त्रैतवाद की चर्चा
पण्डित श्री रामचन्द्र देहलवी एक स्कूल के पास से निकल रहे थे। ईसाइयों का स्कूल था। व्यायाम अध्यापक दौड़ें करवा रहा था।
छात्रों से अध्यापक ने कहा-‘‘मैं कहूँगा, एक, दो, तीन-जब तीन कहूँ, तब दौड़ना, पहले नहीं।’’
देहलवीजी ने बड़े प्रेम से कहा-‘‘दो पर ज़्यों नहीं दौड़ना? तीन पर ही बस ज़्यों? ज़्यों नहीं एक, दो, चार, पाँच, छह पर? वह कुछ उज़र न दे पाया। देहलवीजी कहा करते थे कि यह एक, दो,
तीन, त्रैतवाद का परज़्परागत संस्करण है।’’ मानव मन पर तीन अनादि पदार्थों की सज़ा का ज्ञान करवाने के लिए पूरे विश्व में यही परज़्परा है।