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कुरान समीक्षा : सबकी उम्र अल्लाह ने लिखी हुई है

सबकी उम्र अल्लाह ने लिखी हुई है

जब सबकी उम्र पहले से ही निश्चित है तो खुदा ने लोगों को कत्ल करने लड़ने की फरिश्तों की फौजें लेकर खुद लड़ने जाने, इस्लाम स्वीकार न करने पर कत्ल करने, काफिरों व मुश्रकीन को मार डालने, लोगों को दोजख आदि में झोंकनें, मनुष्यों को गुस्सा होकर बन्दर बनाने आदि की गलती क्यों की।

क्यों हत्या के आदेश दिये? क्या खुदा भूल गया था कि बिना समय आये कोई भी मर नहीं सकता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व मा का-न लि नफसिन्………।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू १५ आयत १४५)

…..और कोई शख्श बे हुक्म खुदा के मर नहीं सकता, जिन्दगी मुकर्रर करके लिखी हुई है।

जो शख्श दुनियाँ में बदला चाहता है हम उसका बदला यहीं देते हैं और जो कयामत में बदला चाहता है, मैं उसको वहीं दूँगा और जो लोग मेरा शुक्र बजाते हैं मैं उनको जल्द अच्छा बदला दूँगा।

समीक्षा

सबकी यदि उम्र लिखी होने की बात ठीक है तो खुदा को लड़ाई के मैदान में फरिश्तों की फौजी मदद भेजने की जरूरत ही नहीं थी, क्यों खुदा के मुताबिक तो कोई भी नियत वक्त से पहिले मर ही नहीं सकता था।

यदि बदला इन्सान की मरजी के अनुसार यहीं पर मिल सकेगा तो कयामत के दिन सबका फैसला होने का कुरान का दावा झूठा हो जावेगा और कयामत, जन्नत और दोजख सब बेकार हो जावेंगी ।

कुरान समीक्षा : खुदाई दीन इस्लाम की प्रशंसा

खुदाई दीन इस्लाम की प्रशंसा

खुदा ने पहले यहूदी दीन पसन्द किया । फिर ईसाई मत का प्रचारक बना। अब दोनों को गलत बताकर इस्लाम का वकील बन बैठा है। आगे किसी और नये दीन का प्रचारक बन जावेगा ऐसे रोज नया मजहब बदलने वाले खुदा पर कोई कैसे विश्वास कर सकता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

शहिदल्लाहु अन्नहू ला इला-ह…….।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू २ आयत १८)

दीन तो खुदा के नजदीक बस यही इस्लाम है और खुदा के अलावा इबादत लायक और कोई नही है।

व मंय्यब्तगि गैरल्-इस्लामि……….।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले रूकू १ आयत ८५)

…..और जो शख्स इस्लाम के सिवाय और दीन को तलाश करे तो खुदा के यहां उसका वह दीन कबूल नहीं और वह कयामत में नुकसान पाने वालों में से होगा।

हुर्रिमत् अलैकुमुल्मैततु वद्दमु व……..।।

(कुरान मजीद पारा ६ सूरा मायदा रूकू १ आयत ३)

……और हमने तुम्हारे लिये दीने इस्लाम को पसन्द किया।

समीक्षा

हर कौंजड़ी जैसे अपनी डलिया के बेर मीठे व दूसरों के बेर खट्ठे बताती है वैसे ही कुरानी अरबी खुदा ने भी इस्लाम की तारीफ में ढोल पीटे हैं जैसा कि ऊपर की आयतों में साफ प्रकट है।

कुरान समीक्षा : गैर मुस्लिम का विश्वास न करो

गैर मुस्लिम का विश्वास न करो

खुदा के इस आदेश का परिणाम है कि गैर मुस्लिम भी मुसलमानों का ऐतबार नहीं करते हैं प्रजा में फूट डालने वाला अरबी खुदा भी क्या खुदाई के काबिल माना जा सकता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

ला यत्त्खिजिल्- मुअ्मिनूनल………।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू ३ आयत २८)

मुसलमानों को चाहिए कि मुसलमानों को छोड़कर काफिरों को अपना दोस्त न बनावें और जो वैसा करेगा तो उससे और अल्लाह का कोई सरोकार नहीं है।

समीक्षा

जब मुसलमान दूसरों का ऐतबार न करेंगे तो उन पर भी दुनियां में कोई क्यों ऐतबार करेगा? मुसलमानों को तो खुदा ने झूठी कसमें तक खाने का निर्देश दे रखा है।

