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हदीस : अल-अज़्ल

अल-अज़्ल

मैथुन-विच्छेद अर्थात् वीर्यपात के पूर्व लिंग को योनि से बाहर निकालने की अनुमति है, पर अगर इसका उद्देश्य गर्भाधान से बचना हो, तो यह व्यर्थ है। क्योंकि गर्भाधान तो अल्लाह के हाथ की बात है। अबू सिरमा बतलाते हैं-”हम रसूल अल्लाह के साथ चढ़ाई पर गये ….. और कुछ बढ़िया अरब औरतों को (हमने) पकड़ लिया, और हमने उनकी कामना की ….. पर हम उनकी छुड़ाई (रिश्तेदारों द्वारा दिया गया बदले का धन) भी चाहते थे। इसलिए हमने उनके साथ मैथुन किया लेकिन अज़्ल निभाया।“ उन्होंने मुहम्मद से सलाह ली, और उन्होंने सलाह दी-”अगर तुम ऐसा करते हो तो कोई फर्क़ नहीं पड़ता, क्योंकि कयामत के रोज़ तक जिस भी जीवात्माको पैदा होना है, वह पैदा होगा ही“ (3371)।

author : ram swarup

 

लो चने! भूख लगी होगी

लो चने! भूख लगी होगी

श्रीयुत यज्ञेन्द्र जी होशंगाबाद एक बार रतलाम क्षेत्र में पूज्य पं0 देवप्रकाश जी के संग दिनभर बनवासी भाइयों में प्रचारार्थ ग्रामों में घूमते रहे। सायंकाल को दोनों रतलाम को लौटे। दिन भर कहीं भी खाने को कुछ भी न मिला। भूख तो दोनों को लगी हुई थी। यज्ञेन्द्र जी तब जवान थे अतः उनको कड़क भूख लगी हुई थी।

पण्डित जी ने अपने झोले में से भूने हुए चने निकालकर यज्ञेन्द्र जी से कहा, ‘‘लो! भूख लगी होगी। ये चने चबाते हुए चलो।

रतलाम पहुँच कर भोजन मिल ही जाएगा।’’ यह संस्मरण श्री यज्ञेन्द्र ने नागपुर में लेखक को सुनाया।

 

hadees : ZAINAB BINT JAHSH

ZAINAB BINT JAHSH

Here we shall mention another Zainab, whose affair was not cruel but scandalous.  She was the wife of Muhammad�s adopted son, Zaid, and therefore, in the eyes of the Arabs, as good as his own daughter-in-law.  Muhammad went to her house when her husband was away, saw her in a state of seminudeness, and was aroused.  When Zaid heard about it, he offered to divorce her, but Muhammad, fearing a public scandal, told him to keep his wife for himself.  At this point Allah spoke and decided the matter (QurAn 33:36-40).  He chided Muhammad for telling Zaid, �Retain thou in wedlock thy wife,� and for hiding in his heart �that which God was about to make manifest.� Allah told Muhammad: �Thou feared the people, but it is more fitting that thou should fear God�; and He revealed His plan, present and future, to Muhammad thus: �We joined her in marriage to thee, in order that in future there may be no difficulty to the believers in the matter of marriage with the wives of their adopted sons.� He now also addressed Himself to the Muslims of all generations: �It is not fitting for a believer, man or woman, when a matter has been decided by God and His Apostle to have any option about their decision.  If anyone disobeys God and His Apostle, he is indeed clearly on a wrong path.�

Thus reassured, Muhammad made Zaid himself go to his wife with his marriage proposal.  �Allah�s Messenger said to Zaid to make a mention to her about him� (3330).  The marriage ordered from above was celebrated with unusual festivity.  �Allah�s Messenger gave no better wedding feast than the one he did on the occasion of his marriage with Zainab� (3332).

author : ram swarup

हदीस : औरतों के अधिकार

औरतों के अधिकार

दूसरी तरफ, औरत के भी अपने अधिकार हैं। कानून के अनुसार वह भरण-पोषण (नफाक़ह) की हकदार है। अगर पति उसे यह मुहैया न करे, तो वह तलाक ले सकती है। यह दहेज़ (महर) की भी हक़दार है, जिसको कुरान की कुछ आयतों (4/24, 33/50) में ”किराया“ (उजूरत) कहा गया है। वह तलाक़ के बाद उसका दावा कर सकती है।

