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Sai baba was a muslim, a orthodox muslim, exposed in Sai satcharitra,

मित्रो आज हम उन प्रशनो के उत्तर दे रहे है जिनके विषय में बहुत से साईं भक्त इधर उधर भटकते रहते है, उन्हें उत्तर कुछ सूझता नहीं और वे साईं के विषय में काफी भ्रमित भी रहते है,
आज हम लाये है साईं के मुस्लिम होने के कुछ प्रमाण जो की शिर्डी साईं संस्थान, शिर्डी महाराष्ट्र में स्थित है के द्वारा प्रकाशित व् प्रमाणित पुस्तक साईं सत्चरित्र से लिए गये है ,

Friends today we are giving some facts which proved that sai baba was a muslim. Devotees of sai are confused and they dont know what was the real character of Sai but today we are giving evidence on the basis of Sai Satcharitra Officially published by Shirdi Sai Sansthaan, Shirdi Maharashtra.

Sources: http://shirdisaiexpose.wordpress.com/2014/01/31/sai-baba-was-a-muslim-a-orthodox-muslim-exposed-in-sai-satcharitra

सबसे पहले अध्याय 4 से प्रमाण :

वे निर्भय होकर सम्भाषण करते, भाँति-भाँति के लोंगो से मिलजुलकर रहते, नर्त्तिकियों का अभिनय तथा नृत्य देखते औरगजन-कव्वालियाँ भी सुनते थे । इतना सब करते हुए भी उनकी समाधि किंचितमात्र भी भंग न होती थी । अल्लाह का नाम सदा उलके ओठों पर था । जब दुनिया जागती तो वे सोते और जब दुनिया सोती तो वे जागते थे । उनका अन्तःकरण प्रशान्त महासागर की तरह शांत था । न उनके आश्रम का कोई निश्चय कर सकता था और न उनकी कार्यप्रणाली का अन्त पा सकता था । कहने के लिये तो वे एक स्थान पर निवास करते थे, परंतु विश्व के समस्त व्यवहारों व व्यापारों का उन्हें भली-भाँति ज्ञान था । उनके दरबार का रंग ही निराला था । वे प्रतिदिन अनेक किवदंतियाँ कहते थे, परंतु उनकी अखंड शांति किंचितमात्र भी विचलित न होती थी । वे सदा मसजिद की दीवार के सहारे बैठे रहते थे तथा प्रातः, मध्याहृ और सायंकील लेंडी और चावड़ी की ओर वायु-सोवन करने जाते तो भी सदा आत्मस्थ्ति ही रहते थे ।

He had no love for perishable things, and was always engrossed in self-realization, which was His sole concern. He felt no pleasure in the things of this world or of the world beyond. His Antarang (heart) was as clear as a mirror, and His speech always rained nectar. The rich or poor people were the same to Him. He did not know or care for honour or dishonour. He was the Lord of all beings. He spoke freely and mixed with all people, saw the actings and dances of Nautchgirls and heard Gajjal songs. Still, He swerved not an inch from Samadhi (mental equilibrium). The name of Allah was always on His lips. While the world awoke, He slept; and while the world slept, He was vigilant. His abdomen (Inside) was as calm as the deep sea. His Ashram could not be determined, nor His actions could be definitely determined, and though He sat (lived) in one place, He knew all the transactions of the world. His Darbar was imposing. He told daily hundreds of stories, still He swerved not an inch from His vow of silence. He always leaned against the wall in the Masjid or walked morning, noon and evening towards Lendi (Nala) and Chavadi; still He at all times abided in the Self.

sai baba was a muslim proved by sai satcharitra
sai baba was a muslim proved by sai satcharitra

अब अध्याय 5 से प्रमाण :

बाबा दिनभर अपने भक्तों से घिरे रहते और रात्रि में जीर्ण-शीर्ण मसजिद में शयन करते थे । इस समय बाबा के पास कुल सामग्री – चिलम, तम्बाखू, एक टमरेल, एक लम्बी कफनी, सिर के चारों और लपेटने का कपड़ा और एक सटका था, जिसे वे सदा अपने पास रखते थे । सिर पर सफेद कपडे़ का एक टुकड़ा वे सदा इस प्रकार बाँधते थे कि उसका एक छोर बायें कान पर से पीठ पर गिरता हुआ ऐसा प्रतीत होता था, मानो बालों का जूड़ा हो । हफ्तों तक वे इन्हें स्वच्छ नहीं करते थे । पैर में कोई जूता या चप्पल भी नहीं पहिनते थे । केवल एक टाट का टुकड़ा ही अधिकांश दिन में उनके आसन का काम देता था । वे एक कौपीन धारण करते और सर्दी से बचने के लिये दक्षिण मुख हो धूनी से तपते थे । वे धूनी में लकड़ी के टुकड़े डाला करते थे तथा अपना अहंकार, समस्त इच्छायें और समस्च कुविचारों की उसमें आहुति दिया करते थे । वे अल्लाह मालिक का सदा जिहृा से उच्चारण किया करते थे । जिस मसजिद में वे पधारे थे, उसमें केवल दो कमरों के बराबर लम्बी जगह थी और यहीं सब भक्त उनके दर्शन करते थे । सन् 1912 के पश्चात् कुछ परिवर्तन हुआ । पुरानी मसजिद का जीर्णोद्धार हो गया और उसमें एक फर्श भी बनाया गया । मसजिद में निवास करने के पूर्व बाबा दीर्घ काल तक तकिया में रहे । वे पैरों में घुँघरु बाँधकर प्रेमविहृल होकर सुन्दर नृत्य व गायन भी करते थे ।

Baba was surrounded by His devotees during day; and slept at night in an old and dilapidated Masjid. Baba’s paraphernalia at this time consisted of a Chilim, tobacco, a “Tumrel” (tin pot), long flowing Kafni, a piece of cloth round His head, and a Satka (short stick), which He always kept with Him. The piece of white cloth on the head was twisted like matted hair, and flowed down from the left ear on the back. This was not washed for weeks. He wore no shoes, no sandals. A piece of sack-cloth was His seat for most of the day. He wore a coupin (waist-cloth-band) and for warding off cold he always sat in front of a Dhuni (sacred fire) facing south with His left hand resting on the wooden railing. In that Dhuni, He offered as oblation; egoism, desires and all thoughts and always uttered Allah Malik (God is the sole owner). The Masjid in which He sat was only of two room dimensions, where all devotees came and saw Him. After 1912 A.D., there was a change. The old Masjid was repaired and a pavement was constructed. Before Baba came to live in this Masjid, He lived for a long time in a place Takia, where with GHUNGUR (small bells) on His legs, Baba danced beautifully sang with tender love.

अध्याय – 7

ईद के दिन वे मुसलमानों को मसजिद में नमाज पढ़ने के लिये आमंत्रित किया करते थे । एक समय मुहर्रम के अवसर पर मुसलमानों ने मसजिद में ताजिये बनाने तथा कुछ दिन वहाँ रखकर फिर जुलूस बनाकर गाँव से निकालने का कार्यक्रम रचा । श्री साईबाबा ने केवल चार दिन ताजियों को वहाँ रखने दिया और बिना किसी राग-देष के पाँचवे दिन वहाँ से हटवा दिया ।

He allowed Mahomedans to say their prayers (Namaj) in His Masjid. Once in the Moharum festival, some Mahomedans proposed to contruct a Tajiya or Tabut in the Masjid, keep it there for some days and afterwards take it in procession through the village. Sai Baba allowed the keeping of the Tabut for four days, and on the fifth day removed it out of the Masjid without the least compunction.

अल्लाह मालिक सदैव उनके होठों पर था ।

He always walked, talked and laughed with them and always uttered with His tongue ‘Allah Malik’ (God is the sole owner).

हाथ जल जाने के पश्चात एक कुष्ठ-पीडित भक्त भागोजी सिंदिया उनके हाथ पर सदैव पट्टी बाँधते थे । उनका कार्य था प्रतिदिन जले हुए स्थान पर घी मलना और उसके ऊपर एक पत्ता रखकर पट्टियों से उसे पुनः पूर्ववत् कस कर बाँध देना । घाव शीघ्र भर जाये, इसके लिये नानासाहेब चाँदोरकर ने पट्टी छोड़ने तथा डाँ. परमानन्द से जाँच व चिकित्सा कराने का बाबा से बारंबार अनुरोध किया । यहाँ तक कि डाँ. परमानन्द ने भी अनेक बार प्रर्थना की, परन्तु बाबा ने यह कहते हुए टाल दिया कि केवल अल्लाह ही मेरा डाँक्टर है । उन्होंने हाथ की परीक्षा करवाना अस्वीकार कर दिया ।

Mr. Nanasaheb Chandorkar solicited Baba many a time to unfasten the Pattis and get the wound examined and dressed and treated by Dr. Parmanand, with the object that it may be speedily healed. Dr. Parmanand himself made similar requests, but Baba postponed saying that Allah was His Doctor; and did not allow His arm to be examined. Dr. Paramanand’s medicines were not exposed to their air of Shirdi, as they remained intact, but he had the good fortune of getting a darshana of Baba.

दिए गये प्रमाणों को आप साईं सत्चरित्र से मिलान कर सकते है,  इसके लिए आप शिर्डी की प्रमाणित साईट से इसका मिलान कर सकते है जिसका लिंक नीचे दिया है, मिलान करके आप स्वयं सोचे की क्या ऐसे व्यक्ति को पूजन सही है,

http://www.shrisaibabasansthan.org/shri%20saisatcharitra/Hindi%20SaiSatcharit%20PDF/hindi.html

इस्लाम का भविष्य क्या होगा ?

the future of islam

इस्लाम का भविष्य क्या होगा ?

लेखक – सत्यवादी 

मुसलमान अक्सर अपनी बढ़ती जनसंख्या की डींगें मारते रहते है .और घमंड से कहते हैं कि आज तो हमारे 53 देश हैं .आगे चलकर इनकी संख्या और बढ़ेगी .इस्लाम दुनिया भर में फ़ैल जायेगा .विश्व ने जितने भी धर्म स्थापक हुए हैं ,सभी ने अपने मत के बढ़ने की कामना की है .लेकिन मुहम्मद एकमात्र व्यक्ति था जिसने इस्लाम के विभाजन ,तुकडे हो जाने और सिमट जाने की पहिले से ही भविष्यवाणी कर दी थी .यह बात सभी प्रमाणिक हदीसों में मौजूद है .

