तुज़्हें याद हो कि न याद हो
1903 ई0 की बात है प्रसिद्ध विद्वान् व लेखक श्री मुंशी इन्द्रमणिजी मुरादाबाद के एक अज़ीज़ भगवतसहाय भ्रष्ट बुद्धि होकर मुसलमान बन गये। वह मुंशी इन्द्रमणि, जिसकी लौह लेखनी से इस्लाम काँपता था, उसी की सन्तान में से एक मुसलमान बन जाए! मुसलमान तब वैसे ही इतरा रहे थे जैसे हीरालाल गाँधी के मुसलमान बनने पर। तब आर्यसमाज लाहौर में मुंशीजी के उस पौत्र को पुनः शुद्ध करके आर्यजाति का अङ्ग बनाया गया। मुंशी जगन्नाथदास के बहकावे
में आकर ऋषि दयानन्द व आर्यसमाज के विरुद्ध निराधार बातें कहने व लिखनेवाले मुंशी इन्द्रमणि तब जीवित होते तो ऋषि के उपकारों का ध्यान कर मन-ही-मन में कितना पश्चाज़ाप करते! आज भी इस बात की आवश्यकता है कि आर्यसमाज शुद्धि के कार्य को सतर्क व सक्रिय होकर करे। इसके लिए जन्म की जाति-पांति की गली-सड़ी कड़ियाँ तोड़ने का हम सबको साहस
करना चाहिए।