उदारता व दान की प्रतिमूर्ति गार्गी

ओ३म
उदारता व दान की प्रतिमूर्ति गार्गी
डा. अशोक आर्य
भारतीय नारियों ने जिस भी क्शेत्र में पग धरा , उस क्शेत्र में ही अपूर्व सफ़लता प्राप्त करने के कारण उसका डंका बजा तथा उसका नाम इतिहास में अमर हो गया । एसी अनेक वेद विदुषी , गयान की ज्योति जलाने वाली , युद्ध क्शेत्र की वीरांनाएं तथा अन्य विभिन्न क्शेत्रों में भी इन नारियों का लोहा आज भी संसार मानता है । एसी ही सुप्रसिद्ध नारियों में गार्गी भी एक थी ।
गार्गी का नाम प्राचीन वैदिक काल से ही , उस की विशेष योग्यता के कारण, सुप्रसिद्ध रहा है । गार्गी का नाम क्या था ? , यह तो ग्यात नहीं किन्तु गर्ग गोत्र में जन्म लेने के कारण यह गार्गी के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध हुई । इस की तीव्र बुद्धि तथा अत्यदिक शिक्शित होने के कारण इस का नाम सर्वत्र विख्यात हुआ तथा सर्वत्र इस नाम को स्म्मान मिला ।
कहा जाता है कि राजा जनक ने अपने यहां एक विशाल यग्य रचाया । इस यग्य में भाग लेने देश भर से बडे बडे विद्वानों ने भाग लिया । यह यग्य इतना विशाल था कि यह कई दिनों तक निरन्तर अबाध गति से चलता रहा । इस यग्य में लाखों मन घी , जौ , चावल , चन्दन व अन्य सामग्री का प्रयोग हुआ । जब यह यग्य चल ही रहा था कि एक दिन राजा जनक के मन में यह विचार उट खडा हुआ तथा वह सोचने लगे कि इस यग्य को सम्पन्न करने के लिए देश भर के सुप्रसिद्ध व उच्चकोटि के विद्वान लोग यहां पधारे हैं । सब ही अपनी अपनी विद्वता के लिए सुप्रसिद्ध व सर्व विख्यात हैं । इन की कोई स्पर्द्धा नहीं की जा सकती किन्तु फ़िर भी यह जानना चाहिये कि इन में से भी सर्वाधिक विद्वान कौन है ? कई दिन वह यह उपाय खोजने में ही लगे रहे कि सर्वाधिक विद्वान का पता भी लगा लिया जावे तथा इस स्पर्धा का किसी को पत्ता भी न लग सके , अन्यथा विद्वान लोग कुपित हो कर कोई अनर्थ करने का कारण बन जावेंगे । इस प्रकार का विचार करते हुए अन्त में एक दिन वह एक निष्कर्ष पर पहुंचे ।
राजा ने अपनी योजना के अनुसार अपनी गौशाला में एक हजार गायें बंधवा कर प्रत्येक गाय के सींग पर दस दस तोला , आज की भाषा में लगभग एक एक सौ ग्राम सोना बांध दिया । अब राजा जनक ने विद्वानों की मण्डली में यह घोषणा कर दी कि जिस भी व्यक्ति को ईश्वर के सम्बन्ध में सर्वाधिक जानकारी है ,वह नि:संकोच यह सब की सब गोएं खोलकर अपने साथ ले जा सकता है । उस युग में तो व्यक्ति की सम्पन्नता का माप द्ण्ड ही गाय होती थी सर्वाधिक गाय के मालिक को ही सर्वधिक धन्वान माना जाता था । इस प्रकार एक हजार गाय तथा प्रत्येक गाय के साथ एक सौ ग्राम सोना कौन नहीं लेना चाहेगा ।
