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प्रेम से रहने से सुख , शान्ति व समृद्धि

ओउम
प्रेम से रहने से सुख , शान्ति व समृद्धि
डा. अशोक आर्य
जो लोग ज्ञान से युक्त होते हैं , वह अपने जीवन को यज्ञमय बनाते हैं तथा अन्य लोगों को लडाई आदि से दूर रखते हुए उन्हें प्रेम , शान्ति से रहने की शिक्षा देते हैं । इस प्रकार ही हमारी पृथ्वी शान्ति स्वरुप चन्द्र में स्थित होगी , यह सुख ,. शान्ति व समृद्धि से भर जावेगी । इस बात को मन्त्र इस प्रकार समझा रहा है :-
पुरा क्रूरस्य विस्रपो विरप्शिन्नुदादाय प्रथिम जीवदानुम । यमैरयंश्चन्द्रमसि स्वधाभिरस्ताम धीरासोऽअनुदिश्य यजन्ते प्रोक्शणीरासादय द्विषतो वधोऽसि ॥ यजु. १.२८ ॥
हम अपने जीवन में अनेक प्रकार के युद्ध करते हैं । वास्तव में हमारा जीवन है ही एक संग्राम । इस जीवन संग्राम में हम जो अनेक प्रकार के युद्ध करते हैं , उन युद्धों में कुछ तो अपने अन्दर के शत्रुओं यथा काम , क्रोध आदि से तथा कुछ बाहर के शत्रुओं , हमारे विरोधियों या देश व धर्म के शत्रुओं से होते हैं । मन्त्र कहता है कि हम इन युद्धों से दूर रखने के लिए अपने जीवन को यज्ञमय बनावें । इस से स्पष्ट होता है कि यज्ञमय जीवन हमें युद्धों से रोकता है , लडाई झगडे की और प्रवृत करने के स्थान पर इन से बचाता है । इसलिए हम, अपने जीवन को यज्ञ बनावें । मन्त्र के आलोक में जब हम विचार करते हैं कि अपने जीवन को यज्ञमय बनावें तो पहले हमे यह जानना आवश्यक हो जाता है कि यह यज्ञा है क्या ,जिसके समान हमें अपना जीवन बनाने के लिए यहां कहा गया है ?
यज्ञ क्या है ? :-
यज्ञ क्या है ?, इसे जानने के लिए हमें अग्निहोत्र की सब क्रियाओं को समझना होता है , जो कि इस यज्ञा का ही एक मुख्य स्वरुप है । जब हम नित्य प्रति हवन करते हैं तो हम जानते हैं कि इस हवन को भी वेद में यज्ञ कहा है । यह हवन भी देव है , देवता है । इस सब को देखते हुए , इस के भाव को समझते हुए हम कह सकते हैं कि जो देता है वह देव है अथवा वह देवता है । हम यज्ञ कुण्ड में समिधा रखते हैं । इन समिधाओं को जला कर इन पर अनेक प्रकार की आहुतियां देते हैं । यह आहुतियां घी , सामग्री , फ़ल , दूध या पौष्टिक पदार्थ हो सकते हैं । इसमें अनेक रोग नाशक , अनेक सुगन्धित व अनेक प्रकार के पौष्टिक पदार्थ डाले गये होते हैं । इन पदार्थों को डालने का उद्देश्य चाहे कोई भी रहा हो किन्तु एक बात स्पष्ट होती है कि इस में जो डाला गया है , वह तो यज्ञ कुण्ड ने लिया है , दिया कुछ भी नहीं , फ़िर यह देव कैसे हुआ ? देने वाला कैसे हुआ ? इसे जानने के लिए यज्ञ की , हवन की कुछ विषद व्याक्या को देखना आवश्यक हो जाता है ।
विज्ञान कहता है कि मैटर न तो कभी जलता है , न कभी सूखता है तथा न ही समाप्त होता है । इस आलोक में हम समझ जाते हैं कि जो कुछ भी हमने यज्ञ में डाला है , वह न तो जल कर नष्ट होता है , न गल कर तथा न ही किसी अन्य ढ̇ग से नष्ट होता है । तो फ़िर यह जाता कहां है ? इस के लिए हमें एक प्रयोग करना होगा । हम अग्नि में एक मिर्च का छोटा सा टुकडा डाल देवें । यह टुकडा डालने पर जितनी दूरी तक के लोगों को नीछें आने लगती हैं , कम से कम उतनी दूरी तक तो यज्ञ में डाले घी और सामग्री का प्रभाव तो जाता ही है । इतनी दूर तक के लोगों को यज्ञ के लाभ मिलते हैं , इसमें डाले पदार्थों का प्रभाव होता है तथा वह रोग रहित हो कर सुगन्ध व पौष्टिकता का लाभ उठाते हैं । इस प्रकार यज्ञ मे जो कुछ डाला गया उसे अग्नि ने स्वयं न खा कर सूक्षम करके वायु मण्डल को दे दिया तथा वायु मण्डल ने इसे दूर दूर तक के लोगों में बांट दिया , प्रसाद रूप में दे दिया । अत: यज्ञ का लाभ दूर दूर तक के लोगों को जाता है । अब हम इस स्थिति में हैं कि यज्ञ से लडाईयां कैसे रुकती हैं ?
