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मौलवियों को १४०० साल लग गए लेकिन …….

यह सर्व विदित है की मक्खियाँ बीमारी फ़ैलाने का कारण बनती हैं. हैजा तापिदिक जैसी अनेकों बीमारियों को फैलाने में मक्खियाँ सहायक  हैं. ये मक्खियाँ इधर उधर फ़ैली हुयी गंदगी पर बैठती हैं और विषैले जीवाणुओं को अपने माध्यम से खाने पीने की चीजों तक ले जाती हैं. इन खाद्य पदार्थों का हम जब सेवन करते हैं तो बीमार होना स्वाभाविक है क्योंकि मक्खियों द्वारा इन खाद्य पदार्थों पर लाये गए विषैले जीवाणु हमें बीमार कर देते हैं.यही कारण है कि सरकार और समाज सेवी संस्थाओं द्वारा सामाजिक चेतना का कार्य किया जाता है कि हम ऐसे खाद्य पदार्थ खाने से बचें जिन मक्खियाँ बैठी हों.

अब देखिये की मक्खियों के बारे में हदीस क्या कहती है :

सहीह बुखारी ४: ५४ : ५३७

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तात्पर्य है कि  अबू हरैरा का कथन है की मुहम्मद साहब ने कहा कि यदि मक्खी आपके पेय  पदार्थ (Drink ) में गिर जाए तो आपको उसे डूबने देना चाहिए क्योंकि उसके एक पंख में बीमारियाँ और दुसरे पंख में इन बीमारियों का इलाज़ है.

ये हदीस सहीह बुखारी में एक और जगह आयी है और यही बात कुछ शब्दों के उलटफेर के साथ पुनः कही गयी है

सहीह बुखारी ७ : ७१  : ६७३

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यह भी अबू हरेरा की कही हदीस है की अल्लाह के रसूल ने कहा की यदि कोई मक्खी किसी बर्तन में गिर जाये तो उसे बर्तन में डूब जाने दो और फिर उसे फेंक दो क्यूंकि इसकी एक पंख में बीमारियाँ हैं और दुसरे में बीमारियों का इलाज़.

पिछले १४०० साल से ज्यादा हो गए मौलवियों को इस प्रश्न का उत्तर ढूंडते हुए लेकिन आजतक यह साबित नहीं कर पाए की मक्खियाँ जो बीमारी फैलाने का कार्य करती हैं उनकी पंखों में कौनसे रोगों को दूर करने की क्षमता होती है?

सहीह बुखारी पढ़ते हुए डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब जो इस्लामिक विश्वविद्यालय मदीना अल मुनावारा से ताल्लुकात रखते हैं का इस बारे में तर्क पढ़ा जो आपके समक्ष रख रहे हैं जिससे पाठक भी उन्हीं के शब्दों में समझ सकें :

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डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब का तात्पर्य है  कि यह आज सभी को पता है की मक्खियाँ कीटाणुओं को इधर उधर ले जाती हैं ये मुहम्मद साहब ने बताया उनके हिसाब से लगभग १४०० साल पहले मनुष्यों को आधुनिक विज्ञानं के बारे में बहुत कम जानकारी थी.

डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब के अनुसार हाल ही में हुए कुछ शोध ये बताते हैं की मक्खियाँ रोगाणुओं के साथ साथ एंटीबायोटिक भी फैलाती हैं .

डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब मक्खी को डुबाने का तात्पर्य समझाते हुए कहते हैं कि  जब मक्खी पेय पदार्थ को छूती  है तो तो ये उस पेय पदार्थ को उन रोगाणुओं से संक्रमित कर देती है इसलिए मक्खी को खाने में डूबा देना चाहिए जिससे की इसकी दूसरी पंख में लगा antibotic भी निकल जाये जिससे वो रोगाणुओं का नाश कर दे.

आगे डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब लिखते हैं कि मक्खी के पेट में कुछ  cells होते हैं को एंटीबायोटिक्स का काम  करते हैं जब मक्खी पेय पदार्थ में डुबोई जाती है तो ये सेल्स फट जाते हैं और इनसे निकले एंटीबायोटिक रोगाणुओं का नाश कर देते हैं.

अत्यंत ही नया तर्क था जो सामान्य व्यक्ति की तो समझ से परे है .

जहाँ समाजसेवी संस्थाएं और सरकारें मक्खियों द्वारा दूषित खाने लोगों को बचाने के लिए इतना व्यय कर रही है वह तो इन हदीसों की रोशनी में व्यर्थ ही प्रतीत होता है !

और वह चिकित्सा विज्ञान भी इन हदीसों के उजाले में झूठा साबित हो जाता है जो यह कहता है की मक्खियाँ रोगों को फैलाने का कार्य करती हैं .

१४०० साल में तो मौलवी इस सवाल का जवाब नहीं ढूंड पाए लेकिन डॉ मुहम्मद मुहसिन खान साहब इस हदीस की व्याख्या में इस हदीस को साबित करते करते करते नई  बात कह गए जो मुहम्मद साहब ने भी नहीं कही कि मक्खी के पेट में एंटीबायोटिक्स होते हैं.

मौलवी साहब १४०० साल पहले लोगों को ये पता था या नहीं था की मक्खी रोगाणुओं को फैलाती हैं लेकिन आपने तो  जो नया तथ्य बताया है की मक्खी के पेट में एंटीबायोटिक्स होते हैं ये तो अभी तक भी शायद ही किसी गैर इस्लामी विद्वान या सामान्य व्यक्ति को पता हो और ये तो मुहम्मद साहब को भी शायद ही पता हो क्यूंकि उन्होंने तो मक्खी के पंख में बताया था .

आपने शोध की बात तो की लेकिन ये नहीं बताया की ये शोध कहाँ हुआ किस संस्था में हुआ इसकी रिपोर्ट कहाँ है . शायद आप बता देते तो चिकित्सा जगत के लिए ये नई उपलब्धी होती.

जो यक्ष प्रश्न १४०० साल से ज्यादा से खड़ा इस्लामिक विद्वानों से उत्तर की राह देख रहा है शायद उसकी तृप्ति हो जाती .