राजा की इस विचित्र घोषणा को सुन कर सब विद्वान सन्न से रह कर एक दूसरे का मुख देखने लगे किन्तु कोई भी एक हजार तो क्या मात्र एक गाय को भी खोलने की हिम्मत न कर रहा था । इस का कारण यह था कि सब विद्वान जानते थे कि जिसने भी इन गायों को हाथ डालने का यत्न किया , वह ही अन्य सब विद्वानों के तिरस्कार का कारण होगा , सब ग्यानी लोग उसे घमण्डी , अहंकारी, अभिमानी व लालची समझेंगे । यह भी हो सकता है कि अन्य सब विद्वान मिलकर उससे शास्त्रार्थ करने लगें । इतने विशाल समूह का मुकाबला करना मेरे लिए सम्भव न हो पावेगा । इन सब के भारी भरकम प्रश्नों का उतर मैं कैसे दूंगा ? कोई मुझे घमण्डी कहेगा , कोई मुझे लालची कहेगा, कोई कहेगा कि मैं अपने आप को बहुत बडा विद्वान मानता हूं । उस युग में अपने बड्प्पन का बखान करने की परम्परा भी न थी । इस कारण किसी एक विद्वान ने भी राजा के आह्वान को स्वीकार न किया तथा किसी ने भी गाय की रस्सी को छुआ तक भी नहीं ।
राजा जनक के यग्य में उपस्थित विद्वत मण्ड्ली में रिशी याग्य्वल्क्य भी पधारे हुए थे । जब उन्होंने देखा कि कोई भी इन गायों को खोलने का साहस नहीं कर रहा । इस से यह सिद्ध होगा कि यहां पर कोई भी बडा विद्वान नहीं आया है । यह विचार कर उन्होंने अपने एक शिष्य को कहा कि उटो ! इन गायों को खुंटे खोल लो ओर बांध कर ले चलो । रिषि के यह शब्द सुन कर उपस्थित सब ब्राह्म्ण क्रोध से लाल हो उटे । सब ब्राह्म्ण एक दम से बिगड उटे । अब उपस्थित पुरोहित लोगों ने उनसे प्रश्न किया ” यह विद्वानों की एक विशाल सभा है । इतनी बडी सभा में क्या तुम स्वयं को सर्वाधिक महान विद्वान समझते हो ?”
राजा जनक के इन पुरोहित ब्राह्म्णों के इन कटाक्श पूर्ण सब्दों से भी याग्य्वल्क्य को किंचित भी क्रोध नहीं आया तथा अपने शिष्य्लों को अपना कार्य इरन्तर जारी रखने का आदेश देते हुए बोले ” नहीं मैं अपने को सब्से बड विद्वान नहीं मानता । इस सबा में जितने भी विद्वान उपस्थित हैं , उनकी महान योग्यता के लिए मैं सब को नमस्ते करता हूं , सब के सामने आदर पूर्वक नमन करता हूं । बस हमारे आश्रम में एक लम्बे काल से गोवों की कमीं अनुभव हो रही र्थी । इन गोवों के जाने से यह कमीं दूर हो जावेगी , इस लिए मैं इन्हें ले जा रहा हूं ।”
रिषि के इस आदर पूर्वक दिए गए इस उतर से सब ब्राह्म्णों का क्रध भड्क उटा तथा सबके सब चिल्ला कर बोले कि “इन गोवों के ले जाना है ति हम से शास्त्रार्थ करना होगा , विजयी होने पर ही आप इन को यहाम से ले जा सकोगे । कुछ ही समय में शास्त्रार्थ आरम्भ हो गया , एक दूसरे को नीचा दिखाने का कर्य आरम्भ हो गया ।
