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क्या वाकई ताजमहल है एक शिव मंदिर तेजोमहालय…..

क्या वाकई ताजमहल है एक शिव मंदिर तेजोमहालय…..

कुछ इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने मुमताज के लिए बनवाया था। उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया…

क्या वाकई ताजमहल है एक शिव मंदिर तेजोमहालय.....

नई दिल्ली: अगर हम आपसे पूछें कि ताजमहल मकबरा है या मंदिर तो आप चकरा जाएंगे। यही सवाल एक आम आदमी ने सरकार से पूछ लिया है। सरकार ने जबाव नहीं दिया तो इस व्यक्ति ने सूचना के अधिकार के तहत चीफ इन्फोर्मेशन कमिश्नर से शिकायत कर दी। अब CIC ने भारत सरकार से पूछा है कि वो बताए कि ताजमहल मंदिर है या मकबरा। इस सवाल ने करीब पांच सौ सालों से दबे इस विवाद को फिर जिन्दा कर दिया है। इतिहास की किताबों में तो यही दर्ज है कि दुनिया की ये अज़ीम और दिलकश इमारत मुगल बादशाह शाहजहां की बेगम मुमताज महल की कब्र है। इसको लेकर दशकों से बहस चली आ रही है। हर इतिहासकार अलग-अलग दावे करता है लेकिन सच पर सस्पेंस बरकरार है।

कुछ इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने मुमताज के लिए बनवाया था। उनका मानना है कि ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बनवाया था वह तो पहले से बना हुआ था। उसने इसमें हेर-फेर करके इसे इस्लामिक लुक दिया था। इतिहासकार पुरुषोत्त ओक ने अपनी किताब में लिखा है कि ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने के कई सबूत मौजूद हैं।

क्या वाकई ताजमहल है शिव मंदिर तेजोमहालय या एक कब्रगाह?

-मुख्य गुम्बद के किरीट पर जो कलश है वह हिन्दू मंदिरों की तरह है। यह शिखर कलश शुरू में स्वर्ण का था और अब यह कांसे का बना है। आज भी हिन्दू मंदिरों पर स्वर्ण कलश स्थापित करने की परंपरा है। यह हिन्दू मंदिरों के शिखर पर भी पाया जाता है।

-इस कलश पर चंद्रमा बना है। अपने नियोजन के कारण चन्द्रमा एवं कलश की नोक मिलकर एक त्रिशूल का आकार बनाती है, जो कि हिन्दू भगवान शिव का चिह्न है। इसका शिखर एक उलटे रखे कमल से अलंकृत है। यह गुम्बद के किनारों को शिखर पर सम्मिलन देता है।

-इतिहास में पढ़ाया जाता है कि ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 में शुरू और लगभग 1653 में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। अब सोचिए कि जब मुमताज का इंतकाल 1631 में हुआ तो फिर कैसे उन्हें 1631 में ही ताजमहल में दफना‍ दिया गया, जबकि ताजमहल तो 1632 में बनना शुरू हुआ था।

taj_mahal_vedic_siva_temple

-दरअसल 1632 में हिन्दू मंदिर को इस्लामिक लुक देने का कार्य शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशी गईं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्‍दू शैली का छोटे गुम्‍बद के आकार का मंडप है और अत्‍यंत भव्‍य प्रतीत होता है।

-ताजमहल के गुम्बद पर जो अष्टधातु का कलश खड़ा है वह त्रिशूल आकार का पूर्ण कुंभ है। उसके मध्य दंड के शिखर पर नारियल की आकृति बनी है। नारियल के तले दो झुके हुए आम के पत्ते और उसके नीचे कलश दर्शाया गया है। उस चंद्राकार के दो नोक और उनके बीचोबीच नारियल का शिखर मिलाकर त्रिशूल का आकार बना है। हिन्दू और बौद्ध मंदिरों पर ऐसे ही कलश बने होते हैं।

