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सुगन्धित वैदिक मुस्कान

सुगन्धित वैदिक मुस्कान

दिवंगत यतिवर आचार्य बलदेव जी महाराज

– डॉ. सारस्वती ‘मोहन मनीषी’

निश्चल मन के देवोपम इन्सान थे, नैष्ठिक जी।

यज्ञव्रती दृढ़ संकल्पों की शान थे, नैष्ठिक जी।।

गुरुवर दयानन्द को राम मानकर कार्य किया।

आर्य जाति के सरल-सहज हनुमान थे, नैष्ठिक जी।।

खण्डन-मण्डन नहीं सिर्फ मण्डन करना जाना।

अभिशप्तों के लिए सतत वरदान थे, नैष्ठिक जी।।

अपनी चिन्ता छोड़ दूसरों को निश्चिन्त किया।

अपमानों के बीच खड़े समान थे, नैष्ठिक जी।।

सदा रहे विजयेन्द्र निराशा पास न आने दी।

आशाओं के केन्द्र विरल कप्तान थे, नैष्ठिक जी।।

कहूँ आधुनिक कृष्ण आपको तो भी कम ही है,

गौमाता के लिए सतत अभियान थे, नैष्ठिक जी।।

दयानन्द की फुलवारी में सदा बसन्त रहे।

इस चिन्ता में अस्त हुए दिनमान थे, नैष्ठिक जी।।

एक नहीं अगणित शिष्यों से मिलकर यह जाना।

अद्भुत ऊहा के अनुपम विद्वान् थे, नैष्ठिक जी।।

मिथ्या भाषण कभी न भाया सदा सत्य गाया।

शुद्ध सुगन्धों की वैदिक मुस्कान थे, नैष्ठिक जी।।

यतियों के भी यती-जती सागर मीठे जल के।

आने वाले संकट के अनुमान थे, नैष्ठिक जी।।

पाखण्डों की पीठ टिकाने में न रहे पीछे।

आल्हा ऊदल वीर मर्द मलखान थे, नैष्ठिक जी।।

पुनः व्याकरण सूर्य अस्त हो लगे ऐसा।

शिष्यों हित गुरुकुल में गंगा स्नान थे, नैष्ठिक जी।।

धीरे-धीरे कंचन काया की छीजी माया।

किसे पता था कुछ दिन के महमान थे, नैष्ठिक जी।।

नमन आर्य आचार्य सन्त बलदेव सजल मन से।

अश्रु कह रहे कितने अधिक महान् थे, नैष्ठिक जी।।

सभी मनीषी, मिलकर अब एकत्व राग गायें।

सदा सुनाई देगी ऐसी तान थे, नैष्ठिक जी।।

– रोहिणी, दिल्ली