जिज्ञासा १- ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका में लिखा है कि सृष्टि के प्रारम्भ में हजारों-लाखों मनुष्य परमात्मा ने अमैथुन से पैदा किये थे। यही सत्यार्थ प्रकाश में भी माना है। उन लाखों मनुष्यों में चार ऋषि भी पैदा हुये जो अग्रि, वायु, आदित्य और अंगिरा थे। उनको परमात्मा ने एक-एक वेद का ज्ञान दिया था। उस काल में स्त्रियाँ भी पैदा हुई होंगी, परन्तु परमात्मा ने एक या दो स्त्रियों को भी वेद का ज्ञान क्यों नहीं दिया? क्या परमात्मा के घर से भी स्त्रियों के साथ पक्षपात हुआ? इसका समाधान करें।
समाधान-(क) वेद परमात्मा का पवित्र ज्ञान है। यह वेदरूपी पवित्र ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए है। वेद मनुष्य मात्र का धर्मग्रन्थ है। सृष्टि के आदि में परमेश्वर ने सभी मनुष्यों के लिए यह ज्ञान दिया। वेद का ज्ञान परमात्मा ने ऋषियों के हृदयों में दिया। चार वेद चार ऋषियों के हृदय में प्रेरणा कर के दिये। ऋग्वेद अग्रि ऋषि को, यजुर्वेद वायु नामक ऋषि को, सामवेद आदित्य ऋषि को और अथर्ववेद अंगिरा ऋषि को प्रदान किया। आपकी जिज्ञासा है कि वेद का ज्ञान ऋषियों (पुरुषों) को ही क्यों दिया, एक-दो स्त्री को क्यों नहीं दिया? इसका उत्तर महर्षि दयानन्द ने जो लिखा वह यहँा लिखते हैं-‘‘प्र.- ईश्वर न्यायकारी है वा पक्षपाती? उत्तर- न्यायकारी। प्र.- जब परमेश्वर न्यायकारी है, तो सब के हृदयों में वेदों का प्रकाश क्यों नहीं किया? क्योंकि चारों के हृदय में प्रकाश करने से ईश्वर में पक्षपात आता है।
उत्तर- इससे ईश्वर में पक्षपात का लेश (भी) कदापि नहीं आता, किन्तु उस न्यायकारी परमात्मा का साक्षात् न्याय ही प्रकाशित होता है, क्योंकि ‘न्याय’ उसको कहते हैं कि जो जैसा कर्म करे, उसको वैसा ही फल दिया जाये। अब जानना चाहिए कि उन्हीं चार पुरुषों का ऐसा पूर्व पुण्य था कि उनके हृदय में वेदों का प्रकाश किया गया।’’ -ऋ.भा.भू.
‘‘प्रश्न-उन चारों ही में वेदों का प्रकाश किया, अन्य में नहीं, इससे ईश्वर पक्षपाती होता है।
उत्तर-वे ही चार सब जीवों से अधिक पवित्रात्मा थे। अन्य उनके सदृश नहीं थे, इसलिए पवित्र विद्या का प्रकाश उन्हीं में किया।’’ – स.प्र. ७
महर्षि के वचनों से स्पष्ट हो रहा है कि परमात्मा पक्षपाती नहीं, अपितु इन चारों को वेद का ज्ञान देने से परमेश्वर का न्याय ही द्योतित हो रहा है। यदि इन चार ऋषियों जैसी पुण्य-पवित्रता किसी स्त्री में होती तो परमात्मा स्त्री को भी वेद का ज्ञान दे देता। परमात्मा तो योग्यता के अनुसार ही फल देता है। पक्षपात कभी नहीं करता। जिस आत्मा के पुरुष शरीर प्राप्त करने के कर्म हैं, उसको पुरुष और जिसके स्त्री बनने के कर्म हैं उसको स्त्री का शरीर देता है।
वेदों का ज्ञान ऋषियों को दिया, स्त्रियों को नहीं-इससे यह बात भी ज्ञात हो रही है कि स्त्री का शरीर पुरुष शरीर की अपेक्षा कुछ कम पुण्यों का फल है। अर्थात् अधिक पुण्यों का फल पुरुष शरीर और उससे कुछ हीन पुण्यों का फल स्त्री शरीर। परमेश्वर की दृष्टि में सब आत्मा एक जैसी हैं, आत्मा-आत्मा मेें परमेश्वर कोई भेद नहीं करता, किन्तु कर्मों के आधार पर तो भेद दृष्टि रखता है।
स्त्री-पुरुष दोनों बराबर हैं, बराबर का अधिकार होना चाहिए। यह इस रूप में उचित है कि दोनों अपनी उन्नति करने में स्वतन्त्र हैं, मुक्ति के अधिकारी दोनों बराबर है, ज्ञान प्राप्त करने में दोनों समान रूप से अधिकारी हैं, दोनों काम करने में स्वतन्त्र हैं। परमेश्वर ने यह सब दोनों को समान रूप से दे रखा है, किन्तु शरीर की दृष्टि से तो भेद है ही। संसार में भी पुरुष के शरीर में अधिक सामथ्र्य देखने को मिलता है, स्त्री शरीर में कम (किसी अपवाद को छोडक़र)। पुरुष को अधिक स्वतन्त्रता है, स्त्री को कम स्वतन्त्रता है। मनुष्य समाज ने अन्यायपूर्वक स्त्रियों पर जो बन्धन लगा रखे हैं, उस परतन्त्रता को यहाँ हम नहीं कह रहे। जो परतन्त्रता प्रकृति प्रदत्त है, वह स्त्रियों में अधिक है पुरुष में कम। यह प्रकृति प्रदत्त स्वतन्त्रता-परतन्त्रता हमारे कर्मों का ही फल है, पुण्यों का फल है। जिसके जितने अधिक पुण्य होते हैं, परमात्मा उसको ज्ञान, बल, सामथ्र्य, साधन सम्पन्नता अधिक देता है और जिसके पुण्य न्यून होते हैं, उसको ये सब भी कम होते चले जायेंगे।
ज्ञान का मिलना भी हमारे पुण्यों का फल है, इसलिए वेदरूपी पवित्र ज्ञान पक्षपात रहित न्यायकारी परमात्मा ने आदि सृष्टि में उत्पन्न हुए सबसे पुण्यात्मा पवित्र चार ऋषियों को ही दिया अन्यों को नहीं।
main aapki baat se agree nahi karta ke stree ka shareer kam punya wala hota hai . vedon to mein to eher ko dono ko barbara ka hissedar mana gaya hai ? lekin hamare kuch granthon mein stree ka mahatav puursh se adhik hai .