-ओक की पुस्तक के अनुसार ताजमहल के हिन्दू निर्माण का साक्ष्य देने वाला काले पत्थर पर उत्कीर्ण एक संस्कृत शिलालेख लखनऊ के वास्तु संग्रहालय में रखा हुआ है। यह सन् 1155 का है। उसमें राजा परमर्दिदेव के मंत्री सलक्षण द्वारा कहा गया है कि ‘स्फटिक जैसा शुभ्र इन्दुमौलीश्‍वर (शंकर) का मंदिर बनाया गया। (वह इ‍तना सुंदर था कि) उसमें निवास करने पर शिवजी को कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही। वह मंदिर आश्‍विन शुक्ल पंचमी, रविवार को बनकर तैयार हुआ।

-हिन्दू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाए जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है, जो कि शिव मंदिर के लिए एक उपयुक्त स्थान है। शिव मंदिर में एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में दो शिवलिंग स्थापित करने का हिन्दुओं में रिवाज था, जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर में देखा जा सकता है। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर की मंजिल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज का बताया जाता है।

-ताज के दक्षिण में एक प्राचीन पशुशाला है। वहां पर तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है।

-ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं, जो कि हिन्दू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है। ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। हिन्दू मंदिरों के लिए गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है।

-ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुए हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दीये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था।

ताजमहल मकबरा है या शिवालय इसका सही जबाव तभी मिल सकता है जब सरकार ताजमहल के बंद दरवाजों को इतिहासकार और रिसर्च्स के लिए खोले। देश विदेश के एक्सपर्ट्स और मार्डन साइंस के जरिए इस सवाल का जवाब ढूंढना ही सही तरीका है।

source : http://www.khabarindiatv.com/india/national-was-the-taj-mahal-originally-an-ancient-shiv-temple-tejo-mahalay-526528

हदीस : जिस औरत से तुम शादी करना चाहते हो उस पर एक नज़र डालो

जिस औरत से तुम शादी करना चाहते हो उस पर एक नज़र डालो

जिस औरत से शादी की चाह हो उस पर ”सर से पांव तक“ एक नजर डालने की इज़ाज़त है। एक मोमिन मुहम्मद के पास आया और कहने लगा कि उसने एक अंसार औरत से शादी तय की है और दहेज चुकाने में उनकी मदद चाहता है। मुहम्मद ने पूछा-”क्यार तुमने उस पर एक नजर डाली है, क्योंकि अंसारों की आंखों में कुछ बात है ?“ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “हां“। मुहम्मद ने पूछा, ”कितना दहेज देकर शादी की ?“ उस आदमी ने जवाब दिया, ”चार ऊकिया देकर।“ मुहम्मद बोले-”चार ऊकिया ? लगता है जैसे तुमने पहाड़ की बाजू से चांदी खोद निकाली है। (इसलिए तुम इतना ज्यादा दहेज देने को तैयार हो)। तुम्हें देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है। यही एक सम्भावना है कि हम तुम्हें एक चढ़ाई पर भेज दें, जहां तुम्हें लूट का माल मिल जावे।“ उस व्यक्ति को वनू अब्स के खिलाफ चढ़ाई पर भेज दिया (3315)।

 

किन्तु यह इजाजत वस्तुतः एक अन्य घटना के समय दी गयी थी। उमरा नाम की एक अरब औरत, जाॅन नाम के व्यक्ति की बेटी थी। उस का ”चर्चा रसूल-अल्लाह के सामने किया गया।“ पैगम्बर उस समय तक अरब राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन चुके थे। इसलिए उन्होंने अबू उसैद नाम के अपने एक कर्मचारी को उस औरत के पास एक दूत भेजने का आदेश दिया। वह औरत लायी गयी और वह “वनू साइदा के किले में ठहरी।“ अल्लाह के रसूल बाहर गए और फिर भीतर जाकर उन्होंने उससे ”विवाह का प्रस्ताव“ किया। वह ”अपना सर नीचे झुकाये बैठी थी।“ दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुहम्मद ने उससे बातचीत की। वह बोली-”मैं तुमने बचने के लिए अल्लाह की शरण लेती हूं।“ तब तक पैगम्बर खुद एक फैसला कर चुके थे। उन्होंने उससे कहा-”मैंने तुम्हें अपने से दूर रखने का फैसला किया है।“ इसके बाद मुहम्मद अपने मेजवान के साथ जा बैठे और उससे बोले, “सह्ल ! हमें कुछ पिलाओ“ (4981)।

 

इस हदीस में ही शादी के लिए चुनी गई किसी औरत पर एक नजर डालने की इज़ाज़त की गयी है (टि0 2424)।

author :  ram swarup

धर्म धुन में मगन, लगन कैसी लगी!