मन्त्र कहता है कि अपने जीवन को यज्ञमय बना कर युद्धों को रोकें । जब हम यज्ञ करते हैं तो इससे हमारा बहुत सा समय यज्ञ में लग जाता है तथा लडाई – झगडे के लिए समय ही नहीं बचता । इस प्रकार यह एक विधि है , जिससे युद्ध रुकते हैं । दूसरे यज्ञ नाम है दान का । यज्ञ का भाव है दूसरों की सहायता करना , भूखे को रोटी देना , वस्त्र हीन को वस्त्र देना , अशिक्षित को शिक्षा देकर सहायता देना । अत: किसी भी प्रकार हम जब किसी दूसरे के काम आते हैं तो यह यज्ञ कहा जाता है । जब हम दान करते हैं , किसी को रोटी , कपडा या मकान आदि के लिए सहायता देते हैं तो इसका नाम भी यज्ञ है । अन्धे को सडक पार कराने का नाम यज्ञ है अर्थात वह सब कार्य जिससे दूसरे के लिए सहायता होती है, उसे सुपथ पर लाया जाता है , उसे जीवन दिया जाता है , तो उसे हम यज्ञ कह सकते हैं ।
इस प्रकार जो व्यक्ति दान देता है , दूसरे की सहायता करता है तो उसके विरोधी धीरे धीरे विरोध की भावना से दूर होते चले जाते हैं तथा एक दिन एसा भी आता है कि जिस दिन यह विरोधी ही उसकी रक्षा के लिए आगे आते हैं । जब विरोधी ही रक्षक बन जाते हैं तो युद्ध की तो सम्भावना ही नहीं रहती । इस प्रकार दूसरों की सहायता से हम अपने दुशमन को भी अपना बना लेते हैं तथा यज्ञ के कारण लडाई को हम रोक पाने में सफ़ल हो जाते हैं । इस सब के आलोक में मन्त्र के माध्यम से परम पिता परमात्मा हमें तीन बिन्दुओं के द्वारा इस प्रकार उपदेश कर रहे हैं :-
१. अंगभंग करने वाले युद्ध को दूर कर :-
हमारे युद्ध भी अनेक प्रकार के होते हैं । कुछ युद्ध तो गाली गलोच तक ही सीमित होते हैं तो कुछ एसे भयंकर होते हैं कि जिस से किसी का बाजू कट जाता है तो किसी का पैर कट जाता है या कोई शरीर के किसी अन्य स्थान से घायल हो जाता है | इस प्रकार के युद्ध प्राणी के लिए बहुत भयानक होते हैं । इससे बचना प्राणी मात्र के लिए अत्यन्त आवश्यक हो जाता है । आज तो एसे भयानक यन्त्र बन गये हैं , गये , जिनका प्रभाव आज भी जापान के लोगों को घेरे हुए है जब कि बम गिरे को पौन शताब्दी से भी अधिक समय निकल चुका है ।
इस लिए मन्त्र कह रहा है कि इस प्रकार के युद्धो के फ़ैलने से पूर्व ही इनका समाधान निकाल कर लोगों को इन से बचाओ । इन युद्धों से बचाने के लिए ज्ञान का उपदेश दो । शास्त्रों की चर्चा करो । कथा , कीर्तन करो । इन सब साधनों से लोगों के दिलों को ठीक दिशा में लाकर उनके दिल को जीतो और युद्ध के उन्माद से बचाओ । आप विशाल ह्रद्य वाले तथा ज्ञानी हो | अपने प्रयास से लडाईयों के बोझ से इस पृथ्वी को बचाओ । यह पृथिवि अन्न दान कर जीवन देने वाली है किन्तु जब इस पृथ्वी पर युद्ध के बादल छा जाते हैं तो उगी हुई फ़सलें भी नष्ट हो जाती हैं । जब फ़सल ही नहीं होगी तो भूख की तृप्ति कैसे होगी ? इस लिए अन्न के भण्डार भरने के लिए भी युद्ध से पृथ्वी को बचाओ । जब अन्न भरपूर होंगे तो लोगों की प्रसन्नता भी बढ जावेगी ।