यदि कोई इन हदीसों को झूठ कहता है ,तो उसे मुहम्मद को झूठ साबित करना पड़ेगा .क्योंकि यह इस्लाम के भविष्य के बारे में है .सभी जानते हैं कि किसी आदर्श ,या नैतिकता के आधार पर नहीं बल्कि तलवार के जोर पर और आतंक से फैला है .इस्लाम कि बुनियाद खून से भरी है .और कमजोर है .मुहम्मद यह जानता था .कुरान में साफ लिखा है –

1-इस्लाम की बुनियाद कमजोर है
कुछ ऐसे मुसलमान हैं ,जिन्होंने मस्जिदें इस लिए बनायीं है ,कि लोगों को नुकसान पहुंचाएं ,और मस्जिदों को कुफ्र करने वालों के लिए घात लगाने और छुपाने का स्थान बनाएं .यह ऐसे लोग हैं ,जिन्होंने अपनी ईमारत (इस्लाम )की बुनियाद किसी खाई के खोखले कगार पर बनायीं है ,जो जल्द ही गिरने के करीब है .फिर जल्द ही यह लोग जहन्नम की आग में गिर जायेंगे “सूरा -अत तौबा 9 :108 और 109

2 –इस्लाम से पहिले विश्व में शांति थी .यद्यपि इस्लाम से पूर्व भी अरब आपस में मारकाट किया करते थे ,लेकिन जब वह मुसलमान बन गए तो और भी हिंसक और उग्र बन गए .जैसे जैसे उनकी संख्या बढ़ती गयी उनका आपसी मनमुटाव और विवाद भी बढ़ाते गए .वे सिर्फ जिहाद में मिलने वाले माल के लिए एकजुट हो जाते थे .फिर किसी न किसी बात पर फिर लड़ने लगते थे ,शिया सुनी विवाद इसका प्रमाण है .
इसके बारे में मुहमद के दामाद हजरत अली ने अपने एक पत्र में मुआविया को जो लिखा है उसका अरबी के साथ हिंदी और अंगरेजी अनुवाद दिया जा रहा है –

3 –हजरत अली का मुआविया को पत्र
हजरत अली का यह पत्र संख्या 64 है उनकी किताब” नहजुल बलाग “में मौजूद है .
http://www.imamalinet.net/EN/nahj/nahj.htm

यह बात बिलकुल सत्य है कि,इस्लाम से पहिले हम सब एक थे .और अरब में सबके साथ मिल कर शांति से रह रहे थे .तुमने (मुआविया )महसूस किया होगा कि ,जैसे ही इस्लाम का उदय हुआ ,लोगों में फूट और मनमुटाव बढ़ाते गए .इसका कारण यह है ,कि एक तरफ हम लोगों को शांति का सन्देश देते रहे ,और दूसरी तरफ तुम मुनाफिक(Hypocryt )ही बने रहे ,और इस्लाम के नाम पर पाखंड और मनमर्जी चलाते रहे.तुमने अपने पत्र में मुझे तल्हा और जुबैर की हत्या का आरोपी कहा है .मुझे उस पर कोई सफ़ाई देने की जरुरत नहीं है .लेकिन तुमने आयशा के साथ मिलकर मुझे मदीना से कूफा और बसरा जाने पर विवश कर दिया ,तुमने जो भी आरोप लगाये हैं ,निराधार है ,और मैं किसी से भी माफ़ी नहीं मांगूंगा “
मुआविया के पत्र का हजरत अली का मुआविया को जवाब -नहजुल बलाग -पत्र संख्या 64

ومن كتاب له عليه السلام
كتبه إلى معاوية، جواباً عن كتاب منه
أَمَّا بَعْدُ، فَإِنَّا كُنَّا نَحْنُ وَأَنْتُمْ عَلَى مَا ذَكَرْتَ مِنَ الاَُْلْفَةِ وَالْجَمَاعَةِ، فَفَرَّقَ بيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَمْسِ أَنَّا آمَنَّا وَكَفَرْتُمْ، وَالْيَوْمَ أَنَّا اسْتَقَمْنَا وَفُتِنْتُمْ، وَمَا أَسْلَمَ مُسْلِمُكُمْ إِلاَّ كَرْهاً وَبَعْدَ أَنْ كَانَ أَنْفُ الاِِْسْلاَمِكُلُّهُ لِرَسُولِ اللهِ صلى الله عليه وآله حرباً
وَذَكَرْتَ أَنِّي قَتَلْتُ طَلْحَةَ وَالزُّبَيْرَ، وَشَرَّدْتُ بِعَائِشَةَ وَنَزَلْتُ بَيْنَ الْمِصْرَيْنِ وَذلِكَ أَمْرٌ غِبْتَ عَنْهُ، فَلاَ عَلَيْكَ، وَلاَ الْعُذْرُ فِيهِ إِلَيْكَ
[ A reply to Mu’awiya’s letter. ]
It is correct as you say that in pre-Islamic days we were united and at peace with each other. But have you realized that dissensions and disunity between us started with the dawn of Islam. The reason was that we accepted and preached Islam and you remained heathen. The condition now is that we are faithful and staunch followers of Islam and you have revolted against it. Even your original acceptance was not sincere, it was simple hypocrisy. When you saw that all the big people of Arabia had embraced Islam and had gathered under the banner of the Holy Prophet (s) you also walked in (after the Fall of Makkah.)
In your letter you have falsely accused me of killing Talha and Zubayr, driving Ummul Mu’minin Aisha from her home at Madina and choosing Kufa and Basra as my residence. Even if all that you say against me is correct you have nothing to do with them, you are not harmed by these incidents and I have not to apologize to you for any of them.
4 –इस्लाम का विभाजन
इस्लाम के पूर्व से ही अरब के लोग दूसरों को लूटने और आपसी शत्रुता के कारण लड़ते रहते थे .लेकिन मुसलमान बन जाने पर उनको लड़ने और हत्याएं करने के लिए धार्मिक आधार मिल गया .वह अक्सर अपने विरोधियों को मुशरिक ,मुनाफिक और काफ़िर तक कहने लगे और खुद को सच्चा मुसलमान बताने लगे .और अपने हरेक कुकर्मों को कुरान की किसी भी आयत या किसी भी हदीस का हवाला देकर जायज बताने लगे .धीमे धीमे सत्ता का विवाद धार्मिक रूप धारण करता गया .मुहम्मद की मौत के बाद ही यह विवाद इतना उग्र हो गया की मुसलमानों ने ही मुहम्मद के दामाद अली ,और उनके पुत्र हसन हुसैन को परिवार सहित क़त्ल कर दिया .उसके बाद ही इस्लाम के टुकडे होना शुरू हो गए .जिसके बारे में खुद मुहम्मद ने भविष्यवाणी की थी .-
अबू हुरैरा ने कहा कि,रसूल ने कहा था कि यहूदी और ईसाई तो 72 फिरकों में बँट जायेंगे ,लेकिन मेरी उम्मत 73 फिरकों में बँट जाएगी ,और सब आपस में युद्ध करेंगे “अबू दाऊद-जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4579
अबू अमीर हौजानी ने कहा कि ,रसूल ने मुआविया बिन अबू सुफ़यान के सामने कहा कि ,अहले किताब (यहूदी ,ईसाई ) के 72 फिरके हो जायेंगे ,और मेरी उम्मत के 73 फिरके हो जायेंगे ..और उन में से 72 फिरके बर्बाद हो जायेंगे और जहन्नम में चले जायेंगे .सिर्फ एक ही फिरका बाकी रहेगा ,जो जन्नत में जायेगा “अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4580 .
अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,ईमान के 72 से अधिक टुकडे हो जायेंगे ,और मुसलमानों में ऐसी फूट पड़ जाएगी कि वे एक दुसरे कीहत्याएं करेंगे .”
अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4744 .
अरफजः ने कहा कि मैं ने रसूल से सुना है ,कि इस्लाम में इतना बिगाड़ हो जायेगा कि ,मुसलमान एक दुसरे के दुश्मन बन जायेंगे ,और तलवार लेकर एक दुसरे को क़त्ल करेंगे “अबू दाऊद -जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4153 .
सईदुल खुदरी और अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,पाहिले तो मुसलमान इकट्ठे हो जायेंगे ,लेकिन जल्द ही उनमें फूट पड़ जाएगी .जो इतनी उग्र हो जाएगी कि वे जानवरों से बदतर बन जायेगे .फिर केवल वही कौम सुख से जिन्दा रह सकेगी जो इनको इन को ( नकली मुसलमानों )को क़त्ल कर देगी .फिर अनस ने रसूल से उस कौम की निशानी पूछी जो कामयाब होगी .तो रसुलने बताया कि,उस कौम के लोगों के सर मुंडे हुए होंगे .और वे पूरब से आयेंगे “अबू दाऊद-जिल्द 3 किताब 40 हदीस 4747 .
5 –इस्लाम के प्रमुख फिरके
आमतौर पर लोग मुसलमानों के दो ही फिरकों शिया और सुन्नी के बारे में ही सुनते रहते है ,लेकिन इनमे भी कई फिरके है .इसके आलावा कुछ ऐसे भी फिरके है ,जो इन दौनों से अलग है .इन सभी के विचारों और मान्यताओं में इतना विरोध है की यह एक दूसरे को काफ़िर तक कह देते हैं .और इनकी मस्जिदें जला देते है .और लोगों को क़त्ल कर देते है .शिया लोग तो मुहर्रम के समय सुन्नियों के खलीफाओं ,सहबियों ,और मुहम्मद की पत्नियों आयशा और हफ्शा को खुले आम गलियां देते है .इसे तबर्रा कहा जाता है .इसके बारे में अलग से बताया जायेगा .
सुन्नियों के फिरके -हनफी ,शाफई,मलिकी ,हम्बली ,सूफी ,वहाबी ,देवबंदी ,बरेलवी ,सलफी,अहले हदीस .आदि –
शियाओं के फिरके -इशना अशरी ,जाफरी ,जैदी ,इस्माइली ,बोहरा ,दाऊदी ,खोजा ,द्रुज आदि
अन्य फिरके -अहमदिया ,कादियानी ,खारजी ,कुर्द ,और बहाई अदि
इन सब में इतना अंतर है की ,यह एक दुसरे की मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ते .और एक दुसरे की हदीसों को मानते है .सबके नमाज पढ़ने का तरीका ,अजान ,सब अलग है .इनमे एकता असंभव है .संख्या कम होने के से यह शांत रहते हैं ,लेकिन इन्हें जब भी मौका मिलाता है यह उत्पात जरुर करते हैं .
6 –इस्लाम अपने बिल में घुस जायेगा
मुहम्मद ने खुद ही इस्लाम की तुलना एक विषैले नाग से की है .इसमे कोई दो राय नहीं है .सब जानते हैं कि यह इस्लामी जहरीला नाग कितने देशों को डस चुका है .और भारत कि तरफ भी अपना फन फैलाकर फुसकार रहा है .लेकिन हम हिन्दू इतने मुर्ख हैं कि सेकुलरिज्म ,के नामपर ,और झूठे भाईचारे के बहाने इस इस्लामी नाग को दूध पिला रहे हैं .और तुष्टिकरण की नीतियों को अपना कर आराम से सो रहे है .आज इस बात की जरुरत है की ,हम सब मिल कर मुहम्मद की इस भविष्यवाणी को सच्चा साबित करदें ,जो उसने इन हदीसों में की थीं .-
अबू हुरैरा ने कहा की ,रसूल ने कहा कि,निश्चय ही एक दिन इस्लाम सारे विश्व से निकल कर कर मदीना में में सिमट जायेगा .जैसे एक सांप घूमफिर कर वापिस अपने बिल में घुस जाता है बुखारी -जिल्द 3 किताब 30 हदीस 100 .
अब्दुल्ला बिन अम्र बिन यासर ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,जल्द ही एक ऐसा समत आयेगा कि जब लोग कुरान तो पढेंगे ,लेकिन कुरान उनके गले से आगे कंधे से निचे नहीं उतरेगी.और इस्लाम का कहीं कोई निशान नहीं दिखाई देगा “
बुखारी -जिल्द 9 किताब 84 हदीस 65
अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा है कि ,इस्लाम सिर्फ दो मस्जिदों (मक्का और मदीना )के बीच इस तरह से रेंगता रहेगा जैसे कोई सांप इधर उधर दो बिलों के बीच में रेंगता है “
सही मुस्लिम -किताब 1 हदीस 270 .
इब्ने उमर ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ऐसा निकट भविष्य में होना निश्चय है ,कि इस्लाम और ईमान दुनिया से निकलकर वापस मदीने में इस तरह से घुस जायेगा ,जैसे कोई विषैला सांप मुड़कर अपने ही बिल में घुस जाता है “
सही मुस्लिम -किताब 1 हदीस 271 और 272 .
अब हम देखते हैं कि मुसलमान इन हदीसों को झूठ कैसे साबित करते है . आज लीबिया ,यमन और दूसरे इस्लामी देशों में जो कुछ हो रहा है ,उसे देखते हुए यही प्रतीत होता है कि मुहम्मद साहिब की यह हदीसें एक दिन सच हो जायेगीं ,जिनमे इस्लाम के पतन और विखंडन की भविष्यवाणी की गयी है .!

