टाँगा किस लिए लाये?
आर्यसमाज नयाबाँस, दिल्ली-6 की आधारशिला पूज्य भाई परमानन्दजी ने रखी। भाईजी के प्रति इस समाज के सदस्यों को बहुत श्रद्धा थी। एक बार इसी समाज के किसी कार्यक्रम पर देवतास्वरूप भाई परमानन्दजी आमन्त्रित थे। श्री पन्नालाल आर्य उन्हें स्टेशन पर लेने के लिए गये। नयाबाँस का समाज-मन्दिर स्टेशन के समीप ही तो है।
श्री पन्नालाल जी भाईजी के लिए टाँगा ले-आये। टाँगेवाले उन दिनों एक सवार का एक आना (आज के छह पैसे) लिया करते थे। आर्यसमाज की आर्थिक स्थिति से भाईजी परिचित ही थे।
भाईजी को जब टाँगे पर बैठने के लिए कहा गया तो आप बोले, ‘‘पन्नालाल! टाँगा ज़्यों कर लिया? पास ही तो समाज-मन्दिर है।
आर्यसमाजों में धन कहाँ है? कितने कार्य समाज ने हाथ में ले-रखे हैं!’’ गुरुकुल, पाठशाला, गोशाला व अनाथालय, शुद्धि और पीड़ितों की सहायता………न जाने किन-किन कार्यों के लिए आर्यसमाजों को धन जुटाना पड़ता है।
श्री पन्नालालजी ने उज़र में कुछ कहा, परन्तु भाईजी का यही कहना था कि यूँ ही समाज के धन का अपव्यय नहीं होना चाहिए। मैं तो पैदल ही पहुँच जाता। ऐसा सोचते थे आर्यसमाज के निर्माता। आज अनेक अन- आर्यसमाजी लोग, आर्यसमाजों में घुसकर समाज की धन-सज़्पज़ि
को हड़पने में जुटे हैं। सारे देश का सामाजिक जीवन दूषित हो चुका है। आर्य लोग अपनी मर्यादाओं को न भूलें तो मानवजाति व देश का बड़ा हित होगा।
यह घटना श्री पन्नालालजी ने स्वयं सन् 1975 में मुझे सुनाई थी। भाईजी की सहारनपुर की भी एक ऐसी ही घटना सुनाई। तब भाईजी केन्द्रीय विधानसभा (संसद्) के सदस्य थे। वहाँ भी
पन्नालालजी आर्य टाँगा लेकर आये। भाईजी ने टाँगा देखते ही कहा-‘‘पन्नालाल! मेरी दिल्ली में कही हुई बात भूल गये ज़्या?’’