हमारे पास हिमांशु , ओषधीश आदि है । जहां चन्द्र सुख शान्ति का प्रतीक है । जिस प्रकार चन्द्र्मा की चान्दनी शीतलता देने वाली होती है , प्रसन्नता देने वाली होती है , सुख देने वाली होती है । उस प्रकार ही ज्ञानी लोग भी सुख व शान्ति का साम्राज्य दूर दूर तक ले जाने वाले होते हैं । जब वह यत्न करते हैं , प्रयास करते हैं , तो कोई न कोई मार्ग निकल ही आता है ,कोई न कोई समाधान निकल ही आता है । इस लिए ज्ञानी लोगों को सदा इस प्रकार का प्र॒यास करते रहना चहिये कि किसी प्रकार की लडाई , युद्ध आदि न होने पावें । युद्धों से इस पृथिवी को बचाते हुए सब और सुख और शान्ति का प्रसार करना चाहिये । जब पृथिवी सब प्रकार के अन्न आदि देकर हमें जीवन देती है तो युद्ध के द्वारा इस पृथिवी को कष्ट न देना चाहिये कहीं एसा न हो कि युद्ध की विषम स्थिति में यह पृथिवी कुछ पैदा न कर सके तथा भोजन के अभाव में हमारा जीवन ही कठिनाई में पड जावे । इस के परिणाम स्वरूप अत्यधिक होने वाली महंगई से हमारी खरीद शक्ति प्रभावित हो और हम कुछ खरीद ही न पावें तथा हमारी आवश्यकताएं ही पूरा करना कठिन हो जावे ।
२. विद्वान लोग उपदेश से लडाई को रोकते हैं :-
यह ही कारण है कि विद्वान, स्वाध्याय शील , ज्ञानी लोग अपने जीवनों को वेदानुकूल बनाते हुए संसार में सुख व शान्ति स्थापित करते हुए इस पृथिवी को भी सुखी वा शान्तमयी बनाते हैं । इस प्रकार पृथिवी को वह अपना लक्षय बना कर इस पृथ्वी की रक्षा के लिए अपने जीवन को यग्यीय बनाते हैं । यह बुद्धिमान पुरुष, यह ज्ञानी लोग , यह धीर लोग सदा एसे कार्य करते हैं , जिस मे लोकहित छुपा हो , जो जनहित के हों , सर्वहितकारी कार्य ही उनके जीवन का ध्येय होता है । दूसरों की सेवा करने में तथा दूसरों को सुखी करने में उन्हें आनन्द आता है । यह सदा लोगों को ज्ञान का पाठ पढाते हैं , जीवन में सुख के साधन लोगों को बांटते रहते हैं तथा इस प्रकार की शिक्षा देते हुए यह लोगों को प्रेम से जीवन यापन करने की शिक्षा देते रहते हैं । इस प्रकार के उपदेशों के द्वारा उन्हें लडाई के उन्माद से बचाए रखते हैं ।
३. विद्वान लोगों को सन्मार्ग दिखावे:=
वेद का इस मन्त्र के माध्यम से उपदेश देते हुए परमपिता परमात्मा कहते हैं कि हे बुद्धिमान पुरुष ! तूं बुद्धि का स्वामी है , तेरे अन्दर धीरता है , तूं ज्ञान का भण्डार है , इस नाते तूं प्रकर्षेण ज्ञान का सेवन करने वाली क्रियाओं को , गतिविधियों को सेवन कर अर्थात प्रयोग में ला । इन्हें ग्रहण कर । यदि हम यज्ञ को एक चम्मच मानें तो उपदेश है कि यज्ञ के चम्मच को तूं मजबूती से अपने हाथ से पकड । लोगों के मनों में ज्ञान को दीप्त करना एक प्रकार का यज्ञ ही है । अत: जिस प्रकार इस चम्मच से यज्ञग्नि में घी डाला जाता है , उस प्रकार ही तूं लोगों के मनों में , लोगों के ह्रदयों में , लोगों के मस्तिष्क में ज्ञान की अग्नि को दीप्त करने के लिए अपने उपदेश रुपि घी से सेचन कर । हे ज्ञानी पुरुष ! तूं विनाशक प्रवृतियों व युद्धोन्मादी शत्रुओं का नाश करने वाला है । इतना ही नहीं तूं लोगों के ह्रदय के मनोमालिन्य को धोकर उनके अन्दर की द्वेष भावना को दूर करने वाला है । तूं अपने उपदेशों के द्वारा अज्ञानी लोगों में निरन्तर ज्ञान का उपदेश देता रह , ज्ञान की वर्षा करते रह , उनके मालिन्य को धोने का कार्य करता रह । लोगों पर एसी ज्ञान की वर्षा करते हुए उन सब मालिन्य , द्वेष की भावना रुपी अग्नि को बुझा दो और उसके स्थान पर लोगों को प्रेम की शिक्षा देकर , प्रेम का पाठ देकर उन्हें सन्मार्ग पर लाने का काम कर ।

डा. अशोक आर्य