्नम ने खुदा के पास शिकायत की कि मेरा दम घुट जाता है इसलिए मुझे सांस लेने की इजाज़त दीजिये .

अल्लाह ने कहा कि तुम साल में सिर्फ दो सांस ले सकते हो . इसलिए जहन्नम की एक सांस से मौसम गरम और दूसरी में सरद पैदा हो गया .

लेकिन दुनिया की गरमी व सर्दी से जहन्नम की गर्मी व सर्दी बहुत ज्यादा है .”

(बुखारी जिल्द -२ )

 

लेकिन यह समझ में नहीं आया कि हर साल गर्मियों के मौसम में वही इलाके इस सांस की लपेट में क्यूँ आते हैं जो ख़त ए अस्तवा  ( भूमध्यरेखा ) के करीब  हैं . और सारा यूरोप सायबेरिया ग्रीन लैंड और कनाडा क्यूँ बच  जाते  हैं  .

और यह भी तो फरमाया होता कि गर्मियों में पहाड़ों पर क्यूँ गर्मी नहीं होते ? वहां तक इस सांस का असर क्यूँ नहीं  पहुंचता ?

और सर्दियों में  ख़त ए अस्तवा ( भूमध्यरेखा )का इलाका क्यूँ गरम रहता है ?

मालूम होता है कि जहन्नम ने जमीन  को दो हिस्सों में बाँट रखा है .

सर्दियों में वो अहले यूरोप की खबर लेता है और गर्मियों में हमारी.

सच है इन्साफ अच्छी चीज है

یہ  لیخ دو اسلام کتاب  سے لیا گیا ہے

 

 

अनवर जमाल साहब की पुस्तक “दयानंद जी ने क्या खोया क्या पाया” के प्रतिउत्तर में :

।। ओ३म ।।जनाब अनवर जमाल साहब ऋषि के ज्ञान और वेद के विज्ञानं पर शंका उत्पन्न करते हुए लिखते हैं :

यदि दयानन्द जी की अविद्या रूपी गांठ ही नहीं कट पायी थी और वह परमेश्वर के सामीप्य से वंचित ही रहकर चल बसे थे तो वह परमेश्वर की वाणी `वेद´ को भी सही ढंग से न समझ पाये होंगे? उदाहरणार्थ, दयानन्दजी एक वेदमन्त्र का अर्थ समझाते हुए कहते हैं-
`इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।´ (ऋग्वेदादि0, पृष्‍ठ 107)
(17) परमेश्वर ने चन्द्रमा को पृथ्वी के पास और नक्षत्रलोकों से बहुत दूर स्थापित किया है, यह बात परमेश्वर भी जानता है और आधुनिक मनुष्‍य भी। फिर परमेश्वर वेद में ऐसी सत्यविरूद्ध बात क्यों कहेगा?
इससे यह सिद्ध होता है कि या तो वेद ईश्वरीय वचन नहीं है या फिर इस वेदमन्त्र का अर्थ कुछ और रहा होगा और स्वामीजी ने अपनी कल्पना के अनुसार इसका यह अर्थ निकाल लिया । इसकी पुष्टि एक दूसरे प्रमाण से भी होती है, जहाँ दयानन्दजी ने यह तक कल्पना कर डाली कि सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रादि सब पर मनुष्‍यदि गुज़र बसर कर रहे हैं और वहाँ भी वेदों का पठन-पाठन और यज्ञ हवन, सब कुछ किया जा रहा है और अपनी कल्पना की पुष्टि में ऋग्वेद (मं0 10, सू0 190) का प्रमाण भी दिया है-
`जब पृथिवी के समान सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र वसु हैं पश्चात उनमें इसी प्रकार प्रजा के होने में क्या सन्देह? और जैसे परमेश्वर का यह छोटा सा लोक मनुश्यादि सृष्टि से भरा हुआ है तो क्या ये सब लोक शून्‍य होंगे? (सत्यार्थ., अश्टम. पृ. 156)
(18) क्या यह मानना सही है कि ईश्वरोक्त वेद व सब विद्याओं को यथावत जानने वाले ऋषि द्वारा रचित साहित्य के अनुसार सूर्य व चन्द्रमा आदि पर मनुष्‍य आबाद हैं और वो घर-दुकान और खेत खलिहान में अपने-अपने काम धंधे अंजाम दे रहे हैं?

