अग्निहोत्र यज्ञ- पंच महायज्ञ के विषय में महर्षि जी द्वारा ऋग्वेद भाष्य में विस्तार से बताया गया है इस विषय में कुछ विद्वानों का मत है कि इसमें घी सामग्री की आहुतियाँ देकर इन यज्ञों का जीवन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। कृपया समाधान करने की कृपा करें।
समाधानः-
पाँच महायज्ञों का विधान वैदिक विधान है। वैदिक मान्यता प्राणीमात्र के सुखार्थ है। भला ऐसा कैसे हो सकता है कि वैदिक मान्यतानुसार किया गया यज्ञ जीवन पर कोई प्रभाव न डाले। ऐसा मानने वाले कि यज्ञ में दी गई आहुतियों का जीवन पर प्रभाव नहीं पड़ता वे नास्तिक ही कहलाएंगे। महर्षि दयानन्द के अनेकों प्रमाण इस विषय पर मिलते हैं, यज्ञ में दी गई आहुति कितनी सुखकारी है ये सब वर्णन महर्षि ने अनेकत्र किया है। इस विषय में महर्षि के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं-
- 1. जो मनुष्य से प्राणियों को सुख देते हैं, वे अत्यन्त सुख को प्राप्त होते हैं। – यजु. भा. 18.51
- 2. जो मनुष्य आग में सुगन्धि आदि पदार्थों को होमें, वे जल आदि पदार्थों की शुद्धि करने हारे हो पुण्यात्मा होते हैं और जल की शुद्धि से ही सब पदार्थों की शुद्धि होती है, यह जानना चाहिए। – य. 22.25
- 3. जो मनुष्य यथाविधि अग्निहोत्र आदि यज्ञों को करते हैं, वे पवन आदि पदार्थों के शोधने हारे होकर सबका हित करने वाले होते हैं। – य. 22.26
- 4. जो यज्ञ से शुद्ध किये हुए अन्न, जल और पवन आदि पदार्थ हैं वे सब की शुद्धि, बल, पराक्रम और दृढ़ दीर्घ आयु के लिए समर्थ होते हैं। इससे सब मनुष्यों को यज्ञ कर्म का अनुष्ठान नित्य करना चाहिए। – य. 1.20
- 5. मनुष्यों को चाहिए कि प्राण आदि की शुद्धि के लिए आग में पुष्टि करने वाले आदि पदार्थ का होम करें।
- 6. मनुष्य लोग अपनी विद्या और उत्तम क्रिया से जिस यज्ञ का सेवन करते हैं उससे पवित्रता का प्रकाश, पृथिवी का राज्य, वायुरूपीप्राण के तुल्य राजनीति, प्रताप, सब की रक्षा, इस लोक और परलोक में सुख की वृद्धि परस्पर कोमलता से वर्तना और कुटिलता का त्याग इत्यादि श्रेष्ठ गुण उत्पन्न होते हैं। इसलिए सब मनुष्यों को परोपकार और अपने सुख के लिए विद्या और पुरुषार्थ के साथ प्रीतिपूर्वक यज्ञ का अनुष्ठान नित्य करना चाहिए।
ऐसे-ऐसे सैकडों प्रमाण महर्षि के वेद भाष्य में हैं जो यह प्रतिपादित कर रहे हैं कि यज्ञ में दी गई आहुतियों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। आज का आधुनिक विज्ञान भी इसकी विशेषता को स्वीकार करता है। आज यज्ञ से रोग दूर हो रहे हैं, जिस बात को महर्षि ने अपने सत्यार्थ प्रकाश में लगभग 141 वर्ष पूर्व कहा था।
‘‘आर्यवर शिरोमणि महाशय, ऋषि, महर्षि, राजे, महाराजे लोग बहुत-सा होम करते और कराते थे। जब तक इस होम करने का प्रचार रहा तब तक आर्यवर्त्त देश रोगों से रहित और सुखाों से पूरित था, अब भी प्रचार हो तो वैसा ही हो जाये।’’ – म.प्र. स. 3
यहाँ महर्षि ने यज्ञ से रोगों के दूर होने की बात कही है, जिसको कि आज का विज्ञान भी स्वीकार करता है। आज अनेकों परीक्षण यज्ञ पर हुए हैं जिनका परिणाम सकारात्मक आया है।
राजस्थान सरकार की ओर से अजमेर में जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज में रोग के कीटाणुओं के ऊपर यज्ञ का क्या प्रभाव पड़ता है इसका परीक्षण हुआ जिसका प्रभाव अत्यन्त सकारात्मक आया। डॉ. विजयलता रस्तोगी जी के निर्देशन में यह शोध हुआ था। इस शोध की रिपोर्ट परोपकारी पत्रिका में भी छपी थी। इतना सब होते हुए कोई कैसे कह सकता है कि यज्ञ का हमारे जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह तो कोई निम्न सोच वाला ही कह सकता है।