बड़ोदरा के आर्यनरेश द्वारा श्री अम्बेडकर को छात्रवृत्ति: डॉ कुशलदेव शाश्त्री

पिताजी के देहावसान के बाद शोकाकुल अवस्था में श्री अम्बेडकर जब मुम्बई में ही थे, तब अकस्मात् बड़ोदरा के आर्यनरेश सयाजीराव गायकवाड़ का मुम्बई में आगमन हुआ। बड़ोदरा रियासत की ओर से उच्च शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति देकर चार विद्यार्थियों को अमेरिका भिजवाने का उनका विचार था। मुम्बई में जब अम्बेडकर बड़ोदरा नरेश से मिले तो, उन्होंने उक्त छात्रवृत्ति के अनुबन्ध-पत्र पर हस्ताक्षर किये। इस अनुबन्ध के अनुसार अमेरिका में अध्ययन पूर्ण होने के बाद बड़ोदरा रियासत में कम से कम दस वर्ष तक श्री अम्बेडकरजी को अनिवार्य रूप से नौकरी करनी थी।

पं0 आत्माराम और श्री अम्बेडकर की द्वितीय भेंट (1917)

बड़ोदरा नरेश ने उन्हें 15 जून 1913 से 14 जून 1916 तक के लिए विदेश जाकर उच्च अध्ययन प्राप्त करने हेतु छात्रवृत्ति प्रदान की थी। उक्त कालावधि समाप्त होने के बाद 1917 में डॉ0 अम्बेडकरजी जब पुनः बड़ोदरा रियासत में नौकरी करने पधारे तो सबसे पहले पं0 आत्मारामजी अमृतसरी के निवास स्थान पर ही पहुँचे। पं0 आत्मारामजी से हुई पहली मुलाकात के समय डॉ0 अम्बेडकर बी0 ए0 परीक्षा उत्तीर्ण लगभग 22 वर्ष के नवयुवक थे। चार वर्ष बाद अब जब वे पं0 आत्मारामजी से मिलने आये तो ’प्राचीन भारत का व्यापार‘ इस शोध-प्रबन्ध पर एम0 ए0 की उपाधि प्राप्त कर चुके थे। लंदन तथा वाशिंगटन (अमेरिका) के बन्धनमुक्त उदात्त, स्फूर्तिदायक, अधुनातन जीवन के अनुभव से भी वे समृद्ध हो चुके थे। सम्प्रति उनकी आयु लगभग 26 वर्ष थी।

बड़ोदरा आने से पूर्व श्री अम्बेडकरजी ने प्रशासन को अपनी नौकरी के साथ निवास-भोजनादि का प्रबन्ध करने के लिए लिखा था। प्रत्युत्तर में उन्हें त्वरित बड़ोदरा आकर अपनी सेवा शुरू करने का आग्रह किया गया था, पर निवास-भोजनादि की व्यवस्था के विषय में उसमें किसी प्रकार का उल्लेख नहीं था, अतः इससे पूर्व के आत्मीयता पूर्ण व्यवहार को ध्यान में रखते हुए डॉ0 अम्बेडकर जब बड़ोदरा आये तो सबसे पहले पं0 आत्माराम जी अमृतसरी के पास ही पहुंचे। उन्होंने ही अपने परिचय से डॉ0 अम्बेडकरजी की निवास, भोजन की व्यवस्था एक पारसी सज्जन के यहाँ पर करवा दी। इस समय पं0 आत्मारामजी के सुपुत्र श्री आनन्दप्रिय आगरा में बी0 ए0 कर रहे थे। उनके परिवार के अन्य सदस्य भी बड़ोदरा में नहीं थे। अकेले पं0 आत्मारामजी ही आर्यसमाज में रह रहे थे।

 

पं0 आत्माराम और डा0 अम्बेडकर का तृतीय सम्पर्क (1924)

पं0 आत्माराम और डॉ0 अम्बेडकर के सम्पर्क का तीसरा उल्लेख दूसरी मुलाकात के सात वर्ष बाद मिलता है। दूसरी मुलाकात सन् 1917 में हुई थी और तीसरा सम्पर्क प्रत्यक्ष न होकर परोक्ष पत्र द्वारा सन् 1924 में स्थापित हुआ था। इस सम्पर्क का कारण डॉ0 अम्बेडकरजी द्वारा बड़ोदरा सरकार से अमेरिकी उच्च शिक्षा हेतु लिया हुआ कर्ज और उससे मुक्त होने की उनकी छटपटाहट था।

