वे इतने सादगी पसन्द थे
पण्डित श्री शान्तिप्रकाशजी से कहा गया कि अब तो टीनोपाल का युग आ गया है। आप अपने कपड़ों को नील ही लगा लिया करें। बड़ी सरलता से उज़र दिया कि इससे मेरे स्नेही पुराने आर्यभाइयों को कष्ट होगा। पूछा गया-‘पण्डितजी! इससे आर्यों को कैसे कष्ट पहुँचेगा?’’ पण्डित शान्तिप्रकाशजी शास्त्रार्थमहारथी बोले,‘‘सब लोग मुझे इसी वेशभूषा में पहचानते हैं। मुझे दूर से आताजाता देखकर आर्यलोग मेरी पीठ देखकर ही जान लेते हैं कि शान्तिप्रकाश आ गया। इसलिए मैं नील-वील के चक्कर में नहीं पड़ूंगा। मित्रों से इतना ह्रश्वयार? इतनी सादगी! वे कितने महान् थे!