 

पति की पसंद के बारे में औरत से भी सलाह ली जानी चाहिए। ”एक औरत जिसकी पहले शादी हो चुकी हो (सय्यिव) उसका अपने आप पर बनिस्वत अपने अभिभावकों के अधिक अधिकार है और कुंवारी से भी सलाह ली जानी चाहिए। और उसकी मौन उसकी मंजूरी का द्योतक है“ (3307)। सैद्धांतिक रूप से एक मुस्लिम औरत को अपनी शादी तय करने का खुद अधिकार है। पर व्यवहार में उसके नजदीकी रिश्तेदार, उसके अभिभावक (वली) ही शादी तय करते हैं। पिता और दादा को तो ”बाध्यकारी वली“ कहा जाता है अर्थात् उनका फैसला टाला नहीं जा सकता। कुछ मीमांसकों के अनुसार, पिता या दादा के सिवाय किसी अन्य अभिभावक द्वारा यदि किसी नाबालिग लड़की का विवाह कर दिया गया हो, तो बालिग होने पर वह विवाह-विच्छेद की मांग कर सकती है।

 

  1. अहादीस के अनुसार, यह आयत इसलिये नाज़िल हुई आदमी औरतों के साथ अप्राकृतिक मैथुन करते थे। सही बुखारी में लिखा है-”इब्त उमर से यह रवायत पहुंची है के आज आदमी औरतों से अगलाम करते थे। उन के बारे में यह आयत नाजिल हुई।“ तिरमिजी एक अन्य हदीस का हवाला देकर कहते हैं कि यह आयत उमर (जो बाद में खलीफा बने) के उद्धार के लिए उतरी। ”हजरत इब्न अबास फरमाते हैं के हजरत उमर रसूल-अल्लाह के पास आए और अर्ज किया-या रसूल ! मैं हलाक हो गया ! रसूल ने पूछा क्यों। उमर ने अर्ज किया-रात को मैंने अपनी सवारी का रूख बदल दिया। फिर हुजूर पर यह आयत नाजिल हुई।“ (जिल्द 2, पृ0 160)।

author : ram swarup

वे इतने सादगी पसन्द थे

वे इतने सादगी पसन्द थे

पण्डित श्री शान्तिप्रकाशजी से कहा गया कि अब तो टीनोपाल का युग आ गया है। आप अपने कपड़ों को नील ही लगा लिया करें। बड़ी सरलता से उज़र दिया कि इससे मेरे स्नेही पुराने आर्यभाइयों को कष्ट होगा। पूछा गया-‘पण्डितजी! इससे आर्यों को कैसे कष्ट पहुँचेगा?’’ पण्डित शान्तिप्रकाशजी शास्त्रार्थमहारथी बोले,‘‘सब लोग मुझे इसी वेशभूषा में पहचानते हैं। मुझे दूर से आताजाता देखकर आर्यलोग मेरी पीठ देखकर ही जान लेते हैं कि शान्तिप्रकाश आ गया। इसलिए मैं नील-वील के चक्कर में नहीं पड़ूंगा। मित्रों से इतना ह्रश्वयार? इतनी सादगी! वे कितने महान् थे!

HADEES : RIHANA AND JUWAIRIYA

RIHANA AND JUWAIRIYA

SafIyya was no exception.  Many other women, among them RIhAna and JuwairIya, were taken in and treated as part of the war booty.  RIhAna was a Jewish girl of the BanU Quraizah.  After her husband was beheaded in cold blood along with eight hundred other male members of her tribe in the genocide at Medina, Muhammad kept her as his concubine.  We shall touch upon this massacre again in our discussion of jihAd.

JuwairIya, another of these unfortunate girls, was the daughter of the chief of the Banu�l Mustaliq.  She was captured in the fifth or sixth year of the Hijra along with two hundred other women.  �The Messenger of Allah made a raid upon BanU Mustaliq while they were unaware and their cattle were having a drink at the water.  He killed those who fought and imprisoned others.  On that very day, he captured JuwairIya bint al-HAris� (4292).