समीक्षा : अब हमारे जनाब अनवर जमाल साहब कुरान के इल्म से बाहर निकले तो कुछ ज्ञान विज्ञानं को समझे पर क्या करे अल्लाह मिया ने क़ुरान में ऐसा ज्ञान नाज़िल किया की जमाल साहब उसे पढ़कर ही खुद आलिम हो गए। देखिये जमाल साहब ऋषि ने क्या कहा और उसका अर्थ क्या निकलता है :

ऋषि ने लिखा :

`इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।´ (ऋग्वेदादि0, पृष्‍ठ 107)

अब इसका फलसफा और विज्ञानं देखो – ऋषि को वेदो से जो ज्ञान और विज्ञानं मिला वो इन जमाल साहब को नजर नहीं आएगा –

आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है।

ऋषि का अर्थ है क्योंकि चन्द्रमा नक्षत्रो के पथ से जुड़ा है इसलिए अलंकार रूप में वहां लिखा है की नक्षत्रलोको के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया –

अब इसका वैज्ञानिक प्रभाव देखो :

तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा। इस प्रकार ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं। पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा। नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।

चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर ‘नक्षत्र चक्र’ कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं।

इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं। महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए।

ये ज्ञान और विज्ञानं वेदो में ही दिखता है क़ुरान में नहीं जमाल साहब।

क़ुरान का विज्ञानं हम दिखाते हैं जरा गौर से देखिये :

1. अल्लाह मियां तो क़ुरान में चाँद को टेढ़ी टहनी ही बनाना जानता है :

और रहा चन्द्रमा, तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पूरानी टेढ़ी टहनी के सदृश हो जाता है
(क़ुरआन सूरह या-सीन ३६ आयत ३९)

क्या चाँद कभी अपने गोलाकार स्वरुप को छोड़ता है ? क्या अल्लाह मियां नहीं जानते की ये केवल परिक्रमा के कारण होता है ?

2. सूरज चाँद के मुकाबले तारे अधिक नजदीक हैं :

और (चाँद सूरज तारे के) तुलूउ व (गुरूब) के मक़ामात का भी मालिक है हम ही ने नीचे वाले आसमान को तारों की आरइश (जगमगाहट) से आरास्ता किया।
(सूरह अस्साफ़्फ़ात ३७ आयत ६)

क्या अल्लाह मिया भूल गए की सूरज से लाखो करोडो प्रकाश वर्ष की दूरी पर तारे स्थित हैं ?

3. क़ुरान के मुताबिक सात ग्रह :

ख़ुदा ही तो है जिसने सात आसमान पैदा किए और उन्हीं के बराबर ज़मीन को भी उनमें ख़ुदा का हुक्म नाज़िल होता रहता है – ताकि तुम लोग जान लो कि ख़ुदा हर चीज़ पर कादिर है और बेशक ख़ुदा अपने इल्म से हर चीज़ पर हावी है।

(सूरह अत तलाक़ ६५ आयत १२)

क्या सात आसमान और उन्ही के बराबर सात ही ग्रह हैं ? क्या खुदा को अस्ट्रोनॉमर जितना ज्ञान भी नहीं की आठ ग्रह और पांच ड्वार्फ प्लेनेट होते हैं।

4. शैतान को मारने के लिए तारो को शूटिंग मिसाइल बनाना भी अल्लाह मिया की ही करामात है।

और हमने नीचे वाले (पहले) आसमान को (तारों के) चिराग़ों से ज़ीनत दी है और हमने उनको शैतानों के मारने का आला बनाया और हमने उनके लिए दहकती हुई आग का अज़ाब तैयार कर रखा है।

(सूरह अल-मुल्क ६७ आयत ५)

मगर जो (शैतान शाज़ व नादिर फरिश्तों की) कोई बात उचक ले भागता है तो आग का दहकता हुआ तीर उसका पीछा करता है

(सूरह सूरह अस्साफ़्फ़ात ३७ आयत १०)

