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कुर्बानी कुरान के विरुद्ध?

कुर्बानी कुरान के विरुद्ध?

(इस्लाम के मतावलम्बी कुर्बानी करने के लिए प्रायः बड़े आग्रही एवं उत्साही बने रहते हैं। इसके लिए उनका दावा रहता है कि पशु की कुर्बानी करना उनका धार्मिक कर्त्तव्य है और इसके लिए उनकी धर्मपुस्तक कुरान शरीफ में आदेश है। हम श्री एस.पी. शुक्ला, विद्वान् मुंसिफ मजिस्ट्रेट लखनऊ द्वारा दिया गया एक फैसला  पाठकों के लाभार्थ यहाँ दे रहे हैं, जिसमें यह कहा गया है कि ‘‘गाय, बैल, भैंस आदि जानवरों की कुर्बानी धार्मिक दृष्टि से अनिवार्य नहीं।’’ इस पूरे वाद का विवरण पुस्तिका के रूप में वर्ष १९८३ में नगर आर्य समाज, गंगा प्रसाद रोड (रकाबगंज) लखनऊ द्वारा प्रकाशित किया गया था। विद्वान् मुंसिफ मजिस्ट्रेट द्वारा घोषित निर्णय सार्वजनिक महत्त्व का है-एक तर्कपूर्ण मीमांसा, एक विधि विशेषज्ञ द्वारा की गयी विवेचना से सभी को अवगत होना चाहिए-एतदर्थ इस निर्णय का ज्यों का त्यों प्रकाशन बिना किसी टिप्पणी के आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। -सम्पादक)

कुर्बानी कुरान के विरुद्ध?

पिछले अंक का शेष भाग

विवाद्यक नं. १,२,३ व ५

विवाद्यक नं. १ व २ को सिद्ध करने का भार वादीगण पर है। विवाद्यक नं. ३ व ५ को सिद्ध करने का भार प्रतिवादीगण पर है। यह विवाद्यक एक दूसरे पर आधारित है। अतः इनकी व्याख्या अलग-अलग कर पाना सम्भव नहीं है। अतः न्याय की सुगमता के लिए ये विवाद्यक एक साथ निर्णीत किया जाना अधिक उपयुक्त एवं उचित होगा।

विवाद्यक नं. १ के सम्बन्ध में वादी साक्षी नं.-१ राम आसरे, वादी साक्षी सं. २ महन्त विद्याधर दास को परीक्षित किया गया। इन दोनों साक्षीगण ने शपथ पर न्यायालय में बयान दिया और कहा कि ग्राम सहिलामऊ में भैंस-भैंसा की कुर्बानी बकरीद के अवसर पर नहीं होती रही है, केवल बकरे की कुर्बानी मुसलमान भाई करते थे, जिसे कभी भी हिन्दुओं ने नहीं रोका और जिससे धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता, सद्व्यवहार, सदाचार एवं सहयोग का वातावरण बना हुआ था, परन्तु श्री मोहम्मद रफीकुद्दीन के गाँव में आने पर भैसों की कुर्बानी करवाने से गाँव में साम्प्रदायिक तनाव, विद्वेष व घृणा का वातावरण पनप गया। धर्म की आड़ लेकर रफीकुद्दीन भोलीभाली निरीह जनता को आपस में लड़वाना चाहते हैं। इन साक्षीगण के अनुसार ग्राम सहिलामऊ में कभी भी भैंसे की कुर्बानी नहीं दी गई। पृच्छा में भी इन साक्षियों से कोई विशेष बात प्रतिवादीगण के विद्वान् अधिवक्ता नहीं निकाल पाये हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि ग्राम सहिलामऊ में इस घटना के पहले भी भैंस-भैसों की कुर्बानी हुआ करती थी।

इसके विपरीत प्रतिवादीगण की ओर से प्रतिवादी साक्षी नं. १ सैयदअली, दीन मोहम्मद, फारुक को परीक्षित किया गया, जिन्होंने कहा कि इस गाँव में आजादी के पहले गाय की भी कुर्बानी होती थी। भेड़, भेड़ा, बकरी, बकरा, गाय-बैल, ऊँट-ऊँटनी की कुर्बानी का मजहबी प्राविधान इन लोगों ने बताया और कहा कि इस गाँव में भैंसे की कुर्बानी पहले होती थी, जिससे कोई घृणा का वातावरण नहीं बना। वादीगण धार्मिक आड़ में प्रतिवादीगण की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना चाहते हैं। इन साक्षीगण की साक्ष्य को पृच्छा की कसौटी पर कसा गया, तो सफाई साक्षी नं. १ सैयद अली ने स्वीकार किया और यह भी कहा कि हिन्दुओं ने मुर्गे की कुर्बानी पर कोई एतराज नहीं किया और इस साक्षी ने यह स्वीकार किया कि सन् ६४-६५ में जब राजबहादुर थाना मलिहाबाद में दरोगा थे, तब कुर्बानी की बात उठी थी, लेकिन सुलह हो गई थी। इस गाँव में कोई भी बूचड़खाना नहीं है। इससे यह स्पष्ट होता है यदि किसी बड़े जानवर की कुर्बानी की जायेगी तो दूसरे लोगों को यानि हिन्दुओं को भी पता चलेगा, जिससे बड़ा बखेड़ा होगा जैसा कि यह प्रतिवादी सन् ६४-६५ की वारदात स्वीकार करता है। साक्षी नं. ३ मोहम्मद फारुख ने भी पृच्छा में स्वीकार किया है कि सन् १९७९ में १७ बकरों की कुर्बानी दी गई, जिसमें से १४ बकरों को कुर्बानी न्यायालय से मिले पैसे से हुई थी और तीन बकरों का इन्तजाम उन्होंने स्वयं किया था। इस साक्षी एवं सैयद अली ने भी पृच्छा में स्वीकार किया है कि खून हड्डियाँ एवं बाल आदि को गड़वाने वाली बात जवाब दावा में नहीं लिखी गयी है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि ये बातें इन साक्षियों ने सोच विचारकर न्यायालय में बताई हैं और न ही इन साक्षियों ने कुर्बानी बन्द करने की बात कही है, बल्कि पृच्छा में यह बात बताई जो कि विचारकर कहना प्रतीत होती है। ऐसी दशा में यदि यह कुर्बानी स्वतन्त्रतापूर्वक होती है, तो निश्चय ही हिन्दुओं को इस बात का पता लगा होता और तनाव बढ़ता।