In the division of the booty, she fell to the lot of SAbit ibn Qays.  He set her ransom price at nine ounces of gold, beyond the power of her relatives to pay.  �Aisha�s reaction when she saw this beautiful girl being led into the presence of Muhammad is recounted in these words: �As soon as I saw her at the door of my room, I detested her, for I knew that he [Muhammad] would see her as I saw her.� And indeed, when Muhammad saw JuwairIya he paid her ransom and took her for his wife.  JuwairIya was at that time about twenty, and she became the seventh wife of the Prophet.  The whole story is given by Ibn IshAq, the Prophet�s biographer.

There was another girl, named Zainab, again Jewish, who had seen her father, husband, and uncle killed.  She poisoned the roasted lamb she was ordered to prepare for Muhammad.  Suspecting something wrong, Muhammad spat out the very first morsel.  He was saved, and she was immediately put to death, according to some authorities (TabaqAt, vol. II, pp. 252-255).

author : ram swarup

सच्ची रामयण का खंडन भाग-१७

सच्ची रामयण का खंडन भाग-१७*
*अर्थात् पेरियार द्वारा रामायण पर किये आक्षेपों का मुंहतोड़ जवाब*
*-कार्तिक अय्यर*
नमस्ते मित्रों! आगे पेरियार साहब के साक्षी आयंगर साहब के आक्षेपों का उत्तर गतांक से आगे-
*आक्षेप-२१-प्रश्न-७-* इन पापों ने दशरथ द्वारा भारत को गति देने के असंभव वचनों को निरस्त कर दिया।
*समीक्षा-* कृपया बताइए कि महाराज दशरथ ने कौन से पाप कर दिए ? क्या कह कई को इनाम के रूप में वरदान देना पाप है ? क्या कहती का परंपरा के विरुद्ध मूर्खतापूर्ण और स्वार्थपूर्ण वरदान मांगना  पाप नहीं था।सच कहो तो यह नहीं कहा जा सकता कि उनके लिए वचन निरस्त हो गए क्योंकि श्रीराम ने फिर भी अपने पिता को सच्चा साबित करने के लिए भारत का राज्य ग्रहण और वनवास स्वीकार कर लिया। राजा दशरथ के असंभव वचनों को श्री राम ने संभव करके दिखा दिया।
*आक्षेप-२२-प्रश्न-८-* वशिष्ठ ने परामर्श दिया था कि इक्ष्वाकु वंशी य परंपरा अनुसार परिवार के जेष्ठ पुत्र को राजगद्दी मिलनी चाहिए किंतु कैकई के प्रेम में पागल दशरथ ने
उस परामर्श को लात मारकर अलग कर दिया।
*समीक्षा-* यह सत्य है कि महाराज दशरथ कैकई से बहुत प्रेम करते थे और यह भी सत्य है कि इक्ष्वाकु वंश की परंपरा के अनुसार परिवार का ज्येष्ठ पुत्र ही राजा बनता है इसीलिए कैकई का वरदान मांगना अनुचित था। सच कहें तो महाराज दशरथ ने अपने वंश की परंपरा को लात मार कर अलग नहीं किया था वह तो अंत तक कैकई से कहते रहे कि यह वरदान देने में मैं असमर्थ हूं क्योंकि उन्होंने श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा भरी सभा में की थी और उसके विरुद्ध कैकेई ने वरदान मांग ली है। जब श्रीराम महाराज दशरथ और कैकई से मिलने गए थे तब कह के ही नहीं वरदान की बात श्रीराम से कही थी और कहा था कि महाराज ने तुमको 14 वर्ष का वनवास दिया है;श्रीराम ने बहुत अच्छा कहकर आज्ञा शिरोधार्य कर ली।महाराज दशरथ अंत तक श्री राम के वनवास का विरोध करते रहे उन्होंने कैकेई को समझाने की कोशिश की उसको कई दुर्वचन भी कहे किंतु वह अपनी बात से नहीं डिग्गी और अंततः श्री राम ने अपने पिता को सत्य सिद्ध करने के लिए वनवास स्वीकार कर लिया। इस प्रकार से महाराज दशरथ को आप प्यार में अंधा है पागल नहीं कह सकते इक्ष्वाकु वंश की परंपरा यह भी थी भले ही प्राण चले जाएं किंतु दिया हुआ वचन खाली नहीं जाना चाहिए राज्य अभिषेक की घोषणा से बढ़ कर दिया हुआ वचन था इसलिए घोषणा से ऊपर वचन को माना गया।
