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संयमीव्यक्ति मृत्यु पर सदा विजयी होता है

संयमीव्यक्ति मृत्यु पर सदा विजयी होता है
डा. अशोक आर्य

इस सृष्टी का प्रत्येक व्यक्ति ही नहीं अपितु प्रत्येक जीव दीर्घ आयु की कामना करता है
| वह चाहता है कि कभी उसकी मृत्यु हो ही नहीं | विगत लेख में ऋग्वेद के मन्त्र संख्या १०.१८.२ तथा
अथर्व वेद के मन्त्र संख्या १२.२.३० के माध्यम से हमने बताया था कि मृत्यु पर विजय पाने के लिए
आवश्यक है कि म्रत्यु से भय न हो , यज्ञ आदि कर्मों से दीर्घ आयु के साधन जुटावें, धन धन्य से भरपूर
हों अर्थात समृद्ध हों तथा पवित्र हों | इन साधनों से संपन्न होने पर मृत्यु का भय चला जाता है तथा व्यक्ति प्रोपकारमय जीवन अपनाते हुए व प्रसन्नचित रहते हुए लम्बी आयु प्राप्त करता है | अथर्ववेद में भी म्रत्यु से निर्भय होने की प्रेरणा देते हुए इस प्रकार कहा है : –

मृत्योरहं ब्रह्मचारी यदास्मी
निर्याचन भूतात पुरुषं यमाय |
तमहं ब्रह्मणा तपसा श्रमेण –
अनायेनं मेखालाया सिनामी || अथर्ववेद ९.१३३.३ ||

मै म्रत्यु के लिए समर्पित ब्रह्मचारी हूँ , इस नाते मैं उपस्थित लोगों में से एक व्यक्ति को यम अर्थात संयम के लिए मांगता हूँ | मैं उसे ज्ञान , तप व परिश्रम के लिए, पुरुषार्थ के लिए इस मेखला से बांधता हूँ |

मेखला बंधन का ब्रह्मचारी के लिए विशेष महत्त्व होता है | इस मन्त्र में इस मेखला के बंधन के महत्त्व का वर्णन किया गया है | यह मेखला एक पतली सी रस्सी होती है , जो करधनी , तगड़ी अथवा धागे आदि से बनी होती है | जिस समय गुरुकुल के ब्रह्मचारी की अथवा गृह पर ही ब्रह्मचारी बालक को यज्ञोपवीत धारण करवाया जाता है , उस समय ही यह मेखला भी कटी स्थल पर पहनाई जाती है | यह कटिबद्धता का प्रतीक है | इस का भाव है कि आज से बालक ने जो वेद अध्ययन
का , शिक्षा प्राप्ति का जो संकल्प लिया है, उसकी पूर्णता के लिए वह बालक कटिबद्ध हो कर जुटा रहेगा
,तब तक जुटा रहेगा, जब तक कि वह पूर्ण निपुणता प्राप्त नहीं कर लेता | इससे स्पष्ट होता है कि यह एक संकल्प है , जिसे पूरा करने की स्मृति यह मेखला प्रत्येक क्षण उस ब्रह्मचारी को करवाती रहती
है| जिस के भी यह मेखला पहनी हुयी दिखाई देती है , आगंतुक तत्काल समझ जाता है कि यह बालक ब्रह्मचारी है , इस ने ज्ञान को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करने का संकल्प लिया है , इस निमित यह कटिबद्ध है, कृत संकल्प है |

इस मन्त्र में इस मेखला को बांधने के चार लाभ बताये गए हैं | यथा : –

१. मृत्यु पर विजय : –
२. ज्ञान प्राप्त
३. साधना का अथवा ताप का अभ्यास
४. कठोर परिश्रम की आदत डालना

मृत्यु पर प्रत्येक व्यक्ति विजय पाने की आकांक्षा अपने ह्रदय में रखता है किन्तु वह जानता नहीं की इस पर विजय कैसे पाई जावे ? वह प्रतिदिन इस विजय को पाने के लिए अनेक उपाय करता है किन्तु वह ज्यों ज्यों प्रयास करता है त्यों त्यों ही एक मकड़जाल में फंसता ही चला जाता है , क्योंकि वह जो मृत्यु पर विजय पाने के उपाय करता है, वह उपाय वास्तव में मृत्यु को बस में करने के नहीं होते अपितु मृत्यु की और धकेलने वाले होते हैं | मन्त्र बताता है की मृत्यु पर विजय पाने के लिए संयम का होना आवश्यक है | जो संयमी नहीं , वह मृत्यु पर विजय नहीं पा सकता | तभी तो मन्त्र कहता है की ” मैं संयमी व्यक्ति हूँ | मुझे मृत्यु से लड़ना है | मुझे अपने प्राणों की चिंता नहीं | मुझे समाज में से ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है , जो इस निमित अपने प्राण दे सकें | ”

इस प्रकार मन्त्र कहता है कि संयमी व्यक्ति ही मृत्यु विजयी हो सकता है | समाज को चाहिए कि ऐसे संयमी व्यक्तियों की खोज करे , ऐसे संयमी व्यक्तियों का निर्माण करे , जो म्रत्यु से भय- भीत न हों अपितु मृत्यु के भय से रहित होकर सदा पुरुषार्थ में लगे रहें , ज्ञान उपार्जन में लगे रहें | प्रयास करेंगे , परिश्रम करेंगे तो सफलता तो मलेगी ही क्योंकि सफलता सदा उस का ही वर्ण करती है, जो पुरुषार्थ करता है | अत: जो व्यक्ति संयम के द्वारा अथवा संयम के दूसरे नाम ब्रह्मचर्य के द्वारा समर्पण की भावना से लगा रहता है , नियमों का पालन करता रहता है , तो ऐसे पुरुषार्थी के ह्रदय में कभी मृत्यु आदि दु:खों का भय नहीं रहता | उस में निर्भीकता की भावना अत्यंत बलवती हो जाती है |

वेद में प्रत्येक संकल्प के लिए अनेक प्रतीक बनाए हुए हैं , हमें सदा हमारे संकल्प का स्मरण कराते रहते हैं | ऐसे प्रतीकों में से मेखला भी एक प्रतीक है , एक चिन्ह है , जो हमें प्रतिक्षण स्मरण दिलाती है कि हम ने ज्ञानार्जन करना है | ज्ञानार्जन के लिए अपने जीवन को एक साधना में , एक
नियम में बांधना है तथा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कठोर परिश्रम करना है | यह मेखला इस सबके प्रतीक स्वरूप ही कटी – स्थान पर धारण की जाती है | मृत्यु पर विजय पाने के लिए यह आवश्यक है कि हम ज्ञान में पूर्ण दक्ष हों , हमारा जीवन तप से भरपूर हो , हम निरंतर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ध्येय – पथ पर तत्पर रहे | एसा करने से ही मानव मृत्यु पर विजयी होता है तथा एसा विजेता ही प्रगति के पथ पर , सफलता के पथ पर अग्रसर रहता है | यदि यह गुण नहीं हैं तो वह मार्ग में ही

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कहीं भटक जाता है , म्रत्यु को प्राप्त हो जाता है | अत: मृत्यु पर विजय पाने के अभिलाषी को ब्रह्मचर्य की मेखला धारण कर कटिबद्ध हो दृढ संकल्पी हो ज्ञान प्राप्ति में जुटना होगा | यही एकमेव उसकी सफलता का मार्ग है, यही एकमेव मृत्यु विजयी होने का मार्ग है , अन्य कोई मार्ग नहीं |

डा. अशोक आर्य