श्री भीमराव अम्बेडकर ने सन् 1907 में मैट्रिक और 1912 में पर्शियन और अंग्रेजी विषय लेकर बी0 ए0 की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी दौरान पं0 आत्मारामजी सन् 1908 से 1917 तक बड़ोदरा रियासत में दलितोद्धार का कार्य कर रहे थे। इसी कालावधि में बी0 ए0 उत्तीर्ण होने के उपरान्त सन् 1913 में श्री भीमराव अम्बेडकर बड़ोदरा आये और वहाँ की दलित बस्ती में रहने लगे। इस घटना का वर्णन करते हुए डॉ0 अम्बेडकरजी के चरित्र लेखक श्री चांगदेव भवानराव खैरमोडे ने लिखा है –
”भीमराव बड़ोदरा में 23 जनवरी 1913 के आस-पास पधारे थे। वहाँ प्रशासन की ओर से उनके निवास और भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाई थी, अतः वे सबसे पहले वहाँ की दलित बस्ती (महारवाड़े) में दो-तीन दिन रहे। वह जगह हर प्रकार से असुविधाजनक थी। वहीं पर उनका पं0 आत्मारामजी से परिचय हुआ। पण्डितजी पंजाबी आर्यसमाजी थे, वे बड़ोदरा रियासत की दलितों की पाठशाला के इन्स्पैक्टर थे। वे ही भीमराव को अपने साथ आर्यसमाज के कार्यालय में ले गये। जब तक अन्यत्र कहीं व्यवस्था नहीं होती, तब तक भीमराव ने वहीं रहने का निश्चय किया। वह जगह श्री भीमराव को जिस कार्यालय में काम करना था, वहाँ से डेढ़ मील की दूरी पर थी।“
इस अवसर पर श्री अम्बेडकर एक सप्ताह से भी कुछ अधिक समय तक आर्यसमाज बड़ोदरा में आर्यविद्वान् पं0 आत्मारामजी अमृतसरी के साथ रहे।
भीमरावजी को बड़ोदरा नरेश की सेना में लैफ्टिनेन्ट पद पर नियुक्त किया गया था, परन्तु सन् 1913 की इस यात्रा में श्री अम्बेडकर अधिकतम दो सप्ताह ही बड़ोदरा में रह पाये। एक दिन उन्हें मुम्बई से तार मिला कि पिताजी बहुत बीमार हैं। जब वे मुम्बई पहुँचे तो पिताजी अन्तिम सांसें गिन रहे थे। छह वर्ष की आयु में उनकी माताजी का देहान्त हो चुका था, तो अब 21 वर्ष 9 महीने की अवस्था में पिताजी की छत्र छाया भी उनके ऊपर से उठ गई।