धर्म धुन में मगन, लगन कैसी लगी!

कुछ वर्ष पूर्व की बात है। दयानन्द मठ दीनानगर के वयोवृद्ध -‘जिज्ञासु’ कर्मठ साधु स्वामी सुबोधानन्दजी ने देहली के लाला दीपचन्दजी के ट्रस्ट को प्रेरणा देकर सत्यार्थप्रकाश के प्रचार-प्रसार के लिए उन्हीं का साहित्य और उन्हीं का वाहन मँगवाया। स्वामीजी उस वाहन के साथ दूर-दूर नगरों व ग्रामों में जाते।

वर्षा ऋतु थी। भारी वर्षा आई। नदियों में तूफ़ान आ गया। बहुत सवेरे उठकर स्वामी सुबोधानन्द शौच के लिए खेतों में गये। लौट रहे थे तो मठ के समीप बड़े पुल से निकलकर गहरे चौड़े नाले में गिर गये। वृद्ध साहसी साधु ने दिल न छोड़ा। किसी प्रकार से उस बहुत गहरे पानी में से पुल के नीचे से निकल गये और बहुत दूर आगे जाकर जहाँ पानी का वेग कम था, बाहर निकल आये। पगड़ी गई, जूता गया। मठ में आकर वस्त्र बदले किसी को कुछ नहीं बताया। किसी और का जूता पहनकर वाहन के साथ अँधेरे में ही चल पड़े। जागने पर एक साधु को उसका जूता न मिला। बड़े आश्चर्य की बात थी कि रात-रात में जूता गया कहाँ? किसी को कुछ भी समझ में न आया। जब स्वामी श्री सुबोधानन्दजी यात्रा से लौटे तब पता चला कि उनके साथ ज़्या घटना घटी। तब पता लगा कि जूता वही ले-गये थे।

ऋषि मिशन के लिए जवानियाँ भेंट करनेवाले और पग-पग पर कष्ट सहनेवाले ऐसे प्रणवीरों से ही इस समाज की शोभा है। स्मरण रहे कि यह संन्यासी गज़टिड आफ़िसर रह चुके थे और

कुछ वर्ष तक आप ही हिमाचल प्रदेश की आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान थे। आइए! इनके पदचिह्नों पर चलते हुए हम सब ऋषि-ऋण चुकाने का यत्न करें।

HADEES : ZIHAR AND ILA�

ZIHAR AND ILA�

There were two other forms of separation not amounting to legal divorce prevalent among the Arabs at the time of Muhammad: zihAr and IlA�.  In zihAr, the husband vowed that his wife would be unto him as the back (zahr) of his mother and then stayed away from her for a specified period.  This was a customary vow of abstinence among the Arabs, and according to some traditions, Muslims also took it during the period of fasting.  The purpose of the abstinence could be penitential or devotional, or the vow might be taken in a fit of anger.  The same formula was also used as a form of divorce.  Muhammad condemned divorce by zihAr (QurAn 58: 1-5) and allowed a husband who had taken the vow to go back to his wife.  The broken vow could be expiated by making a kaffArah (literally, �that which covers a sin�), which in this case is either a fast for two months or the feeding of sixty poor men and women.

There was another form of separation called IlA� (�to swear�).  In this form, the husband swore an oath to abstain from sexual intercourse with his wife.  In the pre-Islamic period, the Arabs regarded IlA as a form of divorce, but it did not fully dissolve the marriage.  The oath of IlA was sometimes taken to penalize the wife and extort ransom from her.  Muhammad forbade this (QurAn 2:226).  A man who had taken such a vow was to go back to his wife without any blame to himself; if not, the marriage was ipso facto legally dissolved at the end of four months.  The broken vow could be expiated.  �When a man declares his wife as unlawful for himself that is an oath which must be atoned. . . . There is in the Messenger of Allah a model pattern for you� (3494-3495).

