समता के सेनानी:
छत्रपति शाहू, डॉ0 अम्बेडकर और यशवंतराव चौहान
महाराष्ट्र के ज्येष्ठ इतिहास संशोधक व इतिहासकार डॉ0 जयसिंहराव पवार के अनुसार (राजर्षि शाहू) महाराज ने सामाजिक क्रान्ति की मशाल डॉ0 अम्बेडकर जी के हाथों में सौंपी थी। महार समाज का एक युवक अमेरिका से एम0ए0, पी-एच0डी0 की शिक्षा पाकर आया है, यह जानकर वे अपूर्व आनन्द से भाव-विभोर हो मुम्बई परल स्थित बस्ती में उनसे मिलने गये और उन पर अपना हर्ष-स्नेह उड़ेलते हुए बोले, ”अब मेरी चिन्ता दूर हो गई है। दलितों को उनका नेता मिल गया है।“
तत्पश्चात् कुछ समय बाद ही डॉ0 अम्बेडकरजी को कोल्हापुर पधारने का निमन्त्रण देकर और और उनके कोल्हापुर आने पर अपने रथ में बिठाकर शाहू महाराज उन्हें अपने ’सोनवली‘ कैम्प पर ले आये और अपनी पंक्ति में बिठलाकर उनके साथ उन्होंने सहभोजन किया। तदनन्तर उन्होंने अपने राजघराने की ओर से सम्मान और गौरव की रेशमी पगड़ी प्रदान कर उनका अभिनन्दन किया। इस अवसर पर डॉ0 अम्बेडकर ने कहा था-”छत्रपति शाहूजी ने सम्मान की जो रेशमी पगड़ी मेरे सिर पर धारण करवाई है, उसका मैं आदर रखूँगा।“ वस्तुतः डॉ0 अम्बेडकरजी ने दलित-पतितों के उद्धार का कार्य केवल समस्त महाराष्ट्र में ही नहीं, अपितु अखिल भारतवर्ष में प्रसारित कर शाहू महाराज की रेशमी पगड़ी का सम्मान रखा। (राजर्षि शाहू छत्रपतिः एक मागोवा (सिंहावलोकन) पृष्ठ-2-3)।
स्थूल रूप से देखा जाए तो ’महार वर्ग‘ गाँव का ’वतनदार‘ था, परन्तु उसे इसके नाम पर पूरे गाँव की सेवा, नौकरी और बन्धुआ मजदूरी करनी पड़ती थी। महार समाज को पीढ़ी-दर-पीढ़ी से गुलामी की जंजीरों में जकड़नेवाले ’महार वतन‘ को समाप्त करने का निश्चय कर शाहू महाराज ने 18 सितम्बर 1998 को एक विशेष राजाज्ञा निकाली, जिससे उक्त समाज अन्यों की तरह ’स्वतन्त्र प्रजाजन‘ बन गया, और उसकी गुलामगिरी के दुर्दिन समाप्त हो गये। शाहू महाराज द्वारा ‘महार वतन‘ को रदद् करने का सर्वाधिक आनन्द डॉ0 बाबासाहब अम्बेडकर को हुआ था। महारों ने इस गुलामगिरी का स्वयं त्याग करना चाहिए या सरकार ने इस ’महार-वतन‘ की गुलामी को कानून से नष्ट करना चाहिए, यह एक डॉ0 अम्बेडकर की जबरदस्त माँग थी, जिसे 1928 से 1957 तक मुम्बई की अनेक सरकारें पूरी नहीं कर पाईं, उसे 1918 में ही राजर्षि शाहू ने स्वयं स्फूर्ति से पूरा कर दिया था। मुम्बई राज्य में सन्-1958 में अपने-आपको शाहू महाराज और आर्यसमाजी शिक्षा संस्था का छात्र कहनेवाले (राजाराम कॉलेज कोल्हापुर के भूतपूर्व विद्यार्थी) मुख्यमन्त्री यशवंतराव बलवंतराव चौहान के कार्यकाल में महारों की उक्त गुलामगिरी नष्ट हुई (तत्रैवः-पृष्ठ 22-23)।