http://www.faithfreedom.org/oped/AbulKasen50920.htm

 

ऋषि दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित विवाह विधि वैदिक, युक्तिसंगत है

swayamvar

ऋषि दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित  विवाह विधि वैदिक, युक्तिसंगत है –

सत्यार्थ प्रकाश के चतुर्थ समुल्लास में स्वामी जी ने कहा –

“जब तक इसी प्रकार सब ऋषि-मुनि, राजा-महाराजा आर्य लोग ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़ ही के स्वयंवर विवाह करते थे तब तक इस देश की सदा उन्नति होती थी | जब से ब्रह्मचर्य से विद्या का न पढना, बाल्यावस्था में पराधीन, अर्थात माता-पिता के अधीन विवाह होने लगा; तब से क्रमश: आर्यावर्त देश की हानी होती चली आई है |इससे इस दृष्ट काम को छोड़ के सज्जन लोग पूर्वोक्त प्रकार से स्वयंवर विवाह किया करे |

“ जब स्त्री-पुरुष विवाह करना चाहे तब विद्या, विनय, शील, रूप, आयु, बल, कुल, शरीर का परिमाण आदि यथा योग्य होना चाइये | जब तक इनका मेल नहीं होता तब तक विवाह में कुछ भी सुख नहीं होता | न बाल्यावस्था में विवाह करने में सुख होता है |

“कन्या और वर का विवाह के पूर्व एकांत में मेल ने होना चाइये, क्यों की युवावस्था में स्त्री-पुरुष का एकांत वास दूषण कारक है |

“परन्तु जब कन्या व वर के विवाह का समय हो, अर्थात जब एक वर्ष व छह महीने ब्रह्मचर्य आश्रम और विद्या पूरी होने में शेष रहे तब कन्या और कुमारो का प्रतिबिम्ब, अर्थात जिसको ‘फोटोग्राफ’ कहते है अथवा प्रतिकृति उतारके कन्याओ की अध्यापिकाओ के पास कुमारो की और कुमारों के अध्यापको के पास कन्याओ की प्रतिकृति भेज देवे |

“ जिस-जिस का रूप मिल जाए, उस-उसका इतिहास अर्थात जन्म से लेके उस दिन पर्यंत जन्म-चरित्र का जो पुस्तक हो, उसको अध्यापक लोग मंगवा के देखे | जब दोनों के गुण-कर्म-स्वाभाव सदृश हों तब- जिस-जिसके साथ जिसका विवाह होना योग्य समझे उस-उस पुरुष व कन्या का प्रतिबिम्ब और इतिहास कन्या और वर के हाथ में देवे और कहे कि इसमें जो तुम्हारा अभिप्राय हो सो हम को विदित कर देना |

“ जब उन दोनों का निश्चय परस्पर विवाह करने का हो जाए तब उन दोनों का समावर्तन एक ही समय में होवे | जो वे दोनों अध्यापकों के सामने विवाह करना चाहें तो वहा, नहीं तो कन्या के माता-पिता के घर में विवाह होना योग्य है | जब वे समक्ष हों तब अध्यापकों व कन्या के माता-पिता आदि भद्र पुरषों के सामने उन दोनों की आपस में बात-चित, शास्त्रार्थ करना औरजो कुछ गुप्त व्यवहार पूछे सो भी सभा में लिखके एक दुसरे के हाथ में देकर प्रश्नोत्तर कर लेवे इत्यादि |

प्रश्न :- अब यहाँ विधर्मी शंका यह करते है “ स्वामी दयानन्दजी ने विवाह संस्कार में जो यह लिखा है कि विवाह स्वयंवर रीती से होना चाइये, कन्या और वर की इच्छा ही विवाह में प्रधान है | कन्या और वर सबके समक्ष वार्तालाप व शास्त्रार्थ करे इत्यादि |यह सब बातें वेद शास्त्र के विरुद्ध है | आर्य समाजियों का यह दावा है कि स्वामी दयानंद की शिक्षा वैदिक है, अत: वे इन सब बातों को सिद्ध करने के लिए वेद, शास्त्रों के प्रमाण देवे |

समाधान :- ऋषि दयानंद जी ने विवाह के सम्बन्ध में सत्यार्थ प्रकाश आदि ग्रंथो में लिखी है वे सब वेद, शास्त्रों और इतिहास के अनुकूल तथा युक्ति संगत है | इस बात को सिद्ध करने के लिए प्रमाण नीचे दिए जाते है |

प्रमाण संख्या १

तमस्मेरा युवतयो युवानं ……………यन्त्याप: | ऋग्वेद २/३५/४

भावार्थ : जवान स्त्रिया उत्तम ब्रह्मचर्य से युक्त होकर जवान ब्रह्मचारी पुरषों को जैसे जल वा नदी स्वयं समुद्र को प्राप्त होती है वैसे स्वयमेव प्राप्त होती है |

प्रमाण संख्या २

कियती योषा मर्यतो ……………………………….वार्येण |

भद्रा वधुभर्वति ……………………………………..जने चित || ऋग्वेद १०/२७/१२

भावार्थ : १. प्रथम, स्त्री-पुरुष का परिमाण यानी लम्बाई, चौड़ाई, बल, दृढ़ता आदि गुणों को देखना चाइये | २. स्त्री, पुरुष ऐसे हो जो एक दुसरे के गुणों को देककर परस्पर प्रीटी व अनुराग करनेवाले हो | ३. वधू कल्याण करनेवाली हो, भद्र देखनेवाली, भद्रा चरण करनेवाली, सुन्दर दृढ हो | ४. विवाह सब जनों के समक्ष होना चाइये और कन्या स्वयमेव उस जन समूह में से गुण-कर्म-स्वभाव देखकर वर को पसंद कर लेवे |

प्रमाण संख्या ३

१.      अपश्यं त्वा मनसा चेकितानम……………………..तपसो विभुतम |

इह प्रजमिह रयिं…………………………..प्रजया पुत्रकाम ||

२.      अपश्यं त्वा  मनसा दिध्यानाम ………………….ऋतव्ये नाधमानाम |

उप मामुच्चा युवति………………………………..प्रजया पुत्रकामे || ऋग्वेद १०/१८४/१-२

भावार्थ : कन्या कहती है कि हे वर ! मैंने तुमको परीक्षा पूर्वक अच्छी प्रकार देख लिया है कि तुम मुझसे विवाह के योग्य हो और मैंने यह भी जान लिया है की तुमने तपश्चर्या से विद्या, ज्ञान को प्राप्त किया है तथा रूप, लावण्य, बल, पराक्रम को बढाया है | इस संसार में प्रजा व धन की इच्छा करते हुए, हे पुत्र की कामना करने वाले ! विवाह करके मेरे साथ गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करो |

इन उपयुक्त दो मंत्रो से ये बाते स्पष्ट होती है —

१.      कन्या-वर-एक दुसरे की सबके समक्ष परीक्षा करे | जब उन दोनों को निश्चय हो कि हम दोनों के गुण-कर्म-स्वभाव परस्पर मिलते है तब वे परस्पर मिलते है तब वे परस्पर एक-दूसरे को जतलाकर वार्तालाप करके विवाह करे |

२.      विवाह से प्रथम कन्या तथा वर तपश्चर्या पूर्वक विद्याध्यन करनेवाले तथा बल, पराक्रम, रूप लावण्य को बढ़ानेवाले हो |

३.      कन्या-वर अत्यंत जवान हों | इससे बाल्यावस्था के विवाह का सर्वथा निषेध हो जाता है और उन दोनों का परस्पर ज्ञान हो किदोनों पुत्र की कामना करनेवाले और संतान-विज्ञानं के पंडित है |

प्रमाण संख्या ४

वांछ में तन्वं पादौ ……………………………..वांछ सकथ्यौ |

अक्षौ वृषन्यन्त्या केशा:…………………………..कामेन शुश्यन्तु || अथर्व वेद ६/९/१

भावार्थ : वर कहता है कि तू मेरे शरीर, पैरो, और आँखों को पसंद कर | मै तुम्हारे रूप-लावण्यादी बातों को पसंद करता हु |

इस मंत्र में यह बात स्पष्ट है कि वर-कन्या के अंग-प्रत्यंग की भी परीक्षा करनी चाइये | जब दोनों के अंग-प्रत्यंग निर्दोष हो तब उनका परस्पर विवाह होना चाइये |

इस मंत्र अनुसार कन्या-वर का एक दुसरे को परस्पर देखना, एक-दुसरे के पास एक-दुसरे का फोटो भेजना, अध्यापक व अध्यापिकाओ द्वारा परीक्षा करना आदि सब बाते आ जाती है | इन मंत्रो पर मनु का ने निम्नलिखित श्लोक में कहा है –

“जिसके सरल-सुधे अंग हो, विरुद्ध न हो, जिसका नाम सुन्दर अर्थात यशोदा, सुखदा, आदि हो, हंस और हथिनी के तुल्य जिसकी चाल हो, सुक्ष्म लोम केश और दन्त युक्त हो, सब अंग कोमल हो. ऐसी स्त्री के साथ विवाह होना चाइये | मनुस्मृति ३/१०

प्रमाण संख्या ६

एतैरेव गुनैर्युक्त: ……………………वर: |

यत्नात परीक्षित: …………………….धीमान जनप्रिय: || याज्ञवल्क स्मृति १/५५

भावार्थ : इन गुणों से युक्त, सवर्ण, वेद के जाननेवाला, बुध्दिमान, सब जनों से प्यार करनेवाला, जिसको पुरुषत्व की यत्न से परीक्षा की है वह वर विवाह के योग्य है |

कहो, विधर्मियो ! तुम जो ऋषि दयानंद की विवाह परीक्षा पर आक्षेप करते हो | उपहास करते हो, क्या कोई वर-वधु परीक्षा विधि पर आचरण करने को तयार है ? क्या कोई इस परीक्षा के अनुसार ब्रह्मचारी रहने को तयार है ? यह परीक्षा वेदों और अन्य शास्त्रों में रहते हुए ऋषि दयानंद पर शंका करते हो | इस पर इन्हें लज्जित होना चाइये |