यहाँ पर यह भी कहना अनुचित न होगा कि सफाई साक्षी सं. ५ मो. रफीकुद्दीन जो सम्पूर्ण कलह की जड़ कहे जाते हैं और ग्राम सहिलामऊ में मस्जिद में नमाज पढ़ाते हैं तथा गाँव के मुसलमानों के धार्मिक गुरु हैं, उन्होंने पृच्छा में इस बात को स्वीकार किया कि भैंस जानवर जिवा करते हैं, वह उसका कोई रिकार्ड नहीं रखते हैं। हाजी सैयद अली मस्जिद में मुतबल्ली हैं और उनके पास कुर्बानी का पूरा रिकार्ड रहता है, उसमें कुर्बानी के जानवरों की जाति लिखी जाती है। और कुर्बानी किस-किस ने कराया उसका नाम लिखा जाता है। हाजी सैयद अली इस मुकद्दमे में प्रतिवादी नं. ७ हैं, परन्तु न्यायालय में मेरे समक्ष तथाकथित अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया, जिसके आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता कि ग्राम सहिलामऊ में कुर्बानी काफी पुराने समय से चली आ रही है। वह अभिलेख प्रतिवादी नं. ७ के पास है जो महत्त्वपूर्ण अभिलेख है, जिसको प्रस्तुत करने का दायित्व प्रतिवादी नं. ७ पर है। इसको प्रस्तुत न करने से अनुमान प्रतिवादीगण के विरुद्ध लगाया जायेगा। सैयद अली प्रतिवादी नं. ७ प्रतिवादी साक्षी नं. १के रूप में न्यायालय में परीक्षित हुए हैं, इन्होंने उक्त अभिलेखों के बावजूद एक शब्द भी नहीं कहा। इस साक्षी का बयान स्वयं में विरोधाभासी है। उसने अपने मुख्य कथन में यह कहा है कि इस गाँव में आजादी के पहले गाय की बलि होती थी और उसके पहले भैंसे-भैंसों की बलि होती रही है। पृच्छा में यह साक्षी स्वीकार करता है कि उसके मजहब में गाय और भेड़ की कुर्बानी की इजाजत नहीं है। ऐसी दशा में इसका स्वयं का कथन संदेहास्पद है।

उपरोक्त व्याख्या के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि विवादित घटना से पहले ग्राम सहिलामऊ में भैंसे की कुर्बानी नहीं होती रही थी। विवाद्यक नं १ व २ तदनुसार वादीगण के अनुकूल एवं प्रतिवादी गण के प्रतिकूल निर्णीत किये गये।

विवाद्यक नं. ३ व ५

के बावत उभय पक्ष की ओर से तर्क दिये गये। प्रतिवादीगण ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५ व २६ का सहारा लेकर अभिकथित किया कि मुसलमानों को कुर्बानी करने का मौलिक अधिकार प्रदत्त है और उससे उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता। यह निःसंदेह सत्य है कि धार्मिक स्वतन्त्रता का प्रावधान भारतीय संविधान में निहित है और धर्म निरपेक्षता इस संविधान की विशेषता है, परन्तु संविधान में मौलिक अधिकारों के तहत किसी विशेष धर्म को विकसित करने, परिपोषित करने व प्रचार करने की सुविधा सरकार द्वारा प्रदत्त नहीं की गयी है, बल्कि उस धर्म के अनुयाइयों को अपने धर्म के विकास करने की सुविधा की स्वतन्त्रता है, परन्तु यह स्वतन्त्रता असीमित, अनियमित नहीं है। धार्मिक स्वतन्त्रता भारतीय संविधान में वहीं तक प्रदत्त है, जहाँ तक दूसरे धर्मवालों की भावनाओं पर कुठाराघात न हो, परन्तु जहाँ जिस धार्मिक भावना द्वारा दूसरे धर्म के लोगों की धार्मिक भावना का कुठाराघात होता है, वह धार्मिक स्वतन्त्रता नहीं दी गयी है।

