Category Archives: Islam

हदीस : मातम

मातम

जिस औरत का पति मर गया हो उसे इद्दा की अवधि में साज-सिंगार से परहेज करना चाहिए। लेकिन दूसरे रिश्तेदारों के लिए तीन दिन से ज्यादा का मातम नहीं करना चाहिए (3539-3552)। अबू सूफियां मर गये। वे मुहम्मद की बीवियों में से एक, उम्म हबीबी, के पिता थे। उसने कुछ इत्र मंगाया और अपने गालों पर मला और बोली-“क़सम अल्लह की ! मुझे इत्र नहीं चाहिए। लगाया सिर्फ़ इसलिए कि मैंने अल्लाह के पैग़म्बर को यह कहते सुना-अल्लाह और बहिश्त पर यक़ीन रखने वाली मोमिन औरत को इस बात की इज़ाज़त नहीं है कि वह मृतकों के लिए तीन दिन से ज्यादा का मातम करे, किंतु पति की मृत्यु के मामले में चार महीने और दस दिन तक मातम करने की इज़ाज़त है“ (3539)।

author : ram swarup

HADEES : PROPER PEADING FOR MUHAMMAD�S DESCENDANTS

PROPER PEADING FOR MUHAMMAD�S DESCENDANTS

We close the �Book of Marriage and Divorce� by quoting one of the very last ahAdIs.  It is on a different subject but interesting.  �AlI, the Prophet�s son-in-law, says: �He who thinks that we [the members of the Prophet�s family] read anything else besides the book, of Allah and the SahIfa [a small book or pamphlet that was tied to the scabbard of his sword] tells a lie.  This SahIfa contains problems pertaining to the ages of the camels and the recompense of injuries, and it also records the words of the prophet. . . . He who innovates or gives protection to an innovator, there is a curse of Allah and that of his angels and that of the whole humanity upon him� (3601).

author : ram swarup

हदीस : तलाक़शुदा के लिए गुज़ारा-भत्ता नहीं

तलाक़शुदा के लिए गुज़ारा-भत्ता नहीं

फ़ातिमा बिन्त क़ैस को उसके पति ने “जब वह घर से बाहर था“ तलाक़ दे दिया। वह बहुत नाराज हुई और मुहम्मद के पास पहुंची। उन्होंने उससे कहा कि ”अटल तलाक़ दे दिये जाने पर औरत को आवास और गुजारे के लिए कोई भत्ता नहीं दिया जाता।“ लेकिन पैग़म्बर ने कृपा करके उसके लिए दूसरा खाविंद खोजने में उसकी मदद की। उसके सामने दो दावेदार थे-अबू जहम और मुआविया। मुहम्मद ने दोनों के खि़लाफ राय दी। कारण, पहले वाले के ”कंधे से लाठी कभी नहीं उतरती थी“ (अर्थात् वह अपनी बीवियों को पीटता रहता था) और दूसरा ग़रीब था। उन दोनों की जगह उन्होंने अपने गुलाम और मुंह-बोले बेटे ज़ैद के लड़के उसाम बिन ज़ैद का नाम पेश किया (3512)।

 

बाद में एक अधिक उदार भावना उभरी। उमर ने व्यवस्था दी कि पतियों को अपनी तलाक़शुदा बीवियों के लिए इद्दा की अवधि में गुजारा-भत्ता देना चाहिए, क्योंकि फक़त एक औरत होने के कारण पैग़म्बर के लफ्जों का सच्चा मक़सद फातिमा ने गलत समझा। ”हम अल्लाह की किताब और अपने रसूल के सुन्ना को एक औरत के लफ्ज़ों की खातिर नहीं छोड़ सकते“ (3524)।

 

इद्दा इंतजार की वह अवधि है, जिसमें औरत दूसरी शादी नहीं कर सकती। सामान्यतः वह चार महीने और दस दिन की होती है। लेकिन उस बीच औरत अगर बच्चे को जन्म दे दे तो वह अवधि तुरन्त खत्म हो जाती है। एक बार इद्दा खत्म हो जाने पर औरत दूसरी शादी कर सकती है (3536-3538)।

 

