अरब का मूल मजहब
भाग २
एक कट्टर वैदिकधर्मी
यह सर्वविदित है कि आज से लगभग ५५-५६ सौ वर्ष पुर्व लगभग पुरी दुनिया मे वैदिक धर्म का एक क्षत्र राज था . सब लोग वैदिक थे . वेद के अनुसार ही अपना जीवनयापन करते थे और सुखीसम्पन्न थे .इस व्यवस्था मे भारत विश्वगुरु कहा जाता था . लोग यहां आकर ज्ञान-विज्ञान की बातें सिखा करते थे . महर्षि दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश के सम्मुलास दस मे लिखते हैं कि “महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भूगोल के राजा, ऋषि, महर्षि आये थे।
देखो! काबुल, कन्धार, ईरान, अमेरिका, यूरोप आदि देशों के राजाओं की कन्या गान्धारी, माद्री, उलोपी आदि के साथ आर्यावर्त्तदेशीय राजा लोग विवाह आदि व्यवहार करते थे। शकुनि आदि, कौरव पाण्डवों के साथ खाते पीते थे कुछ विरोध नहीं करते थे। क्योंकि उस समय सर्व भूगोल में वेदोक्त एक मत था। ” सत्यार्थ प्रकाश की इन बातों की पुष्टि महर्षि मनु की इस घोषणा से स्पष्ट रुप से हो जाती है ….”ऐतद्येशप्रसूतस्य….मनु. २/२०” अर्थात् संसार के लोग आर्यावर्त मे आकर विद्या ग्रहण करें .इस सत्य को पश्चिम के विद्वानों ने भी स्वीकार किया है . प्रमाण के रुप मे कुछ विद्वानों का मत यहां प्रस्तुत है .
जैकालियट ने Bible in India मे पेज नंबर १० पर कहा है कि “भारत सभ्यता के हिंडोले है , ज्ञान विज्ञान के जनक है ” .
भारतीय सभ्यता संस्कृति को नाश करने वाले मैक्समूलर को भी सत्य स्वीकार करना पड़ा और अपनी पुस्तक ‘India : what can it teach us ‘ के पेज ४ पर लिखना पड़ा कि “यूरोपीय, यूनानियों, रोमनों और यहूदी जिस साहित्य के विचारों के साथ पले है , वह भारत की साहित्य ही है ” .
प्रो. हिरेन ने अपनी पुस्तक Historical researches के Vol 2 , page 45 पर लिखा है कि समस्त एशिया सहित समस्त पश्चात्य जगत को प्राप्त होने वाले विद्या और धर्म का मुख्य स्त्रोत भारतवर्ष ही है .
मेजर डी. ग्राह्मपोल ने तो यहां तक लिख डाला कि “जिस समय भारत सभ्यता और विद्या के उच्च शिखर पर था उस समय हमारे पुर्वज वृक्षों की छाल के बने हुए कपड़े पहनकर अफरा-तफरी में इधर – उधर भटक रहे थे “….देखें Modern Review के June 1934 का अंक .
इन सब प्रमाणों से स्पष्ट हो चुका है कि भारत विश्वगुरु था . तो जाहिर सी बात है जो मत गुरुदेश मे होगा वही अन्य देश मे भी प्रचलन मे भी आया होगा क्योंकि भारत जिस सिद्धांत और मत के सहारे विश्व का गुरु था उसी सिद्धांतों का सबने अपने अपने देश मे अपनाया ताकि वो भी उन्नति करें . अत: महाभारत पुर्व तक सम्पुर्ण धरा वैदिक सिद्धांत से ओत प्रोत था . जब बात सम्पुर्ण धरा की हो तो उसमे अरब जगत भी आ ही जाता है . जी , यह बात मै नही कह रहा हूं बल्कि महाभारत कालीन अरब के विद्वान खुद कह रहे हैं कि हम वैदिक है , हमारा पवित्र ग्रंथ वेद है , हम वेद के अनुसार चलें . अरबवासियों की इस वैदिक सिद्धांतों पर दृढ़ विश्वासों की वजह से ही मोहम्मद साहब ने भी उसे अपनी बनाई पुस्तकों से समाज मे प्रचलित वैदिक नियम व सिद्धातों को निकाल नही पाये जो आज भी अरब निवासियों का मूल मजहब वैदिक था, इसकी पुष्टि करता है .महाभारत के बाद जब भारत खुद वैदिक सिद्धांतों से विमुख हो गया तो विश्व के अन्य देश भी इस से विमुख हो गया और परिस्थिति के अनुकुल नये नये पथ , मत और मजहब जन्म ले लिया . जिसे हम विभिन्न नामों जैसे जैन , बौद्ध, इसायत, इसलाम आदि से जानते है . इस लेख की श्रृखंला मे हम सिर्फ इसलाम पूर्व अरब का मूल मजहब, फिर इसलाम के पैदा होने की परिस्थिति तक ही सीमित रहेगें .
भाग ३ जरुर पढ़ें , उसमे अरब के विद्वानों की उन रचनाओं को पेश किया जायेगा जिस से यह स्पष्ट हो जायेगा कि महाभारत कालीन अरब की समाजिक व्यवस्था बिलकुल वेद पर आधारित था और सब एकेश्वरवादी एवं निराकार ईश्वर के उपासक थे . फिर आगे देखेंगे कि भारत के साथ – साथ वहां एवं विश्व के अन्य भागों मे भी कैसे निराकार से साकार की तरफ लोग बढ़कर मूर्तिपूजक हो गया !
क्रमश :
आभार :- पंडित ज्ञानेन्द्रदेव जी सूफी (पूर्व मौलाना हाजी मौलवी अब्दुल रहमान साहिब )