कुरान समीक्षा : खुदा का मकर करना

खुदा का मकर करना

क्या धोखेबाजी, मक्कारी करना खुदा की सिफात अर्थात् गुण है या अवगुण है? जो मक्कर हो क्या वह कभी खुदा हो सकता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व म- करू व म-क रल्लाहुवल्लाह………।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू ५ आयत ५४)

यहूद ने ईसा मकर किया। अल्लाह ने उससे अर्थात् यहूद से मकर किया और अल्लाह मकर अर्थात् धोखा या चालबाजी करने वालों में एक अच्छा मकर करने वाला है।

समीक्षा

इस आयत में खुदा ने अपने को बढ़िया मकर फरेब करने वाला बताकर अपनी निदा की है या प्रशंसा? यह सबको विचार करना चाहिए। जब अरबी खदा मकर फरेब करने में माहिर है तो उसके अन्धभक्त मुसलमा भी यदि मकर व फरेब करने वाले बनें तो उन्हें कौन दोष दे सकता है?

कुरान समीक्षा :ईसा को इन्जील सिखाने वाला खुदा का बयान गलत है

ईसा को इन्जील सिखाने वाला खुदा का बयान गलत है

इन्जील सिखाने जैसी बात खुदा ने ऐसी बे सर-पैर की गलत बात कुरान में क्यों कही ?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व युअ ल्लिमुहुल्-किताब………।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू ५ आयत ४८)

…… और खुदा ईसा को आसमान की किताब और अक्ल की बातें और तौरेत व इन्जील सिखा देगा।

समीक्षा

कुरान की यह आयत गलत है। इन्जील नाम की कोई किताब ईसा के जन्मे से पूर्व या ईसा के जमाने में नहीं थी। ईसा के मरने के बाद उसके चेलों के द्वारा लिखित पचासों पुस्तकों का संग्रह किया गया था। यह संग्रह ईसा के ३०० वर्ष बाद किया गया था और एक सभा में उनमें से बहुत किताबों को रद्द कर दिया गया। केवल २७ किताबों को पसन्द किया गया और उनके संग्रह को ‘‘इन्जील’’ के नाम से प्रचारित किया गया।

अतः खुदा का ‘‘कुरान में ईसा को इन्जील सिखाने की बात कहना’’बे सर पैर की बात है। अतः कुरान की आयत गलत हैं

कुरान समीक्षा : खुदा ने हर चीज किताब में लिख रक्खी है

खुदा ने हर चीज किताब में लिख रक्खी है

क्या खुदा की यादगार इतनी कमजोर है कि उसे हर बात डायरी में लिखकर रखनी पड़ती है? ताकि वक्त पर भूल न जावे।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व मा मिन् दाब्बतित् फिल्……………।।

(कुरान मजीद पारा ६ अन्आम रूकू ४ आयत ३८)

समीक्षा

कुरान शरीफ में तो हर चीज लिखी नहीं है, फिर वह किताब कौन सी और कहाँ पर रखी है? जिसमें सभी कुछ लिखा रखा हो। खुदा को शायद अपनी यादगार के लिए हर बात एक अलग डायरी में लिख लेनी पड़ती होगी ताकि वक्त पर भूल न हो जावे।

नोट- मौजूदा कुरान तो आँ हजरत के बाद तैयार कराया गया। उसके संग्रह पर विवाद था। कुछ आयतों को बकरियां चर गयी थी, कुछ प्राप्त ही न हो सकीं।

अतः हो सकता है कुछ बातें संग्रह से रह गयी हों जैसे कि वर्तमान में ३० सिपारों वाला कुरान ही वर्तमान में मिलता है, जबकि खुदाबख्श लाइब्रेरी पटना (बिहार) में ज्यादा सिपारों वाली कुरान भी मौजूद है, ऐसा सुनने में आया है।

‘‘लाजपत राय अग्रवाल’ʼ

कुरान समीक्षा : खुदा की ‘‘कुन’’ अर्थात् हो जा क्या बला है?

खुदा की ‘‘कुन’’ अर्थात् हो जा क्या बला है?

यदि ‘‘हो जा’’ कहने से ही सब कुछ बन जाता था तो बिचारे खुदा को छः दिन रात दुनियां बनाने की कड़ी मेहनत क्यों करनी पड़ी? क्या इस ‘‘कुन’’ अर्थात् हो जा वाले छूमन्त्र को खुदा उस वक्त भूल गया था।

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

कालत् रब्बिअन्ना यकूनु ली…………।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान रूकू ५ आयत ४७)

जब वह किसी काम का ठान लेता है तो बस! उसे फर्मा देता है कि ‘‘कुन’’अर्थात् हो जाता है।

समीक्षा

खुदा के ‘‘कुन’’अर्थात् हो जा के आदेश कौन- सुनता है? किससे खुदा ‘‘हो जा’’कहता है? यह भी खोला जाना था। खुदा को ‘‘हो जा’’कहने की क्या जरूरत थी? केवल मन से ही विचार करके काम क्यों नहीं कर लेता था। क्या खुदा भी ‘‘कुन’’का ही मुहताज है ?