मैं विद्वान् अधिवक्ता के इस तर्क से पूर्णतः सहमत हूँ कि धार्मिक स्वतन्त्रता का प्राविधान भारतीय संविधान में प्रदत्त है, परन्तु इससे दूसरे के धर्म को आघात पहुँचाने का अधिकार नहीं मिलता है। जहाँ तक कुर्बानी मजहब का अंग है, इस सम्बन्ध में हाजी मो. रफीकुद्दीन को परीक्षित किया गया। वही तथाकथित मुसलमानों के धार्मिक गुरु ग्राम सहिलामऊ में हैं, उनके समक्ष सम्पूर्ण पाक कुरान शरीफ रखी गयी और उनसे कहा गया कि वह न्यायालय को बतायें कि पाक कुरान शरीफ में कुर्बानी का प्राविधान कहाँ पर है और विशेषतः भैंसे की कुर्बानी कहाँ पर दी गई है, परन्तु वह कोई भी ऐसा सन्दर्भ पाक कुरान शरीफ में निकालकर दिखाने में असमर्थ रहे हैं। उन्होंने केवल पाक कुरान शरीफ की कुछ आयतों का सन्दर्भ दिया। उनके अनुसार केवल पाक कुरान शरीफ सूरे हज्ज के पारा-१७ रूकू  १२ के अनुसार कुर्बानी फर्ज है, लेकिन जब उन्हें कुरान शरीफ दी गई तो वह दिखा नहीं सके, बल्कि सूरे हज्ज की आयत ३६ में यह कहा कि अल्लाह के नजदीक न इसका गोश्त पहुँचता है और न ही खाल, लेकिन नीयत पहुँचती है। अल्लाह ताला नीयत को देखता है, जानवर को नहीं देखता। सूरे हज्जरूक  ५ आयत ३ में यह लिखा है कि खुदा तक न तो कुर्बानी का मांस पहुँचता है और न ही खून, बल्कि उनके पास तुम्हारी श्रद्धा भक्ति पहुँचती है, यह कहना साक्षी ने गलत बताया। कुर्बानी की दुआ इस साक्षी ने सूरे इनाम रूकू १४ पारा ७ आयत ७६ बताया और फिर बाद में ७८ कहा, परन्तु जब यह पूछा गया कि कुर्बानी फर्ज है, कहाँ पर लिखा है, तो यह बताने में साक्षी असमर्थ रहा। इस साक्षी को पाक कुरान शरीफ के प्रकाशक भुवन वाणी का शास्त्रीय अरबी पद्धति पर हिन्दी में संस्कारण दिखाया गया तो, उसने कहा कि इस ग्रन्थ के पेज नं. ५६० में सूरे हज्ज १७ वें पारे में ११ वें रूकू  में ३३ वीं आयत में यह लिखा है कि ‘‘हमने हर जमात के लिए कुर्बानी के तरीके मुकर्रर किये हैं, जो हमने उनको चौपाये जानवरों में से अनाम किये हैं। कुर्बानी करते हुए अल्लाह का नाम लें।’’ इस साक्षी ने यह स्वीकार किया कि इसमें कुर्बानी फर्ज है, इसका जिक्र नहीं है। इस साक्षी ने अन्त में विवश होकर यह स्वीकार कर लिया कि हाफिज का मतलब पाक कुरान शरीफ हिफ्ज होने से अर्थात् रटे होने से है। पाक कुरान शरीफ की आयतों का अर्थ जानने से नहीं है। मुझे कुरान शरीफ की आयतों का अर्थ नहीं मालूम। जो कुरान शरीफ की आयतों का अर्थ जानता है, उन्हें उलेमा कहते हैं, वे कुरान शरीफ की बारीकियों को समझा सकते हैं। इसके बावजूद भी प्रतिवादीगण की ओर से कोई भी उलेमा पेश नहीं किया गया, जो न्यायालय को यह बताता कि इस्लाम धर्म में भैंस-भैंसे की कुर्बानी करना कहाँ पर लिखा है और कुर्बानी करना हर इस्लाम के बंदे का फर्ज है। इस व्यक्ति से स्पष्ट प्रश्न पूछा गया कि कुरान शरीफ की किस आयत में कुर्बानी करना फर्ज लिखा है, इस साक्षी ने स्पष्ट स्वीकार किया कि उसे पता नहीं है कि कुरान शरीफ की किस आयत में कुर्बानी फर्ज लिखा है, बल्कि यह फिरंगी महल अथवा नदवे वाले हैं, उसके लोग जो बताते हैं, वह करता हूँ। फिरंगी महल अथवा नदवे का उलेमा अथवा मुल्ला कोई भी मेरे समक्ष परीक्षित नहीं किया गया, जो इस बात को स्पष्ट करता कि इस्लाम मजहब में बकरीद के अवसर पर भैंस-भैंसे की कुर्बानी करना परमावश्यक है।

इस साक्षी ने यह भी स्पष्ट स्वीकार किया है कि कुर्बानी अपनी सबसे अजीज चीज की दी जाती है। उदाहरण के लिए हजरत इब्राहिम ने अपने लड़के की कुर्बानी बकरीद के दिन दी थी, परन्तु जब इब्राहिम ने अपनी आँखों से पट्टी खोली तो दुम्मा बना हुआ निकला। इससे अधिक से अधिक तात्पर्य यह निकाला जा सकता है कि दुम्मा को कुर्बानी करने के लिए इस्लाम में प्राविधान है, परन्तु दुम्मा का तात्पर्य भैंस, गाय से नहीं हो सकता। पारा १७ आयत २६ से ३८ तक ऊँटों की कुर्बानी का प्राविधान सूरे हज्ज में दिया गया है। इसी में आयत ३२ में कहा गया है कि तुम्हें चौपायों से एक खास वक्त तक फायदे हैं, जो तुम सवारी या दूध से उठा सकते हो। फिर उसे पुराने ढाबे काबा तक कुर्बानी के लिए जाना है। आयत २७ में कहा गया है-और लोगों में हज्ज के लिए पुकार दो कि हमारी तरफ दुबले-दुबले ऊँटों पर सवार होकर दूर-दूर की राहों से चलकर आवें। आयत २७ में-अपनी भलाई की जगह के लिए हाजिर है। अल्लाह ने तो मवेशी उन्हें दिये हैं, उन पर जबह (बलिदान) के समय अल्लाह का नाम लें। उनमें से असहायों, दीन-दुखियों और फकीरों को खिलाओ। आयत २८ में चाहिए कि अपना मैल-कुचैल उतार दें और अपनी मन्नतें पूरी करें और इस तबाक की परिक्रमा करें।

यह सत्य है कि पाक कुरान शरीफ में कुर्बानी के लिए चौपायों के लिए कहा गया। पाक कुरान शरीफ में एक स्थान निश्चित कर दिया गया है और वह काबा के सामने पूरब की ओर है। कुर्बानी करने वाले जानवर का सिर काबा की ओर होगा और अल्लाह का नाम लेकर जिबा किया जायेगा। पाक कुरान शरीफ में स्पष्ट कहा गया है कि उन्हीं चौपायों की कुर्बानी दी जायगी, जो आपके प्रयोग के लिए बेकार हो गये हैं अर्थात् दूध नहीं देते हैं और जो बोझ ढोने के लायक नहीं हैं, परन्तु डाक्टर ने इस वाद में स्वयं जानवरों को सर्टीफिकेट दिया और स्वस्थ जानवरों को ही मारने के लिए यह प्रमाणपत्र दिया जाता है। ग्राम सहिलामऊ कभी काबा नहीं बन सकता और इस प्रकार की दी गई कुर्बानी भैंसों आदि की पाक कुरान शरीफ में अंकित हैं, इसमें सन्देह है। पाक कुरान शरीफ का उद्देश्य अनुपयोगी जानवरों की कुर्बानी से है, जिससे लोग उनके माँस आदि से अपना पेट पालन करते हैं, न कि हृष्ट-पुष्ट जानवरों की कुर्बानी करना, जिसके लिए डाक्टरी सर्टीफिकेट की आवश्यकता है।