क्या अल्लाह को तारो और उल्का पिंडो में अंतर नहीं पता जो तारो को शूटिंग मिसाइल बना दिया ताकि शैतान मारे जावे ? और उल्का पिंड जो है वो धरती के वायुमंडल में घुसने वाली कोई भी वस्तु को घर्षण से ध्वस्त कर देती है जो जल्दी हुई गिरती है ये सामान्य व्यक्ति भी जानते हैं इसको शैतान को मारने वाले मिसाइल बनाने का विज्ञानं खुद अल्लाह मियां तक ही सीमित रहा गया।

रही बात सूर्यादि ग्रह पर प्रजा की बात तो आज विज्ञानं स्वयं सिद्ध करता है की सूर्य पर भी फायर बेस्ड लाइफ मौजूद है। ज्यादा जानकारी के लिए लिंक देखिये :

http://www.theonion.com/article/scientists-theorize-sun-could-support-fire-based-l-34559

अब किसको ज्ञान ज्यादा रहा जमाल साहब ?

आपके क़ुरान नाज़िल करने वाले अल्लाह मिया को ?

या वेद को पढ़कर पूर्ण ज्ञानी ऋषि की उपाधि प्राप्त करने वाले महर्षि दयानंद को।

लिखने को तो और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है मगर आपकी इस शंका पर इतने से ही पाठकगण समझ जाएंगे इसलिए अपनी लेखनी को विराम देता हु – बाकी और भी जो आक्षेप आपकी पुस्तक में ऋषि और सत्यार्थ प्रकाश पर उठाये हैं यथासंभव जवाब देने की कोशिश रहेगी

खुद पढ़े आगे बढे

लौटो वेदो की और

नमस्ते

 

हिन्दुस्तान किस तरह मुसलमान हुआ ?

मौलवी जकाउल्ला प्रोफेसर फरमाते है । यह असली मुसलमान कुल मुसलमानों से जो इस मुल्क में आबाद है आधे होंगे। वाकी आधे ऐसे ही मुसलमान है जो हिन्दुओं से मुसलमान हुए है । सरकारी मर्दुमशुमारी से मालूम होता है कि हिन्दुस्तान में ४ करोड़ १० लाख मुसलमान रहते हैं । उनमें से जियादह मुसलमान जो हिन्दुओं से मुसलमान हुए हैं । गो इस्लाम

ने उनके सिद्धान्तो को बदल दिया मगर उनके रस्म रिवाज को न बदल सका । गोकि वह आपस में मिलकर खाने पीने लगे मगर शादी व्याह में अब तक गोत्र बचाते है जैसे हिन्दू-गरज इस्लाम का असर हिन्दुओं पर ऐसा नहीं हुआ जैसाकि हिन्दुओं का असर इस्लाम पर हुआ ।
(देखो तारीख हिन्द हिस्सा अव्वल फस्ल दौम सफा 6)

अब हम बतलाते हैं कि इतने जो मुसलमान है । ये किस तरह मुसलमान हुए हैं और कब से हुए हैं और सब से पहिला मुसलमान इस मुल्क में कौन हुआ है ।

मुल्क हिन्दुस्तान में सबसे अव्वल मुसलमान वापा राजपूत चित्तोड़ के मालिक ने सन् 812 ई० में खमात्त के हाकिस सलीम की लड़की से शादी कर सी और मुसलमान हुआ मगर मुसलमान हॉकर लज्जित हॉकर खुरासान चला गया … फिर न आया उसका हिन्दू बेट गद्दी पर
बैठा । (देखो आईन तारीख नुमा सफा सन् 1881 ई० ।)

सन् 812 ई॰ से खलीफा मामू रसीद ने बडी फोज के साथ हिन्दुस्तान पर चढाई की । वापा का पोता उस वक्त चितौड़ का हाकिम था … नाम उसका राजा कहमान था । उससे ओर मामूं से जो बीस लडाहयां हुई लेकिन आखिरकार मामूं शिकिस्त खाकर हिन्दूस्तान से भाग गया । (सफा 6 आईना तारीख नुमा सन् 1881 ई० और देखो मिफ्ताहुद तवारीख सफा
(7 सन् 1883 त्तवये सालिस हिस्सा अव्वल)