कुरान समीक्षा : खुदा हर काफिर को ७० हाथ की जंजीर से बांधेगा

खुदा हर काफिर को ७० हाथ

की जंजीर से बांधेगा

मुल्जिम को पकड़ कर बेबस कर देने के बाद उस पर दया की जाती है पर अरबी खुदा का दोजख की भट्ठी में भूनते समय भी काफिरों को ७० हाथ लम्बी जंजीर से बांधना क्या उसकी बेहमी का सबूत नहीं है। क्या ऐसा खुदा रहीम अर्थात् रहम करने वाला कहा जा सकता है ?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

खुजूहु फगुल्लूहु………….।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू १ आयत ३०)

(खुदा कहेगा) इसकों पकड़ो और इसके गले में तोक अर्थात् हार डालो

सुम्मल्-जही-म सल्लूहु…………।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू २८ आयत ३१)

फिर इसको नरक में ढकेल दो।

सुम-म फी सिलसि लतिनर्जअुहा…………..।।

(कुरान मजीद पारा २९ सूरा हाक्का रूकू २८ आयत ३२)

और इसे सत्तर हाथ लम्बी जंजीर से जकड़ अर्थात् बाँध दो।

समीक्षा

दोजख की ऊंची लपटों वाली तेज आग में झोंक देने के बाद हर काफिर को इसनी लम्बी जंजीर से बांधना क्यों जरूरी होगा? क्या छोटी तीन गज की जंजीर एक आदमी को काफी नहीं होगी? इतनी बड़ी ढेर सारी जंजीरें खुदा किस लोहे की फैक्ट्री या कम्पनी से खरीदेगा? वह हिन्दुस्तानी होंगी या अमरीकन? उन्हें कहां से आयात किया जायेगा और क्या खुदा के पास उन्हें मंगाने के लिए एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का कोई लाइसैन्स भी मौजूद है?

कुरान समीक्षा: खुदा ने अरबी जाहिलों को पैदा करके अपनी अकलमन्दी का सबूत दिया है या जहालत का?

खुदा ने अरबी जाहिलों को पैदा करके अपनी अकलमन्दी का सबूत दिया है या जहालत का? जब स्वयं जाहिल पैदा किये तो उन्हें गाली क्यों दी?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

फ इन हाज्जू-क फ-कुल् अस्लम्तु………।।

(कुरान मजीद पारा ३ सूरा आले इम्रान स्कू २ आयत २०)

(ऐ पैगम्बर) किताब वाले और (अरब) के जाहिलों से कहों कि तुम भी इस्लाम को मानते हो या नहीं?

समीक्षा

इसमें अरबी खुदा ने अरब वालों को डंके की चोट पर ‘‘जाहिल’’घोषित कर दिया है। जाहिलों को जैसे उपदेश दिये जाते हैं, वैसे ही कुरान में उनको दिये गये हैं। हूरें, गिलमें-शराबें आदि के लालच से ही जाहिल लोग इस्लाम में फाँसे जा सकते थे और वही हथकण्डे कुरान में उपनाये गये हैं। पर एक बात विचारणीय यह भी है कि खुदा ने बिना वजह लोगों को जाहिल पैदा करके अपनी भलमनसाहत का सबूत दिया है या जहालत का? यह सोचने की बात है क्या गालियां देने से खुदा की शराफत जाहिर होती है?

कुरान समीक्षा : कुरान में सूद खाना पाप है

कुरान में सूद खाना पाप है

जब खुदा कर्ज लेकर कुरान में दुगना देने (शत प्रतिशत सूद देने) का वायदा करता है तो सूद खाना या देना हराम कैसे होगा?

देखिये कुरान में कहा यह है कि-

अल्लजी-न अय्कुलूनर्रिबा ला………..।।

(कुरान मजीद पारा २ सूरा बकर रूकू ३८ आयत २७५)

जो लोग सूद खाते हैं (कयामत के दिन) खड़े नहीं हो सकेंगे। और वे हमेशा दोजख में जलते रहेंगे।

समीक्षा

सूद खाना यदि हराम है तो दुनियां के इस्लामी मुल्कों के बैंकों व डाकखानों में सूद लिया और दिया जाता है, क्या वे सरकारें और उनमें धन जमा करने वाले मुसलमान सभी दोजख में डाले जावेंगे?