प्रमाण संख्या ७

कुलं च शीलं च वपुर्वयश्च विद्याम…………………….च सनाथतं च |

एतान गुनान सप्त ……………………………………….शेषमचिन्तनीयम || – प० सं० आ० का० ३/२/१९

भावार्थ – कुल, शील, शरीर अवस्था. आयु, विद्या,धन, सनाथता – इन सात गुणों की परीक्षा करके फिर कन्या देवे |

इस स्मृति-वचन में विवाह के लिए जो बातें ऋषि दयानंद जी महाराज ने बतलाई है प्राय: वे सब आ गई है | यदि इन बातों को देककर विवाह किया जाये तो संसार के बहोत से दुःख स्वयमेव नष्ट हो जाये |

उपयुक्त लेख में हमने वेद-शास्त्र, स्मृति आदि प्रमाण देकर यह सिद्ध कर दिया है की ऋषि दयानंद महाराज ने विवाह सम्बन्ध में जो बातें लिखी है वे सब वैदिक, युक्तिसंगत तथा संसार के कष्ट को मिटानेवाली है |

पाठ्य ग्रन्थ :- मीरपुरी सर्वस्व – पंडित बुद्धदेव मीरपुरी 

कुरआन की शिक्षाएं

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कुरआन की शिक्षाएं

यह लेख किसी की धार्मिक भावना को आहत करने के लिए नहीं लिखा गया है केवल सत्य का प्रकाश करने के लिये लिखा गया है | मुस्लिम मित्रो का दावा है की कुरआन ने इन्सान को हर वो शिक्षा दी जो इन्सान के लिए जरुरी है | चाहे वो ज्ञान हो या विज्ञानं हर चीज की तालीम कुरआन ने दी है | इस लेख के माध्यम से हम कुरआन की शिक्षाओं प्रकाश डालेंगे |

शिक्षा :-

१.)  माता पिता की सेवा की शिक्षा

किसी  मनुष्य के जीवन में सबसे जरुरी चीज है उसकी शिक्षा जो उसे उसके माता पिता या फिर धार्मिक पुस्तकों से मिलती है | अच्छे शिक्षा ही मानव को मानव बनाते है वरना मनुष्य और जानवर में कोई ज्यादा अंतर नहीं है |

कुरान सूरह तौबा आयत २३ – ऐ ईमान वालो अपने बाप दादा को और अपने भाइयो को अपना मित्र न बनाओ अगर वे ईमान न लाये और कुफ्र को पसंद करे जो मित्र बनाएगा ऐसे वो अत्याचारी होगा |

अगली ही आयत में कुरान कहती है की कह दे अगर तुम्हे तुम्हारे बाप दादा भाई अल्लाह , अल्लाह के रसूल और उसकी राह में जिहाद से प्यारे है तो इन्तजार करो यहाँ तक की अल्लाह का हुकुम आ जाये |

यदि किसी व्यक्ति को जिहाद करते समय माता पिता या भाइयो पर रहम आ जाए और उनको वह व्यक्ति न मारे और उनको मित्र बनाने ले तो अल्लाह ने तुरंत आयत उतारी की ईमान न लाने वाले माता,पिता या भाइयो से मित्रता न रख अर्थात उन पर दया न कर और दूसरी आयत में कहा की अगर तुझे माता पिता भाई आदि अल्लाह के मार्ग में जिहाद से प्यारे है तो वो व्यक्ति अत्याचारी है और अल्लाह ऐसे नाफरमान लोगो को हिदायत नहीं देता |

जिन माता पिता ने कष्ट सह कर पाल पोश कर बड़ा किया हो उनसे केवल इस बात पर रिश्ता तोड़ लेना की वे ईमान नहीं लाते क्या यह अच्छी शिक्षा है ? यदि माँ बाप बुरा काम करने को कहते तब उनका कहा न मानना तो सही है पर केवल माता पिता भाइयो के ईमान ना लाने से उनसे रिश्ता ही खत्म कर लेना नहीं बल्कि उनको जान से मार देना कहाँ की मानवता है ?

२.) ईमानदारी की शिक्षा

मुहम्मद साहब के जीवन परिचय से स्पष्ट है की मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कोई भी कार्य नहीं करते थे | अधिकतर आज्ञा कुरआन में ही मोजूद है | ऐसी ही एक आज्ञा है

सूरह अनफ़ाल आयत १ – प्रश्न करते है तुझ से लूटो के बारे में तो कह दे लूटे अल्लाह और रसूल के लिए है |

सूरह अनफ़ाल आयत ६९ – उस में से खाओ जो तुम्हे लूट में हलाल मिला |

जहाँ तक की लूट की बात है मुहम्मद साहब बिना अल्लाह की आज्ञा के कुछ नहीं करते थे भले ही कुरान में अल्लाह ने व्यस्तता के कारण लूट की आज्ञा न दी हो पर यह आज्ञा अल्लाह ही की थी जी की इन दो आयतों से स्पष्ट है |

यहाँ एक और जानकारी का विषय है की इन लूट में अल्लाह का बराबर का हिस्सा है क्योंकि इसी सूरह की आयत ९ के अनुसार अल्लाह ने इस लूट में मदद के लिए लगातार आने वाले एक हजार फरिश्तो की फोज भेजी थी | अर्थात अल्लाह भी कोई कार्य बिना कमिशन के नहीं करता |

पाठक गण यह भी अल्लाह की शिक्षा है लूटपाट करने की |

३)  भाईचारे की शिक्षा

जैसा की कुरआन से विदित है अल्लाह भाईचारे को बहुत पसंद करते थे | इसी भाईचारे के लिए अल्लाह ने कुरआन में जगह जगह मोमिनो अर्थात मुसलमानों को सन्देश भी दिए है | आइये उन संदेशो पर भी एक नजर डाल लेते है |

सूरह इमरान आयत २८ – मुसलमान को उचित है की वे मुसलमान को छोड़कर किसी काफिर को मित्र न बनाये और जो ऐसा करे उसका अल्लाह से कोई रिश्ता नहीं |

पाठको इस से बढ़कर भाईचारे की शिक्षा क्या हो सकती है ?

४) अहिंसा परमोधर्म की शिक्षा

कुरआन को पढने से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम था | लेकिन अल्लाह ने यह अहिंसा का सन्देश केवल शांतिप्रिय कौम को ही दिया | जिसकी शांतिप्रियता से आज पूरा विश्व त्रस्त है | कुरआन की अहिंसावादी सोच के कुछ नमूने देखिये –

सूरह बकर आयत १९१ – उन्हें मार डालो जहाँ पाओ और उन्हें निकाल दो जहां से उन्होंने तुम्हे निकाला |

कुछ मुसलमान मित्र यहाँ कहेंगे की अल्लाह ने उन लोगो को मारने को कहा है जिन्होंने खुद लड़ाई की और ईमान वालो को घर से निकाला | लेकिन अगली आयत से सत्य का पता चलता है कि उन्हें मारने का उद्देश्य क्या है |

सूरह बकर आयत १९३ – तुम उन से लड़ो की कुफ्र न रहे और दीन अल्लाह का हो जाए अगर वह बाज आ जाए तो उस पर जयादती न करो |

मित्रो इस आयत से स्पष्ट है की लड़ने का उद्देश्य क्या है | लड़ने का उद्देश्य केवल दीन को फैलाना है |

ऐसी ही एक अहिंसावादी सोच को दर्शाती शिक्षा आपके समक्ष है –

कुरान सूरह तौबा आयत ५ – फिर जब प्रतिष्ठित महीने बीत जाए काफ़िरो को जहां पाओ क़त्ल करो , उन्हें पकड़ लो उन्हें घेर लो , फिर अगर वो तौबा कर ले और नमाज कायम कर ले तथा जकात अदा करे तो उनका रास्ता छोड़ दो |

इस आयत से भी स्पष्ट है क़त्ल करने का कारण क्या है | केवल मुसलमान न होना और यदि वो मुसलमान हो जाए तो उसे छोड़ दो | इन आयतों से पता चलता है की अल्लाह को अहिंसा से कितना प्रेम है |

५.) सदाचार की शिक्षा

मुहम्मद साहब के जीवन से पता चलता है की वे बहुत ही सदाचारी व्यक्तित्व वाले थे और हो भी क्यों न ? कुरआन ने जो उनको शिक्षा दी थी | मुहम्मद साहब ने जो भी सदाचार के कार्य किये उन सबकी प्रेरणा अल्लाह ने ही उन्हें दी थी | सदाचारी की प्रेरणा देती कुछ आयते निम्नलिखित है |

सुरह निसा आयत २४ – विवाहित स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वर्जित है सिवाय लोंडियो के जो तुम्हारी है, इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनसे दाम्पत्य जीवन अर्थात सम्भोग का मजा लो और बदले में उन्हें निश्चित की हुई रकम अदा कर दो |

इस आयत से कुरआन की सदाचार की शिक्षा साफ़ साफ़ झलकती है | लेकिन कुछ और भी आयते है जो सदाचार को प्रोत्साहन देती है | इसी प्रोत्साहन का नतीजा था की मुहम्मद साहब ने ९ वर्ष की अबोध बालिका और पुत्र वधु से भी सम्बन्ध बनाने में कोई हिचकिचाहट महसूस न हुई |

कुरान सूरह अजहाब आयत ३७ -फिर जब जैद ने जैनब से अपनी आवश्यकता पूरी कर ली तो हम ने उसे आप को निकाह में दे दिया ताकि मोमिनो को कोई तंगी न रहे अपने गोद लिए की बीवियों से निकाह करने में |

यदि कोई व्यक्ति किसी औरत को माँ मान ले और बाद में उसका दिल उसके ऊपर आ जाये तो अल्लाह ने इसके लिए भी एक शिक्षा दी है आयत के जरिये | देखिये

सूरह अह्जाब आयत ४- तुम्हारी उन बीवियों को जिन्हें तुम माँ कह बैठते हो नहीं बनाया तुम्हारी माँ |

सूरह अह्जाब आयत ५०- हम ने तुम्हारे लिए हलाल कर दी लूट में मिली बीवियां, तुम्हारे चाचाओ की बेटिया , तुम्हारे फुफियो की बेटियाँ, तुम्हारे मामुओ की बेटियाँ और तुम्हारे खालाओ की बेटिया |और मोमिन औरत जो अपने आप को नबी के हवाले कर दे |

पाठको के लिए ये आयते काफी होगी कुरआन की सदाचारी की शिक्षा दिखाने के लिए |

६.) एकेश्वरवाद की शिक्षा

जैसा की कुरआन के पढने से पता चलता है की अल्लाह को सबसे ज्यादा नफरत उस आदमी से है जो एक अल्लाह को नहीं मानता | वैसे अल्लाह भी अपनी जगह बिलकुल सही है उस अकेले ईश्वर की उपासना में कोई दूसरा शामिल नहीं होना चाहिए चाहे वो कोई भी हो | कुरआन ने अनेक जगह पर एकेश्वरवाद की शिक्षाए दी है | जैसे –