हिन्दुस्तान का दूसरा मुसलमान राजा सुखपाल नाम महमूद के हाथ राज्य के लालच में मुसलमान हुआ । मगर लिखा है जब महमूद बलख की तरफ़ गया तो उसने फिर हिन्दू बनकर उसकी तावेदारी की । महमूद ने सन् 1006 ई॰ में उसे पकड़कर जन्म भर के लिये कैद कर दिया (सफा 16 आईने त्तारीख नुमा सन् 1881 ई० और मुखताहुद तवारीख सफा 9 सन्
1883 ई० हिस्सा अव्वल)

अरब किस तरह मुसलमान हुआ ?

खुद हजरत मुहम्मद के जमाने में अरब वालो से मुफ्फसिल जैल मशहूर लडाई हुई है । जिनमें हजारों लाखों आदमी तलवार से क़त्ल हुए। सैंकडों स्त्रियाँ लौंडिया बनाई गई। और हजारों ऊंट बकरी लूटे गये । हजारों के घर तबाह हुए और जब लूट से काफी पूंजी जमा हो गई तो फिर इनाम इकराम मिलने लगे । माल मुफ्त दिले बे रहम पर अमल दरामद किया गया – जो साथ शरीक होजाता वह गरीब चरबाहों के हक में गोया भेडिया होजाता था । हम इस मौके पर मुफ्फसिल हालात लिख़ने से पहिले अरब के एक मशहूर और मारूफ़ आदमी अबूसुफियान के मुसलमान होने का हाल दर्ज करते हैं ।

जब मुहम्मद ने मक्के की फतह करने पर फौजे तय्यार की तो अव्वाल और अबूसुफियान जो निष्पक्ष थे घूमते हुए आपस से मिले । अब्बास ने अबूसुफियान से कहा कि अब क्या मारे जाओगे उसने मारे जाने के बचने का उपाय पूछा । अव्वाल उसको इस्लाम से लाने के बहाने निर्भय कर देने का वादा करके मुहम्मद के पास लेगया । हजरत उमर मारने के वास्ते दौड़े । रात को उसको हवालात में रखा सुबह को हाजिर लाया । मुहम्मद साहब ने कहा कि अबतक वह समय नहीं आया कि तू कहे कि खुदा एक है और उसका कोई साक्षी नहीं और उसके सिवाय कोई पूजित नहीं । और मैं सच्चा नबी (पैगम्बर) हूँ अबूसुफियान ने कहा कि मेरे माँ बाप आप के भक्त हैं । सब बडाई और बुजुर्गी आपही की है । उन गुस्ताखियों और बेअदबियों के बदले जो मुझसे हुई आप की यह कृपा मुझ पर है । वास्तव में एक खुदा के सिवाय कोई पूजित नहीं। परन्तु पैगम्बर की सत्यता पर मौन धारण किया अब्बास ने कहा की पैगम्बर की सत्यता पर भाषण कर नहीं तो खैर नहीं। अबूसुफ़ियान ने मजबूर होकर पैगम्बर की सच्चाई मानी और इस्लाम ग्रहण किया। तब अब्बास ने नबी की सेवा में अर्ज किया की हे अल्लाह के पैगम्बर अबूसुफ़ियान पद और मान को अच्छा समझता है। उसको कोई पदाधिकार दीजिये ताकि उसका मान हो। मुहम्मद ने उसको इस आज्ञा से से मान दिया की जो कोई अबूसुफ़ियान के घर में दाखिल हो उसकी जान बख्शी जावे। निदान वह छुट्टी लेकर मक्के को गया – अब्बास उचित अवसर पाकर पैगम्बर की सम्मति से अबूसुफियसान के पीछे गया, वह डरा अब्बासने कहा डरमत । सारांश यह कि अब्बास ने अबूसुफियान को रास्ते के किनारे पर खड़ा किया ताकि सब लश्कर इसलाम को देखले और उस पर रोब होजावे ताकि वह फिर इस्लाम से न फिरे । जब कि इस्लाम की फौज अबूसुफियान के सामने से निकल गई लोगों ने कहा जल्द जा और कुरैश को डर दिलाकर ओर समझाकर इस्लाम को घेरे में ला ताकि जीवन मोत से निर्भय होजावे अबूसुफियान जल्द उनकी जान मारे जाने से बचा सके, (देखो तारीख अम्बिया सफा ३५४ व ३५५ सन् १२८१ हिजरी और ऐसा ही जिक्र किताब सीरतुल रुस्ल व त्तफसींर हुसैनी जिल्द १ सूरे तोबा सफा ३६० में है)

