वे सगर्व झाड़ू लगाया करते थे
प्रिंसिपल लाला देवीचन्दजी मिडिल परीक्षा उज़ीर्ण करके गुरदासपुर के राजकीय विद्यालय की नवम् कक्षा में प्रविष्ट हुए। वे अपने कस्बे बहरामपुर (दीनानगर के पास) में ही आर्यसमाज के
सज़्पर्क में आ चुके थे। जब गुरदासपुर आये तो मास्टर मुरलीधरजी उनको गणित पढ़ाया करते थे। इन मास्टर मुरलीधरजी ने ऋषि के दर्शन किये थे। वे आर्यसमाज की प्रथम पीढ़ी के एक विद्वान नेता थे। मुज़्य रूप से मुरलीधर जी ड्राइंग टीचर थे।
मास्टरजी अपने छात्रों को ऋषि के तेज, ब्रह्मचर्य-बल, योग्यता और ईश्वर-विश्वास की घटनाएँ सुनाया करते थे। लाला देवीचन्दजी पर आर्यसमाज का और रंग चढ़ा। मास्टरजी ने आपको यह कार्य सौंपा कि रविवार को सबसे पहले जाकर समाज-मन्दिर में झाड़ू लगाया करें। जब कभी लाला देवीचन्द कुछ देर से आर्यसमाजमिन्दर में पहुँचते तो मास्टर मुरलीधर स्वयं ही सगर्व आर्यसमाज मन्दिर में झाड़ू देने का कार्य किया करते थे। इसी धर्मभाव से वे लोग ऊँचे उठे और इन लोगों की लगन और तड़प ये यह समाज फूला-फला।