In due course, the two forms of separation died away in Islam.

author : ram swarup

हदीस : बीवियों के प्रति बर्ताव

बीवियों के प्रति बर्ताव

अगर किसी पुरुष की एक से ज्यादा बीवियां हों और वह अक्सर नई शादियां करता रहता हो तो जटिल समस्याएं सामने आती हैं। मसलन, एक समस्या यह उठती है कि नयी बीवी के साथ पति को कितनी रातें बितानी चाहिए। इसका समाधान है कि वह कुंवारी हो तो सात दिन और विधवा हो तो तीन दिन (3443-3449)।

 

मुहम्मद की बीवियों में से एक, उम्म सलमा, हमें बतलाती है कि जब मुहम्मद ने उससे शादी की तो उन्होंने उसके साथ तीन रातें बितायीं। जब वे जाने लगे तो उसने ”उनका पहनावा पकड़ लिया।“ पर पैगम्बर ने उससे कहा-”तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ एक हफ्ता रह सकता हूं, पर तब मुझे अपनी सभी बीवियों के साथ एक-एक हफ्ता रहना पड़ेगा“ (3443-3445)।

 

यद्यपि एक पति को अपनी बीवियों के बीच अपने दिन बराबर-बराबर बांट देने चाहिए, तथापि अगर कोई बीवी चाहे तो अपने हिस्से का दिन किसी दूसरी बीवी को दो सकती है। अहादीस (3451-3452) हमें बतलाती है कि सोदा बूढ़ी हो गई तो उसने अपने दिन आयशा को दे दिये। अतः रसूल-अल्लाह ने ”आयशा के लिए दो दिन तय किये“ (3451)।

 

किन्तु कई बार मुहम्मद खुद किसी बीबी से अपना दिन छोड़ देने को कहते थे। एक बीवी ने उनसे कहा-“अगर मेरे बस की बात होती तो मैं किसी और को अपने ऊपर तरजीह नहीं पाने देती“ (3499)।

 

आखिरकार पारी का नियम अल्लाह के एक विशेष विधान द्वारा खत्म कर दिया गया। ”तुम अपनी बीवियों में से, जिसकी चाहो उसकी बारी रद्द कर सकते हो और जिसे चाहो उसको अपने पास तलब कर सकते हो, और अगर तुम उसको अपने पास बुलाते हो जिसकी पारी तुम रद्द कर चुके हो तो इसमें कुछ बुराई नहीं“ (कुरान 33/51)। अल्लाह बहुत सुविधा देने वाला है। आयशा ने, जिसके फायदे के लिए वस्तुतः अल्लाह बोले थे, मुहम्मद पर फव्ती कसी-”ऐसा लगता है कि तुम्हारे अल्लाह तुम्हारी इच्छाएं तृप्त करने में बहुत त्वरा बरतते हैं (3453)।

author : ram swarup

आर्यों का इतना विरोध हुआ

आर्यों का इतना विरोध हुआ

उज़रप्रदेश के गंगोह नगर में 1884 ई0 में पण्डित लेखरामजी के पुरुषार्थ से आर्यसमाज स्थापित हुआ। 1896 ई0 में इसी गंगोहनगर में हरियाणा के करनाल नगर से एक बारात आई। कन्या

पक्षवाले आर्यसमाजी थे और वरपक्षवाले भी लगनशील आर्य थे।

दोनों पक्ष ब्राह्मण बरादरी से सज़्बन्धित थे। करनालवाले अपनी बारात में गंगोह के पोंगापन्थियों के लिए एक बला साथ ले-आये।

जिस नरश्रेष्ठ पण्डित लेखराम आर्यपथिक ने वहाँ धर्म का बीज आरोपित किया था, उसी वीर, सुधीर को वे अपने साथ लाये। पण्डित लेखरामजी के आगमन की सूचना पाकर गंगोह का

