उनकी आत्मीयता
आर्यसमाज फ़तहपुर उज़रप्रदेश का वार्षिक उत्सव था। शीत ऋतु थी। श्री सुरेशचन्द्रजी वेदालंकार का व्याज़्यान सबसे अन्त में था। उन्हें व्याज़्यान से पूर्व ही ठण्डी लगने लगी। व्याज़्यान देते
गये, ज्वर चढ़ता गया। व्याज़्यान की समाप्ति पर मन्त्रीजी ने ओषधियाँ लाकर दे दीं। पण्डित श्री गंगाप्रसादजी उपाध्याय भी आमन्त्रित थे।
वे रात्रि में तीन-चार बार उठ-उठकर वेदालंकारजी का पता करने के लिए उनके कमरे में आये। प्रातः जब तक उन्हें रिज़्शा में बिठाकर विदा न कर लिया तब तक उपाध्यायजी को चैन न आया। यह उपाध्यायजी के अन्तिम दिनों की घटना है। यह थी उनकी आत्मीयता।