यहाँ पर यह कहना अनुचित न होगा कि धर्म के आधारभूत सिद्धान्तों को अन्धविश्वास में बदलना कहाँ तक उचित है और अन्धविश्वास को भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५ व २६ में प्रश्रय मिलेगा, यह सही नहीं है। हालाँकि उपरोक्त सभी आयतें साक्षी नं. ५ श्री मो. रफीकुद्दीन नहीं कह सके। इसलिए उन्हें इन आयतों का भी लाभ नहीं मिल सकता।

मेरे समक्ष विद्वान् अधिवक्ता प्रतिवादी ने मोहम्मद फारूक बनाम स्टेट ऑफ मध्य प्रदेश आदि ए.आइ. आर. १९७० सुप्रीम कोर्ट पेज ९३ की नजीर प्रदर्शित की। यह नजीर वर्तमान वाद में लागू नहीं होती है। यह नजीर भारतीय संविधान के अनुच्छेद-१९ (जी) व्यापार करने के सम्बन्ध में है, अतः इसकी व्याख्या करना उचित न होगा।

मेरे समक्ष विद्वान् अधिवक्ता प्रतिवादी ने श्रीमद्पेरारू लाल तीर्थराज रामानुजा जी.एम. स्वामी बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु ए.आई.आर. १९७२ सुप्रीम कोर्ट पेज १५८६ प्रदर्शित किया, जिसमें सरदार सइदेना तेहर शिक्यूरिटी शाहिद बनाम बाम्बे सरकार ए.आई.आर. सुप्रीम कोई पेज ५८३ पर विश्वास व्यक्त किया गया, जिसके अनुच्छेद ३४ में यह न कहा गया भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५ व २६ में संरक्षणता केवल धार्मिक सिद्धान्त अथवा विश्वास को नहीं दी गई है। यह संरक्षणता वहाँ तक बढ़ाई जाती है जहाँ तक धार्मिक अक्षुण्यता प्रतिवादित करने में जो कृत्य किये जाते हैं और जिस प्रकार पूजा अर्चना त्योहारों के रूप में मनाई जाती है, जो धर्म का एक अभिन्न अंग है। दूसरा यह कि यह धर्म का आवश्यक अंग है अथवा धार्मिक अभ्यास है, यह विशेष धर्म के सिद्धान्तों एवं उसके अभ्यासों पर जो उस धर्म के अनुयाइयों द्वारा धर्म का अंग मानकर किया जाता है, पर निर्भर होगा। इस तथ्य को न मानने का कोई प्रश्न नहीं उठता १. यदि भैसों की बलि बिना बकरीद त्योहार मुसलमानों में नहीं मनाया जा सकता, तो निश्चय ही उन्हें भैसें की बलि की इजाजत देनी होगी, परन्तु इस आवश्यक अंग को प्रतिवादीगण सिद्ध करने में असफल रहे हैं। यदि भैंस-भैंसे की बलि विवादित ग्राम में होती रही होती तो निश्चय ही मेरे समक्ष अभिलेख प्रस्तुत किये गये होते, जबकि साक्षी सं. ५ ने स्वीकार किया है कि साक्षी नं. १ जो प्रतिवादी नं. ७ है, मस्जिद के मुतवल्ली होने के कारण इस सम्बन्ध में सभी अभिलेख रखते हैं। इस तथ्य से यह भी स्पष्ट होता है कि उस गाँव में रहने वाले मुसलमान अब तक भैंसे की बलि देकर ही बकरीद मनाते रहे हैं अथवा नहीं। बकरे दुम्मे की कुर्बानी करने के लिए वादीगण को भी कोई आपत्ति नहीं है।

शेष भाग अगले अंक में……

कुरान समीक्षा : सूरज चाँद को नहीं पकड़ सकता है

सूरज चाँद को नहीं पकड़ सकता है

साबित करें कि सूरज चांद एक-दूसरें को पकड़ने के लिए दौड़ लगा रहे हैं?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

लश्शम्सु यम्बगी लगा अन् तुद्रिकल्………..।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा यासीन रूकू ३ आयत ४०)

न तो सूरज से ही बन पड़ता है चाँद को जा पकड़े और न रात ही दिन से आगे आ सकती है और हर कोई एक-एक घेरे में फिरते हैं।

समीक्षा

सूरज जमीन से नौ करोड़ मील पर है है जब कि चाँद दो लाख छत्तीस हजार मील के फांसले पर है है सूरज अपनी ही कीली पर घूमता है जबकि चाँद जमीन के चारों ओर घूमता हुआ स्वंय भी घुमता है। तो सूरज चांद को नहीं पकड़ सकता यह कहना बड़ी बेतुकी सी बात है कुरान को समझदारी की बात कहनी चाहिये थी।

यदि सूरज और चाँद दोनों एक ही दूरी पर होते और दोनों घूमतें भी होते तब तो यह बात कहना बन भी सकता था। शायद अरबी खुदा को इस मामले की जानकारी नहीं थी।

कुरान समीक्षा : खुदा ने हर बात लिख रखी है।

खुदा ने हर बात लिख रखी है।

खुदा खुद लिखता है या कोई उसने कलर्क या पेशकार इस काम के लिए नियत कर रखा है, हर बात लिखते रहने का उद्देश्य क्या है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

इन्ना नह्नु नुह्यिल्-मौता व नक्तुबु………….।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा यासीन रूकू १ आयत १२)

और हमने हर चीज खुली असल किताब यानी लौहे महफूज में लिख रखी है।

समीक्षा

डायरी में जैसे वकील व मुनीम जी हर बात को नोट करके रखते हैं, वैसे ही याद्दाश्त के लिए अरबी खुदा भी अपनी खुली किताब नाम की डायरी में लिख लेता था। वह असल किताब ही सीधी खुदा ने क्यों नहीं भेजी? यह क्या गारन्टी है कि मौजूदा कुरान ही असल किताब की वास्तविक नकल है?