जिस कदर खूंरेजी और लूटमार से अरब के लोग मुसलमान हुए है अगर उनकी मुफ्फसिल फिहरिस्त लिखी जावे तो एक दफ्तर बनजावे । हालत पर लक्ष करते हुए संक्षेप से वर्णन करते हैं ।

(1) गज़वा (लडाई) वदां।

(2) गजबये बवात ।

(3) गजवतुल अशरह

(4) गजबये बदर ऊला ।

(5) जंगे बदर ।

(6) गजब तुल कदर

(7) गजय तुल अन्सार

(8) गज़वा वाजान

(9) गज़वा सौवक

(10) गज़वा अहद

(11) गज़वा हमराउल असद

(12) गजबा जातुर्रिका

(13) गज़वा बदरुल मुअद

(14) गज़वा दौमतुल जन्दल

(15) गज़्वावनी मुस्तलिक

(16) गज़वा बनी नजीर

(17) गज़वा खन्दक

(18) गज़वा बनू तिबियान

(19) गजबाजूकुरह

(20) गज़वा फतह मक्का

(21) गज़वा हबाजन

(22) गज़वा औतास

(23) गज़वा ताइफ़

(24) गज़वा बनीकीका

(25) गज़वा बनिनुफैर

(26) गज़वा वनी करैता

(27) ग़ज़वे तलूक ।

इन ले 27 मशहूर ग़ज़वाता (लड़ाइयों) के सिवाय और बहुत से हमले और जंग हुए हैं जिनकी कुल तादाद 81 के करीब पहुंचती है इस किस्म के सैकडों मुकाबिले और लड़ाइयो के बाद जान के लाले पड़ जाने के डरसे डरपोक देहाती मुसलमान बन गये और जोर वाले बहादुर शेर दिल देहाती जैसे अब्दुल हुकम ईश्वरीय कृपापात्र वगेरह शहीद डोगये । हिसारे की कोम सकी जंग में लिखा है कि हजरत अली ने मुहम्मद से पूछा कि कब तक कत्ल से हाथ न उठाऊं मुहम्मद ने कहा जब तक यह न कहे कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका पैगम्बर है तकतक क़त्ल कर (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४६ सतर १५ या १६ सन् १८८१ हिजरी)

गजबा वनी कुरेता की बाबत लिखा है कि साद विन मआज ने पैगम्बर को कहा कि इस बदजात कोम यहूदी का किस्सा तमाम करो गर्ज कि लड़ने लायक आदमी मारे गये और बाकी कैद गये चुनांचे कई सौ आदमी कुरैती मदीने से लाकर क़त्ल किये गये । (देखो मौलवी नूरुद्दीन साहब की फसलुल खिताब सफा १५९)

सुलह फुदक की बावत लिखा है कि नुहेफा विन मसऊद खुदा की हिदायत के बमूजिब सुलह फुदक तशरीफ ले गये और उस कौम को इस्लाम फेंलाने का पैगाम देकर जहाद का पैगाम दिया – मगर उन्होंने न सुलह का पैगाम दिया और न लड़ने को बाहर मैदान में निकले । (देखो तारीख अम्बिया सफा ३४७ सन् १२८१ हिजरी)