पोपदल बहुत सटपटाया। आर्यों का भयङ्कर विरोध हुआ। इतना विरोध कि उस दिन विवाह-संस्कार भी न हो सका। इतना कड़ा विरोध किया गया कि बारात को कन्यापक्ष से तो ज़्या बाज़ार में भी कुछ खाने को न मिल सके, ऐसे कुत्सित यत्न किये गये। लाहौर के व्यभिचारी गोपीनाथ (यह न्यायालय में गोमांस का दलाल और दुराचारी सिद्ध हुआ था) सनातनी नेता के एक हिन्दी-पत्र में सगर्व यह छपा था कि गंगोह में नाई-मोची तक ने आर्यों का बहिष्कार किया। पण्डित लेखरामजी ने इस प्रचण्ड विरोध की आंधी में भी वैदिक धर्म पर अपने ओजस्वी व खोजपूर्ण व्याज़्यान देने आरज़्भ किये। दज़्भदुर्ग ढहने लगे। किसी विरोधी को उनके सामने आने

का साहस न हुआ।

पण्डितजी के भाषणों से आर्यवीरों के हृदय में धर्मप्रेम की ऐसी बिजली समाविष्ट हो गई कि दो वर्ष पश्चात् पुनः एक कन्या के वेदोक्त विवाह के विरोध पर मुीभर आर्यवीरों ने अघ अज्ञान की

विशाल सेना पर पूर्ण विजय पाई। प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् स्वामी ब्रह्ममुनिजी महाराज का जन्म भी गंगोह के पास ही एक छोटे-से ग्राम में हुआ। यह रत्न इसी प्रचार का फल था। एक बात और यहाँ स्मरण रहे कि करनाल से वरपक्षवाले बारात में जाट, अग्रवाल आदि अन्य बरादरियों के आर्य युवकों को भी ले गये थे। यह भी तब एक अचज़्भे की बात थी।

hadees : THREE PRONOUNCEMENTS

THREE PRONOUNCEMENTS

The word talAq has to be pronounced three times before talAq becomes operative (3491-3493).  But opinions differ as to whether it has to be pronounced on three separate occasions, after three successive menses, or whether three times at one sitting is enough.  According to the translator, �traditions are not lacking in which three pronouncements at one sitting were held as irrevocable divorce even during the time of the prophet� (note 1933).

With such easy conditions of divorce, the limitation of wives to four at a time was not unduly self-denying.  Wives were constantly replaced.  �Abdar-RahmAn, a senior Companion, adviser, and friend of Muhammad, AbU Bakr, and �Umar, had children by sixteen wives besides those from concubines.  Somewhat later, Hasan, the son of �AlI and grandson of Muhammad, married seventy-some say ninety-times.  People in his day called him the Divorcer.

It is no wonder that women had no sanctity.  Wives could be easily disposed of by gifting or divorce.  For example, on emigrating to Medina, �Abdar-RahmAn was adopted by Sa�d, son of RabI, as a brother in faith-in accordance with the arrangement made by Muhammad to join every Emigrant to an ansAr in brotherhood.  As they sat together at supper, the host said: �Behold my two wives and choose one you like the best.� One wife was divorced on the spot and gifted away

author : ram swarup

हदीस : बन्दी बनाई गई औरतें

बन्दी बनाई गई औरतें

मुहम्मद के अनुसार परस्त्री-गमन और कंवारों के साथ समागम दंडनीय है। लेकिन अगर तुम ”उन औरतों के साथ मैथुन करते हो तो तुम्हारे दाहिने हाथ में है“ तो यह विहित है। अर्थात् उन औरतों के साथ जो मुसलमानों द्वारा जिहाद में बन्दी बनायी गयी हों, वे चाहे विवाहित हो या अविवाहित, मैथुन करना अनुचित नहीं है। कुरान की एक आयत इस मत को मज़बूत कर देती है। ”शादीशुदा औरतें भी हराम हैं, सिवाय उनके जो तुम्हारे दाहिने हाथ (कब्जे) में आ जायें“ (4/24)।

 