इस शास्त्रार्थ में इस सभा का एक एक विद्वान प्रश्न पूछत्ता तथा उस प्रश्न का याग्यवल्क्य बडी चतुराई , बडी नम्रता, बडी तन्मयता तथा बडी सफ़लता से उतर देते जाते थे । प्रत्येक वक्ता का उद्देश्य याग्यवल्क्य को पराजित करना था , इस कारण कटिन से कटिन प्रश्न पूछे जा रहे थे किन्तु इन प्रश्नों से यग्यवलक्य तनिक भी न घबरा रहे थे , बडी सूझ व समझदारी से शान्ती पूर्वक इन प्रश्नों का उतर दे कर उन्हें शान्त करने का यत्न कर रहे थे । प्रश्न कर्ता को जब सही उतर मिल जाता तो उसे चुप होना पडता । राजा जनक भी विद्वता में कुछ भी कम नहीं थे । वह भी बहुत रस ले कर इस शास्त्रार्थ को सुन रहे थे तथा इस का रसास्वादन कर रहे थे । विद्वानों ने भरपूर प्रश्न किये ओर याग्यवल्क्य ने सबको बडी शालीनता से उतर दिए । परिणाम स्वरूप एक एक कर सब विद्वान निरुतर हो इस शास्त्रर्थ से पीछे हटने लगे ओर अन्त में सब चुप हो गए ।
जब सब विद्वान निरुतर हो चुप हो गए तो इस सभा में उपस्थित गार्गी ने भी प्रश्न करने की आग्या चाही । राजा जनक जानते थे कि भारत की नारियां भी विद्वता में किसी से कम नहीं हैं । इस कारण उन्होंने उसे सहर्ष प्रश्न करने की स्वीक्रिति दे दी । गार्गी ने भी याग्यवल्क्य से अनेक प्रश्न पूछे तथा याग्यवल्क्य उस के प्रश्नों का भी बडी शालीनता से उतर देते गए किन्तु इन विद्वतापूर्ण प्रश्नों के कारण गार्गी उच्चकोटी के प्रश्नों के कारण उसकी विद्वता की धाक सब विद्वानों ने स्वीकार कर ली ।
गार्गी के प्रश्नों से सब को यह बात स्पष्ट हो रहा थी कि वह जिस भी विषय का प्रश्न पूछ रही थी, उस विष्य का समग्र नहीं तो अत्यधिक ग्यान तो उसे था ही । वह बडे सोच समझ कर , बडी छानबीन के साथ अपने प्रश्न रख रही थी । इस प्रकार के गहन प्रश्नों में एक एसा प्रश्न आ ही गया , जिस पर याग्यवल्क्य को रुक जाना पडा , निरुतर होना पडा , वह गार्गी के इस प्रश्न का उतर न दे सके ।
गार्गी बडी बुद्दिमान महिला थी । वह किसी को अपमानित करने के लिए इस सभा में नहीं आई थी तथा इस उद्देश्य से उसने अपने प्रश्न पूछने आरम्भ नहीं किए थे । याग्यवल्क्य को तो वह किसी भी अवस्था में अपमानित नहीं करना चाहती थी क्योंकि वह अपने समय के एक बहुत बडे या यूं कहें कि अन्यतम विद्वान थे । अत: उसने तत्काल यह घोषणा उस सभा में सबए सामने कर दी कि ” याग्यवल्क्य एक अन्यतम विद्वान हैं , एसा कोई नहीं है जो उन्हें हरा सके , पराजित कर सके ।”
गार्गी चाह्ती तो इस सभा में जहां उसने अपनी विद्वता की धाक जमाई थी,वहां याग्यवल्क्य को पराजित बता कर सर्वोतम विद्वान के पद पर आरूट हो सकती थी किन्तु नहीं जैसी वह उदार व दानी थी , एसी महिलाओं के कारण ही हमारा यह देश निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर रहा है । अत: गार्गी विश्व के विद्वानों के लिए ज्योति स्तम्भ के रुप में जानी जाती है ।

दर्शना देवी डा. अशोक आर्य
१०४- शिप्रा अपार्ट्मेन्ट, कौशाम्बी,गाजियाबाद २०१०१०
चलवार्ता ०९७१८५२८०६८
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