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उत्तम सामग्री से यज्ञ करें

ओउम्
उत्तम सामग्री से यज्ञ करें
डा. अशोक आर्य
यज्ञ करता यज्ञ करते समय जैसा शुद्ध घी तथा जैसी शुद्ध सामग्री का प्रयोग यज्ञ में करता है , उसे तदनुरूप ही वसुओ की प्राप्ति होती है | तदनुरुप ही सफ़लतायें मिलती हैं । इस लिए यज्ञ में सदा उत्तम घी व सामग्री का ही प्रयोग करना चाहिए । इस सम्बन्ध में ऋग्वेद का यह मन्त्र भी इस पर ही प्रकाश डालते हुए उपदेश करता है कि : –

उपयमेतियुवतिःसुदक्षंदोषावस्तोर्हविष्मतीघृताची।
उपस्वैनमरमतिर्वसूयुः॥ ऋ07.1.6
1. उतम हवियों से यज्ञ करें
उत्तम बल वाले अथवा जिस उत्तम बल की कारणभूत अग्नि को हम प्रतिदिन प्रात: व सायं काल में शुद्ध व तीव्र हवी अर्थात् घी व सामग्री आदि को इस अग्नि के साथ मिलाते हैं , घी व सामग्री की आहुति चम्मच द्वारा इस यज्ञ में देते हैं , इस से अग्नि को दीप्ति प्राप्त होती है । इस प्रकारत की आहुतियों से अग्नि तीव्र होती है , तेज होती है । इस प्रकार चम्मच से घी को पा कर अग्नि का प्रकाश बढ़ जाता है ।
२. वसुओं की यज्ञाग्नि
इस प्रकार से दीप्त यह अग्नि यज्ञ कर्ता को वसुओ की कामना वाली होती है , अनेक प्रकार के वसुओ को प्राप्त कराती है । इससे यज्ञ कर्ता को अनेक पकार की उपलब्धियां मिलती हैं । इस प्रकार यज्ञ करने वाले को सब प्रकार की प्राप्तियां हो जाती हैं । आओ इस प्रकार किये जाने वाले यज्ञ तथा इससे होने वाले हित पर विचार करें :-
३. यज्ञ की समिधा उतम हो
हैं | इससे एक परम्परा की लकीर तो हम पिट सकते हैं किन्तु यज्ञ में डालने योग्य समिधा से जब हम यज्ञ न कर किसी अन्य लकड़ी को समिधा बना कर यज्ञ अग्नि में डालते हैं तो जो गुण या दोष हमारे स्वास्थ्य के लिए हो सकते हैं , वह गुण या दोष ही हमें प्रतिफल में मिलते हैं | इस लिए यज्ञ में डाली जाने वाली लकड़ी वही ही प्रयोग की जानी चाहिए , जिस में रोग नाश कि क्षमता हो अन्यथा अंधविश्वास रूपी यज्ञ तो हम कर लेवेंगे किन्तु हितकारक यज्ञ न कर पावेंगे | यह भी हो सकता है कि जिस लकड़ी का हम यज्ञ में प्रयोग कर रहे अं , वह कहीं स्वास्थ्य के लिए हानि कारक ही हो | अत: इससे होने वाली हानि के परिणाम हमारे शरीर पर प्रकट हों तो हम यह कहते हुए यज्ञ के विरोधी ही हो जावें कि यह सब यज्ञ करने से हुआ है | इसलिए वह समिधा ही प्रयोग किया जावे , जिस का प्रयोग करने के लिए शास्त्रों में उपदेश किया गया हो |
४. यज्ञ में शुद्ध घी का प्रयोग
यज्ञ के प्रति श्रद्धा न रखने वाले लोग आज यह कहने लगे हैं कि शुद्ध घी न भी डाला जावे तो क्या है ? यज्ञ तो सरसों के तेल, तिल के तेल, भैंस के घी आदि किसी भी चिकनी वास्तु से कर लें | यह आवश्यक नहीं कि गाय का घी ही यज्ञ में प्रयोग किया जावे |
५. उतम सामग्री का प्रयोग
ठीक इस प्रकार ही सामग्री की भी अवस्था है | जैस सामग्री का प्रयोग करने का आदेश हमारे शास्त्रों ने दिया है , उसमें कहा गया है कि इस सामग्री में कुछ सुगंध बढाने वाली बूटियाँ डाली जावें | सामग्री का कुछ भाग पोष्टिक पदार्थों से बनाया जावे | इसके अतिरिक्त एक भाग रोग नाशक जड़ी बूटियाँ भी एक निश्चत मात्रा में डालने के लिए कहा गया है | जब हम यह सब पदार्थ एक निश्चित अनुपात में मिला कर सामग्री तैयार करते हैं और इस सामग्री से हमारी वायु मंडल शुद्ध हो कर सुगंध से भर जाता है | हमारा शरीर इस यज्ञ के वायु से , इस यज्ञ के धुएं को वायुमंडल से प्राप्त कर पुष्टि को प्राप्त होता है | इसा सब के साथ ही साथ जब इस प्रकार के यज्ञ के वायु क्षेत्र में हम निवास करते हैं तो हमारे शरीर के अन्दर निवास करने वाले रोग के कीटाणुओं का नाश होने लगता है तथा हम अनेक प्रकार के रोगों से बच जाते हैं |
जब हम यज्ञ को केवल एक परिपाटी मान लेते हैं | अंधविश्वास मान कर इस में किसी भी प्रकार की लकड़ी का प्रयोग करते हैं , किसी भी दुर्गन्ध से युक्त बूटियों को यज्ञ में प्रयोग करते हैं | कैसा भी तैलादि हम यज्ञ में प्रयोग करते हैं तो वायु मंडल में आने वाले प्रतिफल तो उस वस्तु के अनुरूप ही होगा , जो उस में डाली जा रही होगी | देखने और सुनाने में हम ने एक परिपाटी को पूर्ण करते हुए दिखावे का यज्ञ तो कर लिया किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से जिसे यज्ञ कहा गया है , आयुर्वेद की दृष्टि से जिसे यज्ञ कहा गया है , वेदादि शास्त्रों में जिसे यज्ञ कहा गया है , इस प्रकार की बेकार वस्तुओं के कारण यज्ञ का जो हितकारक परिणाम हमें मिलने वाला था , वह नहीं मिला पाता |
इस प्रकार के यज्ञ के कारण हमारे शारीर को अनेक प्रकार के संकट आ घेरते हैं | पास पडौस के लोग बगी इस प्रकार के यज्ञीय परिवार से बचना चाहते हैं | शास्त्रों ने यज्ञ करने के जो लाभ बताएं हैं , वह न मिलाने से हम यज्ञ से घृणा करने लगते है किन्तु यह दोष यज्ञ का न होकर हमारा अपना ही दोष होता है |
इस कारण ही यह मन्त्र हमें उपदेश कर रहा है कि हम प्रतिदिन दो काल यज्ञ करें और इस किये जाने वाले यज्ञ में शास्त्रोक्त समिधा , शास्त्रोक्त घी तथा शास्त्रोक्त सामग्री का ही प्रयोग करें तो कोई कारण नहीं कि इस यज्ञ का शास्त्र में बताये अनुसार लाभ हमें न मिले | यह लाभ निश्चित रूप से हमें मिलेगा | बस हम बड़ी श्रद्धा से उतम घी का, उत्तम समिधा का तथा उतम सामग्री का प्रयोग इस यज्ञ के अन्दर करें | इस प्रकार से परमात्मा प्रसन्न होगा तथा इसके उतम परिणाम हमें देगा |
डा. अशोक आर्य