अहादीस (3432-3434) हमें बतलाती हैं कि उपरोक्त आयत पैगम्बर पर उनके साथियों के फायदे के लिए उतरी थी। अबू सईद सुनाते हैं-”हुनैन की लड़ाई में रसूल-अल्लाह ने औतास की ओर एक सेना भेजी …. (दुश्मनों को) जीतने और उन्हें बन्दी बनाने के बाद रसूल-अल्लाह के साथियों ने कैद की गयी औरतों के साथ मैथुन करना नहीं चाहा, क्योंकि उन औरतों के पति बहुदेववादी थे। तब अल्लाह ने, जो सबसे ऊंचा है, (उपरोक्त आयत) उतारी“ (3432)।

 

अपनी पुरानी नैतिक परम्परा के आधार पर मुहम्मद के अनुयायी लोगों में शिष्टता की भावना बची थी। पर अल्लाह ने उन्हें एक नयी नैतिक संहिता दे दी।

 

जिस औरत से तुम शादी करना चाहते हो उस पर एक नज़र डालो

जिस औरत से शादी की चाह हो उस पर ”सर से पांव तक“ एक नजर डालने की इज़ाज़त है। एक मोमिन मुहम्मद के पास आया और कहने लगा कि उसने एक अंसार औरत से शादी तय की है और दहेज चुकाने में उनकी मदद चाहता है। मुहम्मद ने पूछा-”क्यार तुमने उस पर एक नजर डाली है, क्योंकि अंसारों की आंखों में कुछ बात है ?“ उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “हां“। मुहम्मद ने पूछा, ”कितना दहेज देकर शादी की ?“ उस आदमी ने जवाब दिया, ”चार ऊकिया देकर।“ मुहम्मद बोले-”चार ऊकिया ? लगता है जैसे तुमने पहाड़ की बाजू से चांदी खोद निकाली है। (इसलिए तुम इतना ज्यादा दहेज देने को तैयार हो)। तुम्हें देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है। यही एक सम्भावना है कि हम तुम्हें एक चढ़ाई पर भेज दें, जहां तुम्हें लूट का माल मिल जावे।“ उस व्यक्ति को वनू अब्स के खिलाफ चढ़ाई पर भेज दिया (3315)।

 

किन्तु यह इजाजत वस्तुतः एक अन्य घटना के समय दी गयी थी। उमरा नाम की एक अरब औरत, जाॅन नाम के व्यक्ति की बेटी थी। उस का ”चर्चा रसूल-अल्लाह के सामने किया गया।“ पैगम्बर उस समय तक अरब राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन चुके थे। इसलिए उन्होंने अबू उसैद नाम के अपने एक कर्मचारी को उस औरत के पास एक दूत भेजने का आदेश दिया। वह औरत लायी गयी और वह “वनू साइदा के किले में ठहरी।“ अल्लाह के रसूल बाहर गए और फिर भीतर जाकर उन्होंने उससे ”विवाह का प्रस्ताव“ किया। वह ”अपना सर नीचे झुकाये बैठी थी।“ दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुहम्मद ने उससे बातचीत की। वह बोली-”मैं तुमने बचने के लिए अल्लाह की शरण लेती हूं।“ तब तक पैगम्बर खुद एक फैसला कर चुके थे। उन्होंने उससे कहा-”मैंने तुम्हें अपने से दूर रखने का फैसला किया है।“ इसके बाद मुहम्मद अपने मेजवान के साथ जा बैठे और उससे बोले, “सह्ल ! हमें कुछ पिलाओ“ (4981)।

 

इस हदीस में ही शादी के लिए चुनी गई किसी औरत पर एक नजर डालने की इज़ाज़त की गयी है (टि0 2424)।

author : ram swarup

 

जब ऋषिराज हुगली पधारे

जब ऋषिराज हुगली पधारे

महर्षि दयानन्द 1930 विक्रमी तदनुसार 1 अप्रैल 1873 ई0 के दिन हुगली पधारे। पण्डित लेखरामजी व श्री देवेन्द्रबाबू ने अपने ग्रन्थ में बंगभूमि की ऋषि की यात्राओं का प्रामाणिक विवरण दिया है। अभी-अभी हमें कलकज़ा के एक पूर्व न्यायाधीश स्वर्गीय श्री मोहनी मोहनदज़ के ऋषिजी के हुगली-यात्रा के संस्मरण मिले हैं।

