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पण्डित ताराचरण से शास्त्रार्थ: प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

 

महर्षि का पण्डित ताराचरण से जो शास्त्रार्थ हुआ था, उसकी

चर्चा प्रायः सब जीवन-चरित्रों में थोड़ी-बहुत मिलती है। श्रीयुत

दज़जी भी इसके एक प्रत्यक्षदर्शी थे, अतः यहाँ हम उनके इस

शास्त्रार्थ विषयक विचार पाठकों के लाभ के लिए देते हैं। इस

शास्त्रार्थ का महज़्व इस दृष्टि से विशेष है कि पण्डित श्री ताराचरणजी

काशी के महाराज श्री ईश्वरीनारायणसिंह के विशेष राजपण्डित थे।

पण्डितजी ने भी काशी के 1869 के शास्त्रार्थ में भाग लिया था।

विषय इस शास्त्रार्थ का भी वही था अर्थात् ‘प्रतिमा-पूजन’।

पण्डित ताराचरण अकेले ही तो नहीं थे। साथ भाटपाड़ा (भट्ट

पल्ली) की पण्डित मण्डली भी थी। महर्षि यहाँ भी अकेले ही

थे, जैसे काशी में थे। श्रीदज़ लिखते हैं, ‘‘शास्त्रार्थ बराबर का न

था, कारण ताराचरण तर्करत्न में न तो ऋषि दयानन्द-जैसी

योग्यता तथा विद्वज़ा थी और न ही महर्षि दयानन्द-जैसा वाणी

का बल था। इस शास्त्रार्थ में बाबू भूदेवजी, बाबू श्री अक्षयचन्द

सरकार तथा पादरी लालबिहारी दे सरीखे प्रतिष्ठित महानुभाव उपस्थित

थे।’’