चार महीने के लिए भत्ता देना बहुत मुश्किल नहीं था। इस प्रकार पतियों को भविष्य में किसी बोझ का कोई डर न होने से वे अपनी बीवियों से आसानी के साथ छुटकारा पा जाते थे। फलस्वरूप तलाक़ का डर मुस्लिम औरतों के सिर पर बुरी तरह छाया रहता था।

author : ram swarup

हदीस : तलाक़ की पसन्द तलाक़ नहीं

तलाक़ की पसन्द तलाक़ नहीं

ऐसा लगता है कि घरेलू कलह के अन्य मौके भी आते रहते थे, जिनमें से कुछ रुपए-पैसे को लेकर होते थे। ये मदीना-प्रवास के शुरू के दिनों में हुए होंगे, जबकि मुहम्मद के पास धन की कमी थी। एक बार अबू बकर और उमर मुहम्मद के पास गये और देखा कि वे “अपनी बीवियों से घिरे मायूस और खामोश बैठे हैं।“ उन दोनों पिताओं से उन्होंने कहा-“ये (पैग़म्बर की बीवियां और उन दोनों की बेटियां) मुझे घेरे हुए हैं, जैसा कि आप लोग देख ही रहे हैं, और मुझ से ज्यादा रुपये-पैसे मांग रही हैं।“ तब अबू बकर ”उठे और आयशा के पास गये और उसकी गर्दन पर थप्पड़ जमाया और उमर उठे और हफ़्जा को झापड़ लगाया“ (3506)।

 

इस अवसर पर पैग़म्बर ने अपनी बीवियों के सामने विकल्प रखा कि अगर वे ”दुनिया की जिंदगी और उसकी आराइशों की ख़्वास्तगार हों, बनिस्बत अल्लाह और उसके पैग़म्बर के और बनिस्बत बहिश्त के, तो वे (मुहम्मद) अल्लाह के रसूल उनको अच्छी तरह से रुख़सत कर देंगे“ (कुरान 33/28/29)। बीवियों ने पैग़म्बर और बहिश्त को चुना।

 

अनुवादक के अनुसार इस अहादीस (3498-3506) से यह सबक़ मिलता है कि “औरत की ओर से तलाक़ की पसंद जाहिर होने से ही तलाक़ लागू नहीं माना जाता। वह तभी मान्य होता है, जब सचमुच तलाक़ का इरादा हो।“

 

HADEES : OTHER DISABILITIES

OTHER DISABILITIES

A freed slave is subjected to several other disabilities.  He cannot seek any new alliance, nor can he offer himself as an ally without the permission of his former owner.  One �who took the freed slave as an ally without the consent of his previous master, there is upon him the curse of Allah and that of His angels and that of the whole mankind� (3600).

author : ram swarup

हलाला से कई औरतों की जिंदगी हराम हो रही है

हलाला से कई औरतों की जिंदगी हराम हो रही है

तलाक के बाद अगर एक मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास वापस जाना चाहे तो उसे एक सजा से गुजरना पड़ता है. पहले एक अजनबी से शादी, फिर उससे यौन संबंध और उसके बाद तलाक. तब मिलेगा पहले वाला पति !

सरवत फातिमा

सरवत फातिमा
     

भारत में दिन पर दिन ट्रिपल तलाक का विरोध बढ़ता ही जा रहा है और इस प्रथा का विरोध होना भी चाहिए. ट्रिपल तलाक की वजह से निकाह के बाद भी मुस्लिम महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पातीं हैं. यही नहीं ट्रिपल तलाक एक ऐसा हथियार है जिसकी वजह से महिलाएं अपने पति के हाथ का मोहरा भर बनकर रह जाती हैं. लेकिन इस्लाम में औरतों पर अन्याय का एक और हथियार है जो तीन तलाक से भी ज्यादा शर्मनाक है. इस प्रथा को हलाला कहते हैं.

halala-2_041217052335.jpgहलाला ने कई औरतों को बर्बाद किया

अगर आपको नहीं पता कि हलाला क्या है तो जान लीजिए. तलाक के बाद अगर कोई मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास वापस जाना चाहती है तो पहले उसे एक अजनबी से शादी करनी होगी. यौन संबंध भी रखना होगा और फिर इस पति से तलाक के बाद ही औरत अपने पहले पति के साथ वापस रह सकती है. ये अपने आप में एक अजीब रिवाज तो है ही साथ ही मुस्लिम औरतों के लिए शोषण, ब्लैकमेल और यहां तक ही शारीरिक शोषण का दलदल भी साबित हो सकता है.