*आक्षेप-२३-प्रश्न-९-* दशरथ को अपनी मूर्खता का प्रायश्चित तथा कुछ मूल्य चुकाना चाहिए था; इसके विपरीत उसने कैकई को श्राप दिया।
*समीक्षा-* हम चकित है कि कैकेई के पारितोषिक रूप में उसे दिए गए दो वरदानों को आप पागलपन और मूर्खता कैसे बता रहे हैं ।वरदान देना महाराज दशरथ का कर्तव्य था और वरदान मांगना कैकई का अधिकार था। कैकई ने रघु कुल की परंपरा के विरुद्ध प्रजा महाराज जनपत राजाओं की इच्छाओं के विरुद्ध वरदान मांगा ।उसको सत्य सिद्ध करने के लिए श्री राम वनवास को चले गए अपने पुत्र का वियोग सहन कर लिया क्या महाराज दशरथ ने कम मूल्य चुकाया? महाराज दशरथ ने घोषणा के विरुद्ध श्री राम को वनवास दे दिया कैकई को प्रसन्न करने के लिए भारत को सिंहासन दे दिया। क्या महाराज दशरथ ने अपने वचन पूरे करके भी कम मूल्य चुका है सच कहें तो कैकई को मूर्खतापूर्ण वरदान मांगने के लिए प्रायश्चित करना था परंतु उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और आप ऐसे महिला की तरफदारी कर रहे हैं आपकी बुद्धि पर शोक करने के अलावा और क्या किया जा सकता है।
*आक्षेप-२४-प्रश्न-१०-* वह भूल गया कि मैं कौन और क्या हूं तथा मेरी स्थिति क्या है और कैकई के पैरों पर गिर पड़ा।पड़ा।
*समीक्षा-* महाराज दशरथ को अपनी गरिमा का पूरा ध्यान था ।कैकेई से वार्तालाप करते समय वह एक चक्रवर्ती राजा नहीं ,अपितु एक पति थे। पति-पत्नी एक-दूसरे के आधे शरीर माने जाते हैं ।यदि महाराज दशरथ ने कैकई के चरण छू भी लिए तो इस पर आपको क्या तकलीफ है? मुहावरे के रूप में कहा जाता है कि “मैं तेरे हाथ जोड़ता, हूं तेरे पैर पड़ता ह”ूं पर सच में कोई हाथ पांव नहीं पड़ता।यहां भी मुहावरे दार भाषा ही समझनी चाहिये और महाराज ने कैकई के चरण पकड़ भी रही है तो इसमें कोई दोष नहीं एक तरफ तो आप लोग महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते हैं और जब महाराज दशरथ अपनी पत्नी के चरणों में झुक कर महिला उत्थान कर रहे है तो उनको नामर्द बताते हैं इस दोगलेपन के लिए क्या कहा जाए!
*आक्षेप-२५-प्रश्न-११-* सुमंत्र और वशिष्ठ दशरथ के वचनों से अवगत थे। कैकेई के प्रति के वचनों की ओर संकेत कर सकते थे ।दशरथ को सचेत कर डालते थे। राम को राजगद्दी ना देने का परामर्श देसकते थे।- पर उन्होंने ऐसा नहीं किया
*समीक्षा-* यह स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि कैकेई के प्रति दिए गए वचन के बारे में महर्षि वशिष्ठ और सुमंत्र को पता था। यदि मान भी लें तो भी महाराज दशरथ को सचेत करके वह क्या कर सकते थे? उनको थोड़े मालूम था कि कैकेयी उनसे श्री राम का वनवास और भरत के लिये राज्य मांग लेगी। आपका प्रश्न ही मूर्खतापूर्ण है !कैकेयी कुछ और भी मांग सकती थी।