इनमें से कुछ प्रेरक प्रसंग हम यहाँ देते हैं। यह सामग्री किसी भी जीवन-चरित्र में नहीं मिलती1। हाँ! ऋषि के बड़े-बड़े सब जीवन- चरित्रों में दी गई घटनाओं की पुष्टि श्रीदज़ के संस्मरणों से होती है।

श्रीदज़ ने अपने लेख में लिखा है कि ऋषिजी नवज़्बर 1872 ई0 को हुगली पहुँचे। श्रीदज़ ने यहाँ सन् ठीक नहीं लिखा। ऐसा अनजाने से लिखा गया है। यह स्मृति का दोष है। आपने लिखा है

कि ऋषिवर एक मन्दिर के ऊँचे चबूतरे पर विराजमान थे। मन्दिर की सीढ़ियाँ नीचे भागीरथी में समाप्त होती थीं। श्रीदज़ दो मित्रों सहित सायंकाल उधर भ्रमण के लिए निकले। वहाँ ज़्या देखते हैं कि चबूतरे के समीप लोगों की भारी भीड़ है।

‘‘जो कुछ हमने देखा, उससे हमपर भी कुछ समय के लिए एक जादु का-सा प्रभाव पड़ा।’’ जब कुछ अधिक अँधेरा हुआ तो भीड़ कुछ घटने लगी तथापि हम चबूतरे के समीप मन्दिर के एक कोने में खड़े रहे। महर्षि की दृष्टि हम तीनों युवकों पर पड़ी।

उन्होंने संकेत करके हमें अपने पास बुलाया। हम तीनों मित्र उनके निकट गये। कुछ समय के लिए जिह्वा ने साथ न दिया। बोलने की शक्ति लुप्त हो गई मानो कि हम गूँगे हो गये हैं।

‘‘अन्त में हममें से एक ने, जो सबसे अधिक चतुर और बड़ा चञ्चल था, बड़े व्यंग्य से ऋषिजी को हितोपदेश से संस्कृत का एक वचन सुनाया। ऋषि इसे सुनकर मुस्कराये और खिले माथे उस

तरुण का हाथ पकड़कर अपने समीप बिठाया।

इससे पता चलता है कि उस महात्मा का हृदय कितना सहानुभूतिपूर्ण, उदार व विशाल था। वे चरित्र पर उपदेश देने लगे। उनकी शैली ऐसी अद्वितीय, दिल को छूनेवाली, इतनी सुमधुर

व प्रभावशाली थी कि हमारे मित्र की सब कटुता व अभिमान एकदम नष्ट हो गया। ज्ञान का अभिमान व पूछनेवाली भावना का लोप हो गया। हृदय ऐसा पिघला कि ऋषि की पवित्र चरणधूलि को सिर पर लगा लिया। इस प्रकार ऋषिजी से हमारी जान-पहचान हुई।

HADEES : DIVORCE (TALAQ)

DIVORCE (TALAQ)

TalAq literally means �undoing the knot,� but in Islamic law, it now means annulment of marriage by the pronouncement of certain words.

The marriage and divorce laws of Islam derive from the Prophet�s own practice and pronouncements.  According to the Shias, the Prophet had twenty-two wives, two of whom were bondswomen; but that was a special divine dispensation for him alone.  The other believers are allowed only four wives at a time, exclusive of slave concubines, who do not count.  The total of four wives at one time cannot be exceeded, but individual wives can be replaced through talAq.  The procedure is not difficult; once a man says the word talAq three times, the divorce becomes operative.

Yet there are certain restrictions.  For example, it is forbidden to divorce a woman during her menstrual period (3473-3490).  �Abdullah, the son of �Umar, the future KhalIfa, divorced his wife while she was in a state of menses.  When �Umar mentioned this to Muhammad, the latter ordered: �He [�Abdullah] should take her back, and when she is pure he may divorce her� (3485).

author : ram swarup