सूरह इमरान आयत १७४- अल्लाह व उसके रसूलो पर ईमान लाओ |

सूरह बकर आयत ३४- सजदा करो आदम को |

हमारे मुसलमान भाई नमस्ते नहीं बोलते क्योंकि उनके अनुसार नमस्ते कहने से शिर्क हो जाता है जो की एकेश्वरवाद के खिलाफ है | लेकिन शायद भूल जाते है अल्लाह के सिवा किसी दुसरे पर ईमान लाना और अल्लाह को छोड़ किसी दुसरे को सिजदा करवाना भी शिर्क ही है | सबसे बड़ी एकेश्वरवाद की शिक्षा तो कलमे में ही है की नमाज में भी मुहम्मद साहब का नाम बोलना जरुरी है जैसे ला इलल्लाह मुहम्मद रसुल्लुलाह | अब बिना कलमा बोले नमाज अर्थात उपासना नहीं होती और बिना रसूल का नाम लिया कलमा पूरा नहीं होता | यह है अल्लाह की एकेश्वरवाद की शिक्षा |

७.) रहमदिली की शिक्षा

कुरआन में शायद ३०० से ज्यादा बार अल्लाह को रहम करने वाला बताया गया है | रहम का अर्थ है दया | कुरआन ने भी कई बार इंसान को दयालु होने की शिक्षा दी है | कुछ आयते कुरआन की इस दयालुता को दर्शाती है |

कुरान सूरह हज्ज आयत २८ – और जानवरों को कुर्बान करते समय अल्लाह का नाम ले |

कुरान सूरह हज्ज आयत ३६ – कुर्बानी के ऊंट हमने तुम्हारे लिए मुकर्रर किये और जब कुर्बान हो जाए तो खुद भी खाओ और खिलाओ |

कुरआन किस रहमदिली की शिक्षा देता है वो इन आयतों में स्पष्ट है |

८.) पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा

मुस्लिम मित्रो का मानना है की अल्लाह ने मुहम्मद साहब की शादी ज्यादा उम्र और कम उम्र की ओरतो से इसलिए कराई थी ताकि दुनियो वालो को एक मिशाल पेश की जा सके कि जब ज्यादा उम्र की पत्नी हो या कम उम्र की पत्नी हो तो कैसे से प्रेम से रहा जाए | मुहम्मद साहब ने स्वंय न्यूनतम नौ शादियाँ की और दुसरे ईमान वालो को एक से अधिक शादी करने की आज्ञा भी कठोर शर्तो पर दी क्योंकि मुहम्मद साहब को लगता था की एक से अधिक शादी करके वे अपनी पत्नियों को प्रेम नहीं दे पायेंगे | परन्तु जब स्वंय मुहम्मद साहब ने ऐसा नहीं किया तो कुरआन ने उन्हें इस प्रेम और समानता के व्यवहार से बी छुट दे दी |

कुरआन सूरह अजहाब आयत ५१ – आप ( स ) जिसको चाहे दूर रक्खे और जिसको चाहे पास रक्खे और जिसको आपने दूर कर दिया उसे फिर पास रक्खे तो कोई तंगी नहीं |

इस आयत का आशय स्पष्ट है नबी जो चाहे वो पत्नी के साथ करे जब जी चाहे उसे पास रख लो और जब दिल न करे उसे दूर कर दो | यह है कुरआन की पति को पत्नी के प्रति व्यवहार की शिक्षा |

सूरह बकर आयत २२३ – तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेती है जैसे चाहो वैसे अपने खेत में जाओ |

वाकई कुरआन पत्नी के प्रति प्रेम की शिक्षा देती है | ये सब कुरआन की मुलभुत शिक्षाये है जिनका मुस्लिम मित्र दिलो जान से अनुसरण करते है |

 

 

 

 

यह समाधि नहीं है

ashutosh maharaj

यह समाधि नहीं है

आज सुबह से ही एक खबर देख रहा हू दिव्य ज्योति जागरण संस्था के संस्थापक श्री आशुतोष जी महाराज के शरीर को फ्रीजर में रखा है और संस्था के व्यस्थापको द्वारा  कहा जा रहा है महाराज समाधि में लिन है | जब की डॉक्टरओ द्वारा कहा जा चूका  है की उनकी मस्तिष्क में कोई गति विधि नहीं है जिसे अंग्रेजी में Brain Dead कहते है | उनके हृदय में कोई गति नहीं है, उनकी नाडी भी शांत है और चमड़ी ने भी रंग बदलना शरू हो गया है इस कारण डॉक्टरी भाषा में कहा जाय तो उनकी मृत्यु हो चुकी है और डॉक्टरओ ने भी उन्हें मृत घोषित कर दिया है, पर संस्था मानने को तयार नहीं है और बस एक रट लगाये है महाराज समाधि में लिन है और वो भी फ्रीज़र के शुन्य के तापमान में क्या यही समाधि है ? या समाधि किसी अन्य अवस्था को कहते है | हम योग दर्शन के आधार पर इस सत्य या असत्य को जानने का प्रयत्न करेंगे |

जो समाधि शब्द का प्रयोग बड़े साधारण स्थर पर करते है उन्हें समाधि को समझने के लिए सर्वप्रथम योग शब्द को समझना पडेंगा | योग दर्शन के समाधिपाद का दूसरा सूत्र :-

योगश्चितवृतिनिरोध: ||१:२||

परिभाषा :- योग है चित्त की वृतियो का निरोध=रोखना | चित्त की वृतियो को रोखना योग का स्वरुप है |

सांख्य में जिसे बुद्धि तत्व के नाम से कहा गया है, योग ने उसी को चित्त नाम दिया है | योग प्रक्रिया के अनुसार-एक विशिष्ट कार्य है – अर्थ तत्व का चिंतन | योग दर्शन में अर्थ तत्व से तात्पर्य परमात्मा तत्व से है | ईश्वर का निरंतर चिंतन इस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य है और यह चिंतन बुद्धि द्वारा होता है | जब मानव योग विधियों द्वारा समाधि अवस्था को प्राप्त कर लेता है ; तब वह बाह्य विषयो के ज्ञान के लिए इन्द्रियों से बंधा नहीं रहता, उस दशा में बाह्य विषयो के ज्ञान के लिए इन्द्रियों से बंधा नहीं रहता, उस दशा में बाह्य इन्द्रियों के सहयोग के विना केवल अंत:करण द्वारा बाह्य विषयों के ग्रहण करने में समर्थ रहता है |

समाधि दो प्रकार की होती है १. सम्प्रज्ञात समाधि और २. असम्प्रज्ञात समाधि

सम्प्रज्ञात समाधि उस अवस्था को कहते है जब त्रिगुणात्मक अचेतन प्रकृति और चेतन आत्मा तत्व के भेद का साक्षात्कार हो जाता है | इसी का नाम ‘प्रकृति-पुरुष विवेक ख्याति’ है | परन्तु सम्प्रज्ञात समाधि की यह दशा वृति रूप होती है | विवेक ख्याति गुणों की एक अवस्था है | रजस,तमस का उद्रेक न होने पर सत्व गुण  की धारा प्रवाहित रहती है | योगी इसका भी निरोध कर पूर्ण शुद्ध आत्म स्वरुप में अवस्थित हो जाता है | वह वैराग्य की पराकाष्टा ‘धर्ममेध-समाधि’ नाम से योग शास्त्र [४/२९] में उदृत है |अभ्यास और वैराग्य दोनों उपायों के द्वारा चित्त की वृतियो का निरोध पर सम्प्रज्ञात समाधि की अवस्था आती है |

असम्प्रज्ञात समाधि उन योगियों को प्राप्त होती है जिन्होंने देह और इन्द्रियों में आत्म साक्षात्कार से निरंतर अभ्यास एवं उपासना द्वारा उनका साक्षात्कार कर उनकी नश्वरता जड़ता आदि को साक्षात् जान लिया है, और उसके फल स्वरुप उनकी और से नितांत विरक्त हो चुके है | वे लंबेकाल  तक देह-इन्द्रिय आदि के संपर्क में न आकर उसी रूप में समाधि जनित फल मोक्ष सुख के समान भोग करते है |

शास्त्रों [मुंडक,२/२/८; गीता,४/१९, तथा ३७ ] में ज्ञान अग्नि से समस्त कर्मो के भस्म हो जाने का जो उल्लेख उपलब्ध होता है, वह योग की उस अवस्था को समझना चाइये, जब आत्म साक्षात्कार पूर्ण स्थिरता के स्थर पर पहुचता है | अभी तक समस्त संस्कार आत्मा में विद्यमान रहते है | कोई भी संस्कार उभरने पर योगी समाधि भ्रष्ट हो जाता है |

समाधि लाभ के लिए दो गुणों की अत्यावश्यक है १. वैराग्य २. योग सम्बन्धी क्रिया अनुष्ठान | वैराग्य की स्तिथि होने पर भी यदि योगांगो के अनुष्ठान में शिथिलता अथवा उपेक्षा की भावना रहती है, तो शीघ्र समाधि लाभ की आशा नहीं रखनी चाइये |

सम्प्रज्ञात समाधि की दशा में योगी आत्मा और चित्त के भेद का साक्षात् कर लेता है | वह इस तथ्य को स्पष्ट रूप में आंतर प्रत्यक्ष में जान लेता है, की प्राप्त विषयों के अनुसार चित्त का परिणाम होता रहता है परन्तु आत्मा अपरिणामी रहता है |

आत्म बोध के अतिरिक्त इस अवस्था में अन्य किसी विषय का किसी भी प्रकार का ज्ञान न होने से योगी इस अवस्था का नाम ‘असम्प्रज्ञात समाधि’ है | इन दोनों में भेद केवल इतना है, कि पहली दशा में संस्कार उद्बुद्ध होते है, जब कि दूसरी दशा में नि:शेष हो जाते है |

समाधि अवस्था में आत्मा अपने रूप में अवस्तिथ होता है | अनुभव करना चैतन्य का स्वभाव है, वह उससे छुट नहीं सकता | फलत: जब वह केवल शुद्ध चैतन्य स्वरुप आत्मा का अनुभव करता है, तब उसे स्वरुप में अवस्थित कहा जाता है,केवल स्व का अनुभव करना ; अन्य समस्त विषयो से अछुता हो जाना | आत्मा इस अवस्था को प्राप्त कर समाधि शक्ति द्वारा परमात्मा के आनंद स्वरुप में निमग्न हो जाता है | उस आनंद का वह अनुभव करने लगता है | यही आत्मा के मोक्ष अथवा अपवर्ग का स्वरुप है |