और वशिष्ठ और सुमंत्र श्रीराम को राजगद्दी ना देने का परामर्श भला किसलिए करेंगे ?ऊपर आप ही स्वीकार कर चुके हैं कि इक्ष्वाकु कुल की परंपरा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र को राज्य मिलता था और केकई के पिता को महाराज दशरथ ने उससे उत्पन्न पुत्र को राजगद्दी देने का कोई वचन नहीं दिया यह हम पहले आक्षेप के उत्तर में ही सिद्ध कर चुके हैं। तो इस प्रकार का परामर्श वे महाराज दशरथ को कैसे दे सकते थे? वैसे भी वचन तो दशरथ ने दिए थे,उन्हें पूर्ण करने का दायित्व उनका था यहां वशिष्ठ और सुमंत्र भला क्या कर सकते थे? इस विषय में हस्तक्षेप करने का उन्हें क्या अधिकार था? आप का तो प्रश्न ही अशुद्ध है ।लगता है भंग की तरंग में ही यह प्रश्न लिख मारा है।
*आक्षेप-२६-प्रश्न-१२-* वशिष्ठ ने जो कि ,भविष्यवक्ता थे राम राज्य- तिलकोत्सव के शुभ-अवसर  को शीघ्रता से निश्चय कर दिया-यद्यपि वह भलीभांतु जानता था ,कि यह योजना निष्फल हो जायेगी।
*समीक्षा-* आयंगर साहब कितने बेतुके आक्षेप लगा रहे हैं हम इस बात पर आश्चर्य चकित हैं!” वशिष्ठ जी भविष्यवक्ता थे और वे जानते थे कि राज्याभिषेक की तैयारी निष्फल हो जाएगी”- जरा बताइए कि वाल्मीकि रामायण में इसका उल्लेख कहां है ?बिना प्रमाण दिये सुनी-सुनाई बात लिख मारी।सच कहें तो वाल्मीकि रामायण में इस बात की गंध तक नहीं है। यह महाशय का अपने घर का गपोड़ा है।यह ते सत्य है कि ज्योतिष और पदार्थ विद्या  द्वारा सूर्य-ग्रहण,मौसम,ऋतुचक्र,दैवीय आपदाआदि का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है,परंतु किसी का भविष्य देखना सर्वथा असंभव और निराधार गप्प है।वाल्मीकि रामायण में इसका वर्णन न होने से आक्षेप निर्मूल सिद्ध हुआ।
*आक्षेप-२७-प्रश्न-१३-* कैकेई अपना न्याय संगत स्वत्व  एवं अधिकार मांगती रही किंतु सिद्धार्थ सुमंत्र और वशिष्ठ उसे विपरीत परामर्श देने उसके पास दौड़ गए। इस पर निष्फल होने पर उन्होंने उसे फटकारा।
*समीक्षा-* यह सत्य है कि महाराज दशरथ से वरदान मांगना कैकेई का अधिकार था, किंतु उसका प्रजा की रुचि के और रघु कुल की परंपरा के विरुद्ध वरदान मांगना अनुचित था। सिद्धार्थ सुमंत्र और महर्षि वशिष्ठ ने कैकेई को यही बात समझाने का प्रयास किया कि रघु कुल की परंपरा के विरुद्ध श्री राम को वनवास और भारत को राज्य देना गलत है ।परंतु मूढ़मति कैकेयी फिर भी ना मानीऔर इस कारण केवल उन तीनों ने ही नहीं ,अपितु सारी प्रजा ने कैकई को धिक्कारा हम इन तीनों को दोषी मान सकते हैं पर क्या आप अयोध्या की जनता भी दोषी है?जो स्त्री अपने अधिकृत वचनों का अनैतिक और अनुचित प्रयोग करेगी,उसका इसी प्रकार तिरस्कार किया जायेगा।ऐसी किसी स्त्री को कोई फूलमाला न पहनावेगा।
क्रमशः…….
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मित्रों! अगली पोस्ट में अंतिम ७ आक्षेपों का उत्तर देकर *दशरथ महाराज* विषय का समापन करेंगे और उसके बाद श्रीराम पर लगे आक्षेपों का खंडन करेंगे।
आप लोगों का हमारी लेख श्रृंखला को पसंद एवं शेयर करने के लिये हमारी ओर से बहुत-बहुत आभार।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की जय।
योगेश्वर कृष्ण चंद्र जी की जय।
।।ओ३म्।।
नोट : इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आर्यमंतव्य  टीम  या पंडित लेखराम वैदिक मिशन  उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. |