हालांकि कई मुस्लिम देशों ने इस अमानवीय प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन भारत, पाकिस्तान, ब्रिटेन और कुछ अन्य देशों में ये प्रथा अभी भी प्रचलित है. यही नहीं इस क्षेत्र में अब तो कई ऑनलाइन सेवाएं भी उपलब्ध हो गई हैं. यहां पर औरतों को अपने पहले पति के पास जाने के लिए हलाला के अंतर्गत शादी और सेक्स की सेवाएं मुहैया कराई जाती हैं. और ये बताने की तो कोई जरुरत ही नहीं कि इस सेवा के लिए मोटी कीमत वसूल की जाती होगी.

muslim-woman_041217052357.jpgकरे कोई भरे कोई

बीबीसी ब्रिटेन की एक रिपोर्ट के अनुसार इन सेवाओं के लिए एक फेसबुक पेज भी है. इस पेज पर उनके लिए काम करने वाले लोग और वो पुरुष जो इस तरह के अस्थायी विवाहों में रुचि रखते हैं अपना प्रचार करते हैं. एक व्यक्ति, इस फेसबुक पेज पर हलाला का प्रचार करते हुए कहता है कि- ‘हलाला के लिए महिला उसे पैसे देगी फिर उसके साथ यौन संबंध भी बनाएगी ताकि बाद में मैं तुम्हें तलाक दे सकूं.’ इस आदमी ने यह भी कहा कि- ‘उसके पास और भी कई पुरुष हैं जो ये काम कर रहे हैं.’ इसी बातचीत के क्रम में उसने बताया कि- ‘उसके साथ काम करने वाले एक आदमी ने हलाला के लिए की गई शादी के बाद औरत को तलाक देने से मना कर दिया. जिस वजह से उसने खुद उस आदमी को और ज्यादा पैसे दिए. तब जाकर महिला को तलाक मिला और वो अपने पहले पति के पास जा पाई.’

तसल्ली इस बात की है ब्रिटेन सहित कई देशों में इस्लामी शरिया काउंसिल दिखावे के लिए किए गए ऐसे अस्थायी विवाहों के चक्कर में फंसने से महिलाओं को रोकता है. लेकिन फिर भी लोग इस प्रथा का दुरुपयोग करने और पैसा बनाने के लिए इसे इस्तेमाल कर रहे हैं.

देखिए, यह रोंगटे खड़े करने वाली डॉक्‍यूमेंटरी-

source : http://www.ichowk.in/society/muslim-woman-halala-adultry-nikah-exploitation-marraige-triple-talaq/story/1/6428.html

हदीस : मुहम्मद का अपनी बीवियों से अलगाव

मुहम्मद का अपनी बीवियों से अलगाव

ईला अपनी बीवी से अस्थायी अलगाव है। इस अर्थ में मोमिन सचमुच भाग्यशाली है कि उनके सामने पैगम्बर ने एक ”आदर्श उदाहरण“ पेश किया है।

 

मुहम्मद को एक बार उनतीस दिन के लिए अपनी बीवियों से अलग रहना पड़ा। सही मुस्लिम उस घटना का वर्णन अनेक अहादीस में करती है। पर उस पर विचार करने के पहले हम पृष्ठभूमि के रूप में कुछ जानकारी प्रस्तुत कर देते हैं।

 

अपनी अनेक बीवियों के पास जाने के लिए मुहम्मद पारी का एक सीधा साधा नियम चलाते थे। दरअसल उनकी जीवनचर्या के दिन, जिन बीवियों के पास वे जाते थे, उनके नाम से ही जाने जाते थे। एक दिन मुहम्मद को हफ्ज़ा के यहां जाना था, पर उसकी बजाय हफ्जा ने देखा कि वे अपनी कोष्टवंशीय और रखैल सुन्दरी मरियम के पास हैं। हफ्जा बिफर उठी। चीख कर बोली-”मेरे ही कमरे में, मेरे ही पारी में और मेरे ही बिस्तर पर।“ मुहम्मद ने उसे शांत करने की कोशिश करते हुए वायदा किया कि वे फिर कभी भी मरियम के पास नहीं जायेंगे। पर साथ ही उन्होंने हफ्जा से अनुरोध किया कि वह इस घटना को गुप्त रखे।

 