यह हमने समाधि का संक्षिप्त में विवरण किया है और समाधि कि इस स्वरुप में मस्तिष्क कि गति, हृदय गति, नाडी का चलना अन्य सब बातें आवश्यक है | क्यों कि यह सब गति विधिया शरीर के लिए आवश्यक है और विना शरीर के समाधि अवस्था प्राप्त नहीं हो सकती और शरीर को जीवित रखना है तो इन गति विधियों को होना आवश्यक है | इसलिए दिव्य ज्योति जागरण संस्था के संस्थापक श्री आशुतोष जी महाराज के शरीर कि इस अवस्था को समाधि अवस्था न कह कर इस अवस्था को मृत्यु कहा जायेंगा | और संस्था के प्रतिनिधि जो इस अवस्था को समाधि कह रहे है वह नितांत मूर्खता या पाखण्ड है | किसी भी शास्त्र में श्री आशुतोष जी महाराज कि जो अवस्था है उस अवस्था को समाधि नहीं कहा है |स्व में या परमात्मा के आनंद स्वरुप में स्तिथ रहने के लिए शरीर का जीवित अवस्था में होना आवश्यक है |

सहायता ग्रन्थ :- योग दर्शन भाष्य –भाष्यकार पंडित उदयवीर शास्त्री 

मुल्ला सतीशचंद गुप्ता के दूसरे लेख का उत्तर

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यह मुल्ला सतीशचंद गुप्ता के दूसरे लेख “अहिंसा परमो धर्मं ” के उत्तर में लिखा है |

सतीशचंद गुप्ता :- वैदिक ब्राह्मण यज्ञ को प्रथम और उत्तम वैदिक संस्कार समझते थे। यह आर्यों का मुख्य धार्मिक कृत्य था। पशु बलि यज्ञ का मुख्य अंग थी। पशु बलि को बहुत ही पुण्य का कर्तव्य समझा जाता था। गौतम बुद्ध ने जब देखा कि आर्य लोग यज्ञ में निरीह पशुओं की बलि चढ़ाते हैं, तो यह देखकर उनका हृदय विद्रोह से भर उठा। आर्य धर्म के विरूद्ध उठने वाली क्रांति का प्रमुख कारण वैदिक पुरोहितवाद और हिंसा पूर्ण कर्मकांड ही था।
ईसा से करीब 500 वर्ष पहले गौतम बुद्ध ने वैदिक धर्म पर जो सबसे बड़ा आरोप लगाया था वह यह था कि,

‘‘पशु बलि का पुण्य कार्य और पापों के प्रायश्चित से क्या संबंध ? पशु बलि धर्माचरण नहीं जघन्य पाप व अपराध है ?’’

यह एक विडंबना ही है कि गौतम बुद्ध के करीब 2350 वर्ष बाद आर्य समाज के संस्थापक, वेदों के प्रकांड पंडित स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस्लाम पर जो सबसे बड़ा आरोप लगाया है वह यह है कि

‘‘यदि अल्लाह प्राणी मात्र के लिए दया रखता है तो पशु बलि का विधान क्यों कर धर्म-सम्मत हो सकता है ? पशु बलि धर्माचरण नहीं जघन्य पाप व अपराध है।’’

कैसी अजीब विडंबना है कि जो सवाल गौतम बुद्ध ने वैदिक ऋषियों से किया था, वही सवाल करीब 2350 वर्ष बाद एक वैदिक महर्षि मुसलमानों से करता है। जो आरोप गौतम बुद्ध ने आर्य धर्म पर लगाया था, वही आरोप कई ‘शताब्दियों बाद एक आर्य विद्वान इस्लाम पर लगाता है।

वैदिक मत : यज्ञ वैदिक धर्मं का एक अत्यावश्यक तत्व है इस में कोई संदेह नहीं | वेदों में यज्ञो का महत्व अनेक स्थलों पर अत्यंत स्पष्ट शब्दों में बताया गया है, यहाँ तक कि यज्ञो के द्वारा ही भगवान कि पूजा और मोक्ष प्राप्ति का विधान किया गया है |

यज्ञेन यज्ञमयजन्त…………………………………प्रथमान्यासन |

ते ह नाकं……………………………………………सन्ति देवा: || १०.९०.१६ |

अर्थात सत्यनिष्ठ विद्वान लोग यज्ञो के द्वारा ही पूजनीय परमेश्वर कि पूजा करते है | यज्ञो में सब श्रेष्ट धर्मो का समावेश होता है | वे यज्ञो के द्वारा भगवान कि पूजा करनेवाले महापुरुष दुःख रहित मोक्ष को प्राप्त करते है. जंहा सब ज्ञानी लोग निवास करते है इत्यादि मंत्र इस विषय में उल्लेखनीय है | यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है गुप्ता जी कि यज्ञ शब्द जिस यज धातु से बनता है उस के देव पूजा—संगती करण और दान ये तीन अर्थ धातु पाठ में वर्णित है जिन में हमारे सब कर्तव्यों का समावेश हो जाता है | पर इस सब से आपको क्या गुप्ता जी आप तो उसी अन्य और विपरीत अर्थ को लेंगे जो आपके हित का है और आपका दोष भी नहीं है एक तो आपको भाषा का भी ज्ञान नहीं है और दूसरा मुक्य बात आदरणीय गौतम बुद्ध को भी वैदिक भाषा का ज्ञान नहीं था | और अंतिम वैदिक भाषा यौगिक अर्थ को प्रस्तुत करती है एक शब्द के अनेक अर्थ है जो प्रकरण अनुसार ग्रहण करने होते है | जिसने इस सिद्धांत को तोडा और मनमाने अर्थ किये वह वेद के मंत्रो के ऐसे ही मनमाने अर्थ करेंगा जो उस काल के तथकथित ब्राह्मणों ने किया |

यह बड़े दुःख कि बात है जिस यज्ञ कि इतनी महिमा बी=वेदों में बताई गयी है और जिस को परमेश्वर कि पूजा और प्राप्ति का साधन बताया गया है, उस के विषय में इतने अशुद्ध विचार मध्य कालीन आचार्यो ने उसे बगेर स्वाध्याय किये ही समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिये |

वेद में ऐसा कही नहीं लिखा है की पशु हिंसा से मुक्ति को प्राप्त होंगे उल्टा इसके विपरीत यजुर्वेद ४.१४ में लिखा है “ जो मनुष्य विद्या और अविद्या के स्वरुप को साथ ही साथ जानता है वह ‘अविद्या’ अर्थात कर्मोपसना से मृत्यु को तरके ‘विद्या’ अर्थात यथार्थ ज्ञान से मोक्ष को प्राप्त होता है |

सब वेदों में यज्ञ के पर्याय अथवा कही कही विशेषण के रूप में अध्वर शब्दों का प्रयोग सैकडो स्थानों पर पाया जाता है जिस कि व्युत्पति करते हुए निरुक्तकार श्री यास्काचार्य ने लिखा है |

निरुक्त २.७ में आचार्य लिखते है “ अध्वर यह यज्ञ का नाम है जिस का अर्थ हिंसा रहित कर्म है | चारो बी=वेदों में अध्वर के प्रयोग के हजारो उदाहरण है जिस में से निम्नलिखित कुछ का निर्देश यहाँ पर्याप्त है |

  • अग्ने ये यज्ञमध्वरम………………………………..भूरसि |

स ……………गच्छति || ऋग्वेद १.१. ४ |

इस मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर | तू हिंसा रहित यज्ञो में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञो को सत्यनिष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है |

ऋग्वेद १.१. ८ में मंत्र आता है –

इस मंत्र में स्पष्ट कहा गया है कि हे ज्ञान स्वरुप परमेश्वर ! तू हिंसा रहित यज्ञो में ही व्याप्त होता है और ऐसे ही यज्ञो को सत्यनिष्ठ विद्वान लोग सदा स्वीकार करते है |

मै सतीशजी ऐसे कई उदाहरण दे सकता हू जो आपके आरोप को सिरे से ख़ारिज कर दे देते है |

मध्य के काल में यज्ञो में पशु हिंसा हुई इससे कोई इंकार नहीं कर सकता पर इसका दोष हम वेदों पर नहीं दाल सकते | दृष्टिहीन को सूर्य नहीं दिखे तो इसमें सूर्य का क्या दोष ?

अब आप कहेंगे ऋषि दयानंद का भाष्य कैसे सत्य और अन्यों का कैसे गलत वैसे ये समझदार को बताना अनावश्यक है पर आप उस श्रृंखला  में नहीं आते इसलिए आप को कुछ विद्वानों द्वारा ऋषि के भाष्य पर कि हुई टिप्पणिय बता देते है |

यह सच्च में भारतीयो  के लिए एक युगांतरकारी तारीख थी जब एक ब्राह्मण ( स्वामी दयानंद सरस्वती ) ने न केवल स्वीकार किया की सभी मनुष्यों को वेदों को पढने का हक़ है ,जिसका अध्ययन पहले से रूढ़िवादी ब्राह्मण द्वारा निषिद्ध किया गया था |किन्तु  जोर देकर कहा कि इनका अध्ययन और प्रचार सभी आर्यों का कर्तव्य है  ( Life of Ram Krishna By Roman Rolland p. 59 )

 

  • “There is nothing fantastic in Dayanand’s idea that Veda contains truth of Science as well as truth of Religion. I will even add my own convictions that Veda contains the other truths of a science the modern world does not at all possess and in that case, Dayananda has rather understand than overstated the depth and range of the Vedic wisdom. ….It as Dayanand held on strong enough grounds, the Veda reveals to us God, reveals to us the relation of the soul to God and nature, what is it but a Revelation of divine Truth ? And if, as Dayananda held, it reveals them to us with a perfect truth, flawlessly, he might well hold it for an infallible Scripture……In the matter of Vedic interpretation; I am convinced that whatever may be the final complete interpretation, Dayananda will be honored as the first discoverer of the right clues. A midst the chaos and obscurity of old ignorance and age long misunderstanding. His was the eye of direct vision that pierced to the truth and fastened on to that time had closed and rent asunder the seal of the imprisoned fountains.” (Dayanand and Veda from the article in the Vedic Magazine Lahore for Nov 1916 by Shri Arvinda.)

 

ये सिद्ध हो गया की पशु बलि ना पुण्य का कार्य है गोर पाप है और वेद विरुद्ध है | पापों के प्रायश्चित का इन दुष्कर्मो का कोई लेना देना नहीं है | निश्चित पशु बलि धर्मा चरण नहीं जघन्य पाप और अपराध है |

ऋषि दयानंद का इस्लाम से पशु बलि विषय से प्रश्न करना कोई विडंबना नहीं है क्यों की इस्लाम का कहना है की कुरान ईश्वरीय ज्ञान है | जब ईश्वरीय ज्ञान वेद पर प्रश्न हो सकते है तो कुरान पर क्यों नहीं |कुरहान से कुछ प्रमाण :-

1.

