तुलसीजी का ठाकुरजी से विवाह
अपने जीवन के अन्तिम दिनों में पण्डित श्री रामचन्द्रजी देहलवी पानीपत पधारे। आपने श्रोताओं से कहा कि आज मैं व्याज़्यान नहीं दूँगा। केवल शङ्का-समाधान करूँगा, आप लोग शङ्काएँ कीजिए, मैं उज़र दूँगा। एक सज्जन ने प्रश्न किया-‘‘आपके आगमन से कुछ दिन पूर्व यहाँ तुलसीजी से ठाकुर का विवाह सज़्पन्न हुआ है। लोगों ने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की। आपका इस विषय में ज़्या विचार है?’’
श्रद्धेय पण्डितजी ने कहा-‘‘मुझे तो लोगों से भी अधिक हर्ष हुआ है। मेरे हर्ष का कारण यह है कि यह विवाह महर्षि दयानन्द के सिद्धान्तानुसार जाति-बन्धन तोड़कर हुआ है, परन्तु एक बात
स्मरण रखें कि विवाह का मुज़्य उद्देश्य सन्तान की उत्पज़ि है। ये दज़्पती (तुलसी का पौधा व पत्थर का ठाकुर) संसार से नि-सन्तान ही जाएँगे। इनकी गोदी कभी भी हरी न होगी।’’