हदीस : पति के अधिकार

पति के अधिकार

 

मैथुन के मामले में एक पति को अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है। ”तुम्हारी बीवियां तुम्हारे द्वारा जोती जाने वाली जमीनें हैं; तुम जितनी बार चाहो उन्हें जोत सकते हो“ (3363)। यहां विचार कुरान में भी पाया जाता है (2/223)। इसी प्रकरण की एक अन्य हदीस हमें बतलाती है कि कोई पति ”यदि वह चाहे तो बीवी के साथ सामने से या पीछे से किसी भी प्रकार मैथुन कर सकता है। किन्तु मैथुन एक ही छेद में होना चाहिए“ (3365)। टीकाकार हमें समझाते हैं कि यहां आशय सिर्फ योनि से है।1

 

  1. क्या इस निषेध का पैगम्बर की जिन्दगी की किसी घटना से ताल्लुक है ? जब उन्होंने अबू बकर की बेटी आयशा से शादी की तो अबू बकर को उम्मीद थी कि मुहम्मद अपनी बेटी फातिमा उनको ब्याह देंगे। पर मुहम्मद ने जवाब दिया-”मैं एक इलहाम के इंतजार में हूं।“ जब अबू बकर ने ये शब्द उमर को सुनाए, तो उमर बोले-”उन्होंने तुम्हारी दरख्वास्त नामंजूर कर दी“ (मीरखोंद, रौजत अस-सफा, जिल्द 1, भाग 2 पृष्ठ 269)

 

  1. हमें बतलाया जाता है कि यह निर्देश तलाक को निरूत्साहित करने के लिए दिया गया था। क्योंकि फिर से सहवास लगाव होने के कारण लोग तलाक को सहज समझने लगे थे। किसी भी जोड़ी को यह समझ लेना चाहिए कि शादी का रिश्ता गम्भीर बात है और उसे तोड़ने के पहले दो बार (दरअसल तीस बार) विचार करना चाहिए। लेकिन मनुष्य प्रगल्म प्राणी है और वह अल्लाह की मरजी को उलटता रहता है। नये विधान ने दूसरी ही तरह की कुरीति को जन्म दिया। इससे एक अस्थायी पति बनाने की परम्परा पड़ी। पहला पति किसी कुरूप पुरुष को किराए पर लेकर यह व्यवस्था करने लगा कि उसके साथ किया गया विवाह औरत को न भाए और नई शादी जल्दी टूट जाए।

 

बीबी का फर्ज़ है कि वह पति के सभी प्रस्तावों के प्रति अनुकूल रहे। ”जब एक औरत अपने पति के बिस्तर से दूर रात बिताती है, तो फरिश्ते सवेरे तक उसे शाप देते रहते हैं“ (3366)।

 

author : ram swarup

मैं तो भिक्षा का भोजन ही करूँगा

मैं तो भिक्षा का भोजन ही करूँगा

हमारे ऋषियों ने जीवन-निर्माण के लिए कई ऐसे आदेशनिर्देश दिये हैं, जिनका पालन करना तो दूर रहा, आज के भौतिकवादी युग में उनकी गौरवगरिमा को समझना ज़ी हमारे लिए कठिन हो