कुर्बानी कुरान के विरुद्ध? -1

                 कुर्बानी कुरान के विरुद्ध?

(इस्लाम के मतावलमबी कुर्बानी करने के लिए प्रायः बड़े आग्रही एवं उत्साही बने रहते हैं। इसके लिए उनका दावा रहता है कि पशु की कुर्बानी करना उनका धार्मिक कर्त्तव्य है और इसके लिए उनकी धर्मपुस्तक कुरान शरीफ में आदेश है। हम श्री एस.पी. शुक्ला, विद्वान् मुंसिफ मजिस्ट्रेट लखनऊ द्वारा दिया गया एक फैसला  पाठकों के लाभार्थ यहाँ दे रहे हैं, जिसमें यह कहा गया है कि ‘‘गाय, बैल, भैंस आदि जानवरों की कुर्बानी धार्मिक दृष्टि से अनिवार्य नहीं।’’ इस पूरे वाद का विवरण पुस्तिका के रूप में वर्ष 1983 में नगर आर्य समाज, गंगा प्रसाद रोड (रकाबगंज) लखनऊ द्वारा प्रकाशित किया गया था। विद्वान् मुंसिफ मजिस्ट्रेट द्वारा घोषित निर्णय सार्वजनिक महत्त्व का है-एक तर्कपूर्ण मीमांसा, एक विधि विशेषज्ञ द्वारा की गयी विवेचना से सभी को अवगत होना चाहिए-एतदर्थ इस निर्णय का ज्यों का त्यों प्रकाशन बिना किसी टिप्पणी के आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। -समपादक)

न्यायालय श्रीमान् षष्ट्म अतिरिक्त मुन्सिफ मजिस्ट्रेट, लखनऊ

उपस्थितः- श्री एस.पी. शुक्ल, पी.सी.एस. (जे)

मूलवाद संखया-292/79

संस्थित दिनांक 30 अक्टूबर 1979

  1. श्री रामआसरे ग्राम प्रधान आयु लगभग 55 वर्ष पुत्र बिन्दा प्रसाद।
  2. श्री सुदधालाल आयु लगभग 50 वर्ष पुत्र श्री उधो लाल।
  3. श्री मदारू आयु लगभग 52 वर्ष पुत्र श्री भिलई।
  4. श्री राम भरोसे आयु लगभग 50 वर्ष पुत्र सरजू प्रसाद।
  5. श्री काली चरन आयु लगभग 40 वर्ष पुत्र श्री परमेश्वरदीन।
  6. श्री राम रतन आयु लगभग 51 वर्ष पुत्र श्री अयोध्या।
  7. श्री ब्रज मोहन आयु लगभग 36 वर्ष पुत्र श्री गुर प्रसाद।
  8. श्री मुन्ना लाल आयु लगभग 32 वर्ष श्री मैकू ।
  9. श्री बसुदेव आयु लगभग 56 वर्ष पुत्र श्री ललइ।

निवासी ग्राम सहिलामऊ, परगना व तहसील मलिहाबाद जिला लखनऊ

वादीगण

बनाम

  1. श्री शमशाद हुसैन आयु लगभग 36 वर्ष पुत्र श्री शाकिर अली।
  2. श्री फारुख आयु लगभग 32 वर्ष पुत्र श्री अन्वार अली।
  3. श्री मोहमद जान आयु लगभग 45 वर्ष पुत्र श्री नवाब अली।
  4. श्री यूसुफ आयु लगभग 32 वर्ष पुत्र श्री मोहमद जान।
  5. श्री अतहर अली आयु लगभग 40 वर्ष पुत्र श्री अबास।
  6. श्री अबास आयु 60 वर्ष पुत्र श्री मुराद इलाही।
  7. श्री सैयद अली आयु लगभग 70 वर्ष पुत्र श्री इलाही।
  8. उत्तरप्रदेश राज्य द्वारा डिप्टी कमिश्नर, लखनऊ।
  9. श्री योगेन्द्र नारायन जी डिप्टी कमिश्नर, लखनऊ।
  10. श्री परगना अधिकारी महोदय, मलिहाबाद, लखनऊ।
  11. सर्किल आफिसर, पुलिस सर्किल मलिहाबाद, लखनऊ।
  12. इन्चार्ज पुलिस थाना मलिहाबाद, लखनऊ।