संकीर्ण मानसिकता ने अम्बेडकरजी की नौकरी छुड़ाई

बड़ोदरा प्रशासन के अनुबन्ध पर हस्ताक्षर करके श्री अम्बेडकरजी ने उच्च शिक्षा अध्ययन हेतु बीस हजार रुपये का ऋण लिया था। इस ऋण से बड़ोदरा प्रशासन में नौकरी करके उऋण होने की बात तय हुई थी। निश्चयानुसार डॉ0 अम्बेडकर नौकरी करने के लिए बड़ोदरा भी आ चुके थे, पर इस समय बड़ोदरा का कोई भी भोजनालय दलित होने के कारण उन्हें भोजन देने के लिए तैयार न था। जिस पारसी सज्जन के पास उनके निवास-भोजनादि की व्यवस्था की गई थी, वहाँ से भी उन्हें रूढ़िवादियों ने जबरदस्ती निकाल दिया था। उन दिनों शहर में प्लेग की बीमारी भी फैली हुई थी। ऐसी स्थिति में शहर का कोई भी व्यक्ति उन्हें जगह देने को तैयार नहीं था। विशेष कठिनाई भोजन की कोई सुविधा न होने के कारण थी। अन्त में भूख-प्यास से व्याकुल डॉ0 अम्बेडकरजी एक पेड़ के नीचे बैठकर बिलख-बिलखकर रो पड़े। एक उच्च शिक्षा विभूषित व्यक्ति को केवल इसलिए नकारा जा रहा था कि वह जन्म से दलित हैं। बड़ोदरा नरेश तो उन्हें अर्थमन्त्री बनाना चाह रहे थे, परन्तु इस क्षेत्र का उन्हें कोई अनुभव न होने के कारण सेना में सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति की गई थी। सेना का सचिव पद भी एक प्रतिष्ठित पद था। इस नियुक्ति से भी उच्चवर्गीय व्यक्ति भीतर ही भीतर कुढे हुए थे। केवल दलित होने के कारण ’विद्वान् सर्वत्र पूज्यते‘ की बात खटाई में पड़ रही थी। इनके अधीनस्थ कर्मचारी भी जब उन्हें फाइल देते तो दूर से फेंककर देते थे। कार्यालय में रखा पानी भी वे नहीं पी सकते थे। परिणामतः ऐसी असह्म अपमानजनक स्थिति में बड़ोदरा प्रशासन की नौकरी छोड़कर उन्हें मुम्बई वापस लौट जाने के लिए विवश होना पड़ा।

 

छत्रपति शाहू महाराज की अम्बेडकरजी पर छत्रछाया

सन् 1917 से 1924 तक की कालावधि में डॉ0 अम्बेडकर विद्याध्ययन के अतिरिक्त विविध सार्वजनिक कार्यों में भी तल्लीन रहे। सन् 1923 में जब वे लन्दन में विद्याध्ययन कर रहे थे, तब उन्होंने कोल्हापुर नरेश शाहू महाराज से दो सौ पौंड का आर्थिक सहयोग देने का अनुरोध किया था। लन्दन में रहते हुए उन्होंने ’एम0 एस0 सी0‘ ’बैरिस्टर‘, ’पी0 एच0 डी0‘ और ’डी0 एस0 सी0‘ की उपाधियाँ प्राप्त कीं। 1923 से पूर्व श्री शाहू महाराज श्री अम्बेडकरजी को विद्याध्ययन हेतु डेढ़ हजार रुपये की सहायता दे चुके थे। नागपुर (1917) व कोल्हापुर (21 मार्च 1920) में सम्पन्न दलित परिषदों की अध्यक्षता भी राजर्षि शाहू महाराज ने की थी। इन दोनों परिषदों में श्री अम्बेडकर जी भी उपस्थित थे। इसी कालावधि में श्री अम्बेडकर और शाहू महाराज की सर्वप्रथम भेंट कहीं न कहीं हुई होगी। 31 जनवरी, 1920 को अम्बेडकरजी द्वारा शुरु किये गये साप्ताहिक ’मूकनायक‘ पत्र को शाहू महाराज ने एक हजार रुपये का दान दिया था। सितम्बर 1920 में विद्याध्ययन के लिए श्री अम्बेडकर लन्दर गये थे। इससे पूर्व वे ’बहिष्कृत समाज परिषद‘, ’अस्पृश्य समाज परिषद‘, बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना और संचालन कर चुके थे। बहिष्कृत समाज परिषद की स्थापना तो उन्होंने मई 1920 में नागपुर में ही की थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *