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लो चने! भूख लगी होगी

लो चने! भूख लगी होगी

श्रीयुत यज्ञेन्द्र जी होशंगाबाद एक बार रतलाम क्षेत्र में पूज्य पं0 देवप्रकाश जी के संग दिनभर बनवासी भाइयों में प्रचारार्थ ग्रामों में घूमते रहे। सायंकाल को दोनों रतलाम को लौटे। दिन भर कहीं भी खाने को कुछ भी न मिला। भूख तो दोनों को लगी हुई थी। यज्ञेन्द्र जी तब जवान थे अतः उनको कड़क भूख लगी हुई थी।

पण्डित जी ने अपने झोले में से भूने हुए चने निकालकर यज्ञेन्द्र जी से कहा, ‘‘लो! भूख लगी होगी। ये चने चबाते हुए चलो।

रतलाम पहुँच कर भोजन मिल ही जाएगा।’’ यह संस्मरण श्री यज्ञेन्द्र ने नागपुर में लेखक को सुनाया।