तो सेवा कौन करेगा
निज़ाम राज्य में आर्यों ने जो बलिदान दिये व कष्ट सहे हैं, वे अपने-आपमें एक अद्वितीय इतिहास है। खेद है कि न तो निज़ाम राज्य के किसी सुयोग्य आर्य युवक ने इस इतिहास को सुरक्षित करने का सत्साहस दिखाया और न ही राज्य के बाहर के आर्यों ने और न सभाओं ने इधर विशेष ध्यान दिया है। पण्डित श्री नरेन्द्रजी इस दिशा में कुछ ठोस कार्य कर गये हैं। अब तो कई अच्छे ग्रन्थ छपे हैं।
निज़ाम की कोठी (किंग कोठी) की देखभाल करनेवाले एक व्यक्ति श्री राय ललिताप्रसादजी आर्य बन गये। वे बड़े मेधावी, साहसी, विनम्र, सेवाभाववाले, साहित्यिक प्रतिभावाले आर्य मिशनरी थे। उच्च कोटि के वैद्य भी थे। पलेग व हैज़ा के एक सुदक्ष चिकित्सक थे। लक्ष्य धन कमाना नहीं था, घर फूँक तमाशा देखनेवाले लेखराम के चरणानुरागी थे।
राज्य में जब-जब महामारी फैली राज्य के दिलजले आर्यवीर सेवा के लिए आगे निकले। श्री ललिताप्रसादजी सरकारी नौकर होते हुए आर्यसमाज के स्वयंसेवक के रूप में मुर्दों के शव कन्धे पर उठाकर सेवा कार्य में जुट जाया करते थे। ह्रश्वलेग का नाम सुनकर ही लोग भाग खड़े होते थे। ललिताप्रसादजी अपने एकमात्र पुत्र ‘देवव्रत’ को साथ लेकर पलेग के मुर्दों को उठाने चल पड़ते। स्व0 श्री देवव्रत शास्त्री को बज़्बई का सारा आर्यजगत् जानता था।
1940 ई0 में गुलबर्गा में पलेग फैली तो सब जन नगर छोड़कर बाहर भागने लगे। आपको भी कहा गया कि चले चलो। आपका कथन था कि यदि वैद्य-डॉज़्टर ही भाग गये तो सेवा कौन
करेगा? आप पलेग के रोगियों की सेवा करते हुए स्वयं भी इसी रोग से चल बसे।
आर्यजन! ऐसी पुण्य आत्मा को मैं यदि रक्तसाक्षी (हुतात्मा) की संज्ञा दे दूँ तो कोई अत्युक्ति न होगी। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि हमारी मंच से ऐसे प्राणवीरों के उदाहरण न देकर बीरबल-
अकबर व इधर-उधर की कल्पित कहानियाँ सुनाकर वक्ता लोग अपने व्याज़्यानों की रोचकता बनाते हैं।
यदि हम आर्यजाति को बलवान् बनाना चाहते हैं तो हमें अतीत काल के और आधुनिक युग के तपस्वी, बलिदानी, ज्ञानी शूरवीरों की प्ररेणाप्रद घटनाएँ जन-जन को सुनाकर नया इतिहास
बनाना होगा।
आर्यसमाज भी अन्य हिन्दुओं की भाँति अपने शूरवीरों का इतिहास भुला रहा है। पण्डित लेखराम, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा नारायण स्वामी, स्वामी स्वतन्त्रानन्द, पण्डित मुरारीलालजी, स्वामी दर्शनानन्द, पण्डित गणपतिशर्मा, पण्डित गङ्गप्रसाद उपाध्याय, पण्डित नरेन्द्रजी पं0 गणपत शास्त्री सरीखे सर्वत्यागी महापुरुषों के जीवन-चरित्र कितने छपे हैं? सार्वदेशिक या प्रान्तीय सभाओं ने इनके चरित्र छपवाने व खपाने में कभी रुचि ली है? उपाध्यायजी सरीखे
मनीषी का खोजपूर्ण प्रामाणिक जीवन-चरित्र मैंने ही लिखा है, किसी भी सभा ने एक भी प्रति नहीं ली। वैदिक धर्म के लिए छाती तानकर कौन आगे आएगा? प्रेरणा कहाँ से मिलेगी?