निवासी 1 ता 7 तक निवासी ग्राम सहिलामऊ थाना, परगना व तहसील मलिहाबाद, जिला लखनऊ।

प्रतिवादीगण

वाद स्थाई व्यादेश

नकल निर्णय

वर्तमान वाद वादी ने प्रतिवादीगण द्वारा की जाने वाली कुर्बानी को प्रतिबन्धित करने के लिए दायर किया है। एन.पी. वादीगण के कथनानुसार वादीगण ग्राम-सहिलामऊ, परगना-मलिहाबाद जिला-लखनऊ के स्थाई निवासी हैं। उक्त ग्राम में कभी भी ईद-बकरीद के अवसर पर मुसलमानों द्वारा गाय-भैसों की कुर्बानी नहीं दी जाती रही है, परन्तु कुछ मुसलमानों ने हिन्दुओं की भावना को कष्ट पहुँचाने के लिए तथा सामप्रदायिक तनाव बढ़ाने के लिए और दंगाफसाद करने की नियत से दिनांक 1-11-79 को भैसों की कुर्बानी करनी चाही और इसके लिए इन लोगों ने रविवार को वादीगण को बुलाकर आपस में भैसों की कुर्बानी के बाबत बात-चीत की, तब उन्हें वादीगण ने समझाया कि इस गाँव में कभी भी भैसों की कुर्बानी नहीं हुई और उन्हें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे परस्पर वैमनस्य और विद्वेष की भावना बढ़े। इस पर प्रतिवादीगण ने बताया कि उन्होंने प्रतिवादी नं. 10,11 व 12 से कुर्बानी करने की अनुमति ले ली है और प्रतिवादी नं.-1 के स्थान पर कुर्बानी अवश्य करेंगे। प्रतिवादी गण नं. 1 से 7 के इस प्रकार कुर्बानी करने से ग्राम सहिलामऊ में लोक व्यवस्था तथा लोकशान्ति भंग हो सकती है और सामप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है। प्रतिवादीगण का यह कार्य (भैसों की कुर्बानी करना) नैतिकता एवं जन स्वास्थ्य के विपरीत है, क्योंकि इससे गंदगी एवं न्यूसेन्स उत्पन्न होगी, साथ ही पशुवध नियमों का उल्लंघन भी होगा। यह कुर्बानी धार्मिक दृष्टि से अनिवार्य नहीं है और न धर्म की परिधि में आती है। दिनांक 3-2-79 को भैसों की कुर्बानी न करने की एवज में प्रतिवादीगण ने वादीगण के कथन को अन्शतः स्वीकार कर लिया। वाद का कारण दिनांक 28-10-79 को उत्पन्न हुआ और वर्तमान न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत है। वादीगण को ग्राम सहिलामऊ में प्रतिवादीगण द्वारा दी जाने वाली नई व अभूतपूर्व कुर्बानियों को रोकने का अधिकार है और उक्त अधिकार का बाजार मूल्य नहीं आंका जा सकता।

प्रतिवादी नं. 1 ता 7 ने अपने जवाब दावा में यह स्वीकार किया कि वादीगण उन्हीं के गाँव के निवासी हैं। शेष सभी अभिकथनों को अस्वीकार किया। अपने अतिरिक्त कथन में प्रतिवादीगण ने अभिकथित किया कि गाँव सहिलामऊ में करीब 400 मुसलमान मतदाता है और 394 अन्य धर्म के मतदाता हैं। मुसलमानों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-25 व 26 में कुर्बानी को करने का अधिकार है और उन्हें प्रदत्त धार्मिक स्वतन्त्रता के कारण इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। वर्तमान दावा चलने योग्य नहीं है। क्योंकि वादीगण के इस कृत्य से प्रतिवादीगण के मौलिक अधिकारों पर, साथ ही साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 पर कुठाराघात हो रहा है। वर्तमान दावा गलत तथ्यों पर आधारित, दोषपूर्ण एवं परि-सीमा अधिनियम के बाधित होने के कारण चलने योग्य नहीं है।

प्रतिवादीगण की ओर से अतिरिक्त जवाब दावा में यह अभिकथित किया गया कि धारा-3 वादपत्र असत्य, निराधार एवं भ्रामक है। मुसलमानों को बकरीद व ईद के अवसर पर बकरी, भेढ़ा, भैंसा काटने का अधिकार है, क्योंकि इससे किसी की धार्मिक भावना को क्षति नहीं पहुँचती है। भैंसे की कुर्बानी नैतिकता के विपरीत नहीं है और न ही इससे आम जनता के स्वास्थ्य पर ही कोई विपरीत प्रभाव पड़ेगा। वादीगण यह बताने में असमर्थ रहे हैं कि यह कृत्य किस प्रकार जनता के लिए अस्वास्थप्रद होगा और न ही इससे न्यूसेन्स पैदा होगा। यह असत्य है कि जानवरों को काटने के नियमों का हनन होगा। बलि देना मुसलमानों का धार्मिक अधिकार है और उसके तहत बकरी, भेड़ा, ऊँट, भैंसा आदि की बलि अपनी सामाजिक स्थिति के अनुरूप दिया करते हैं और उन्हें उनके इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

प्रतिवादी गण की ओर से यह भी अभिकथित किया गया है कि जानवरों की कीमत रू. 1900/- ले लेने से उन्होंने वादीगण के अभिकथनों को स्वीकार नहीं कर लिया है और इससे मुकद्दमे के गुणावगुण पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा और यही कहकर प्रतिवादी गण ने पैसा वसूल किया जैसा कि आदेश दिनांक 3-11-79 के आदेश से स्पष्ट है। उपरोक्त आधार पर वादीगण का वाद चलने योग्य नहीं है।

उभय पक्ष को सुनकर एवं पत्रावली पर उपलबध अभिकथनों का अवलोक न कर निम्नांकित विवाद्यक मेरे पूर्व पीठासीन अधिकारी ने दिनांक 25-7-80 व 20-8-81 को बनायेः-

  1. क्या ग्राम सहिलामऊ थाना परगना तहसील मलिहाबाद लखनऊ में ईद-बकरीद के अवसर पर मुसलमानों द्वारा गाय, भैंस अथवा भैसों की कुर्बानी नहीं दी जाती रही है, जैसा कि वाद पत्र की धारा-2 में कहा गया है?
  2. क्या वादीगण को प्रतिवादीगण द्वारा दी जाने वाली कुर्बानी रोकने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि वाद पत्र धारा-4 में कहा गया है?
  3. क्या प्रतिवादी गण को कुर्बानी देने का भारतीय संविधान की धारा 25 व 26 में मूलभूत अधिकार प्राप्त है एवं वादीगण उसका हनन नहीं कर सकते, जैसा कि वादोत्तर में कहा गया है?
  4. क्या वाद का मूल्यांकन कम किया गया है एवं न्यायशुल्क कम अदा किया गया है यदि हाँ तो इसका प्रभाव?
  5. क्या वादीगण प्रतिवादीगण को रोकने से स्टोपिड होते हैं, जैसा कि वादोत्तर के धारा 10 में कहा गया है यदि हाँ तो इसका प्रभाव?
  6. क्या वादी किसी अनुतोष को पाने का अधिकारी है?
  7. क्या प्रतिवादीगण द्वारा भैसों की कुर्बानी नैतिकता के विपरीत है तथा जन-स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा इससे न्यूसेन्स होगा व पशुवध के नियमों का उल्लंघन होगा, जैसा कि वादपत्र के पैरा-4 में उल्लिखित है?
  8. क्या प्रतिवादीगण कुर्बानी की एवज में धनराशि ग्रहण करके विवन्धित हैं, जैसा कि वादपत्र में धारा-6 में उल्लिखित है?

