बोली खंजर की धार

बोली खंजर की धार

– राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’

तेरी जय जय जयकार, गावे सारा संसार।

जागा सारा संसार तेरी सुनकर हुँकार।।

निर्भय योद्धा संग्रामी, वैदिक पथ के अनुगामी।

दुःखड़े जाति के टारे, प्यारे ज्ञानी नरनामी।।

सच्चे ईश्वर विश्वासी, झेले सङ्कट हजार……

तेरे साहस पे वारी, तुझ पर प्यारे बलिहारी।

तू था ऋषियों की तान, दुनिया जाने यह सारी।।

तजकर सारे सुखसाज, कीन्हा जीवन सञ्चार…..

युग ने करवट जो बदली, काँपे सारे अन्यायी।

रोते देखे मिर्जाई, तर गई तेरी तरुणाई।।

आई बनकर वरदान, तीखी छुरियों की धार…..

तेरा सुनकर सिंहनाद, जागे जो ये अरमान।

शत्रु हो गये हैरान, आई जाति में जान।।

परहित जीना मरना, तेरे जीवन का सार……..

तेरा ऋण कितना भारी, जग के सच्चे हितकारी।

करते याद नर-नारी, चावापायल१ की गाड़ी।।

चलती गाड़ी से कूदे, लेकर उर में अंगार……

पथिक! निराली देखी, तेरी वीरों में शान।

करते मिलकर गुणगान, करते हम सब अभिमान।।

देता जन-जन को जीवन, तेरा निर्मल आचार…..

रहना सेवा में तत्पर, चाहे दिन हो या रात।

हम हैं मस्तक झुकाते, सुन-सुन तेरी हर बात।।

भूलें कैसे? प्यारे! तेरा दलितों से प्यार…….

स्वामी श्रद्धानन्द शूर, जिनके मुखड़े पे नूर।

‘नाथू’२ ‘तुलसी’३ खोजें तेरे चरणों की धूर।।

बोले खंजर की धार, तेरा फूले परिवार…….

कर दो जाति के वीरो, उसके सपने साकार।

करके तन, मन, बलिदान, करिये सबका उद्धार।।

आओ गायें ‘जिज्ञासु’, गूँजे सारा संसार……..।

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