किन्तु हफ्ज़ा ने यह बात आयशा को बता दी। और बहुत जल्दी ही सब लोगों ने इसे सुन लिया। मुहम्म्द की कुरैश बीवियां मरियम से नफरत करती थी और ”उस कम्बख़्त कमीनी“ से जलती थीं, जिसने मुहम्मद का एक पुत्र भी पैदा किया था। जल्दी ही हरम में गपशप, रोष और तानाज़नी का माहौल बन गया। मुहम्मद बहुत क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने अपनी बीवियों से कहा कि मुझे तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने अपने को उनसे अलग कर लिया। और जल्दी ही यह अफवाह फैल गयी कि वे उन सबको तलाक दे रहे हैं। वस्तुतः मोमिनों की दृष्टि में यह अफ़वाह इस खबर से ज्यादा दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण थी कि मदीना पर जल्दी ही घसान (रूम के सहायक अरब एक कबीले) का हमला होने वाला है।

 

एक लंबी हदीस में उमर बिन अल-खत्ताव (हफ़्ज़ा के पिता) बतलाते हैं-”जब रसूल-अल्लाह ने अपनी बीवियों से खुद को अलग कर लिया, तब मैं मस्जिद में गया और मैंने देखा कि लोग जमीन पर कंकड़ फेंक कर कह रहे हैं-अल्लाह के पैगम्बर ने अपनी बीवियों को तलाक दे दिया।“ उमर ने सच्चाई जानने का निश्चय किया। पहले उन्होंने आयशा से पूछा कि क्या उसने ”अल्लाह के पैगम्बर को तकलीफ देने का दुस्साहस किया है।“ आयशा ने उनसे कहा कि अपना रास्ता नापो। “मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं है, तुम अपने भाण्डे (हफ्ज़ा को) सम्हालो।“ फिर उमर हफ़्ज़ा के पास गये और उसे झिड़का-”तू जानती है कि अल्लाह के पैगम्बर तुझे प्यार नहीं करते और यदि मैं तेरा पिता न होता, तो वे तुझे तलाक़ दे चुके होते।“ वह बुरी तरह रोने लगी।

 

तब उमर ने मुहम्मद के सामने हाजिर होने की इजाज़त चाही। प्रार्थना नामंजूर कर दी गयी। पर उन्होंने आग्रह जारी रखा। उन्होंने मुहम्मद के दरबान रहाब, से कहा-”ऐ रहाब ! मेरे लिए अल्लाह के पैगम्बर से इजाज़त लो। मुझे लगता है कि अल्लाह के पैगम्बर यह समझ रहे हैं कि मैं हफ़्ज़ा के वास्ते आया हूं। कसम अल्लाह की ! अगर अल्लाह के पैगम्बर मुझे उसकी गर्दन उड़ा देने का हुक्म देंगे, तो मैं यकीनन वैसा करूंगा।“ उसको इजाज़त मिल गयी।

 

उमर जब भीतर गये, तो देखा कि “उन (मुहम्मद) के चेहरे पर गुस्से की छाया है।“ अतः उन्होंने मुहम्मद को शांत करने की कोशिश की। वे बोले-”हम कुरैश लोग अपनी औरतों पर आधिपत्य रखते थे। लेकिन जब हम मदीना आये, तो हमने देखा कि यहां के लोगों पर उनकी औरतों का आधिपत्य है। और हमारी औरतों ने उनकी औरतों की नक़्ल करना शुरू कर दिया।“

 

उन्होंने यह भी कहा-”अल्लाह के पैगम्बर ! आपको अपनी बीवियों से मुश्किल क्यों महसूस हो रही है ? अगर आपने उन्हें तलाक दे दिया है तो यकीनन अल्लाह आपके साथ है और अल्लाह के फरिश्ते जिब्रैल तथा मिकैल, मैं और अबु बकर सब मोमिन आपके साथ हैं।“

 

