वाह! जूता सिर पर उठा लिया
हिमाचलप्रदेश के सुजानपुर ग्राम में आर्यसमाज के तपस्वी महात्मा रुलियारामजी बजवाड़िया धर्म-प्रचार कर रहे थे। तब हिमाचल में प्रचार करना कोई सरल काम न था। आर्यों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ता था। किसी ने पण्डितजी पर जूता दे मारा। जूता जब उनके पास आकर गिरा तो आपने उसे उठाकर सिर पर रख लिया। विरोधी को यह कहकर धन्यवाद दिया कि चलो,
कुछ तो मिला। ऋषि दयानन्दजी की भी यही भावना होती थी कि आज पत्थर वर्षाते हो, कभी फूल भी वर्षेंगे। ऐसे पूज्य पुरुषों के तप-त्याग से ही समाज आगे बढ़ा है।