पाप-कर्म करने के धार्मिक दिन1
24 दिसज़्बर से 27 दिसज़्बर 1924 ई0 को सनातन धर्म सभा भटिण्डा का वार्षिकोत्सव था। बार-बार आर्य-सिद्धान्तों के बारे में अनर्गल प्रलाप किया गया। शङ्का-समाधान के लिए विज्ञापन
में ही सबको आमन्त्रण था। पण्डित श्री मनसारामजी शङ्का करने पहुँचे तो पौराणिक घबरा गये। पण्डित श्री मनसारामजी के प्रश्नों से पुराणों की पोल ज़ुल गई। चार प्रश्नों में से एक यह था कि पौराणिक ग्रन्थों में मांस-भक्षण का औचित्य ज़्यों? उत्सव के पश्चात् पौराणिकों ने पं0 गिरधर शर्माजी को फिर बुलाया। आपने कहा मांसभक्षण का विधान इसलिए है कि अभक्ष्य का भक्षण करनेवाला विशेष दिनों में ही मांस खाए, इस पर पण्डित मनसारामजी ने कहा यदि यह पाप
कर्मों की धार्मिक विधि है तो फिर मनुस्मृति में मांस-भक्षण के लिए दण्ड ज़्यों?