मुहम्मद साहब के मरने के बाद जो बहस हजरत अबू बकर की खिलाफत से पहिले सादविन उवादा बडे आदमियों में से था) सैंकडों मुसलमानों के सामने की है। उससे सारा हाल अरब के इस्लाम में लाने का जाहिर होता है । जैसा कि लिखा है सादबिन उबादा ने क्रोधातुर होकर कहा कि है अन्सार का गरोह तुम सब कपटी हो कि तुमको इस्लाम के सब गरोहों पर मान है। क्योंकि मुहम्मदी अपनी कौम बाद दश वर्ष के जियादा रहा । और सबसे मदद चाहीं और दीन को जाहिर करता रहा – मगर सिवाय चन्द आदमियों के किसी ने ध्यान नहीं दिया और कोई उस मुसीबत के समय साथी न हुआ – मगर थोडे दिन मदीने से रहने से और हमारे कष्ट उठाने से खुदा को यह कृपा हुई कि दीन इस्लाम को वह तरवकी हुई जो तुम देखते हो ।

पस खुलासा बात यह है कि तुम्हारे कष्ट से सिवाय इस के और क्या नतीजा होगा कि अब बड़े-बड़े रईस इस्लाम मुहम्मद में दाखिल हैं । खिलाफत के काम ओर रियासत तुम्हारे कब्जे में रहनी चाहिये । सब अंसार ने कहा कि हे साद सच है जो तुमने कहा तेरे सिवाय अंसार में कोई बडा नहीं । हमने तुझको अपना सर्दार बनाया और तुमसे बरैयत (प्रतिक्षा) करते है तुझसे जियादा अच्छा खिलाफ़त का काम बजाने वाना कोई नहीं है अगर मुहाजिर (पुजारी) इस बारे से कुछ विरोध करेंगे तो हम उनसे कहैगे कि अच्छा अमीरी तुम्हारे ही खान्दान में सही और हमारे खान्दान में भी सही । (देखो तारीख अम्बिया सका ३७४ सन् १२९१ हिजरी)

मुहम्मद साहब ने लोगों से वादा किया था कि कैंसर और किसरा के खजाने बजरिये गनीमत तुम्हारे हिस्से में आवेंगे मुसलमान होजाओ । पस लोग इसी नियत से मुसलमान हुए थे जैसा कि अक्सर मर्तवा उस समय के मुसलमान इन्कार करते और परेशान होते रहे (देखो मुफ्फसिल तारीख अम्बिया सफा ३२४ सन् १२८१ हिजरी ।)

गजवये बदर कुब्रा में साद वगेरह मुसलमानों ने मुहम्मद साहिब को यह रायह दी कि तेरे लिये एक सुरक्षित तख्त की जगह अलग मुकर्रर कर ओर जरूरी असबाब उसमें रखदे ओर फिर काम में लगें । अगर हम जीते तो पहिली सूरत में अपनी जगह सवार होकर मदीने में जावें । हजरतने साद की राय पसंद की और भलाई की दुआ दी और नकबख्त आदमियों की राय के मुताबिक त्ततींबवार अमन करने में लग गये और आनन फानन में त्ततींब की नींव डाली (देखो तारीख अम्बिया सफा ३०५ सन् १२८१ हिजरी देहली)

गनीमत के माल बांटते पर हमेशा झगड़ेही रहते थे ओर इसी लूट के माल की खातिर पहिले लोग मुसलमान हुए थे और इसी की तर्गीब से मुतलिफ वक्तो से मुसलमान होते रहे । (देखो सफा ३१० तारीख अम्बिया ।)

हिजरी की दोम साल में निरपराधो यहूदियों का माल व असबाब लूटा और उनको मदीने से निकाल दिया । चुनाँचि लिखा है कि तमाम माल व असबाब बुरे काम करने बालों का मुसलमानो के हाथ जाया और पांचवा हिस्सा कायदे के बमूजिब निकाल कर बाकि बट गया (देखो सका ३१२ तारीख अम्बिया ।)

साल सोयम हिजरी से कावबिन अशरफ सब उत्तम शायर को सिर्फ कुरेश का शायर होने के कारण हजरत मुहम्मद साहब ने एक हीला सोचकर अयुवनामला मुसल्लिमा वगेरह के हाथों से क़त्ल करवा दिया और पैगम्बर पर जान न्योछावर करने बालों ने अयवूराफे विन अविल हकीक को बेगुनाह क़त्ल कर डाला । देखो सफा २१३ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी ।)