मुहम्मद कुछ ढीले पड़े। उमर बतलाते हैं-“मैं उने तब तक बात करता रहा, जब तक उनके चेहरे से गुस्सा मिट नहीं गया …… और वे हंसने लगे।“ इस नये मनोभाव की दशा में पैगम्बर पर कुरान की वे प्रसिद्ध आयतें उतरीं, जिनमें उन्हें मरियम के बारे में उनकी कसम से मुक्त कर दिया गया, उनकी बीवियों को तलाक़ की धमकी दी गई, और उमर का यह आश्वासन भी शामिल किया गया कि सभी फरिश्ते और मोमिन उनके साथ हैं। अल्लाह ने कहा-“ऐ पैगम्बर ! अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो जायज़ किया है, उससे तुम अपने-आपको वंचित क्यों करते हो ? क्या अपनी बीवियों को खुश करने की ललक से ? ….. अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी कसमों का कफ़्फ़ारा मुक़र्रर कर दिया है।“ अल्लाह ने पैगम्बर की बीवियों से भी साफ-साफ कह दिया कि “अगर वह तुम्हें तलाक़ दे देता है तो अल्लाह बदले में उसे तुमने बेहतर बीवियां दे देगा।“ अल्लाह ने उन सब को, खासकर आयशा और हफ़्ज़ा को, इन शब्दों में चेतावनी दी-”तुम दोनों अल्लाह के आगे तौबा करो-क्योंकि तुम्हारे दिन क़ज़ हो गये हैं-लेकिन अगर तुम उसके खिलाफ परस्पर सांठगांठ करोगी, तो निश्चय ही अल्लाह मालिक है, और अल्लाह और जिब्रैल और नेक मुसलमान और फ़रिश्ते सब उसके साथ हैं।“ अल्लाह ने उनसे यह भी कहा कि अगर वे उसके साथ दुव्र्यवहार करेंगी तो पैगम्बर की बीवी होना, कयामत के रोज, उनके किसी काम नहीं आएगा। “जो लोग यकीन नहीं लाते, उनके सामने अल्लाह मिसाल पेश करता है। नूह की बीवी और लूत की बीवी की मिसाल सामने हैं। वे दोनों दो नेक बंदों की ब्याहता थी और दोनों ने खयानत की। और अल्लाह के मुक़ाबले में उन औरतों के खाविंद उनके किसी काम न आये। और उनसे कहा गया-दाखिल होने वालीं के सथ तुम भी (दोज़ख़ की) आग में दाखिल हो जाओ“ (कुरान 66/1-10)।

 

बात आयी-गयी हो गयी। और वे सब फिर उनकी बीवियां बन गयी। पाक पैगम्बर ने उनसे (अपनी बीवियों से) “एक महीने तक अलग रहने की कसम खायी थी और अभी सिर्फ उनतीस दि नही गुजरे थे। किन्तु वे उनके पास पहुंच गए।“ आयशा ने शरारतन पैगम्बर को याद दिलाया कि एक महीना पूरा नहीं हुआ है, सिर्फ उनतीस दिन ही हुए हैं। इस पर मुहम्मद ने जवाब दिया-”कई बार महीने में उनतीस रोज ही होते हैं। (3507-3511)

 

उमर अब मस्जिद के दरवाजे पर खड़े हो गये और पूरे ज़ोरों से पुकार कर बोले-“अल्लाह के पैग़म्बर ने अपनी बीवियों को तलाक़ नहीं दिया है।“ मुहम्मद पर एक आयत भी उतरी, जिसमें मोमिनों को इसके लिए झिड़का गया कि वे इतनी जल्दी अफ़वाहों पर यक़ीन कर लेते हैं-“और अगर उनके पास अमन या खतरे की कोई खबर पहुंचती है, तो उसे मशहूर कर देते हैं। लेकिन अगर उन्होंने उसे पैगम्बर या सरदारों के पास पहुंचाया होता तो तहक़कीक़ करने वाले तहक़ीक़ कर लेते“ (4/83; हदीस 3507)।

author : ram swarup

 

HADEES : WHO INHERITS A SLAVE�S PROPERTY?

WHO INHERITS A SLAVE�S PROPERTY?

Even if a slave�s person was freed, any property he might have or come to have was inherited by the emancipator (3584-3595).  �Aisha was ready to help a slave-girl, BarIra, to purchase her freedom on the condition that �I shall have the right in your inheritance.� But the owner, though ready to free her for cash money, wanted to retain the right of inheritance for himself.  Muhammad gave his judgment in favor of �Aisha: �Buy her, and emancipate her, for the right of inheritance vests with one who emancipates.� Muhammad then admonished: �What has happened to the people that they lay down conditions which are not found in the Book of Allah� (3585).

author : ram swarup