न उनके मांस अल्लाह को पहुँचते है और न उनके रक्त | किन्तु उसे तुम्हारा धर्म परायण पहुँचता है | इस प्रकार उसने उन्हें तुम्हारे लिए वशीभूत किया है , ताकि तुम अल्लाह की बढ़ाई ब्यान करो | इसपर की उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया और सुकर्मियो को शुभ  सुचना दे दो |( कुरान २२:३७ )

ये कितनी मूर्खता की बात है जब खुदा तक उनका गोश्त और खून पहुचेंगा ही नहीं सिर्फ खुदा की प्रशंसा मात्र करने के लिए कुर्बानी दो उस तथाकथित अल्लहा के नाम से जो दयालु है उचित प्रथित नहीं होता | इसलिए प्रश्न किया आप से क्या इसे कहते है ईश्वरीय ज्ञान और ईश्वर जो मात्र अपनी प्रशंसा के निर्दोष प्राणियों की हत्या करवाये गुप्ता जी |

  • 2. इसलिए तुम अपने रब के लिए नमाज पढो और क़ुरबानी करो  ( १०८.२ )

जब ईश्वरीय ज्ञान ही कहता है कुर्बानी दो तो यह कैसे दया और यह कैसा ईश्वर और कैसा ईश्वरीय ज्ञान | आप को गुप्ता जी कोई अधिकार नहीं किसी अन्य पर प्रश्न करे आप कोई एक भी मंत्र वेदों में से बता सखे जो ईश्वर को खुश करने के लिए हत्या की बात करता हो |

 

Qurbani is Fardh for :

Qurbani, like Zakat, is essential for one who has the financial means and savings that remain surplus to his own needs over the year. It is essential for one?s own self.

However, a slaughter of animal can also be offered for each member of one?s family. It may be offered, though it is not essential, for one?s deceased relations, too, in the hope of benediction and blessings for the departed souls.

What to Sacrifice

All the permissible (halal) domesticated or reared quadrupeds can be offered for Qurbani. Generally, slaughter of goats, sheep, rams, cows, and camels is offered. It is permissible for seven persons to share the sacrifice of a cow or a camel on the condition that no one?s share is less than one seventh and their intention is to offer Qurbani. Age of Sacrificial Animals Sacrifice of goat or sheep less than one year old (unless the sheep is so strong and fat that it looks to be a full one year old) is not in order. Cow should be at least two years old. Camels should not be less than five years old. (http://www.islamawareness.net/Eid/azha.html)

सतीशचंद गुप्ता :- कैसी अजीब विडंबना है कि जो सवाल गौतम बुद्ध ने वैदिक ऋषियों से किया था, वही सवाल करीब 2350 वर्ष बाद एक वैदिक महर्षि मुसलमानों से करता है। जो आरोप गौतम बुद्ध ने आर्य धर्म पर लगाया था, वही आरोप कई ‘शताब्दियों बाद एक आर्य विद्वान इस्लाम पर लगाता है।

वैदिक मत :- आप इस तरह से कुराहन के कुर्बानी विषय को भटका नहीं सकते  यह ऊप्पर सिद्ध हो चूका है की वैदिक मत यज्ञ में पशु हिंसा को स्थापित नहीं करता और ना ही ऐसा कोई मंत्र है जिसका अर्थ आपके आरोप को सिद्ध करता है | गौतम बुद्ध के जो आरोप थे वह अज्ञानता वश थे उसे वेदों पर थोपा नहीं जा सकता | यह दोष उस काल के अज्ञानी ब्राह्मण जिन्होंने वेदों के मनमाने अर्थ किये जिस वजह से गौतम बुद्ध वेदों से दूर हुए | हम आपको आवाहन करते है की आप वेदों में से जो आपने आरोप लगाये है सिद्ध कर के बताये | जो की हमने कुरहान से सिद्ध कर दिये है | इसलिये इस्लाम पर प्रश्न तो होंगे अपर इस्लाम के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है इसलिये आप इस विषय को परिवर्तित करने में लगे हुए है जो की हो नहीं सकता |

सतीशचंद गुप्ता :- धर्म का संपादन मनुष्य द्वारा नहीं होता। धर्म सृष्टिकर्ता का विधान होता है। धर्म का मूल स्रोत आदमी नहीं, यह अति प्राकृतिक सत्ता है। यह भी विडंबना ही है कि गौतम बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व का इंकार करके वैदिक धर्म को आरोपित किया था, मगर स्वामी दयानंद सरस्वती ने ईश्वर के अस्तित्व का इकरार करके इस्लाम को आरोपित किया है।

वैदिक मत :- ईश्वर के इकरार और इंकार का चर्चा के विषय से क्या लेना देना गुप्ता जी | ईश्वर का इकरार तो हज़रत मोहम्मद ने भी किया तो फिर उन्होंने भी बहोत गलत किया ? इसे कहते है मुह छुपाना और विषय को भटखाना सतीशचंद  गुप्ता जी यह चर्चा के नियम के विरुद्ध है |

सतीशचंद गुप्ता :- प्राचीन भारतीय समाज में पशु बलि के साथ-साथ नर बलि की भी एक सामान्य प्रक्रिया थी। यज्ञ-याग का समर्थन करने वाले वैदिक ग्रंथ इस बात के साक्षी हैं कि न केवल पशु बलि बल्कि नर बलि की प्रथा भी एक ठोस इतिहास का परिच्छेद है। यज्ञों में आदमियों, घोड़ों, बैलों, मेंढ़ों और बकरियों की बलि दी जाती थी। रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी मुख्य पुस्तक ‘‘संस्कृति के चार अध्याय’’ में लिखा है कि यज्ञ का सार पहले मनुष्य में था, फिर वह अश्व में चला गया, फिर गो में, फिर भेड़ में, फिर अजा में, इसके बाद यज्ञ में प्रतीकात्मक रूप में नारियल-चावल, जौ आदि का प्रयोग होने लगा। आज भी हिंदुओं के कुछ संप्रदाय पशु बलि में विश्वास रखते हैं।

वैदिक मत :-आप ने आरोप लगाया था वेदों पर कोई एक तो मंत्र दे दिया होता तो बड़ा आनंद आता | आप की विद्वता का ज्ञान होता पर गुप्ता जी आप तो हवाई घोड़े दौड़ा रहे है | वेद में ऐसे किसी बलि का कोई उल्लेख नहीं है | बात कर रहे है वेदों की और वेदों से प्रमाण तो नहीं दिया प्रमाण दे रहे है एक कवी के ग्रन्थ का वाह ! मान गये गुप्ता जी वेद स्वत: प्रमाण है वेद को किसी अन्य ग्रन्थ के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है | यह विशेषता होती है ईश्वरीय वाणी की जो कुरहान में नहीं है |

Dedication of the human sacrifice to the Moon God
“Then the man HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”pulled out a long knife and cut offHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”Bigley’sHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” HYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html”headHYPERLINK “http://www.rferl.org/content/article/1055258.html” with the help of a group of masked men who shouted, “God is great!” in Arabic. This is actually incorrect. They shouted ‘Allahu Akhbar!’ which means ‘Allah is the Greatest’.

However Allah cannot be the same as the Judeo-Christian God, because God forbade human sacrifice when Abraham tried to sacrifice Isaac. There are also warnings in the Old Testament about a moon-demon called Moloch who demands human sacrifice.

This dedication of the slaughtered kafirs to Allah occurs again and again in Islamic attacks. The Fort Hood shooter shouted ‘HYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive”AllahuHYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive” HYPERLINK “http://www.guardian.co.uk/world/2009/nov/06/fort-hood-shooter-alive”Akbar’ as he opened fire. [Again ‘Allah’ is mistranslated as ‘God’]

Note also in the following videos how the congregation shout ‘AllahuAkbar’ as the Kafir’s blood begins to flow. (/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”http://crombouke.blogspot.in/HYPERLINK “http://crombouke.blogspot.in/2010/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”2010/01/HYPERLINK “http://crombouke.blogspot.in/2010/01/satanic-islam-allah-moloch-demands.html”satanic-islam-allah-moloch-demands.html)

वेदों में तो नहीं है पर कुरान के अल्लाह के नाम पर आज भी इंसान की बलि दी जाती है | उस दयालु अल्लाह के नाम से बड़ा हास्यास्पद लगता है दयालु और इंसान की कुर्बानी |

सतीशचंद गुप्ता :- वेदों के बाद अगर हम रामायण काल की बात करें तो यह तथ्य निर्विवाद रूप से सत्य है कि श्री राम शिकार खेलते थे। जब रावण द्वारा सीता का हरण किया गया, उस समय श्री राम हिरन का शिकार खेलने गए हुए थे। उक्त तथ्य के साथ इस तथ्य में भी कोई विवाद नहीं है कि श्रीमद्भागवतगीता के उपदेशक श्री कृष्ण की मृत्यु शिकार खेलते हुए हुई थी। यहाँ यह सवाल पैदा होता है कि क्या उक्त दोनों महापुरुष हिंसा की परिभाषा नहीं जानते थे ? क्या उनकी धारणाओं में जीव हत्या जघन्य पाप व अपराध नहीं थी ? क्या शिकार खेलना उनका मन बहलावा मात्र था ?

वैदिक मत :- सतीश जी रामायण के उस श्लोक की बात करते है जिसमे हिरण के शिकार की बात कही गयी है और क्यों कही गयी है ( अरण्यकाण्ड सर्ग ३३ श्लोक १८  –  मृग को देख कर लक्ष्मण ने शंका करते हुए कहा की इस प्रकार रत्नों से विचित्र मृग नहीं होता है अर्थात यह कोई माया है | लक्ष्मण जी की बात को काटते हुए सीता जी कहती है हे आर्यपुत्र ! यह सुहावना मृग मेरे मन को हरता है हे महाबाहो इसे लाइए यह हमारी क्रीडा के लिए होगा | यदि यह मृग जीता हुआ आपके हाथ आये तो इसकी स्वर्ण खाल को बिछा कर उपासना करने योग्य होगा | तब रामचन्द्र जी लक्ष्मण को कहते है की हे लक्ष्मण तुम्हारे कहे अनुसार यह मृग माया वि है तो इसका वध करना जरुरी है )

अब गुप्ता जी यहाँ स्पष्ट है की सीता जी के द्वारा मृग पकड़ने को कहने का उद्देश्य उसके साथ क्रीडा करना था और रामचन्द्र जी का उद्देश्य उसको या तो क्रीडा के लिए पकड़ कर लाना या यदि वो मायावी हो तो उसका वध करना था |

अब रही श्री कृष्ण जी की मृत्यु की बात तो आपका यह दावा बिलकुल गलत है की उनकी मृत्यु शिकार खेलते हुई थी

महाभारत मौलवपर्व के अनुसार कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद द्वारिका चले आए थे। यादवराजकुमारों ने अधर्म का आचरण शुरू कर दिया तथा मद्यमांस का सेवन भी करने लगे। परिणाम यह हुआ कि कृष्ण के सामने ही यादव वंशी राजकुमार आपस लड़ मरे। कृष्ण का पुत्र साम्ब भी उनमें से एक था। बलराम ने प्रभासतीर्थ में जाकर समाधि ली। कृष्ण भी दुखी होकर प्रभासतीर्थ चले गए, जहाँ उन्होंने मृत बलराम को देखा। वे एक पेड़ के सहारे योगनिद्रा में पड़े रहे। उसी समय जरा नाम के एक शिकारी ने हिरण के भ्रम में एक तीर चला दिया जो कृष्ण के तलवे में लगा और कुछ ही क्षणों में वे भी परलोक सिधार गए। उनके पिता वसुदेव ने भी दूसरे ही दिन प्राण त्याग दिए।

सच्चे धर्मं का स्त्रोत वेद ही है | इसलिये मनु जी महाराज ने कहा है “धर्मं को जानना चाहे, उनके लिए परम श्रुति अर्थात वेद ही है, यह माना है |”

यजुर्वेद १२.४० में कहा है इन ऊन रूपी बालो वाले भेड, बकरी, ऊंट आदि चौपाये, पक्षी आदि दो पग वालो को मत मार |

अथर्ववेद .१६ में कहा है “यदि हमारे गौ,घोड़े पुरुष का हनन करेंगा तो तुझे शीशे की गोली से बेध देंगे, मार देंगे जिससे तू हनन कर्ता रहे | अर्थात पशु, पक्षी आदि प्राणियों केवध करने वाले कसाई को वेद भगवान गोली से मारने की आज्ञा देते है |”

अब ऐसे में मर्यादा पुरषोतम श्री राम और योगेश्वर श्री कृष्ण कैसे किसी निर्दोष प्राणी की हत्या कर सकते है | वे तो वेदों के ज्ञाता थे |

सतीशचंद गुप्ता :-
अगर हम उक्त सवाल पर विचार करते हुए यह मान लें कि पशु बलि और मांस भक्षण का विधान धर्मसम्मत नहीं हो सकता, क्योंकि ईश्‍वर अत्यंत दयालु और कृपालु है, तो फिर यहाँ यह सवाल भी पैदा हो जाता है कि जानवर, पशु, पक्षी आदि जीव हत्या और मांस भक्षण क्यों करते हैं। अगर अल्लाह की दयालुता का प्रमाण यही है कि वह जीव हत्या और मांस भक्षण की इजाजत कभी नहीं दे सकता तो फिर शेर, बगुला, चमगादड़, छिपकली, मकड़ी, चींटी आदि जीवहत्या कर मांस क्यों खाते हैं ? क्या शेर, चमगादड़ आदि ईश्वर की रचना नहीं है ?