निष्कर्ष

विवाद्यक सं.-4

इस विवाद्यक को सिद्ध करने का भार प्रतिवादीगण पर है। इस विवाद्यक को प्रारमभिक विवाद्यक बनाना चाहिए था, परन्तु समभवतः साक्ष्य के अभाव के कारण इस विवाद्यक को प्रारमभिक विवाद्यक नहीं बनाया गया । प्रतिवादीगण की ओर से प्रमुख तौर पर यह तर्क दिया गया कि उक्त ग्राम में मुसलमानों की आबादी 400 है। सात व्यक्ति मिलकर एक भैंसे या बैल की कुर्बानी दे सकते हैं। इस प्रकार 400 को 7 से भाग देने पर 57 भैंसे आते हैं। यदि एक भैंस की कीमत रू. 300/- भी आंक ली जाए तो कुल कीमत रू. 17,100.00 होती है, जो वर्तमान न्यायालय के क्षेत्राधिकार से परे हैं। देखने में विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क अत्यन्त सशक्त प्रतीत होता है, परन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रत्येक मुसलमान बकरीद के दिन कुर्बानी करता है। विवादित बकरीद के अवसर पर केवल दो भैंसों के कुर्बानी करने की अनुमति प्रदान की गई। ऐसी दशा में इस प्रकार के उपशम का सांखयकीय मूल्याकंन कर पाना सम्भव नहीं है और अनुमानित मूल्यांकन ही अपेक्षित है।

वादी ने अपनी बहस के दौरान यह तर्क दिया कि रु. 1900/- प्रतिवादीगण को वादीगण द्वारा न्यायालय में दिये गये थे, वहाी वादीगण पाने के अधिकारी हैं, किन्तु जब  रु. 1900/- के बाबत उपशम की ओर ध्यान दिलाया गया तो उसने कहा कि उपशम ‘‘स’’ में यह तथ्य भी आ जाता है कि यदि वादीगण रु. 1900/- भी प्रतिवादीगण से वापस चाहते हैं तो निसंदेह ही उन्हें 1900/- पर न्याय शुल्क अदा करना होगा और इस प्रकार सपूर्ण वाद का मूल्यांकन रु. 1000+1900=2900 होगा।

उपरोक्त व्याखया के आधार पर विवाद्यक सं. 4 तदनुसार निर्णीत किया गया।

शेष भाग अगले अंक में……

 

कुरान समीक्षा : फरिश्तों के पंख भी हैं

फरिश्तों के पंख भी हैं

फरिश्तों की शक्ल कबूतर, ऊंट या कुत्ते जैसी है या आदमी जैसी है? स्पष्ट करें कि ये विलक्षण जीव कहां रहते है। तथा उनके होने में सबूत क्या है। उन्हें काल्पनिक क्यों न माना जावे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अल-हम्दु लिल्लाहि फाति…………।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा फातिर रूकू १ आयत १)

उसी ने फरिश्तों को दूत बनाया जिनके दो-दो, तीन-तीन और चार-चार पर अर्थात् पंख हैं।

समीक्षा

पर यह नहीं बताया गया कि उनकी शक्ल गधे-सुअर बकरी या कौए की जैसी है या सर्प जैसी है?

अगर एक फरिश्ता कभी पकड़ में आ जावे तो किसी अजायब घर में देखने को दुनियाँ को मिल सकेगा। कुरान की फरिश्तों वाली कल्पना भी बड़ी ही मनोरंजक है।

कुरान समीक्षा : चिड़ियों ने फौज को मार डाला

चिड़ियों ने फौज को मार डाला

यह आयतें हास्यास्पद क्यों न मानी जावें? क्या उस वक्त के आदमी चीटी, मच्छर और मक्खी जैसे होते थे जो ४-६ रत्ती की कंकड़ियों से ही मर जाते थे?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

अ-लम् त-र कै-फ फ-अ-ल रब्बु……….।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत १)

(ऐ पैगम्बर) क्या तूने नहीं देखा कि तेरे परवर्दिगार ने हाथी वालों के साथ कैसा बर्ताव किया?

अ-लम् यज्-अल् कैदहुम् फी तज्ली………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत २)

क्या उनका दाव गलत नहीं किया?

व अ्रस-ल अलैहिम् तैरन् अबाबील………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत ३)

और उन पर झुण्ड के झुण्ड पक्षी भेजे।

तर्मीहिम् बिहिजा-रतिम्-मिन् सिज्जी…………।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत ४)

जो उन पर कंकड़ की पथरियां फेंकते थे।

फ-ज-अ-क-अस्फिम-मअ्……….।।

(कुरान मजीद पारा ३० सूरा फील रूकू १ आयत ५)

यहां तक कि उनको खाये हुए भूसे की तरह कर दिया।

समीक्षा

क्या यह सम्भव है कि चिड़ियों (अवावीलों) द्वारा चार-चार रत्ती की कंकड़ियाँ फेंकने से फौज और हाथी पिट-पिट कर मर कर भूसा बन गये हों?

एक चादर सर पर डाल लेने से भी तो किसी का कुछ न बिगड़ सकता था। क्या उस वक्त के आदमी मक्खी या चींटी जैसे होते थे?

कुरान समीक्षा : ‘‘खुदा की कसम’’- कुरान में खाने वाला कौन था?