जंग अहद के जिक्र में लिखा है कि जनाब पैगम्बर की निगाह व हिफाजत में महाजिर (पुजारी) इन्सार ने बडी कोशिश की इस लडाई में कुरैशियों ने इत्तिफाक किया था इसमें अक्सर पैगम्बर के साथी व चार महाजिर (पुजारी) और ६६ अंसार लडाई के मैदान से मारे गये मुहम्मद साहिब गड्रढे में गिर पड़े । पांव से चोट आयी – कम्प जारी हो गया – बडी कठिनता से तलहाने गड्रढे से नीचे उतर कर कंधे पर चढाया और अली ने आहिस्ता आहिस्ता हाथ पकड़ कर बाहर को खींचा और जिस बक्त मुहम्मद बाहर निकले तो दुखित देखा । दांत टूटे हुए पाये जख्मो से खून जारी था आम खबर फ़ैल गई थी कि मुहम्मद साहब मारे गये … अमीर हमजा वगेरह मारे गये कुरैश की औरतों ने उनके नाक कान काट लिये – सफा ३१६ व ३१७ तारीख अम्बिया सन् १२८१ हिजरी में

अगर खुदा करता कि यह जरासीं और हिम्मत कर जाती तो मुहम्मदी इस्लाम का नाम व निशान न रहता। मगर अफ़सोस कि सुस्ती की-बुद्धिमानों ने सच कहा है “कार इमरोज़ व फर्द मफगन” (आज का काम कल पर मत छोडो)। हजरत के मरने पर बडा विरोध और ईर्ष्या व झगडा सब अरब में फ़ैल गया हर एक गिरोह रियासत चाहता था और दूसरे का विरोधी (देखो तारीख अम्बिया सफा ३७१ से ३७४ तक)

रिसाले मुअजजात में लिखा है कि हज़रन के मरने के बाद अरब के बहुत से कबीले फिर गये ।

सूरे मायदा :- ‘ ‘या अय्योहल्लजीना आमनूं मई यरतद्दा मिन्कम अन्दोनही फसोफा यातिल्लाहो बिकौमिन युहिब्बहुम बयोहिब्बूनहू अजिल्लतुम अलल मोमिना अइज्जतुन अलल काफिरीना व उजाहिदूना की सवी लिल्लाह !”

अर्थ :- हे मुसलमानों जो तुम अपने दीन से फिर गये एक कोम अल्लाह की तरफ से क़रीब आवेगी कि तुम उनको दोस्त रक्खोगे ओर बह काफिरों पर जहाद करेंगे अल्लाह के लिये ।

ओर अबूउबैदा सही किताबों में लिखता है कि जिस वक़्त मोहम्मद के मौत की खबर मक्के में पहुंची अक्सर मक्का के लोगों ने चाहा कि मुहम्मदी इस्लाम से अलग होजावें चुनाँचि मक्का के अमलाबाले कई दिनों तक डर के मारे घर से बाहर नहीं निकले – मुहम्मद के मरने पर जो लोग इस्लाम से फिर गये वह भी तलवार से जीते गये। अन्त से फिसाद बढ़ते बढ़ते यहाँ तक नौबत पहुंची कि अली खलीफा के वक़्त में तल्लाह ओर जुबैर और आयशा मुहम्मद साहिब की बीबी और माविया का शाम के मुल्क की तरफ हजरत अली और दूसरे मुसलमानों के साथ लडाई हुई बीबी आइशा ने तलहा के बढावे की सलाह ओर मुहब्बत से लडाई की । शाम के सब मुसलमान अली के मारने पर तय्यार थे जिसमें हजरत अली मय एक लाख साठ हजार फ़ौज के और हजरत माबिया वगैरह भी मय बहुत सी फौज के फरात नदी के किनारे पर लडाई लड़ने आये ६ माह लडाई होती रही ७००० आदमी अली के तरफ़ के और १२००० माबिया की तरफ़ से मुसलमान हताहत हुए। माबिया ने सुलह (सन्धि) का पैगाम भेजा – अलीने अस्वीकार किया लडाई हुई इसमें ३६००० और भी मारे गये अन्त में २२६००० मुसलमानों के मारे जाने के बाद सुलह हुई । इब्न मुलहम मिश्र के रहने वाले मोमिन (ईमानबाले) ने बड़े प्रेम से एक औरत के निकाह के बदले अली को मारडाला । उस कुतामा नाम ईमानदार औरत ने अपने मिहर में अली का क़त्ल लिखवाया था । इस तरह अरब में इस्लाम बढ़ा और घट गया (देखो तारीख अम्बिया सफा ४४५ व ४४६ सन् १८८१ हिज्र देहली।)