वैदिक मत :- क्या गुप्ता जी प्राणियों  के साथ अपनी तुलना कर रहे है | पर चलिए ठीक ही किया ऐसा कर के | मनुष्य ईश्वर की उपासना करता है तो उसमे ईश्वर के दया और कृपा के गुण आना स्वाभाविक है पर आप में नहीं आये और मनुष्य में स्वाभाविक ज्ञान के अलावा वह नैमितिक ज्ञान को भी धारण करता है | ये दोनों ही गुण पशुओ में न होने के वजह से उनमे दया और कृपा नहीं होती फिर भी एक गुण उनमे मनुष्य से अतिरिक्त होता है और वह है परमात्मा ने जैसा उनका शरीर बनाया है वे वैसा ही भोजन ग्रहण करते है गुप्ता जी पर मनुष्य ज्ञानी होते हुए भी शारीरिक व्यवस्था के विपरीत भोजन ग्रहण करता है और जिम्मेदार ईश्वर को ठहरता है |

सतीशचंद गुप्ता :- विश्व के मांस संबंधी आंकड़ों पर अगर हम एक सरसरी नज़र डालें तो आंकड़े बताते हैं कि प्रतिदिन 8 करोड़ मुर्गियां, 22 लाख सुअर, 13 लाख भेड़-बकरियां, 7 लाख गाय, करोड़ों मछलियां और अन्य पशु-पक्षी मनुष्य का लुकमा बन जाते हैं। कई देश तो ऐसे हैं जो पूर्ण रूप से मांस पर ही निर्भर हैं। अब अगर मांस भक्षण को पाप व अपराध मान लिया जाए तो न केवल मनुष्य का जीवन बल्कि सृष्टि का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। जीव-हत्या को पाप मानकर तो हम खेती-बाड़ी का काम भी नहीं कर सकते, क्योंकि खेत जोतने और काटने में तो बहुत अधिक जीव-हत्या होती है।

वैदिक मत :- चलिए आप एक काम करिये रोटी,दाल,चावल, सब्जी कुछ भी ग्रहण मत कीजिये मात्र मांस खाइए और जी के बताइए आप जी नहीं सकते | ये बकवास है एक काल ऐसा भी था की सृष्टि पर जिव हत्या पर मृत्यु दंड की शिक्षा थी पर सृष्टि तो उस अवस्था में आज से भी अच्छी तरह से चली | ये मात्र आपकी सोच है कोई सिद्धांत नहीं है | खेती एक वैदिक कार्य या कर्म है जो समाज के लिए है अगर अनाज नहीं होंगा तो खायेंगे क्या ? पर मांसाहार निजी स्वार्थ है क्यों की कोई भी पशु मरना नहीं चाहता यही सिद्ध करता है यह ईश्वरीय व्यवस्था नहीं है | पर खेती ईश्वरीय नियम के अनुसार होती है न की व्यक्ति विशेष के नियम अनुसार |

सतीशचंद गुप्ता :- विज्ञान के अनुसार पशु-पक्षियों की भांति पेड़-पौधों में भी जीवन Life है। अब जो लोग मांस भक्षण को पाप समझते हैं, क्या उनको इतनी-सी बात समझ में नहीं आती कि जब पेड़-पौधों में भी जीवन है तो फिर उनका भक्षण जीव-हत्या क्यों नहीं है? फिर मांस खाने और वनस्पति खाने में अंतर ही क्या है ? यहाँ अगर जीवन Life ; और जीव Soul; में भेद न माना जाए तो फिर मनुष्य भी पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की श्रेणी में आ जाता है। जीव केवल मनुष्य में है इसलिए ही वह अन्यों से भिन्न और उत्तम है।

वैदिक मत :- उसमे भले ही जिव है पर पशु की चेतना में और वृक्ष की चेतना में बहोत अंतर है | वृक्ष की चेतना आतंरिक है और पशु की चेतना बाह्य है | इसलिये जब हम किसी पेड पौधे का सेवन करते है तो उनको दुःख नहीं होता और पशु को अत्यंत दुःख सहना पड़ता है | पेडपौधों का सेवन मनुष्य के लिए ईश्वरीय व्यवस्था है जब की पशु की हत्या कर के खाना नहीं | फल हमेशा पक कर निच्चे गिर जायेंगा पर ऐसी कोई व्यवस्था पशुओ में नहीं |

सतीशचंद गुप्ता :- विज्ञान के अनुसार मनुष्य के एक बार के वीर्य Male generation fluid स्राव (Discharge) में 2 करोड़ ‘शुक्राणुओं (Sperm) की हत्या होती है। मनुष्य जीवन में एक बार नहीं, बल्कि सैकड़ों बार वीर्य स्राव करता है। फिर मनुष्य भी एक नहीं करोड़ों हैं। अब अगर यह मान लिया जाए कि प्रत्येक ‘शुक्राणु (Sperm) एक जीव है, तो इससे बड़ी तादाद में जीव हत्या और कहां हो सकती है ? करोड़ों-अरबों जीव-हत्या करके एक बच्चा पैदा होता है। अब क्या जीव-हत्या और ‘‘अहिंसा परमों धर्मः’’ की धारणा तार्किक और विज्ञान सम्मत हो सकती है

वैदिक मत :- यह ईश्वरीय व्यवस्था है गुप्ता जी करोडों शुक्रानोओ में से कोई एक शुक्राणु गर्भ में जाए और गर्भ स्थापित होंगा | यह नियम है और वैज्ञानिक है एक शुक्राणु गर्भ मे जायेंगा तो गर्भ स्थापना होना बहोत मुश्किल हो जायेंगा | और जब उन शुक्रनुओ ने शरीर ही धारण नहीं किया तो उनको दुःख कैसा और उनकी मृत्यु कैसी ? जिव हत्या तो तब हुई जब शरीर धारण किया | हत्या तो आप करते हो गुप्ता जी | जिव की कभी हत्या नहीं होती, शरीर का त्याग ही मृत्यु कहलाती है | अवश्य पशु हत्या की धारण तार्किक और विज्ञान सम्मत है क्यों की उस अवस्था में जीव ने शरीर धारण कर लिया |

सतीशचंद गुप्ता :-  जहाँ-जहाँ जीवन है वहाँ-वहाँ जीव (Soul) हो यह ज़रूरी नहीं। वृद्धि- ह्रास , विकास जीवन (Life) के लक्षण हैं जीव के नहीं। आत्मा वहीं है जहाँ कर्म भोग है और कर्म भोग वही हैं जहाँ विवेक (Wisdom) है। पशु आदि में विवेक नहीं है, अतः वहां आत्मा नहीं है। आत्मा नहीं है तो कर्म फल भोग भी नहीं है। आत्मा एक व्यक्तिगत अस्तित्व (Cosmic Existence) है जबकि जीवन एक विश्वगत अस्तित्व (Individual Existence) है। पशु और वनस्पतियों में कोई व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं होता। अतः उसकी हत्या को जीव हत्या नहीं कहा जा सकता। जब पशु आदि में जीव (Soul) ही नहीं है, तो जीव-हत्या कैसी ? पशु आदि में सिर्फ और सिर्फ जीवन है, जीव नहीं। अतः पशु-पक्षी आदि के प्रयोजन हेतु उपयोग को हिंसा नहीं कहा जा सकता।

वैदिक मत :- क्यों जरुरी नहीं जीवन का ही दूसरा नाम चेतना है जो जीव के बगेर हो ही नहीं सकती |वृद्धि और विकास उसी शरीर में देखने को मिलेंगे जहा जीव है जहाँ जीव नहीं वह वृद्धि और विकास भी नहीं | किसी मृतक शरीर में यह सब लक्षण प्राप्त नहीं होंगे गुप्ता जी | कर्म और भोग तो एक दूजे के पूरक है | कर्म है तो भोग है और अगर कर्म नहीं तो भोग भी नहीं | जहाँ जड़ और चेतन का प्रत्यक्ष अनुभूति हो जाए उसे विवेक कहते है और वह निरंतर पुरषार्थ करने से प्राप्त होता है नाकि मात्र साधारण कर्म और भोग  से | कर्म और भोग की व्यवस्था तो पशुओ में भी है पर उनमे विवेक नहीं है | जब बच्चे का जन्म होता है तो क्या उसमे विवेक होता है | कर्म-भोग होता है ? तो फिर क्या उसमे जीव नहीं है गुप्ता जी ? आप मात्र शब्दों का जाल बना रहे है सरल और सिद्धि बात है आत्मा है तो जीवन है ये भी एक  दूजे के साथी है | आत्मा नहीं रहेंगी तो जीवन भी नहीं रहेंगा और अगर जीवन रहेंगा तो आत्मा भी रहेंगी | पशुओ में साधारण कर्म की व्यवस्था है, पशुओ में भोग है, और पशुओ में जीवन है तो पशुओ में आत्मा कैसे नहीं ?

अगर पशुओ में आत्मा नहीं है तो जो स्वाभाविक ज्ञान हमे उनमे दीखता है वह किसका गुण है आत्मा का या शरीर का ? अगर आत्मा नहीं तो शरीर का है और अगर शरीर का है तो मृतक शरीर में फिर क्यों नहीं दीखता ? यह गुण आत्मा का है जो आत्मा के साथ आता है और आत्मा के साथ चला जाता है |अंत में तुमने ही मान लिया की पशुओ में जीवन है जीव नहीं यह जीवन शब्द जीव से ही बना है | जीव है इस लिए जीवन है और जीव नहीं तो मृत्यु है | अत: पशु पक्षी की स्व प्रयोजनार्थ हत्या करना घोर हिंसा है |