‘‘खुदा की कसम’’- कुरान में खाने वाला कौन था?

क्या इससे यह साबित नहीं है कि कुरान या यह आयत खुदा के अतिरिक्त मुहम्मद या किसी दूसरे खुदा ने लिखी थी?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व काललल्जी-न क-फरू ला तअ्……….।।

(कुरान मजीद पारा २२ सूरा सबा रूकू १ आयत ३)

और इन्कारी कहने लगे कि हमको वह घड़ी न आवेगी। पोशीदा बातों के जानने वाले अपनें ‘‘परवर्दिगार की कसम’’ जरूर आवेगी।

समीक्षा

यह आयत साबित करती है कि कसम खाने वाला कोई आदमी दूसरा था जिसने कुरान लिखा था।

कुरान समीक्षा : खुदा ने व्यभिचार के लिए औरतें भेंट की

खुदा ने व्यभिचार के लिए औरतें भेंट की

क्या खुदा का पेशा जिनाखोरी अर्थात् व्यभिचार के लिये ओरतें पहुंचाना भी है? खुदा ने चचाजात व बुआजात बहिनों से शादी करना सभी मुसलमानों के लिए जायज क्यों नहीं किया? केवल मुहम्मद के साथ पक्षपात क्यों किया। क्या अय्याशी के लिये लोंडियां अब भी मुसलमानों को खुदा (supply) अर्थात् पेश करता है?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

या अय्युहन्नबिय्यु इन्ना अह्लल्ना………….।।

(कुरान मजीद पारा २१ सूरा अहजाब रूकू ६ आयत ५०)

ऐ पैगम्बर! हमने वह बीबियाँ तुझ पर हलाल की जिनको मेहर तू दे चुका है और लोंडियाँ जिन्हें अल्लाह तेरी तरफ लाया और तेरे चचा की बेटियाँ और तेरी बूआ की बेटियाँ जो तेरे साथ देश त्याग कर आई हैं और वह मुसलमान औरतें जिन्होंने अपने को पैगम्बर के लिए दे दिया ।

बशर्ते कि पैगम्बर भी उनके निकाह करना चाहे। यह हुक्म खास तेरे लिए है सब मुसलमानों के लिये नहीं।

समीक्षा

इसमें खुदा औरतों और लोंडियों को मुहम्मद के पास लाया ताकि वह उनको भोग सके खुदा ने खास रियायत मुहम्मद पर की थी। अच्छा होता यदि यही रियायत सभी मुसलमानों को भी दे दी जाती। खुदा जिना अर्थात् दुराचार के लिए औंरते भी supply करता है यह कुरान की बढ़िया बात है।

मुहम्मद साहब को जिन्दगी में औंरतों का पूरा-पूरा आनन्द खुदा देता रहा था। औरतें यदि उनसे सन्तुष्ट ने होकर बदकारी औरों के साथ करती थीं तो खुदा घरेलू मैनेजर की तरह उनको डाँटता भी रहता था जैसा कि पीछे दिखाया भी जा चुका है। देखो पूर्व दिया गया प्रश्न नं० १२२ जिसमें इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

कुरान समीक्षा : मुहम्मद की बीबियों को खुदा की धमकी

मुहम्मद की बीबियों को खुदा की धमकी

क्या इससे यह प्रगट नहीं होता कि बुढ़ापे में ज्यादा शादियां करने से मुहम्मद की बीबियाँ बदकार हो गई थीं और खुदा को मजबूर होकर उनको बदकारी से बाज आने की धमकी देनी पड़ी थी? बतावें कि खुदा ने ऐसी कमजोर चरित्र वाली औरतें पैगम्बर को क्यों ब्याहने को दे थी? क्यों खुदा पहले से ही नहीं जान पाया था कि ये ओरतें आगे चलकर बदकार बन जावेंगी?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

या निसा अन्नबिय्यि मंय्यअ्ति मिन्कुन्………..।।

(कुरान मजीद पारा २१ सूरा अहजाब रूकू ३ आयत ३०)

ऐ पैगम्बर की बीबियों! तुममें से जो कोई जाहिर बदकारी करेंगी, उसके लिए दोहरी सजा दी जायेगी और अल्लाह के नजदीक यह मामूली बात है।

समीक्षा

इससे स्पष्ट है कि मुहम्मद की बीबियाँ बदकार थीं और खुदा को उन्हें बदकारी से रोकने को धमकी भी देनी पड़ी। ज्यादा शादियाँ करने वालों की बीबियाँ यदि बदकार हो जावें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मुहम्मद साहब की निकाही बीबियाँ बारह थीं और वे निकाही बीबियाँ व लोंडियाँ भी बदलती रहती थी।

कुरान समीक्षा : खुदा ने सबको ठीक सूझ क्यों नहीं दी?

खुदा ने सबको ठीक सूझ क्यों नहीं दी?

कुरान में लिखा है कि उस समय के लोग भी मुहम्मद साहब को शायर मानते थे (देखो पारा २३ सूरे साफ्फात आयत ३६) शायर बे पढ़ा लिखा नहीं हो सकता है यदि हो सकता है तो साबित करें?

देखिये कुरान में कहा गया है कि-

व लौ शिअ्ना लआतैना कुल्-ल न…………..।।

(कुरान मजीद पारा २१ सूरा सज्जा रूकू १ आयत १३)

हम चाहते तो हर आदमी को उसकी राह की सूझ देते, मगर हमारी बात पूरी होती है कि जिन्न और आदमी सबसे हम नरक को भर देंगे।

समीक्षा

खुदा ने कभी कसम खा रखी होगी कि दोजख को आदमियों से भरेंगे और अपनी कसम को पूरा करने की जिद की वजह से उस भले आदमी ने सारे इन्सानों को नेक रास्ते पर नहीं डाला बल्कि लोगों को गुमराह भी किया। क्या ऐसा खुदा भी नेक माना जा सकता है जो प्रजा को गुमराह करता रहता हो?