हुगली में महर्षि का हुगली कालेज के प्राध्यापक (प्राचार्य भी
रहे) से ईसाईमत विषयक शास्त्रार्थ हुआ। ऋषि के जीवनी लेखकों
ने प्रा0 दे से उनके शास्त्रार्थ का उल्लेख किया है। श्रीदज़ ने
एतद्विषयक जो संस्मरण लिखे हैं, उन्हें हम यहाँ देते हैं।
‘‘अगले चार दिन तक हमारी परीक्षा रही, हम परीक्षा में व्यस्त
रहे, तथापि हम कम-से-कम एक बार ऋषि-दर्शन को जाया करते
थे। एक दिन हमने पण्डितजी (ऋषिजी) के पास रैवरेण्ड लाल
बिहारी दे को जो हुगली कॉलेज में प्राध्यापक थे, देखा। उनके साथ
कुछ और पादरी भी थे। वे पण्डितजी के साथ ईसाईमत की
विशेषताओं पर गर्मागर्म वादविवाद में व्यस्त थे। अल्प-आयु के
होने के कारण हम शास्त्रार्थ की युक्तियों को तो न समझ सके और
न उस शास्त्रार्थ की विशेषताओं व गज़्भीरता को अनुभव कर सके,
परन्तु एक बात का हमें विश्वास था कि श्रोताओं पर पण्डितजी की
अकाट्य युक्तियों एवं चमकते-दमकते तर्कों का जो सर्वथा मौलिक
व सहज स्वाभाविक थे, अत्यन्त उज़म प्रभाव पड़ा। लोग उनकी
वक्तृत्व कला, बाइबल सज़्बन्धी उनके विस्तृत ज्ञान से बड़े प्रभावित
हुए। जब मैं एफ0ए0 में पढ़ता था तो पादरी लालबिहारी दे ने
भी इस तथ्य की पुष्टि की थी।1