गया है। ब्रह्मचारी भिक्षा माँगकर निर्वाह करे और विद्या का अज़्यास करे, यह भी एक आर्ष आदेश है। अब बाह्य आडज़्बरों से दबे समाज के लिए यह एक हास्यास्पद आदेश है फिर भी इस युग में आर्यसमाज के लौहपुरुष स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी, स्वामी वेदानन्दजी से लेकर स्वामी सर्वानन्द जी ने भिक्षा माँगकर अनेक विद्यार्थियों को विद्वान् बनाया है। दीनानगर दयानन्द मठ में अब भी एक समय भिक्षा का भोजन आता है।

जब पं0 ब्रह्मदज़जी ‘जिज्ञासु’ पुल काली नदीवाले स्वामी सर्वदानन्दजी महाराज के आश्रम में पढ़ाते थे तो आप ग्रामों से भिक्षा माँगकर लाते थे। दोनों समय भिक्षा का अन्न ही ग्रहण किया करते थे। वीतराग स्वामी सर्वदानन्दजी ने कई बार आग्रह किया कि आप आश्रम का भोजन स्वीकार करें, परन्तु आपका एक ही उज़र होता था कि मैं तो ऋषि की आज्ञानुसार भिक्षा का ही भोजन करूँगा।

कितना बड़ा तप है। अहंकार को जीतनेवाला कोई विरला महापुरुष ही ऐसा कर सकता है। दस वर्ष तक श्री स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी महाराज श्रीमद्दयानन्द उपदेशक विद्यालय लाहौर के आचार्य

पद को सुशोभित करते रहे परन्तु एक बार भी विद्यालय का भोजन ग्रहण नहीं किया। भिक्षा का भोजन करनेवाले इस आचार्य ने पण्डित रामचन्द्र (स्वामी श्री सर्वानन्दजी) व पण्डित शान्तिप्रकाश जी शास्त्रार्थ महारथी जैसे नररत्न समाज को दिये। पण्डित ब्रह्मदज़जी ‘जिज्ञासु’ ने पूज्य युधिष्ठिरजी मीमांसक- जैसी विभूतियाँ मानवसमाज को दी हैं। हम इन आचार्यों के ऋण से

मुक्त नहीं हो सकते। पण्डित हरिशंकर शर्माजी ने यथार्थ ही लिखा है-

निज उद्देश्य साधना में अति संकट झेले कष्ट सहे। पर कर्ज़व्य-मार्ग पर दृढ़ता से वे अविचल अड़े रहे॥

hadees : MUHAMMAD�S MARRIAGES

MUHAMMAD�S MARRIAGES

Some incidents relating to the Prophet�s marriages with SafIyya (3325-3329) and Zainab hint Jahsh are mentioned (3330-3336).

SAFIYYA

Muhammad�s wars and raids not only fed his coffers, they also swelled his harem.  SafIyya, a beautiful girl of seventeen years, was the wife of the chief of a Jewish clan inhabiting Khaibar.  Muhammad�s custom was to make surprise attacks.  Khaibar was invaded in the same fashion.  Anas narrates: �We encountered the people at sunrise when they had come out with their axes, spades and strings driving their cattle along.  They shouted in surprise: Muhammad has come along with his force!  The Messenger of Allah said: Khaibar shall face destruction� (4438).  There is even a QurAnic verse relating to Muhammad�s sudden sweep on the valley and the fate of its people: �But when it descends [nazala] into the open space, before them evil will be the morning for those who were warned� (QurAn 37:177).  

In any case, many people were butchered, and many others were taken prisoners.  �We took Khaibar by force, and there were gathered the prisoners of war,� according to Anas.  SafIyya, the daughter of Huyayy b. Akhtab, the chief of the Quraiza and al-NazIr, was one of them.  Her husband, KinAna, was put to a cruel death (3325).

Anas continues: �She first fell to the lot of Dihya in the spoils of war.� (Incidentally, Dihya was strikingly handsome.  Muhammad used to see Gabriel in his form.) But Anas adds that people �praised her in the presence of Allah�s Messenger and said: �We have not seen the like of her among the captives of war� � (3329).  Muhammad took her away from Dihya, Gabriel or no Gabriel, and even took her to his bed the same night her husband was killed, in violation of his own command, which enjoined the believers to wait until the beginning of the next menstrual cycle in their captive women.

author : ram swarup