यह माविया अली के जंग की अग्नि बहुत काल तक प्रज्वलित रही और इसी का अन्तिम परिणाम यह था कि अली के लड़कों हसैन व हुसेन का यजीद माविया के लड़के के साथ इमाम होने का झगडा हुआ और असंख्य मुसलमान दोनों तरफ के क़त्ल हुए (देखो जांगनामा हामिद।)

जो लोग मुस्लमान होते थे उनको माल व संतान वापस मिलता था। क़त्ल से बच जाते थे इस वास्ते अक्सर कबीला अरब जब लड़ते लड़ते और खून की नदिया बहाते बहाते तंग आ गए मजबूरन मुस्लमान हो गए चुनाँचि गज़वा तायफ़ में लिखा है बाद फतह के एक गिरोह हवाज़न (हवा उड़ाने वालो) ने इस्लाम क़बूल किया और आपने उनकी जायदाद और संतान को वापिस दिया फिर मालिक विन अताफ जो हुनैन के काफिरो की फ़ौज का सरदार था विवश होकर मुस्लमान हुआ और इसका माल व संतान वापिस दी गयी। (देखो तारिख अम्बिया सफा ३६० सन १२८१ हिजरी)

नवी साल के जिक्र में लिखा है की गिरोह गिरोह अरब के कबीले शौकत व इस्लाम की तरक्की देखकर मुस्लमान हो गए यहाँ तक की नाम इस साल का “सनतुल वफूद” वफ़ादारी का साल कहते हैं (देखो सफा ३६१ तारिख अम्बिया १२८१ हिजरी)

फिर लिखा है कि मुसलमानो को जीत पर जीत होने से आस पास के मुशरिक लोग दिक्कते व परेशानी उठाने के बाद इस्लाम की शरणागत हुए और काफिरपन भूल गए। (तारिख अम्बिया सफा ३८९ व ३६०)

अरब में गुलामी का आम दस्तूर अब तक मौजूद है। और वह हज़रत के वक़्त से जारी है। लौंडी और गुलाम जिस तरह मक्का में भेजे जाते हैं और ख्वाजा सराय बनाये जाते हैं और मक्का मौज़मा और मदीना मनव्वर बल्कि रोज़ह मुतहरह पर ख्वाजा सरायो का यकीन है। निहायत अफ़सोस के काबिल है और फिर कहा जाता है की दीन इस्लाम में जबर करना जायज़ नहीं।

एक योग्य और प्रतिष्ठित इतिहास लेखक लिखता है की अरब वाले नूह की संतान नहीं है बल्कि कृष्ण लड़के शाम की संतान में से हैं और इसी वास्ते वह शामी कहलाते हैं द्वारिका से ख़ारिज हो जाने के बाद शाम जी अरब मय (साथ) अपने सम्बन्धियों व सेवको के आ गए और उसी रोज़ से अरब आबाद हुआ वर्ना इससे पहिले वहाँ आबादी नहीं थी और अरब शब्द संस्कृत का है (यानि आर्यावः) यानी आर्यो का रास्ता मुल्क मिश्र को आर्यो की यात्रा का रास्ता और अरब का अंग्रेजी नाम अरेबिया को देखने से यह बात समझ में आजाती है। पस दरहक़ीक़त अरब के लोग शाम जी कृष्ण के बेटे की संतान में हैं।

साभार –

गौरव गिरी पंडित लेखराम जी की अमर रचनाओ में से एक पुस्तक

जिहाद – कुरआन व इस्लामी ख़ूँख़ारी

बिलकुल जिस प्रकार लेखराम जी लिख कर गए हैं उसी प्रकार लिखा गया ताकि समस्त मानव जाती इस्लाम का सच जान सके –

लिखने में यदि कही कोई त्रुटि या कुछ भूल चूक हो तो क्षमा करे –

नमस्ते —