वे हँसी में भी कभी झूठ नहीं बोलते थे
पण्डित श्री चमूपतिजी की धर्मपत्नी ने अपनी एक सखी व घरवालों से कह दिया कि अमुक दिन पण्डित चमूपतिजी मुझे लेने आएँगे, मेरा शरीर छूट जाएगा। वे ठीक-ठाक थीं। कोई रोग नहीं
था, परन्तु मृत्यु के स्वागत के लिए वे तैयार होकर बैठ गईं।
वह दिन आ गया। दस बजे, ग्यारह बजे और बारह बज गये। सबने कहा कि ज़्यों मौत की सोचती हो? आपको कुछ नहीं होता।
आप ठीक-ठाक हैं। आप नहीं मरेंगी, परन्तु पण्डित चमूपतिजी की पत्नी की एक ही रट थी कि मुझे स्वप्न में पण्डितजी ने कहा है कि तैयार रहना, मैं अमुक दिन तुज़्हें लेने आऊँगा। पण्डितजी तो भी हँसी-विनोद में भी कभी झूठ नहीं बोलते थे, अतः उनकी बात टल नहीं सकती।
और ऐसा ही हुआ। सायंकाल तक पण्डितजी की धर्मपत्नी की मृत्यु हो गई।
मैंने स्वामी सर्वानन्दजी महाराज से इस घटना के सैद्धान्तिक विवेचन के लिए कहा तो आपने कहा कि पण्डितजी लेने आएँगे या वे लेने आये इसका कोई दार्शनिक आधार नहीं है। सर्वव्यापक
सर्वशक्तिमान् परमेश्वर किसी की सहायता नहीं लेता। स्वप्न को इस रूप में लेना ठीक नहीं है। इस घटना का कारण मनोवैज्ञानिक है। पण्डितजी की पत्नी के मन में यह पक्का विश्वास था कि उनके पति सदा सत्य ही बोलते हैं। इसी विश्वास के कारण वह मर गईं।
हम प्रायः देखते हैं कि कई बार डाज़्टरों, वैद्यों के मुख से अपनी मौत की सज़्भावना की बात कान में पड़ते ही रोगी मर जाते हैं।
यह तो हुआ इस घटना का सिद्धान्तपक्ष, परन्तु इस घटना का दूसरा पक्ष यह है कि उस महापुरुष का जीवन कितना निर्मल था कि उनकी पत्नी डंके की चोट से कहती हैं कि वे तो कभी हँसी में भी झूठ नहीं बोलते थे। उनकी सत्यवादिता की ऐसी गहरी छाप!