जातिनिर्मूलन और दलितोद्धार के सन्दर्भ में आर्यसमाज के प्रामाणिकतापूर्ण ठोस-क्रियाकलापों से डॉ0 अम्बेडकर अत्यन्त ही प्रभावित थे। स्वामी दयानन्द के अनुयायी गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक स्वामी श्रद्धानन्द (1856-1926) के सन्दर्भ में वे अपनी रचना ’व्हासॉट कांग्रेस एण्ड गाँधी हैव डन टू दि अन्टचेबल्स‘ में लिखते हैं कि ’स्वामी श्रद्धानन्द दलितों के सर्वश्रेष्ठ सहायक और समर्थक थे।‘ अस्पृश्यता-निवारण से सम्बन्धित (कांग्रेस की) समिति में रहकर यदि उन्हें स्थिरता से काम करने का अवसर मिल पाता तो निःसन्देह एक बहुत बड़ी योजना आज हमारे सामने विद्यमान होती।“
स्वामी श्रद्धानन्दजी के निधन का समाचार पाकर डॉ0 अम्बेडकर जी की उपस्थिति में जो शोक प्रस्ताव पारित हुआ, उसकी शब्दावली इस प्रकार है-”स्वामी श्रद्धानन्दजी की अमानवीय हत्या का समाचार पाकर इस सभा को (अर्थात्-बहिष्कृत वर्ग, कुलाबा जिला परिषद्, प्रथम अधिवेशन, 19-20 मार्च 1927 को) अतिशय दुःख हुआ है। हमारा यह अनुरोध है कि उनके द्वारा बनाई गई योजना के अनुसार हिन्दू जाति अस्पृश्यता का निर्मूलन करे।“